मध्यप्रदेश की प्रमुख कला और मूर्तिकला
Art and Sculpture of Madhya Pradesh मध्यप्रदेश की संस्कृति भारतीय संस्कृति सी प्राचीन है , मध्यप्रदेश के अलग – अलग भागों में विभिन्न कला जैसे शिल्पकला , प्रस्तर कला , मूर्तिकला और स्थापत्य कला के अनुपम उदाहरण देखने को मिलते है । कला और मूर्तिकला Art and Sculpture of Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश की कला :-
मध्य प्रदेश के विभिन्न अंचलों में आदिवासी एवं ग्रामीण जनसंख्या का बाहुल्य होने के कारण विभिन्न तरह की शिल्प कलाओं की उत्पत्ति हुई है।Art and Sculpture of Madhya Pradesh
कंघी शिल्प :-
बंजारा जनजाति कंघी बनाने का कार्य करती है , मध्यप्रदेश में कंघी शिल्प के प्रमुख केंद्र उज्जैन, रतलाम ,नीमच आदि है। आदिवासियों द्वारा कंघियों पर अलंकरण (गोदना, भित्ति चित्रों का निर्माण) किया जाता है।Art and Sculpture of Madhya Pradesh
टेराकोटा शिल्प :-
मिट्टी से संबंधित प्राचीनतम शिल्पकला टेराकोटा शिल्प कला है। मंडला जिले में निवास करने वाली जनजातियां पुनिया और अरहरिया का संबंध टेराकोटा शिल्पकला से है। टेराकोटा शिल्प में बड़ी देवी और फुलवारी देवी की प्रतिमाओं का निर्माण प्रमुखता से किया जाता है। इस शिल्प में तरह-तरह के खिलौने सजावटी सामानों और गमलों का निर्माण किया जाता है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
काष्ठ शिल्प :-
मध्यप्रदेश में काष्ठ शिल्प की परंपरा प्राचीन कल से है । पाषाण काल से ही मनुष्य ने गाड़ी के पहियों ,देवी देवताओं की मूर्ति ,घरों के दरवाजों, पाटों ,मुकुट आदि के रूप में काष्ठ शिल्प का निर्माण किया है । प्रदेश में कोरकू एवं भील आदिवासी क्षेत्रों (मुरेना , झाबुआ ,अलीराजपुर ) में काष्ठ शिल्प का महत्वपूर्ण विकास हुआ है । यहां बनी लकड़ी की सामग्रियों की मांग महानगरों सहित यूरोपीय देशों में अच्छी मांग होती है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
खराद शिल्प :-
खराद सागवान ,दूधी , कदम्ब, गुरजेल, मेडला,सलाई खैर आदि वृक्षों की लकड़ी पर की जाती है। लकड़ी को सुडौल व आकर्षित रूप देने के लिये खराद पर कसा जाता है। खराद कला में खिलौनों और सोफा सेट के पाओं को आकर्षित रूप दिया जाता है। मध्यप्रदेश के श्योपुर कला ,बुधनी घाट, रीवा, मुरैना की खराद कला प्रसिद्ध है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
छीपा शिल्प :-
छीपा शिल्प में विभिन्न छापों को कपड़े पर हाथ से उकेरा जाता है। यह मुख्यत: भील जनजाति से संबंधित है। बाघ, कुक्षी ,मनावर, उज्जैन छीपा शिल्प के प्रमुख केंद्र हैं । उज्जैन का छीपा शिल्प को भेरूगढ़ के नाम से देश एवं विदेश में जाना जाता है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
चंदेरी साड़ी :-
अशोकनगर जिले में स्थित चंदेरी , कलात्मक साडियों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। चंदेरी में रेशमी एवं सूती दोनों तरह के साडि़यां बनाई जाती हैं । चंदेरी साड़ी की बनावट प्रायः सामान्य होती है ,लेकिन उसके पल्लू पर विभिन्न रंगीन धागों से संयोजित बड़े आकार के बेल बूटे ,मोर बत्तख आदि की आकृतियां काढ़ी जाती हैं। नाल फेरना चंदेरी साड़ी निर्माण से संबंधित है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
महेश्वरी साड़ी :-
महेश्वरी साड़ी उद्योग कला को स्थापित करने का श्रेय प्रसिद्ध शासिका अहिल्या बाई होल्कर को है ।महेश्वर के पारंपरिक बुनकरों द्वारा बनाई गई सूती और रेशमी साडि़यां सुंदर, टिकाऊ पक्के रंग की होती हैं । मनमोहक पल्लू, कलात्मक किनारे, जरी रेशम की कढाई यहां की प्रमुख कलात्मक इकाई है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
भरेवा शिल्प :-
भरेवा का मुख्य अर्थ है- धातु की ढलाई। बैतूल जिले के आदिवासियों द्वारा धातु से दैनिक उपयोग की कलात्मक वस्तुएं तथा देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
पीतल शिल्प :-
टीकमगढ़ और नरसिंहपुर का चीचली गांव पीतल शिल्प के लिये प्रसिद्ध है। टीकमगढ़ का पीतल शिल्प का निर्माण मिट्टी का प्राथमिक सांचा तैयार कर किया जाता है। जिसे ‘गाबो’ कहा जाता है। चीचली के शिल्पकारों को कसेरे, ठठेरे या तमेंरे कहा जाता है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
लौह शिल्प :-
अगरिया जनजाति लोहे को पिघलाकर तीर, भाला, कुल्हाड़ी, चाकू आदि का निर्माण करती है।यह जनजाति मुख्यत: डिंडोरी, बालाघाट, मंडला, सीधी और शहडोल में पाई जाती है।लोहे को पिघलाने के तरीकों के आधार पर इस जनजाति को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- पथरिया अगरिया व खुटिया अगरिया। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
सुपारी शिल्प :-
