भारतीय उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी :-
Inscoper भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान का गठन 1962 में प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई (भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक) की अध्यक्षता में किया गया था। जिसने परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करना प्रारंभ किया था।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का पुनर्गठन करके 15 अगस्त 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की गई।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सूचारू रूप से संचालित करने के लिए अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग का 1972 में गठन किया गया तथा इसरों को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया।
वस्तुतः भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत नवंबर, 1963 में तिरूअनंतपुरम स्थित सेंट मेरी मैकडेलेन चर्च के एक कमरे में हुई थी। 21 नवंबर, 1963 को देश का पहाल साउंडिग रॉकेट ‘नाइक एपाश‘ (अमेरिका निर्मित) को थुम्बा भूमध्य रेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। भारतीय उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी
भारत के प्रमुख अंतरिक्ष केन्द्र एवं इकाईयां :-
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरूअनंतपुरम :-
यह केन्द्र रॉकेट अनुसंधान तथा प्रक्षेपण यान विकास योजनाओं को बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में अग्रणी भूमिका निभाता है। अभी तक सभी प्रक्षेपण यानों यथा- SSLV, PSLV, GSLVE इसी केंद्र से विकसित किया गयाहै।
इसरों उपग्रह केन्द्र बंगलौर :-
इस केन्द्र में उपग्रह परियोजनाओं के डिजाइन, निर्माण, परीक्षण और प्रबंध कार्य समपन्न किए जाते हैं।
अंतरिक्ष उपग्रह केन्द्र, अहमदाबाद :-
इस केंद्र के प्रमुख कार्यों में दूर संचार व टेलीविजन में उपग्रह का प्रयोग, प्राकृतिक संसाधनों के सर्वेक्षण और प्रबंध के लिए दूरसंवेदन, मौसम विज्ञान, भू-मापन, पर्यावरण पर्यवेक्षण आदि शामिल हैं।
शार केन्द्र, हरिकोटा :-
यह इसरो का प्रमुख प्रक्षेपण केन्द्र है, जो आंध्रप्रदेश के पूर्वी तट पर स्थित है। इस केन्द्र में भारतीय प्रक्षेपण यान के ठोस ईंधन रॉकेट के विभिन्न चरणों का पृथ्वी पर परीक्षण तथा प्रणोदक का प्रसंस्करण भी किया जाता है।
द्रव प्रणोदक प्रणाली केन्द्र :-
तिरूअनंतपुरम, बंगलौर और महेन्द्रगिरी (तमिलनाडु) में इस केन्द्र की शाखाएँ हैं। यह केन्द्र इसरो के उपग्रह प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के लिए, द्रव ईंधन से चलने वाली चालक नियंत्रण प्रणालियों और इंजनों के डिजाइन, विकास और आपूर्ति के लिए कार्यरत है। महेन्द्रगिरि में द्रव ईंधन में चलने वाले रॉकेट इंजनों का परीक्षण सुविधा उपलब्ध है।
इसरो टेलीमेट्री निगरानी एवं नियंत्रण नेटवर्क :-
इस नेटवर्क का मुख्यालय तथा उपग्रह नियंत्रण केंद्र बंगलौर में स्थित है। श्री हरिकोटा, तिरूअनंतपुरम, बंगलौर, लखनऊ, पोर्ट ब्लेयर और मॉरीशश में इसके भू-केन्द्र हैं। इसका प्रमुख कार्य इसरो के प्रक्षेपण यानों एवं उपग्रह मिशनों तथा अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों को टेलीमेट्री, निगरानी और नियंत्रण सुविधाएँ प्रदान करना है।
मुख्य नियंत्रण सुविधा, हासन :-
