भक्ति और सूफी आंदोलन

भक्ति और सूफी आंदोलन

भक्ति और सूफी आंदोलन

सूफीमत-

1.      सूफीवाद इस्लाम के भीतर ही एक सुधारवादी आंदोलन के रूप में ईरान से शुरू हुआ था, जिसमें शिया और सुन्नी सम्प्रदायों के मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया गया।

2.      सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सफा शब्द से हुई है जिसका अर्थ है पवित्रता अर्थात जो लोग आध्यात्मिक रूप से और आचार-विचार से पवित्र थे, वे सूफी कहलाए।

3.      10 वी. शताब्दी में मुताजिल अथवा तुर्क बुद्धिवादी दर्शन का आधिपत्य समाप्त हुआ और पुरातनपंथी विचारधारा का जन्म हुआ जो कुरान और हदीस पर आधारित थी।

4.      इसी समय सूफी रहस्यवाद का जन्म हुआ।

सूफी सिलसिले जो भारत आये –

चिश्ती सम्प्रदाय-

  • सैय्यद मुहम्मद हाफिज के अनुसार चिश्ती भारत का सर्वप्रथम प्राचीन सूफी सिलसिला है।
  • ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती सन् 1192ई. में शिहाबुद्दीन गोरी की सेना के साथ भारत में आये थे।
  • इसके बाद में उन्होंने चिश्तियां परंपरा की नींव डाली।

सुहरावर्दी सम्प्रदाय (12 वीं शता.)

  • बगदाद के शिक्षक शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी  इस सिलसिले के संस्थापक थे।
  • भारत में सुहरावर्दी सिलसिले को सुदृढ तथा लोकप्रिय बनाने का मुख्य श्रेय उसके शिष्य बहाउद्दीन जकारिया तथा जलालुद्दीन तबरीजी को है।
  • सुहरावर्दी का मुख्यालय मुल्तान था।
  • इसके अतिरिक्त यह सिंध, पंजाब में भी यह फैला हुआ था।
  • उन्होंने राजकीय पद जैसे शेख-उल-इस्लाम, सद्र-ए-विलायत आदि स्वीकार किया।
  • चिश्तियों के विपरीत इस पंथ के संत बहुत आराम की जिन्दगी व्यतीत करते थे।
  • वे राजनीतिक संपर्क द्वारा अपने कार्यों को अधिक उचित ढंग से करना चाहते थे।
  • बहाउद्दीन जकारिया ने कुबाचा के विरुद्ध इल्तुतमिश को सहायता दी थी।
  • इसी कारण इल्तुतमिश ने उसे शेख-उल-इस्लाम की उपाधि दी थी।
  • उसने मुल्तान में खानकाह या मठ की स्थापना की।
  • हमीदुद्दीन नागौरी इस सिलसिले के प्रसिद्ध संत थे।

कादिरी सम्प्रदाय-

  • यह इस्लाम में प्रथम रहस्यवादी पंथ था।
    • इसकी स्थापना शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने की।
    • भारत में इस सिलसिले की शुरुआत सैय्यद मुहम्मद जिलानी ने की।
    • इस सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत शेख मीर मुहम्मद मियाँ मीर थे।
    • शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह कादिरी सिलसिले का अनुयायी  था और उसने लाहौर में मियाँ मीर से भेंट की थी।
    • जब मियाँ मीर की मृत्यु हो गई तो दारा मुल्तान शाह बदख्शी नामक उसके उत्तराधिकारी का शिष्य बन गया।

शत्तारी सिलसिला-

  • लोदी काल में शाह अब्दुल्ला ने शत्तारी सिलसिले की स्थापना की।
    • मुहम्मद गौस ( ग्वालियर ) इस सम्प्रदाय के सबसे प्रसिद्ध संत थे।
    • मुगल शासक हुमायूँ तथा तानसेन मुहम्मद गौस से अत्यधिक प्रभाभित थे।
    • शत्तारी संतों ने हिन्दू और मुसलमानों के धार्मिक विचारों तथा रीतियों में साम्य दिखलाकर उन्हें निकट लाने का यथेष्ट प्रयत्न किया।
    • इस पंथ के सूफियों ने सुहरावर्दियों की भाँति लौकिक सुविधाओं से पूर्ण आरामदायक जिन्दगी व्यतीत की।

