बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म

स्थापना – बौद्ध धर्म के संस्थापक एवं प्रवर्तक सिद्धार्थ(गौतम बुद्ध) थे।

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय :-

जन्म: 563 ई.पू. लुम्बिनी (कपिलवस्तु)

पिता: शुद्धोधन(शाक्य क्षत्रिय कुल, कपिल वस्तु के शासक)

माता: महामाया(कोलिय वंश)

पालन पोषण: सिद्धार्थ के जन्म के 1 सप्ताह में ही उनकी माता महामाया की मृत्यु हो गयी थी। इस कारण सिद्धार्थ का पालन पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी द्वारा किया गया।

पत्नि: यशोधरा(अन्य नाम – बिम्बा, गोपा)

पुत्र: राहुल

बुद्ध के जन्म के समय भविष्यवाणी – कालदेव एवं कौण्डिल्य नामक ब्राह्मण ने बुद्ध के समय भविष्यवाणी की और कहा कि यह बालक चक्रवर्ती राजा अथवा सन्यासी होगा।

चार दृश्य जिनसे सिद्धार्थ विचलित हुए एवं सन्यास की ओर बढ़े –

  • बूढ़ा व्यक्ति
  • बीमार व्यक्ति
  • मृत व्यक्ति की अर्थी
  • एक सन्यासी

महाभिनिष्क्रमण – उपरोक्त चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया यह बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहलाया।

गृह त्याग के समय सिद्धार्थ कंथक नामक घोड़ा एवं चन्ना/छन्दक नामक सारथी के साथ गए थे।

ज्ञान की खोज में सिद्धार्थ सर्वप्रथम वैशाली पहुंचे यहां वे अलाकरकलाम के आश्रम में गए। अलारकलाम से सिद्धार्थ ने सांख्य दर्शन की शिक्षा प्राप्त की।

वैशाली से राजगृही के पास रूद्रकराम पुत्र के आश्रम पहुंचे यहां पर उन्होंने योग का ज्ञान प्राप्त किया।

ज्ञान प्राप्ति :-

35 वर्ष की आयु में निरंजना नदी के किनारे वैशाख पूर्णिमा की रात्री में पीपल वृक्ष के नीचे सत्य एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस घटना को निर्वाण कहा जाता है।

ज्ञान प्राप्ति के बाद उरूवेला का यह क्षेत्र बोधगया एवं सिद्धार्थ ,बुद्ध कहलाये।

धर्मचक्रप्रवर्तन:-  

गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के बाद प्रथम उपदेश एवं दीक्षा दिए जाने की घटना धर्मचक्रप्रवर्तन कहलाती है।

नोट – गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश एवं दीक्षा ऋषि पत्तन(सारनाथ) में दिए। इसका उल्लेख संयुक्त निकाय में मिलता है। प्रथम उपदेश में ही गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्यों को बताया।

बुद्ध 45 वर्षो तक धर्मोपदेश देते रहे उन्होंने अपने भ्रमण काल के दौरान पूर्व में चम्पा, पश्चिम में कुरूक्षेत्र, उत्तर में कपिलवस्तु दक्षिण में कौशाम्बी तक की यात्रा की। बुद्ध उज्जैन नहीं गए थे उन्होंने अपने शिष्य महाकच्चायन को उज्जैन भेजा।

483 BC में गोतम बुद्ध की मृत्यु हो गयी ।

चार आर्य सत्य :-

    दुख: दुख है।

    1.दुःख समुदाय: दुख का कारण है।

    2.दुःख निरोध: दुःख का निदान है।

    3.दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा: दुःख निदान के उपाय हैं।

अष्टांगिक मार्ग:–  

इसका संबंध चौथे आर्य सत्य से है।

  • सम्यक् दृष्टि – वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान रखना
  • सम्यक् संकल्प – आसक्ति, द्वेष, हिंसा से मुक्त विचार
  • सम्यक् वाक् – अप्रिय वचनों का परित्याग
  • सम्यक् कर्मांत  – दान, दया, सत्य, अहिंसा, सत्कर्मो का अनुसरण
  • सम्यक् आजीव – सदाचार के नियमों के अनुकूल जीवन व्यतीत करना
  • सत्यक् व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न करना
  • सम्यक् स्मृति – मिथ्या धारणाओं का परित्याग कर सच्ची धारणा रखना
  • सम्यक् समाधि – मन अथवा चित्र की एकाग्रता

बोद्ध संघ की स्थापना :-

गौतम बुद्ध ने सारनाथ में बौद्ध संघ की स्थापना की

बोद्ध संघ का संगठन गणतांत्रिक प्रणाली पर आधारित था।

संघ में प्रवेश पाने के लिए कम से कम 15 वर्ष की आयु का होना आवश्यक था। माता पिता की आज्ञा आवश्यक थी।