इनसैट उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद की सभी गतिविधियों यथा- उपग्रह को कक्षा में स्थापित करना, केन्द्र से उपग्रह का नियमित संपर्क स्थापित करना तथा कक्षा में उपग्रह की सभी क्रियाओं पर निगरानी एवं नियंत्रण दायित्व कर्नाटक स्थित मुख्य नियंत्रण सुविधा के पास है। इसरो का दूसरा मुख्य नियंत्रण सुविधा केन्द्र मध्यप्रदेश के भोपाल में 11 अप्रैल 2005 को स्थापित किया गया है।
इसरो जड़त्व प्रणाली इकाई, तिरूअंतरपुरम :-
इसरो की इस इकाई का प्रमुख कार्य प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के लिए जड़त्व प्रणाली का विकास करना है।
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद :-
अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत कार्यरत यह संस्थान अंतरिक्ष और संबद्ध विज्ञान में अनुसंधान एवं विकास करने वाला प्रमुख राष्ट्रीय केन्द्र है। भारतीय उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी
राष्ट्रीय दूर संवेदी एजेंसी, हैदराबाद :-
अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत कार्यरत यह एजेंसी उपग्रह से प्राप्त आंकडों का उपयोग करके पृथ्वी के संसाधनों की पहचान, वर्गीकरण और निगरानी करने की जिम्मेदारी निभाती है इसका प्रमुख केन्द्र बालानगर में है। इसके अतिरिक्त देहरादून स्थित दूरसंवेदी संस्थान भी राष्ट्रीय दूर संवेदी एजेंसी का ही एक अंग है।
उपग्रह प्रणाली :-
1960 के दशक में कृत्रिम उपग्रहों के संप्रेषण ने संचार के क्षेत्र में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया। इसके द्वारा लंबी दूरी तथा उच्च आवृत्ति संचार व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिली। इसमें उच्च आवृत्ति वाली तरंगों का संप्रेषण किया जा सकता है। जिससे अधिक बैंडविड्थ तथा अधिक क्षमता वाला संचार स्थापित किया जा सकता है। कृत्रिम उपग्रह फोन, टीवी, और कम्प्यूटर के लिए संचार का बेहतर माध्यम उपलब्ध कराता हैं यह सुदूर प्रदेशों तथा विश्व के किसी भी कोने में संचार उपलब्ध कराने में सक्षम है।
ट्रांसपोंडर :-
उपग्रह संचार में आकाश में स्थित उपग्रह पर एक ट्रांसमीटर तथा रिसीवर होता है जिसे रेड़ियो ट्रांसपोंडर कहा जाता है। वह ट्रांसपोण्डर दो आवृत्तियों पर काम करता है।
- सी बैंड C-Band – 4-6 MHz
- के-यू बैंड Ku- Band – 11-14 MHz
पृथ्वी से संप्रेषित संकेत उपग्रह के रिसीवर द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। इसे अपलिंक कहते हैं। ट्रांसपोडर इसे संवर्धित कर पुनः ट्रांसमीटर द्वारा पृथ्वी की सतह की ओर भेज देता है। इस डाउन लिंक कहते हैं। अपलिंक तथा डाउनलिंक की आृत्तियों में अंतर रखा जाता है ताकि संकेतों को आपस में मिलने से रोका जा सके।
संचार उपग्रह को भू-स्थैतिक कक्षा में पृथ्वी की सतह से 36000 किमी की ऊंचाई पर स्थापित किया जाता है। चूंकि ये तरंगे उच्च आवृत्ति की होती हैं, अतः आयनमंडल द्वारा परावर्तित नहीं होती।
उपग्रह की कक्षाएं :-
1- भू-स्थैततिक कक्षा :-
यह भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह से 36000 किमी की ऊंचाई पर स्थित कक्षा है। अधिकांश संचार उपग्रह इसी कक्षा में स्थापित किए जाते हैं
2- ध्रुवीय कक्षा :-
पृथ्वी की सतह से 1000 किमी की ऊंचाई पर धु्रवों के ठीक उपर स्थित कक्षा, जो भूमध्य रेखा से 90 डिग्री के कोण पर स्थित है।
3- इलिप्टिकल कक्षा :-
यह कक्षा भूमध्य रेखा से 63 डिग्री के कोण पर झुका होता है तथा इसका प्रयोग उच्च अक्षांशो पर संचार के लिए किए जाता है।
भू -स्थैतिक उपग्रह :-
