भारत में मुस्लिम आक्रमण
भारतीय इतिहास में अरब और भारत संबंध का विशेष महत्त्व है। भारत में सबसे पहले आने वाले मुसलमान अरब हैं।
अरबों की विजय का क्षेत्र सिंध व मुल्तान थे।
मुहम्मद बिन क़ासिम
- मुहम्मद बिन क़ासिम इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त का एक अरब सिपहसालार था।
- उसने 17 साल की उम्र में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी इलाक़ों पर हमला बोला और सिन्धु नदी के साथ लगे सिंध और पंजाब क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया।
- यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले मुस्लिम राज का एक बुनियादी घटना–क्रम माना जाता है।
- इसने सर्वप्रथम भारत पर जजिया कर लगाया।
- इस समय दाहिर सिंध का शासक था।
- इसके द्वारा 712 ई. में भारत पर आक्रमण किया गया।.
प्रारंभिक तुर्क आक्रमण: सुबुक्तगीन
- भारत में सबसे पहले जो तुर्क आक्रमणकारी आये, वे गजनी के शासक कुल से संबंधित थे।
- 962 ईस्वी में अलप्तगीन नामक एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने गजनी में एक स्वतंत्र तुर्की राज्य की स्थापना की।
- उसके दामाद सुबुक्तगीन ने उसके वंश का अंत कर 977 ईस्वी में राजगद्दी हथिया ली।
- वह एक शक्तिशाली शासक था, जो भारत पर आक्रमण की योजनाएं तैयार करने लगा।
- पंजाब के हिन्दू शासक जयपाल ने उसकी योजनाओं को प्रारंभ में ही विफल कर देने के उद्देश्य से 986-87 ईस्वी में एक बङी सेना के साथ महमूद गजनवी पर आक्रमण कर दिया।
- कई दिनों तक भीषण युद्ध चलता रहा तथा किसी भी पक्ष की विजय न हो सकी। परंतु दुर्भाग्यवश भारी वर्षा तथा हिमपात से भारतीय सैनिकों का उत्साह भंग हो गया, जिसके फलस्वरूप जयपाल को अत्यन्त अपमानजनक संधि करनी पङी। हर्जाने के रूप में जयपाल ने सुबुक्तगीन को 50 हाथी तथा कुछ प्रदेश देने का वचन दिया परंतु लाहौर पहुँचकर उसने संधि की अपमानजनक शर्तों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
- सुबुक्तगीन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर लूट पाट की।
- जयपाल ने 991 ईस्वी में कुछ मित्र राजाओं की सहायता से गजनी पर पुनः आक्रमण किया, किन्तु युद्ध में सुबुक्तगीन की ही विजय हुई।
- इस विजय के फलस्वरूप सुबुक्तगीन ने पेशावर तक के भू भाग पर अपना अधिकार कर लिया।
- 997 ईस्वी में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी।
भारत पर महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण (1001-1026 ई.)
- सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद 998 ईस्वी में गजनी का राजा बना।
- राज्यारोहण के समय उसकी आयु 27 वर्ष थी। वह अत्यन्त महत्वाकांक्षी युवक था। कहा जाता है, कि बगदाद के खलीफा से यमिनुद्दौला तथा अमीन–उल–मिल्लाह का सम्मानित विरुद प्राप्त करते समय उसने यह प्रतिज्ञा की थी, कि वह प्रतिवर्ष भारत पर एक आक्रमण करेगा।
- मध्य एशिया में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिये उसे धन की भी आवश्यकता थी,
- जो भारत में आसानी से प्राप्त हो सकता था।
- अतः इस्लाम धर्म के प्रचार तथा धन प्राप्त करने की लालसा से उसने भारत पर अनेक आक्रमण किये।
महमूद ग़ज़नवी (971-1030 ई.)