अस्वस्थ, शारीरिक विकलांगता, ऋणी, सैनिक एवं दासों का प्रवेश संघ में वर्जित था।

किसी प्रस्ताव में मतभेद होने पर मतदान करवाया जाता था। मतदान गुप्त एवं प्रत्यक्ष दोनों रूप में होता था। गणपूर्ति – 20 सदस्य

संघ के सदस्य/अनुयायी 2 वर्गो में बंटे थे –

    भिक्षु/भिक्षुणी: ये संन्यासी जीवन जीने वाले लोग थे।

    उपासक/उपासिकाएं: ये गृहस्थ जीवन में रहकर बौद्ध धर्म अनुसरण करने वाले लोग थे।

बौद्ध संघ की सदस्यता सभी जातियों के लिए सुलभ थी। चोर एवं हत्यारों का प्रवेश वर्जित था।

संघ में प्रवेश के समय त्रिरत्न(बुद्ध, संघ और धम्म) में विश्वास करने की शपथ लेनी होती थी। तथा 10 प्रतिज्ञाओं को दोहराना पड़ता था। 20 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद पूर्ण सदस्यता दी जाती थी।

बौद्ध भिक्षुओं के लिए आवश्यक 10 शील(सिद्धांत) :-

  • दुसरे के धन की इच्छा न करना
  • झूठ नहीं बोलना
  • हिंसा से दूर रहना
  • मादक द्रव्यों का सेवन न करना
  • व्यभिचार नहीं करना
  • संगीत एवं नृत्यों में भाग नहीं लेना
  • सुगंधित द्रव्यों का उपयोग नहीं करना
  • असमय भोजन नहीं करना
  • सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना
  • किसी प्रकार के द्रव्य का संचय न करना

प्रथम पांच सिद्धांतों का पालन करना उपासकों(गृहस्थों) के लिए भी अनिवार्य था। संन्यासियों/भिक्षु/भिक्षुणियों के लिए ये सभी सिद्धांत अनिवार्य थे।

बौद्ध धर्म की मान्यताएं/दर्शन :-

1.बौद्ध दर्शन क्षणिकवादी है। बौद्ध दर्शन अन्तःशुद्धिवादी है।

2.बौद्ध दर्शन कर्मवादी है। कर्म का आशय कायिक, वाचिक व मानसिक चेष्टाओं से है।

3.बौद्ध दर्शन अनीश्वरवादी है। बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है।

4.बौद्ध धर्म अनात्मवादी है।(बौद्ध धर्म की शाखा सामित्य ने आत्मा को माना है।)

5.बौद्ध धर्म का मूलाधार चार आर्य सत्य हैं।

6.बौद्ध धर्म के त्रिरत्न: बुद्ध, संघ एवं धम्म।

प्रमुख बौद्ध संगीतियां :-

प्रथम बौद्ध संगीति :-

समय :- 483 ई.पू.   

स्थल :- राजगृही       

अध्यक्ष :- महाकश्यप  

संरक्षक :- अजातशत्रु  

निवरण/कार्य :- सुत पिटक एवं विनय पिटक रचना

द्वितीय बौद्ध संगीति :-

समय :- 383 ई.पू.    

स्थल :- वैशाली सब्ब  

अध्यक्ष :- कमीर/स्थवीरयश    

संरक्षक :- कालाशोक  

निवरण/कार्य :- बोद्ध संघ महासंघिक व स्थावीर दो भागो में बंट गया

तृतीय बौद्ध संगीति :-

समय :-  250 ई.पू.  

स्थल :- पाटलिपुत्र     

अध्यक्ष :- मोगलिपुत्र तिस्स     

संरक्षक :- अशोक      

निवरण/कार्य :- अभिधम्मपिटक का संकलन

चतुर्थ बौद्ध संगीति :-

समय :-  98 ईसवी   

स्थल :- कुण्डलवन     

अध्यक्ष :- वसुमित्र     

संरक्षक :- कनिष्क     

निवरण/कार्य :- हीनयान व महायान में विभाजन

बौद्ध धर्म के अष्ठ महास्थान :-

जिन स्थानो पर गौतम बुद्ध के अवशेष पर स्तूपो का निर्माण किया गया है –

  • लुम्बिनी
  • बोधगया
  • सारनाथ
  • कुशीनारा
  • श्रावस्ती
  • संकीसा
  • राजगृह
  • वैशाली

बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण :-

  • धार्मिक वाद-विवाद से अलग रहा इस कारण जनसामान्य आकर्षित
  • वर्ण व्यवस्था की निन्दा करने से निम्न वर्गो का समर्थन प्राप्त
  • बौद्ध संघ सभी जातियों के लिए खुला था।
  • ब्राह्मणवाद के विरोधी लोगों का बौद्ध धर्म की ओर रूचि।
  • बुद्ध का व्यक्तित्व व उपदेश प्रणाली
  • उपदेश की भाषा पालि(जनसाधारण की भाषा थी)
  • संघ की स्थापना, महत्वपूर्ण शासकों का सहयोग इत्यादि।

बौद्ध धर्म का विभाजन – हीनयान और महायान :-

हीनयान :-

  • गौतम बुद्ध को महापुरूष मानते थे।
  • यह व्यक्तिवादी धर्म था। अर्थात् सभी को अपने व्यक्तिगत प्रयत्नों से मोक्ष प्राप्त करना चाहिए।
  • इनका मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं था
  • इसकी साधना पद्धति कठोर थी एवं भिक्षु जीवन का हिमायती था
  • इनका साहित्य पाली भाषा में था।

महायान :-

  • गौतम बुद्ध को देवता मानते थे।
  • परसेवा तथा परोपकार पर बल।
  • ये सभी का कल्याण चाहते थे।
  • इनका मानना था कि बोधिसल गुणों का हस्तानन्तरण हो सकता है।
  • ये मूर्ति पूजा के पक्ष में थे। बुद्ध की भक्ति।
  • सिद्धांत सरल व सुलभ थे, भिक्षुओं के साथ उपासकों का भी महत्व था।
  • इनका साहित्य संस्कृत भाषा में था।

बौद्ध साहित्य :-

त्रिपिटक – ये बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं-

  • सुत्त पिटक
  • विनय पिटक
  • अभिधम्म पिटक

1. सुत्त पिटक –

इसमें बुद्ध के धार्मिक विचारों एवं उपदेशों का संग्रह है। यह गद्य एवं पद्य का मिश्रण है। यह पिटक 5 निकायों में विभाजित है।

    दीर्घ निकाय: महात्मा बुद्ध के जीवन के आखिरी समय का वर्णन।

    मज्झिम निकाय

    संयुक्त निकाय

    अंगुत्तर निकाय: 16 महाजनपदों का वर्णन मिलता है।

    खुद्दक निकाय

2. विनय पिटक –

इसमें बौद्ध भिक्षुओं के अनुशासन सम्बन्धी नियम एवं संघ की कार्यप्रणाली की व्याख्या है।

3. अभिधम्म पिटक –

इसमें महात्मा बुद्ध के उपदेशों एवं सिद्धान्तों की दार्शनिक व्याख्या की गयी है। इस पिटक का संकलन अशोक के समय तृतीय बौद्ध संगीति में किया गया था।

बौद्ध धर्म के पतन के कारण :-

  • बौद्ध धर्म में कर्मकाण्डों का प्रभाव बढ़ गया था।
  • पालि भाषा त्यागकर संस्कृत अपनाना
  • मुर्ति पूजा का प्रारंभ
  • भक्तों से भारी मात्रा में दान प्राप्ति
  • ब्राह्मण धर्म का पुनरूत्थान
  • बौद्ध विहारों में कुरीतियां एवं भोग विलासिता
  • कुछ शासकों द्वारा बौद्ध विरोधी दृष्टिकोण।

बौद्ध धर्म व जैन धर्म में तुलना :-

समानताएं :-

  • दोनों धर्म अनीश्वरवादी थे।
  • दोनों धर्म वैदिक सिद्धांत नहीं मानते थे।
  • दोनों धर्मो द्वारा यज्ञ विधान एवं कर्मकाण्डों का विरोध
  • दोनों धर्मो द्वारा जाति प्रथा एवं लिंग भेद की निन्दा
  • दोनों धर्मो द्वारा पुनर्जन्म में विश्वास

असमानताएं

  • जैन धर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल किन्तु बौद्ध धर्म जैन धर्म से कम अहिंसा पर बल देता है।
  • जैन धर्म आत्मा को शाश्वत मानता है अर्थात जीव में आत्मा होती है किन्तु बौद्ध धर्म ईश्वर एवं आत्मा दोनों को ही नहीं मानता(जैन धर्म आत्मा वादी है तथा बौद्ध धर्म अनात्मवादी है।)
  • जैन धर्म में कठोर तपस्या आत्महत्या(संलेखना) को मान्यता है बौद्ध धर्म में ऐसा नहीं है।
  • जैन धर्म का विकास भारत के बाहर नहीं जबकि बौद्ध धर्म वैश्विक है।
  • जैन धर्म वर्ण व्यवस्था की निन्दा नहीं करता जबकि बौद्ध धर्म वर्ण व्यवस्था की निन्दा करता है।