भू-स्थैतिक उपग्रह वह उपग्रह है जो पृथ्वी के किसी स्थान की अपेक्षा स्थिर प्रतीत होता है। इसे पृथ्वी की सतह से 36000 किमी की उंचाई पर भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर स्थापित किया जाता है। अपनी कक्षा में इसकी गति पृथ्वी की गति के अनुरूप होती है जिससे यह हमेशा पृथ्वी की सतह पर स्थित किसी स्थान के ठीक ऊपर दिखाई देता है।
पूरी दुनिया को संचार प्रदान करने के लिए कम से कम तीन भू-स्थैतिक उपग्रहों की जरूरत पड़ती है। इस तहर एक भू-स्थैतिक उपग्रह पृथ्वी के एक तिहाई भाग पर सूचना का संप्रेषण कर सकता है।
वी-सैट उपग्रह :-
संचार उपग्रहों के उपयोग को आसान तथा कम खर्चीला बनाने के लिए छोटे आकार के एंटीना तथा कम क्षमता वाले ट्रांसमीटर रिसीवर का विकास किया गया जिसे वी-सैट का नाम दिया गया। इसमें एंटीना का व्यास 1 से 2 मीटर तक रखा जाता है। इसका उपयोग निजी व्यवसायिक उपभोक्ताओं को प्रमाणिक तथा विश्वसनीय संचार व्यवस्था स्थापित करने के लिए किया जाता है।
भारत में वी-सैट संचार सेवा का प्रारंभ 1988 में निकनेट की स्थापना से हुआ। वर्तमान में देश में प्रत्येक जिला मुख्यालय वी-सैट प्रणाली से जुड़ा हुआ है। वी-सैट का प्रयोग आधुनिक दूरसंचार व्यवस्था, जैसे ब्राडबैंड डाटा, इंटरनेट पर आवाज प्रसारण, समुद्री संचार, ईमेल, फैक्स आदि के लिए किया जाता है।
निकनेट :-
यह भारत सरकार के नियंत्रण में स्थापित नेटवर्क है जो सरकार की गतिविधियों, संसाधनों तथा सूचनाओं को सभी राज्यों को उपलब्ध कराता है। भारत के सभी जिले निकनेट से जुड़े हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा डाटा बेस नेटवर्क है। राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन, योजनाओं के निर्माण तथा सूचनाओं के आदान प्रदान में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी
एर्नेट ERNET – Educational and Research Network :-
शैक्षिक तथा अनुसंधान नेटवर्क (एर्नेट) सरकारी कोष से संचालित एक स्वतंत्र अभिकरण है। इसका उद्देश्य शिक्षा के विभिन्न आयामों तथा उनसे जुड़े अनुसंधान कार्यों को जन-जन तक पहुंचाना है। यह शैक्षणिक संस्थाओं तथा व्यवसायों के बीच कड़ी का काम करता है।
इनमारसैट INMARSAT- Indian Maritime Satellite :-
सुदूर समुद्र में उपग्रह के जरिये संचार सेवा उपलब्ध कराने के लिए 1979 में भारत सहित 72 देशों द्वारा एक सामुदायिक उपग्रह प्रणाली का प्रारंभ किया जिसे इनमारसैट नाम दिया गया। इस प्रणाली का उपयोग लंबी दूरीकी संचार व्यवस्था स्थापित करने के साथ-साथ जहाजों की स्थिति का पता लगाने तथा बचाव कार्य के लिये किया जाता है।
इनमारसैट का मुख्यालय लंदन में स्थित है। भारत में पूना के निकट आर्बी में इसका एक केन्द्र स्थापित किया गया है। इसके द्वारा सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में भी संचार व्यवस्था का सूत्रपात किया गया ।
उपग्रह
उपग्रह का नाम | प्रक्षेपण केंद्र | उद्देश्य |
आर्यभट्ट (1975 ई.) | पूर्व सोवियत संघ का बैंकानूर अंतरिक्ष केंद्र | वायु विज्ञान प्रयोग, सौर भौतिकी प्रयोग, खगोलीय प्रयोग तथा एक्सरे |
भास्कर-1 (1979 ई.) | बैंकानूर अंतरिक्ष केंद्र | जल विज्ञान, हिमस्खलन, समुद्र विज्ञान एवं वानिकी के क्षेत्र में भू-पर्यवेक्षण अनुसंधान करना |
भास्कर-2 (1981 ई.) | बैंकानूर अंतरिक्ष केंद्र | समुद्री सतह का ताप, समुद्री की स्थिति, बर्फ गिरने तथा पिघलने जैसी घटनाओं का व्यापक विश्लेषण. |
रोहिणी आरएस-1/ RS-1 (1980) | श्रीहरिकोटा से भारतीय प्रक्षेपण यान SLV-3 द्वारा प्रक्षेपित | रोहिणी श्रृंखला के उपग्रहों के प्रक्षेपण का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण यान SLV-3 का परीक्षण करना था. |
