औरंगजेब (1658-1707ई.)
- औरंगजेब का जन्म 3नवंबर,1618ई. को उज्जैन के निकट दोहन नामक स्थान पर शाहजहाँ की प्रिय पत्नी मुमताज महल के गर्भ से हुआ था।
- 18 मई, 1637ई. को औरंगजेब का विवाह फारस राजघराने की राजकुमारी दिलरास बानो बेगम (रबिया बीबी) से हुआ था।
- सामूगढ की विजय के उपरांत एवं आगरा पर अधिकार कर लेने के बाद औरंगजेब ने 21 जुलाई, 1658 ई. को दिल्ली में अपना प्रथम राजाभिषेक कराया और अबुल मुजफ्फर आलमगीर की उपाधि धारण की।
- किन्तु खंजवा और देवराई के युद्ध में क्रमशः शुजा और दारा को अंतिम रूप से परास्त करने के बाद पुनः 5जून 1659ई. को दिल्ली में अपना औपचारिक राज्याभिषेक करवाया।
औरंगजेब के सैन्य अभियान-
- औरंगजेब ने 1660ई. में मीर जुमला को बंगाल का गवर्रनर बनाकर उसे पूर्वी प्रांतों विशेषतः असम और अराकान के विद्रोही जमीदारों का दमन करने का आदेश दिया।
- मीरजुमल्ला ने 1661ई. में कूचबिहार पर आक्रमण किया
- और 1662ई. में अहोमों को संधि करने के लिए विवश कर दिया।
- जिसके फलस्वरूप अहोमों ने मुगलों को वार्षिक कर तथा युद्ध की क्षतिपूर्ति देना स्वीकार कर लिया।
- 1663ई. में मीरजुमला की मृत्यु के पश्चात शाइस्ता खाँ को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया।शाइस्ता खाँ ने 1666ई. में पुर्तगालियों को दंड दिया, बंगाल की खाङी में स्थित सोनद्वीप पर अधिकार कर लिया तथा अराकान के राजा से चटगाँव जीत लिया।
औरंगजेब की दक्कन नीति-
- औरंगजेब शाहजहाँ के काल में 1636-44ई. तक दक्षिण के सूबेदार के रूप में रहा
- और औरंगाबाद को मुगलों के दक्षिण सूबे की राजधानी बनाया था।
- औरंगजेब दक्षिण के राज्यों के स्वतंत्र अस्तित्व को इसलिए समाप्त करना चाहता था,
- क्योंकि बिना इनके अस्तित्व को समाप्त किये मराठों की शक्ति को समाप्त करना असंभव था।
- दक्षिण की पाँच स्वतंत्र सल्तनतों में बरार को 1574ई. में मुर्तजा खाँ ने अहमद नगर में मिलाया तथा बीदर को 1619ई. में इब्राहीम आदिलशाह II ने बीजापुर में मिला लिया था।
- 1682ई. में अपने पुत्र शाहजादा अकबर का पीछा करता हुआ
- औरंगजेब दक्षिण भारत पहुँचा किन्तु उसके पश्चात उसे उत्तर भारत में आने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ।
- कहा जाता है कि- यही दक्षिण भारत औरंगजेब का कब्रिस्तान सिद्ध हुआ।
- औरंगजेब के दक्षिण में लङे गये युद्धों को दो भागों में विभक्त किया जाता है–
1) बीजापुर एवं गोलकुडा के विरुद्ध युद्ध एवं विलय
2) मराठों की चार पीढियों शिवाजी(1640-80), शंभा जी(1680-89), राजाराम(1689-1700) एवं उसकी विधवा ताराबाई (1700-1707) के विरुद्ध युद्ध।
- औरंगजेब ने 1665ई. में राजा जयसिंह (जयपुर) को बीजापुर एवं शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा।
- फलवस्वरूप सर्वप्रथम जयसिंह ने शिवाजी को पुरंदर की संधि (1665ई.) करने के लिए विवश कर दिया,
- किन्तु उसे बीजापुर के विरुद्ध सफलता नहीं मिली और रास्ते में बुरहानपुर में जयसिंह की मृत्यु हो गई।
- 1676ई. में मुगल सूबेदार दिलेर खाँ ने बीजापुर के मंत्री सिद्दी मसूद को मिलाकर संधि करने के लिए विवश कर दिया।
- और सुल्तान की बहन शहजादी शहरबानू का विवाह शहजादा आदम के साथ करने के लिए दिल्ली भेज दिया गया।
- 22सितंबर, 1686ई. को अंतिम आदिलशाही सुल्तान सिकंदर आदिलशाह ने औरंगजेब के सामने आत्मसर्पण कर दिया
- और फलस्वरूप बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।
- औरंगजेब ने सिकंदर आदिलशाह का स्वागत किया उसे खान का पद दिया एवं 1 लाख रुपये वार्षिक पेंशन दी गयी।
युद्ध एवं विलय
- 32 वर्ष की अल्पायु में ही सिकंदर आदिलशाह की मृत्यु हो गई। और उसे उसकी अंतिम इच्छा के अनुसार धार्मिक गुरू शेख फहीमुल्ला की कब्र के पास दफना दिया गया।