- ग़ज़नवी मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित ग़ज़नवी वंश का महत्वपूर्ण शासक था,
- जो पूर्वी ईरान में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है।
- वह तुर्क मूल का था और अपने समकालीन सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ।
- उसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और संलग्न मध्य एशिया, पाकिस्तान और उत्तर–पश्चिम भारत शामिल थे।
- उसके युद्धों में फ़ातिमी सुल्तानों (शिया), काबुल शाहिया राजाओं (हिन्दू) और कश्मीर का नाम प्रमुखता से आता है।
- भारत में इस्लामी शासन लाने और आक्रमण के दौरान लूटपाट मचाने के कारण भारतीय हिन्दू समाज में उसको एक लुटेरे आक्रांता के रूप में जाना जाता है।
- सोमनाथ के मन्दिर को लूटना इस कड़ी की एक महत्वपूर्ण घटना थी।
भारत पर आक्रमण
- उसने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया यह स्पष्ट नहीं है,
- किन्तु सर हेनरी इलियट ने महमूद ग़ज़नवी के 17 आक्रमणों का वर्णन किया,
- जिनका उल्लेख निम्न प्रकार से है–
- प्रथम आक्रमण (1001 ई.)- महमूद ग़ज़नवी ने अपना पहला आक्रमण 1001 ई. में भारत के समीपवर्ती नगरों पर किया। पर यहां उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
- दूसरा आक्रमण (1001-1002 ई. – अपने दूसरे अभियान के अन्तर्गत महमूद ग़ज़नवी ने सीमांत प्रदेशों के शासक जयपाल के विरुद्ध युद्ध किया।
- उसकी राजधानी बैहिन्द पर अधिकार कर लिया।
- जयपाल इस पराजय के अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने आग में जलकर आत्मदाह कर लिया।
- तीसरा आक्रमण (1004 ई.)- महमूद ग़ज़नवी ने उच्छ के शासक वाजिरा को दण्डित करने के लिए आक्रमण किया।
- महमूद के भय के कारण वाजिरा सिन्धु नदी के किनारे जंगल में शरण लेने को भागा और अन्त में उसने आत्महत्या कर ली।
- चौथा आक्रमण (1005 ई.)- 1005 ई. में महमूद ग़ज़नवी ने मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिण्डा के शासक आनन्दपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया।
- पाँचवा आक्रमण (1007 ई.)- पंजाब में ओहिन्द पर महमूद ग़ज़नवी ने जयपाल के पौत्र सुखपाल को नियुक्त किया था। सुखपाल ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था और उसे नौशाशाह कहा जाने लगा था। 1007 ई. में सुखपाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। महमूद ग़ज़नवी ने ओहिन्द पर आक्रमण किया और नौशाशाह को बन्दी बना लिया गया।
- छठा आक्रमण (1008 ई.)- महमूद ने 1008 ई. अपने इस अभियान के अन्तर्गत पहले आनन्दपाल को पराजित किया। बाद में उसने इसी वर्ष कांगड़ी पहाड़ी में स्थित नगरकोट पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में महमूद को अपार धन की प्राप्ति हुई।
सातवाँ आक्रमण (1009 ई.)-
- इस आक्रमण के अन्तर्गत महमूद ग़ज़नवी ने अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय प्राप्त की।
- आठवाँ आक्रमण (1010 ई.)- महमूद का आठवां आक्रमण मुल्तान पर था।
- वहां के शासक दाऊद को पराजित कर उसने मुल्तान के शासन को सदा के लिए अपने अधीन कर लिया।
- नौवा आक्रमण (1013 ई.)- अपने नवे अभियान के अन्तर्गत महमूद ग़ज़नवी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया।
- दसवाँ आक्रमण (1013 ई.)- महमूद ग़ज़नवी ने अपना दसवां आक्रमण नन्दशाह पर किया। हिन्दूशाही शासक आनन्दपाल ने नन्दशाह को अपनी नयी राजधानी बनाया। वहां का शासक त्रिलोचनपाल था। त्रिलोचनपाल ने वहाँ से भाग कर कश्मीर में शरण लिया। तुर्को ने नन्दशाह में लूटपाट की।
- ग्यारहवाँ आक्रमण (1015 ई.)- महमूद का यह आक्रमण त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल के विरुद्ध था, जो कश्मीर पर शासन कर रहा था। युद्ध में भीमपाल पराजित हुआ।
- बारहवाँ आक्रमण (1018 ई.)- अपने बारहवें अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। उसने बुलंदशहर के शासक हरदत्त को पराजित किया। उसने महावन के शासक बुलाचंद पर भी आक्रमण किया। 1019 ई. में उसने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया। वहाँ के शासक राज्यपाल ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। राज्यपाल द्वारा इस आत्मसमर्पण से कालिंजर का चंदेल शासक क्रोधित हो गया। उसने ग्वालियर के शासक के साथ संधि कर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और राज्यपाल को मार डाला।