रिसोर्ट सैट-1 (17 अक्टूबर 2003) | पीएसएलवी/ PSLV(C-25) द्वारा श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया | भारत के अत्याधुनिक एवं अब तक के सर्वाधिक वजन वाले दूर संवेदी उपग्रह को देश में ही विकसित और PSLV(C-25) द्वारा प्रक्षेपित किया गया |
एडुसैट (EDUSAT) (20 सितंबर 2004) | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा आंध्र प्रदेश से जीएसएलवी/ GSLV (F-01) द्वारा प्रक्षेपित किया गया. | दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए स्वदेश निर्मित प्रथम शैक्षणिक उपग्रह |
कार्टो सैट-1 | श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी/ PSLV (C-6) द्वारा प्रक्षेपित | यह देश का पहला मानचित्रण कार्यों हेतु प्रयुक्त उपग्रह (मैपिंग सैटेलाइट) था जिसका प्रक्षेपण किया गया. |
आईआरएनएसएस 1-A (1 जुलाई 2013) | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी/PSLV (C-22) रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित | भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली की स्थापना. यह अमेरिकी जीपीएस की तर्ज पर काम करता है. इस क्रम में इसरो की 7 उपग्रह भेजने की योजना है. |
मार्स आर्बिटर मिशन (मंगलयान) 5 नवंबर 2013 | श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी C-25 रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित | भारत का प्रथम मंगल अभियान. 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह पर उपग्रह की स्थापना के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने में सफल होने वाला पहला देश बन गया है. यह उपग्रह मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं का अध्ययन करेगा. |
इसरो का 100वाँ मिशन (9 सितंबर 2012) | पीएसएलवी/PSLV (C-21) द्वारा प्रक्षेपित | फ्रांस के उपग्रह SPOT-6 एवं जापान के एक माइक्रो उपग्रह प्रोईटेरेस को प्रक्षेपित किया गया. |
जीसैट-14/ GSAT-14 5 जनवरी 2014 | श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी/GSLV (D-5) के द्वारा प्रक्षेपित | 1980 किलोग्राम वजन का संचार उपग्रह जिसमें स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का पहली बार सफल प्रयोग हुआ. |
जीसैट-16/ GSAT-16 7 दिसंबर 2014 | फ्रेंच गुयाना के कौरु प्रक्षेपण केंद्र से एरियन 5 रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित | देश में टेलीविजन की Direct-To-Home, DTH/ डीटीएच एवं ब्रॉडबैंड सेवाओं को और बेहतर बनाने के लिए. |
स्कैटसेट/ SCATSAT-1 (26 सितंबर 2016) | श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी/ PSLV (C3S) द्वारा प्रक्षेपित | SCATSAT-1 उपग्रह सहित सात अन्य उपग्रहों को एक साथ दो भिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किया गया स्कैटसेट मौसम दिशाओं एवं चक्रवात आदि की पूर्व सूचना देने वाले उपग्रह हैं. |
जीसैट-18/ GSAT-18 | फ्रेंच गुयाना से एरियन-6 (VA-231) द्वारा प्रक्षेपित | 3404 किलोग्राम का यह उपग्रह 48 संचार ट्रांसपोडेर्स के साथ प्रक्षेपित किया गया है. |
तथ्य :-
- भारत के प्रथम अंतरिक्ष यान का नाम आर्यभट्ट था। जिसका सफल प्रक्षेपण तत्कालीन सोवियत संघ के बैकानूर अंतरिक्ष केन्द्र से 19 अप्रेल 1975 को इंटर कास्मॉस प्रक्षेपण यान द्वारा किया गया था।
- जब कोई पदार्थ पृथ्वी के चारों और पृथ्वी की गति के समानुपाती उस गति से चलता है कि वह पृथ्वी पर स्थित किसी स्थान से निश्चित दूरी बनाए रखता है तो यह भूस्थैतिक स्थिति कहलाती है।