- बीजापुर को साम्राज्य में मिलाने के बाद औरंगजेब ने 1686ई. में ही शाहजादा शाहआलम को गोल कुण्डा पर आक्रमण करने के लिए भेजा क्योंकि गोल कुण्डा को साम्राज्य में मिलाकर ही वह निष्कंटक रूप से मराठों से संघर्ष करना चाहता था। इसके अलावा गोल कुंडा विश्वभर में बङे हीरों की बिक्री का एक महत्त्वपूर्ण बाजार था।
- 1687 ई. में औरंगजेब ने स्वयं ही गोलकुंडा पर आक्रमण करके किले को घेर लिया। किन्तु आठ महीने के घेरे के बावजूद भी मुगलों को कोई सफलता नहीं मिली।
- अंत में औरंगजेब ने अब्दुल्लागनी नामक एक अफगान को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया और उसने अपने मालिक से विश्वासघात करके किले का फाटक खोल दिया। और मुगलों के किले को जीतकर अक्टूंबर, 1687ई. में गोल कुण्डा के किले को उसी तरह सोने की कुंजियों से खोला जिस तरह अकबर ने असीरगढ के किले को खोला था।
औरंगजेब के समय हुये विद्रोह
जाटों का विद्रोह-
- औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह आगरा और दिल्ली क्षेत्र में बसे जाटों ने किया।
- इस विद्रोह की रीढ अधिकतर किसान और काश्तकार थे किन्तु नेतृत्व मुख्यतः जमीदारों ने किया।
- जाटों का विद्रोह आर्थिक कारणों को लेकर शुरू हुआ इस विद्रोह को सतमानी आंदोलन का समर्थन प्राप्त था।
सतनामी विद्रोह-
- 1672 ई. में किसानों और मुगलों के बीच मथुरा के निकट नारनौल नामक स्थान पर एक युद्ध हुआ
- जिसका नेतृत्व सतनामी नामक एक धार्मिक संप्रदाय ने किया था।
अफगान विद्रोह-
- 1667 ई.में युसुफजई कबीले ( पश्चिमोत्तर क्षेत्र में स्थित ) के एक सरदार भागू ने एक प्राचीन शाही खानदान का वंशज होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति मुहम्मदशाह को राजा और स्वयं को उसका वजीर घोषित करके विद्रोह कर दिया। अमीर खाँ के नेतृत्व में मुगलों द्वारा इस विद्रोह को दबाया गया।
बुंदेलों का विद्रोह-
- मुगलों और बुंदेलों के बीच पहली बार संघर्ष मधुकर शाह के समय शुरू हुआ।
- 1707ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड का स्वतंत्र शासक बन गया।
- औरंगजेब के समय मुगलों का असम के अहोमों के बीच लंबा संघर्ष हुआ,
- मीरजुमला के नेतृत्व में मुगल सेना ने अहोमों पर आक्रमण कर उन्हें संधि के लिए मजबूर किया(1663ई.)।
- 1671ई. में अहोमों ने अपने इलाके मुगलों से दोबारा छीन लिया
शाहजादा अकबर का विद्रोह-
- मेवाङ के शासक तथा मारवाङ के राठौरों से सहयोग का आश्वासन पाकर शाहजादा अकबर ने 11जनवरी, 1681 को अपने को स्वतंत्र बादशाह घोषित कर दिया।
- शाहजादा अकबर ने 1681ई. में अजमेर के निकट औरंगजेब पर आक्रमण कर दिया। असफल होकर वह शंभा जी के पास सहायता के लिए पहुँचा किन्तु औरंगजेब के दक्षिण पहुँच जाने के कारण वह फारस भाग गया और वहीं उसकी मृत्यु हो गयी।
पुर्तगालियों का दमन-
- 1686ई. में औरंगजेब ने अंग्रेजों को हुगली में परास्त कर उन्हें बाहर खदेङ दिया।
सिक्ख विद्रोह-
- औरंगजेब के खिलाफ बगावत करने वालों में सिक्ख अंतिम थे। यग औरंगजेब के काल का एक मात्र विद्रोह था जो धार्मिक कारणों से हुआ था।
- औरंगजेब के खिलाफ सिक्खों का विद्रोह प्रत्यक्ष रूप से 1675 ई. में गुरू तेग बहादुर को प्राणदंड दिये जाने के बाद शुरू हुआ।
- 1704ई. में गुरू गोविंद सिंह ने औरंगजेब के पास – जफरनामा भेजा था।
- इस प्रकार औरंगजेब की धर्मांध एवं अदूरदर्शिता पूर्ण नीति ने सिक्खों के एक धार्मिक संप्रदाय को एक लङाकू एवं सैनिक संप्रदाय के रूप में बदल दिया।
मृत्यु :-
इस प्रकार अपनी अदूरदर्शिता पूर्ण नीतियों के खिलाफ हुये विद्रोहों तथा दक्कनी राज्यों एवं मराठों का दमन करते हुये 3 मार्च 1707ई. को अहमदनगर के पास औरंगजेब की दुखद मृत्यु हो गई। औरंगजेब के शव को दौलताबाद से 4 किमी. दूर स्थित फकीर बुरहानुद्दीन (शेख जैन-उल-हक) की कब्र के अहाते में दफना दिया गया।