- तेरहवाँ आक्रमण (1020 ई.)- महमूद का तेरहवाँ आक्रमण 1020 ई. में हुआ था। इस अभियान में उसने बारी, बुंदेलखण्ड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया।
- चौदहवाँ आक्रमण (1021 ई.)- अपने चौदहवें आक्रमण के दौरान महमूद ने ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया। कालिंजर के शासक गोण्डा ने विवश होकर संधि कर ली।
- पन्द्रहवाँ आक्रमण (1024 ई.)- इस अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात), तथा अन्हिलवाड़ (गुजरात) पर विजय स्थापित की।
सोलहवाँ आक्रमण (1025 ई.)-
- इस 16वें अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ को अपना निशाना बनाया। उसके सभी अभियानों में यह अभियान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। सोमनाथ पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने वहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ दिया तथा अपार धन प्राप्त किया। यह मंदिर गुजरात में समुद्र तट पर अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध था। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिन्दुओं का कत्ल कर दिया। पंजाब के बाहर किया गया महमूद का यह अंतिम आक्रमण था।
- सत्रहवाँ आक्रमण (1027 ई.)- यह महमूद ग़ज़नवी का अन्तिम आक्रमण था। यह आक्रमण सिंध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के विरुद्ध था। इसमें जाट पराजित हुए।
- महमूद के भारतीय आक्रमण का वास्तविक उद्देश्य धन की प्राप्ति था। वह एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था। महमूद की सेना में सेवंदराय एवं तिलक जैसे हिन्दू उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति थे।
- महमूद के भारत आक्रमण के समय उसके साथ प्रसिद्ध इतिहासविद्, गणितज्ञ, भूगोलावेत्ता, खगोल एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता तथा ‘किताबुल हिन्द’ का लेखक अलबरूनी भारत आया। अलबरूनी महमूद का दरबारी कवि था।
- ‘तहकीक-ए-हिन्द’ पुस्तक में उसने भारत का विवरण लिखा है
- इसके अतिरिक्त इतिहासकार ‘उतबी’, ‘तारीख-ए-सुबुक्तगीन’ का लेखक ‘बेहाकी’ भी उसके साथ आये।
- बेहाकी को इतिहासकार लेनपूल ने ‘पूर्वी पेप्स’ की उपाधि प्रदान की है।
- ‘शाहनामा’ का लेखक ‘फ़िरदौसी’, फ़ारस
- का कवि जारी खुरासानी विद्धान तुसी, महान् शिक्षक और विद्वान् उन्सुरी, विद्वान् अस्जदी और फ़ारूखी आदि दरबारी कवि थे।
मुहम्मद गौरी (1173-1206 ई.)
- मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी तथा उसके बाद मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किया
- तथा कत्लेआम कर लूटपाट मचाई। भारत में तुर्क साम्राज्य का श्रेय मुहम्मद गौरी को दिया जाता है।
- मुहम्मद गौरी गजनी तथा हेरात के मध्य स्थित एक छोटे से पहाङी क्षेत्र गजनी का शासक था।
- 12 वी शता. के मध्य में गोरी वंश का उदय हुआ।
- गोर वंश की नींव अला-उद-दीन जहांसोज ने रखी थी।
- जहांसोज की मृत्यु के बाद उसके पुत्र सैफ-उद-दीन गोरी के सिंहासन पर बैठा।
- गोरी साम्राज्य का आधार उत्तर – पश्चिम अफगानिस्तान था। प्रारंभ में गोरी गजनी के अधीन था।
- मुहम्मद गौरी शंसबनी वंश का था।
- मुहम्मद गौरी का पूरा नाम शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी था।
- ग्यासुद्दीन मुहम्मद गौरी इसका बङा भाई था।
- ग्यासुद्दीन मुहम्मद गौरी ने 1163 ई.में गोर को राजधानी बनाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित करा।
- 1173 ई. में ग्यासुद्दीन ने अपने छोटे भाई मुहम्मद गौरी को गोर का क्षेत्र सौंप दिया
- तथा स्वयं गजनी पर अधिकार कर ख्वारिज्म के विरुद्ध संघर्ष शुरु कर दिया।
- मुहम्मद गौरी ने भारत की ओर प्रस्थान कर दिया।
- महम्मद गौरी एक अफगान सेनापति था। यह एक महान विजेता तथा सैन्य संचालक भी था।
मुहम्मद गौरी के आक्रमण-
- मुहम्मद गौरी के आक्रमण का उद्देश्य महमूद गजनवी के आक्रमणों से अलग था।
- यह भारत में लूटपाट के साथ-साथ इस्लामी साम्राज्य के विस्तार का भी इच्छुक था।
- इसीलिए भारत में तुर्क साम्राज्य का संस्थापक मुहम्मद गौरी को ही माना जाता है।
- गौरी ने प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर किया ।
- इस समय यहाँ पर शिया मत को मानने वाले करामाती शासन कर रहे थे।