- संचार उपग्रह इक्जोस्फियर अर्थात बहिर्मंडल मे होते हैं।
- भारत का प्रथम रिमोट सेंसिग सैटेलाईट आई.आर.एस.-1 ए बैकानूर अंतरिक्ष केन्द्र से 17 मार्च 1988 को छोड़ा गया था।
- इसरो का मास्टर कंट्रोल सेंटर हासन कर्नाटक में स्थित है।
- चंद्रयान 8 नंवबर 2008 को चंद्र कक्ष में पहुंचा था।
- केरल प्रांत की राजधानी तिरूवनंतपुरम मे थुम्बा रॉकेट प्रक्षेपण केन्द्र स्थित है।
- श्रीहरिकोटा आंध्रपेदश राज्य में पुलिकट झील के निकट स्थित है।
- क्रायोजेनिक ताप से आश्य बहुत कम ताप से है। यह ताप -150 डिग्री सेल्यिस से कम होता है।
- निम्नतापी इंजनो का उपयोग रॉकेट पद्यौगिकी में किया जाता हैं
- भारत द्वारा शैक्षिक सेवाओं के लिए एजुसैअ उपग्रह 29 सितंबर 2004 को इसरो से प्रक्षेपित किया था।
- कृत्रिम उपग्रह में विद्युत उर्जा का स्त्रोत सौर सेल होता है।
- इसरो का सौवा 100वां स्पेस मिशन सितंबर 2012 में श्रीहरिकोटा आंध्रपदेश से छोड़ा गया था।
- अंतरिक्ष यात्री का आकाश काले रंग का वायुमंडल की अनुपस्थिति के कारण दिखाई देता है।
- भारत के चंद्रमिशन को चंदयान-1 नाम दिया गया है।
- अंतरिक्ष यान प्रचालन का एम.सी.एफ. मास्टर कंट्रोल फेसिलिटी का मुख्यालय हासन कर्नाटक में है।
- भारत के पहले मौसम अनुसंधान उपग्रह मेटसेट को वर्ष 2003 में कल्पना-1 नाम दिया गया है।
- चंद्रमा से आने जाने के दौरान अधिकतर्म इंधन पृथ्वी पर पुनः प्रवेश करने और हल्का-हल्का उतरने पर पृथ्वी के गृरूत्व को पार करने में लगता है।
रक्षा प्रोद्योगिकी :-
भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी :-
रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की स्थापना 1958 में की गई। इस समय इसे कुछ अन्य प्रौद्योगिकी संस्थाओं के साथ मिलाकर स्थापित किया गया था।
- 1980 में स्वतंत्र रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग को गठित किया गया।
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रुखक महानिदेशक रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार होते हैं। इस संगठन का मुख्यालय नई दिल्ली में हैं।
- रक्षा उत्पाद विभाग एवं रक्षा आपूर्ति विभाग का 1984 में विलय करके ‘रक्षा उत्पादन एवं आपूर्ति विभाग‘ की स्थापना की गयी।
भारतीय प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम :-
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जुलाई, 1983 में ‘समेकित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम‘ की नींव रखी। इस कार्यक्रम के संचालन का भार रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को सौंपा गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत विकसित प्रक्षेपास्त्रों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। भारतीय उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी
पृथ्वी :-
- यह जमीन से जमीन पर मार करेन वाला कम दूरी का बैलास्टिक प्रक्षेपास्त्र हैं
- ‘पृथ्वी‘ प्रक्षेपास्त्र का प्रथम परीक्षण फरवरी, 1998 को चॉदीपुर अंतरिम परीक्षण केन्द्र से किया गया।
- पृथ्वी की न्यूनतम मारक क्षमता 40 किमी तथा अधिकतम मारक क्षमता 250 किमी है।
त्रिशुल :-
- यह कम दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
- इसकी मारक क्षमता 500 मी से 9 किमी तक है।
- यह मैक-2 की गति से निशाने को बेध सकता है।
आकाश :-
- यह जमीन से हवा में मार करने वाला मध्यम दूरी का बहुलक्षीय प्रक्षेपास्त्र है।