मध्यप्रदेश का रीवा जिला सुपारी शिल्प के लिये विश्व विख्यात है। सुपारियों का प्रयोग करके मूर्तियां बनाई जाती है । जैसे भगवान गणेश की मूर्ति अत्यधिक प्रसिद्ध है। इसके साथ ही कोरकू जनजाति के मृतक स्तंभ मंडो और भीलों के कलात्मक दिवाव्या लकड़ी कला के श्रेष्ठ नमूने हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
खिलौना शिल्प :-
सीहोर जिले की बुधनी तहसील काष्ठ कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है ।यहां पर लकड़ी के खिलौने बनाए जाते हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
लाख शिल्प :-
लखार जाति लाख का काम करने के लिये जानी जाती है। जो लाख के आभूषण, खिलौनों और साज सज्जा सामान आदि का निर्माण करती है। मध्यप्रदेश में उज्जैन, इंदौर ,रतलाम, मंदसौर महेश्वर लाख शिल्प के परंपरागत केंद्र हैं ।
प्रस्तर शिल्प :-
मध्यप्रदेश में प्रस्तर शिल्प का विकास मंदसौर एवं रतलाम जिले में हुआ है इन जिलों में गुर्जर, गायरी ,जाट और भील जातियों द्वारा पत्थरों से मूर्तियां, सौंदर्यत्मक एवं दैनिक उपयोग की विभिन्न वस्तुओं को बनाया जाता है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
मिट्टी शिल्प :-
मध्यप्रदेश में मिट्टी शिल्प सर्वाधिक प्राचीन शिल्प कला है। मनुष्य ने अपने आरंभिक समय से ही विभिन्न तरह के खिलौने मूर्तियां आदि बनाए हैं ।प्रदेश में मिट्टी शिल्प झाबुआ ,मंडला के कुम्हारों द्वारा विशेष रूप से बनाए जाते हैं । बैतुल के शिल्प भी अपनी निजी विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
गुडि़या शिल्प :-
मध्यप्रदेश में नए पुराने कपड़ो एवं कागजों से गुडि़या बनाने की लोकपरंपरा है । ग्वालियर अंचल में कपड़े ,लकड़ी और कागज से बनाई जाने वाली गुडि़यों की परंपरा अनुष्ठानिक है । ग्वालियर अंचल की गुडि़याएं अपने विशिष्ट आकार, प्रकार एवं वेशभूषा के कारण अधिक प्रसिद्ध है। वर्ष 2023 में झाबुआ के शांति और रमेश परमार को इस कला के लिए पद्म श्री मिला है । Art and Sculpture of Madhya Pradesh
कठपुतली शिल्प :-
कठपुतली के द्वारा ऐतिहासिक घटनाओं एवं कथाओं को नाटकीय अंदाज में प्रस्तुत किया जाता है । कठपुतली की प्रसिद्ध पात्र अनारकली , अकबर, बीरबल ,पुंगी वाला घुड़सवार, सांप और जोगी होते हैं । मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों में कठपुतली शिल्प प्रचलित है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
तीर धनुष कला :-
तीर धनुष कला प्रदेश की भील ,पहाड़ी कोरवा,कमार आदि जनजातियों में तीर धनुष कला विशेष प्रचलित है।तीर धनुष बांस, मोर पंख ,लकड़ी, लोहा, रस्सी आदि से बनाए जाते हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
बांस शिल्प :-
प्रदेश में बांस शिल्प का प्रमुख केंद्र झाबुआ और मंडला है , यहां के आदिवासी बांस से सौंदर्य परक एवं जीवन उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
पत्ता शिल्प :-
पेड़ के पत्तों से कलात्मक खिलौने ,चटाई, आसन दूल्हा दुल्हन के मोढ़े़ आदि बनाए जाते हैं । पत्तों की कोमलता के अनुरूप होने में विभिन्न कलाकृतियों को बनाया जाता है । पत्ता शिल्प के कलाकार मुख्यतः झाड़ू बनाने वाले होते हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश में मूर्तिकला
मध्यप्रदेश की स्थापत्य एवं वास्तुकला के उद्भव तथा विकास के इतिहास में हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता, मौर्य वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश, गुप्तवंश , राष्ट्रकूट, पल्लव और चंदेलवंश आदि शासकों का उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्थापत्य कला भवन निर्माण एवं शिल्प विज्ञान का सम्मिलित रूप होता है। प्रारम्भिक मंदिर निर्माण प्रक्रिया का विकास मौर्यकाल में हुआ जबकि इसका वास्तिवक विकास गुप्तकाल में हुआ है। स्थापत्य कला के विकास की दृष्टि से भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग गुप्त काल को कहा जाता है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
स्थापत्य कला की प्रमुख शैलियां निम्नलिखित हैं-
पंचायतन शैली :-
इस शैली में मुख्य मंदिर अन्य चार मंदिरों द्वारा आसपास से घिरा होता है।
झांसी में स्थित देवगढ़ का दशावतार मंदिर पंचायतन शैली का प्रमुख उदाहरण है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
नागर शैली :-
इस शैली का विकास 8वी से 13वी शताब्दी में हुआ है। यह हिमालय से विध्याचंल पर्वत तक फैली हुआ है। उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कर्नाटक के बीजापुर, पूर्व में बंगाल व पशिचम में पंजाब तक नागर शैली के मंदिर पाये जाते हैं। इनके अंदर चार कक्ष होते हैं। मंदिर के ऊपर एकरेखीय शिखर होते हैं। शिखर के ऊपरी हिस्से को आमलक कहा जाता है। मंदिर जिस ऊंचे चबूतरे पर बना होता है, उसे जगाती कहते हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