- ये करामाती मुस्लिम बनने से पहले बौद्ध थे। गौरी ने मुल्तान को जीत लिया था।
- गौरी ने 1178 ई. में द्वितीय आक्रमण गुजरात पर किया लेकिन मूलराज द्वितीय ने उसे आबू पर्वत की तलहटी में पराजित किया। भारत में मुहम्मद गौरी की यह पहली पराजय थी। इस युद्ध का संचालन नायिका देवी ने किया था जो मूलराज की पत्नी थी।
- इस युद्ध से सबक लेते हुए गौरी ने पहले संपूर्ण पंजाब पर अपना अधिकार कर भारत पर अधिकार करने के लिये प्रयास शुरु किये।
- 1179-86 ई. के बीच पंजाब को जीत लिया था।
- 1179 में स्यालकोट पर अधिकार कर लिया ।
- 1186 ई. तक गौरी ने लाहौर, श्यालकोट तथा भटिण्डा (तबरहिंद) को जीत लिया था।तबरहिंद पर पृथ्वीराज चौहान तृतीय का अधिकार था। तबरहिंद पृथ्वीराज चौहान का सीमावर्ती क्षेत्र था। गौरी ने इस पर अधिकार किया था जिस वजह से गौरी व चौहान के बीच युद्ध होना अवश्यंभावी हो गया था।
तराइन का प्रथम युद्ध –
1191 ई. में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय ने गौरी को पराजित किया
लेकिन उसकी शक्ति को समाप्त नहीं कर सका।
तराइन का द्वितीय युद्ध-
1192 ई. में गौरी ने पृथ्वीराज तृतीय को हराकर अजमेर तथा दिल्ली तक के क्षेत्रों को जीत लिया तथा इसी के साथ चौहान साम्राज्य का नाश हुआ। तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज के सामंत तथा दिल्ली के तोमर शासक गोविंदराज की मृत्यु हुई।
- चंदबरदाई के अनुसार युद्ध में पराजय के बाद पृथ्वीराज तृतीय को बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया। शब्दभेदी बाण छोङ कर मुहम्मद गौरी को मार दिया गया।
- हसम निजामी के अनुसार युद्ध में पराजित होने के बाद पृथ्वीराज ने अधीनता स्वीकार कर ली और गौरी ने उसे अजमेर में अपने अधीन रखकर शासन करवाया। आगे गौरी के विरुद्ध विद्रोह करने की कोशिश की जिसमें पृथ्वीराज मारा गया।(अधिकांश विद्वान इसे ही स्वीकार करते हैं, जिसकी पुष्टि अजमेर से प्राप्त सिक्कों से होती है जिसमें एक तरफ घोङे की आकृति तथा मुहम्मद – बिन – साम लिखा है। तथा दूसरी तरफ बैल की आकृति बनी है एवं पृथ्वीराज लिखा हुआ है।
- 1192 ई. के बाद गौरी ने अपने दास ऐबक को भारतीय क्षेत्रों का प्रशासक घोषित कर दिया।
- 1194 ई. में गौरी ने ऐबक की सहायता से चंदावर (यू. पी. इटानगर) के युद्ध में कन्नौज के शासक जयचंद को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- 1194 ई. के बाद गौरी के दो सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक तथा बख्तियार खिलजी ने भारतीय क्षेत्रों को जीतना प्रारंभ किया।
बख्तियार खिलजी
- ने बिहार तथा बंगाल का पश्चिमी क्षेत्र सेन शासक लक्ष्मणसेन से जीता
- और इसी दौरान उसने नालंदा (बिहार) विश्व विद्यालय , विक्रमशिला(बंगाल) एवं ओदंतीपुर (बंगाल) विश्व विद्यालय को नष्ट कर दिया।
- बख्तियार खिलजी को असम के माघ शासक ने पराजित किया
- तथा 1205 ई. में बख्तियार खिलजी के ही सैन्य अधिकारी अलिमर्दान ने मुहम्मद गौरी की हत्या कर दी।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1195 ई. में अन्हिलवाङा के शासक भीम द्वितीय पर आक्रमण किया लेकिन ऐबक पराजित हुआ।
- ऐबक ने 1197 में अन्हिलवाङा पर फिर से आक्रमण किया
- और उसे लूट लिया भीम द्वितीय ने अधीनता स्वीकार नहीं की
- लेकिन लगातार युद्धों से उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी।
- अतः भीम की मृत्यु के बाद गुजरात में सोलंकी वंश के स्थान पर बघेल वंश की स्थापना हुई।
- 1203 ई. में ऐबक ने चंदेल शासक परमर्दिदेव से कालींजर को जीत लिया था।
मुहम्मद गौरी की मृत्यु-
1206 ई.में मुहम्मद गौरी ने पंजाब के खोखर जनजाति के विद्रोह को दबाने के लिये भारत पर अंतिम आक्रमण किया तथा इस अभियान के दौरान दमयक (पश्चिमि पाकिस्तान) के पास गौरी की हत्या कर दी गई। गौरी इस समय सिंध नदी के किनारे नमाज पढ रहा था।
- गौरी ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने दासों को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
- गौरी ने लक्ष्मी की आकृति वाले कुछ सिक्के चलाये थे।
- गौरी की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य उसके तीन प्रमुख दासों में विभाजित हुआ।
- कुतुबुद्दीन ऐबक – भारतीय क्षेत्र। ऐबक ने दिल्ली को इस्लामी साम्राज्य का केन्द्र बनाया।
- ताजुद्दीन यल्दोज – गजनी क्षेत्र।
- नासीरुद्दीन कुबाचा – उच्च तथा सिंध (पाकिस्तान)।