- इसकी मारक क्षमता लगभग 25 किमी हैं
- आकाश पहला ऐसा भारतीय प्रक्षेपास्त्र है, जिसके प्रणोदक में रामजेट सिद्धांतों का प्रयोग किया गया है। इसकी तकनीकी को दृष्टिगत करते हुए इसकी तुलना अमरीकी पैट्रियाट मिसाइल से की जा सकती है।
- यह परम्परागत एवं परमाणु आयुध को ढोने की क्षमता रखता है तथा इसे मोबाइल लांचर से छोड़ा जा सकता है।
अग्नि :-
अग्नि जमीन से जमीन पर मार करने वाली मध्यम दूरी की बैलस्टिक मिसाइल है।
नाग :-
- यह टैंक रोधी निर्देशित प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक क्षमता 4 किमी है।
- इसका प्रथम सफल परीक्षण नवंबर 1990 में किय ागया था।
- इसे ‘दागो और भूल जाओ‘ टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र भी कहा जाता है क्योंकि इसे एक बार दागे जाने के पश्चात पुनः निर्देशित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती ।
भारत के अन्य प्रमुख प्रक्षेपास्त्र
धनुष :-
- यह जमीन से जमीन पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों में से एक है।
- यह ‘पृथ्वी‘ प्रक्षेपास्त्र का ही नौसैनिक रूपांतरण है।
- इसकी मारक क्षमता 150 मिी तथा इसपर लगभग 500 किग्रा आयुध प्रक्षेपित किया जा सकता है।
सागरिका :-
- यह सबमरीन लॉच बैलेस्टिक मिसाइल है।
- समुद्र के भीतर से इसका परीक्षण फरवरी 2008 में किया गया।
- यह परम्परागत एवं परमाणु दोनों तरह के आयुध ले जाने में सक्षम है।
- इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के द्वारा तैयार किया गया है।
अस्त्र :-
- यह मध्यम दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली और स्वदेशी तकनीक से विकसित प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक क्षमता 10 से 25 किमी है।
- यह भारत का प्रथम हवा से हवा पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र है।
ब्रह्मोस :-
- यह भारत एवं रूस की संयुक्त परियोजना के तहत विकसित किया जाने वाला प्रक्षेपाशस्त्र है। इसका नाम ब्रह्मेस भारत की नदी ब्रम्हपुत्र तथा रूस की नदी मस्कवा के मॉस से मिलकर बना हैं
- यह सतह से सतह पर मार करने वाली मध्यम दूरी का सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।
- इसका प्रथम सफल परीक्षण जून, 2001 में किया गया था। इसका तीसरा सफल परीक्षण मार्च 2009 में किया गया।
- 2017 में ब्राह्मेस के लंबी दूरी तक मार करने वाले पहले संस्करण का परीक्षण किया गया था।
- यह 300 किलोग्राम तक सामग्री ले जाने में सक्षम है। इसकी वास्तविक रेंज 290 किलोमीटर है, परंतु लडाकू विमान से दागे जाने पर यहा 400 किलोमीटर हो जाती हैं
- ब्राह्मेस मिसाइल का सुखोई फाइटर विमान से परीक्षण कर इसके तीनों संस्करण जल, थल, वायु के परीक्षण में सफलता प्राप्त की है। अब इसकी मारक क्षमता 400 किमी तक की हो गई है।
प्रधुम्न :-
- यह प्रक्षेपास्त्र दुश्मन के प्रक्षेपास्त्र को हवा में बहुत ही कम दूरी पर मार गिराने में सहायक है।
- यह एक इंटरसेप्टर प्रक्षेपास्त्र है।
- भारत ने स्वदेश निर्मित एडवांस्ड एयर डिफेंस मिसाइल का परीक्षण उड़ीसा के पूर्वी तट पर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज से 6 दिसम्बर 2007 को किया।
युद्ध टैंक अर्जुन :-
- इसका विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा किया गया हैं
- इस युद्धक अैंक की गति अधिकतम 70 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है।
- यह रात के अंधेरे में भी काम कर सकता हैं