इस शैली में मंदिर के दो भाग होते हैं- गर्भग्रह और मंडप।
गर्भग्रह :-
यह वर्गाकार कक्ष होता है, जिसमें आराध्य देव की मूर्ती स्थापित की जाती है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
मंडप :-
यह स्तम्भ वाले खम्बों से बनता है
भीतरी ईट मंदिर कानपुर, लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर और दशावतार मंदिर झांसी आदि इस शैली के मंदिर के उदाहरण हैं।
मध्यप्रदेश के संदर्भ में खजुराहो के मंदिर नागर शैली के अंतर्गत सबसे बड़ा मंदिर समूह है । ओरछा का चतुर्भज मंदिर, देवगढ का विष्णु मंदिर, मंदसौर का पशुपति नाथ मंदिर और ग्वालियर का तेली का मंदिर, सांस-बहू का मंदिर आदि नागर शैली के प्रमुख मंदिर है ।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर नागर शैली व द्रविड़ शैली का मिलाजुला स्वरूप है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
द्रविड़ शैली :-
यह शैली मुख्यत: दक्षिण भारतीय क्षेत्र से संबंधित हैं। इसका विकास 8वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक हुआ है। पल्लव वंश के शासकों में इस शैली का विकास हुआ है। चोल वंश द्वारा इस शैली को शिखर तक पहुंचाया था। विघटन की शुरूआत विजयनगर या संगम काल में प्रारंभ हुआ । द्रविड शैली के मंदिर बहुमंजिला बने होते हैं। मंदिर के आसपास तालाब बना होता था, जिसे कल्याणी कहा जाता था।
कांचीपुरम का कैलाश मंदिर, महाबलीपुरम के तटीय मंदिर, बादामी का विरूपाक्ष मंदिर, तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर आदि द्रविड़ शैली के प्रमुख उदाहरण हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
बेसर शैली :-
नागर शैली और द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप बेसर शैली कहलाती है। इसका विकास विध्यांचाल से कृष्णा नदी तक हुआ है। इसे चालुक्य शैली के नाम से भी जाना जाता है क्योकि चालुक्य शासको के समय इस शैली की शुरुआत हुई थी । इस शैली में मंदिरों के शिखर गोलाकार या अर्धवृताकार होते हैं। ऐहोल का दुर्गा मंदिर, सट्टदकल का विरूपाक्ष मंदिर, मैसूर को होयलेश्वर मंदिर बेसर शैली का उदाहरण है। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
नायक शैली :-
द्रविड़ शैली से नायक शैली का विकास हुआ है। मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, श्रीरंगम का रंगनाथ मंदिर और रामेश्वर मंदिर इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं। Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Major Art and Sculpture of Madhya Pradesh
The culture of Madhya Pradesh is as ancient as the Indian culture, unique examples of various arts such as sculpture, stone art, sculpture and architecture are seen in different parts of Madhya Pradesh. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Art of Madhya Pradesh: –
Due to abundance of tribal and rural population in various regions of Madhya Pradesh, different types of crafts have originated. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Comb craft :-
Banjara group does the work of making comb, Ujjain, Ratlam, Neemuch etc. are the major centers of comb craft in Madhya Pradesh. Adornment (tattooing, making of murals) is done on the combs by the tribals. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Terracotta Crafts: –
The oldest craft related to clay is the terracotta craft. Punia and Arhariya group living in Mandla district are related to terracotta craft. The idols of Badi Devi and Phulwari Devi are prominently made in terracotta craft. Various types of toys, decorative items and pots are made in this craft. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Wood craft: –
The tradition of wood craft in Madhya Pradesh dates back to ancient times. Since the stone age, man has made wooden crafts in the form of cart wheels, idols of gods and goddesses, doors of houses, doors, crowns etc. Significant development of wood crafts has taken place in Korku and Bhil tribal areas (Morena, Jhabua, Alirajpur) in the state. The demand for wooden materials made here is good in European countries including metropolitan cities. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Lathe craft :-