- इस टैंक में एक विशेष प्रकार का फिल्टर जवानों का जहरीली गैसों एवं विकिरण प्रभाव से रक्षा करता है। इस फिल्टर का निर्माण बार्क ने किया है।
- अर्जुन टैंक को विधिवत रूप से भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया है। भारतीय उपग्रह और अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी
टी-90 एस भीष्म टैंक :-
- इसका निर्माण चेन्नई के समीप आवड़ी टैंक कारखाने में किया गया है।
- यह चार किमी के दायरे में प्रक्षेपास्त्र. दाग सकता है।
- यह दुशमन के प्रक्षेपास्त्र से स्वयं को बचाने की क्षमता रखता है तथा जमीन में बिछाई गयी बारूदी सुरंगों से भी अपनी रक्षा करने की क्षमता रखता हैं।
तेजस :-
- यह स्वदेश निर्मित प्रथम हल्का लड़ाकू विमान है। इसके विकास में हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं
- इसमें अभी जी.ई. 404 अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रॉनिक का इंजर लगा है। जिसे भविष्य में स्वदेश निर्मित कावेरी इंजन से हटाया जाएगा।
- विश्व के सबसे कम वजन और बहुआयामी सुपर सोनिक लड़ाकू विमान 600 किमी/घण्टे से उड़ान भरते हैं। औरह हवा से हवा में हवा से धरती में तथा हवा से समुद्र में मार करने मे सक्षम है।
निशांत :-
- यह स्वदेशी तकनीक से निर्मित पायलट रहित प्रशिक्षण विमान है।
- इसे जमीन से 160 किमी के दायरे में नियंत्रित किया जा सकता है।
- इस विमान का मुख्य उद्देय युद्ध क्षेत्र में पर्यवेक्षण और टोह लेने की भूमिकाओं का निर्वाह करना हैं
पायलट रहित विमान- लक्ष्य :-
- इसका विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के द्वारा किया गया है।
- इसका उपयोग जमीन से वायु तथा वायु से वायु में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों तथा तोपों से निशाना लगाने के लिए प्रशिक्षण देने हेतु एक लक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- यह जेट इंजन से चलता है तथा 10 बार प्रयोग में लाया जा सकता है।
- इसका प्रयोग तीनों सेनाओं के द्वारा किया जा रहा है।
एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर- ध्रुव :-
- इसे डी.आर.डी.ओ. द्वारा विकसित किया गया है।
- अधिकतम 245 किमी/घंटे की गति से उड़ान भरनेवाला यह हेलीकॉप्टर 4 घण्टे तक आकाश में रहकर 800 किमी की दूरी तय कर सकता हैं
- यह दो इंजन वाला हेलीकॉप्टर है जिसमें दो चालकों सहित 14 व्यक्तियों को ले जाया जा सकता हैं।
आई.एल. 78 :-
- यह आसमान में उड़ान के दौरान ही लडाकू विमानों में ईंधन भरने वाला प्रथम विमान है।
- इस विमान में 35 टन वैमानिकी ईंधन का भण्डारण की सुविधा हैं
- आगरा के वायु सैनिक अड्डे पर इन विमानों को रखने की विशेष व्यवस्था है।
काली-5000 :-
- काली-5000 का विकास बार्क द्वारा किया गया हैं
- यह एक शक्तिशाली बीम शस्त्र है जिसमें कई गीगावाट शक्ति की माइक्रोवव तरंगे उत्सर्जित होंगी जो शत्रु के विमानों एवं प्रक्षेपास्त्रों पर लक्षित करने पर उनकी इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों और कम्प्यूटर चिप को समाप्त करके उन्हें ध्वस्त करने में सक्षम है।
पिनाका :-
- यह मल्टी बैरल रॉकेट लॉचर हैं
- स्वदेशी तकनीक से डी.आर.डी.ओ. द्वारा विकसित इस रॉकेट प्रक्षेपक को ए.आर.डी.ई पुणे में निर्मित किया गया है तथा इसका नाम भगवान शंकर के धनुष पिना के नाम पर पिनाका रखा गया हैं
- इसके द्वारा मात्र 40 सेकेण्ड में ही 100-100 किग्रा वजन के एक के बाद एक 12 रॉकेट प्रक्षेपित किए जा सकते हैं, जो कम से कम 7 और अधिक से अधिक 39 किमी दूर तक दुशमन के खेमे की तबाही कर सकते हैं।