Lathe is done on the wood of Sagwan, Dudhi, Kadamba, Gurjel, Medla, Salai Khair etc. trees. To give a shapely and attractive look to the wood, it is tightened on the lathe. In lathe art, the legs of toys and sofa sets are given attractive shape. Lathe art of Sheopur Kala, Budhni Ghat, Rewa, Morena of Madhya Pradesh is famous. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Chhipa craft :-
In Chhipa craft various prints are hand carved on the cloth. It mainly belongs to Bhil group. Bagh, Kukshi, Manavar, Ujjain are the main centers of Chhipa craft. The Chhipa craft of Ujjain is known by the name of Bherugarh in the country and abroad. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Chanderi Saree: –
Chanderi, located in Ashoknagar district, is world famous for artistic sarees. Both silk and cotton sarees are made in Chanderi. The texture of Chanderi saree is usually normal, but on its pallu, the shapes of big size vines, peacocks, ducks etc. combined with different colored threads are embroidered. Nal Ferna is related to Chanderi saree manufacturing. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Maheshwari Saree :-
The famous ruler Ahilya Bai Holkar is credited with establishing the Maheshwari sarees industry. The cotton and silk sarees made by the traditional weavers of Maheshwar are beautiful, durable and colourfast. The attractive pallu, the artistic border, the zari silk embroidery is the major artistic unit here. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Bhareva Craft: –
The main meaning of Bharewa is metal casting. The tribals of Betul district make artistic objects of daily use and idols of gods and goddesses from metal. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Brass Craft :-
Tikamgarh and Chichli village of Narsinghpur are famous for brass crafts. The brass craft of Tikamgarh is manufactured by preparing a primary mold of clay. Which is called ‘Gabo’. The artisans of Chichli are called Kasere, Thathere or Tamre. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Iron Craft: –
The Agaria group manufactures arrows, spears, axes, knives, etc. by melting iron. This group is mainly found in Dindori, Balaghat, Mandla, Sidhi and Shahdol. On the basis of methods of smelting iron, this group can be divided into two parts – Patharia Agaria and Khutia Agaria. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
nut craft :-
Rewa district of Madhya Pradesh is world famous for betel nut craft. Idols are made using betel nuts. Like the idol of Lord Ganesha is very famous. Along with this, the dead pillars of the Korku group are the best samples of the artistic Divavya wood art of Mando and Bhils. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Toy Craft :-
Budhni Tehsil of Sehore district is famous for wooden artifacts. Wooden toys are made here. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Lac craft :-
Lakhar caste is known for doing lac work. Which manufactures lac jewellery, toys and furnishings etc. Ujjain, Indore, Ratlam, Mandsaur Maheshwar are the traditional centers of lac craft in Madhya Pradesh. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Stone craft: –
In Madhya Pradesh, stone craft has been developed in Mandsaur and Ratlam districts. In these districts, Gurjar, Gayari, Jat and Bhil castes make sculptures, aesthetic and various items of daily use from stones. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Clay craft :-
Clay craft is the oldest craft in Madhya Pradesh. Man has made various types of toys, idols etc. from his early times. Clay crafts in the state are specially made by the potters of Jhabua, Mandla. The crafts of Betul are also famous because of their individual characteristics. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Doll Craft :-
In Madhya Pradesh, there is a folk tradition of making dolls from new old clothes and papers. The tradition of dolls made of cloth, wood and paper is ritualistic in Gwalior region. The dolls of Gwalior region are more famous because of their distinctive shape, type and costumes. In the year 2023, Shanti and Ramesh Parmar of Jhabua have got Padma Shri for this art.
Puppet Craft :-
Historical events and stories are presented in a dramatic way through puppets. The famous characters of Kathputli are Anarkali, Akbar, Birbal, Pungi Wala Horseman, Snake and Jogi. Puppet craft is prevalent in all the regions of Madhya Pradesh.
Arrow bow art :-
The art of bow and arrow is especially prevalent in the group of Bhil, Pahari Korwa, Kamar etc. Arrow bows are made from bamboo, peacock feathers, wood, iron, rope etc. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Bamboo Craft :-
Jhabua and Mandla are the main centers of bamboo crafts in the state, the tribals here make aesthetic and life-useful items from bamboo. Art and Sculpture of Madhya Pradesh
Leaf craft :-
Artistic toys, mats, seat covers for the bride and groom etc. are made from the leaves of the tree. Various artefacts are made in keeping with the softness of the leaves. The artists of leaf craft are mainly broom makers.
Sculpture in Madhya Pradesh :-
The Harappa or Indus Valley Civilization, Maurya Dynasty, Sunga Dynasty, Kushan Dynasty, Gupta Dynasty, Rashtrakutas, Pallavas and Chandela rulers etc. have made notable and important contributions in the history of the origin and development of Madhya Pradesh’s architecture. Architecture is a combined form of building construction and craftsmanship. The initial temple building process was developed in the Mauryan period, while its real development took place in the Gupta period. From the point of view of the development of architecture, the Gupta period is called the golden age of Indian history.
The main styles of architecture are as follows–
Panchayat style: –
In this style the main temple is surrounded by four other temples.
The Dashavatar temple of Deogarh located in Jhansi is a prime example of the Panchayatan style.
Nagara style: –
This style has been developed from 8th to 13th century. It extends from the Himalayas to the Vidhyachal mountain. Nagara style temples are found in the Himalayas in the north, Bijapur in Karnataka in the south, Bengal in the east and Punjab in the west. There are four chambers inside them. There are linear shikharas on top of the temple. The upper part of the peak is called amalak. The high platform on which the temple is built is called Jagati.
In this style the temple has two parts – the sanctum sanctorum and the mandapa.
womb: –
This is a square room, in which the idol of the deity is installed.
Pavilion :-
it is made of pillared pillars
Bhitari Brick Temple Kanpur, Lingaraj Temple Bhubaneswar and Dashavatara Temple Jhansi etc. are examples of this style of temple.
In the context of Madhya Pradesh, the temples of Khajuraho are the largest temple group under Nagara style. Chaturbhaj Temple of Orchha, Vishnu Temple of Deogarh, Pashupati Nath Temple of Mandsaur and Teli Temple of Gwalior, Sans-Bahu Temple etc. are the main temples of Nagara style.
The Mahakaleshwar temple of Ujjain is a mixed form of Nagara style and Dravida style.
Dravidian style: –
This style mainly belongs to the South Indian region. Its development has taken place from the 8th century to the 18th century. This style has developed in the rulers of Pallava dynasty. This style was taken to the pinnacle by the Chola dynasty. The disintegration began in the Vijayanagara or Sangam period. Dravidian style temples are made of multi-storied. A pond was built around the temple, which was called Kalyani.
The Kailasa Temple at Kanchipuram, the Coastal Temple at Mahabalipuram, the Virupaksha Temple at Badami, the Brihadeswara Temple at Tanjore are prime examples of the Dravidian style.
Besar style: –
The mixed form of Nagara style and Dravida style is called Besar style. Its development has happened from Vidhyanchal to Krishna river. It is also known as Chalukya style because this style started during the time of Chalukya rulers. The shikharas of the temples in this style are circular or semicircular. The Durga Temple at Aihole, the Virupaksha Temple at Sattadakal, the Hoyleswara Temple at Mysore are examples of the Besar style.
Nayak style :-
Nayak style has evolved from Dravidian style. The Meenakshi Temple at Madurai, the Ranganatha Temple at Srirangam and the Rameswara Temple are prominent examples of this style.