नक्शबंदी सिलसिला-

  • अकबर के शासनकाल (1556-1605 ई.) में छः प्रमुख सिलसिलों में अंतिम नक्शबंदी सिलसिला की स्थापना ख्वाजा बाकी विल्लाह ने की थी।
    • शेख अहमद सरहिन्दी इस सिलसिले के प्रसिद्ध संत थे जो मुजहीद आलिफसानी के नाम से प्रसिद्ध थे।
    • अकबर एवं जहाँगीर के समकालीन शेख अहमद सरहिन्दी ने ईश्वर के साथ एकत्व ( वजहद-उल-वजूद ) के रहस्यवादी दर्शन पर आक्षेप किया तथा उसे अस्वीकार कर दिया।
    • उसके स्थान पर उसने प्रत्यक्षवादी दर्शन  (वजहद – उल – शुद) का प्रतिपादन किया।
    • शेख अहमद सरहिन्दी ने कहा कि मनुष्य और परमात्मा का संबंध दास और मालिक का संबंध है।
    • वे मुजहिद अर्थात इस्लाम के पुनरुद्धारक  या सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे।
    • सूफियों में यह सबसे अधिक कट्टरवादी सिलसिला था।
    • इन्होंने अकबर की उदार नीतियों का प्रतिकार किया।
    •        दो उपसंप्रदाय फिरदौसी तथा इत्तारी सुहरावर्दी के रूप में बिहार और बंगाल में सक्रिय थे।
    •        सूफी विचारधारा से प्रेरित ऋषि आंदोलन कश्मीर में शेख नुरूद्दीन ऋषि द्वारा चलाया गया।

भक्ति आंदोलन :-

  • सूफी आंदोलन की अपेक्षा अधिक प्राचीन है।
    • उपनिषदों में इसकी दार्शनिक अवधारणा का पूर्ण प्रतिपादन किया गया है।
    • भक्ति आंदोलन हिन्दुओं का सुधारवादी हिन्दुओं का सुधारवादी आंदोलन था।
    • इसमें ईश्वर के प्रति असीम भक्ति, ईश्वर की एकता, भाई चारा, सभी धर्मों की समानता तथा जाति व कर्मकांडों की भर्त्सना की गई है।
    • वास्तव में भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में सातवी से बारहवीं शताब्दी के मध्य हुआ, जिसका उद्देश्य नयनार तथा अलवार संतों के बीच मतभेद को समाप्त करना था।
    • इस आंदोलन के प्रथम प्रचारक शंकराचार्य माने जाते हैं।
    • शंकराचार्य के उपरांत बारह तमिल वैष्णव संतों ने जो संयुक्त रूप से अलवार के नाम से प्रसिद्ध थे, ने भक्ति को काफी लोकप्रिय बनाया।
    • शैव नयनारों तथा वैष्णव अवलारों ने जैनियों और बौद्धों के अपरिग्रह को अस्वीकार कर ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को ही मुक्ति का मार्ग बताया। उन्होंने प्रेम और व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति का संदेश समस्त दक्षिण भारत में स्थानीय भाषाओं का प्रयोग करके पहुंचाया।
    • वैष्णव संतों से शंकर के अद्वैत और ज्ञानमार्ग का विरोध किया।
    • इन संतों के अनुसार परमात्मा निर्गुण नहीं सगुण है।
    • इन्होंने ब्रह्म और जीव की पूर्ण एकता को स्वीकार किया।

भक्ति आंदोलन की विशेषताएँ

  • भक्ति की धारणा का अर्थ एकेश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है।
    • भक्ति पंथ ने उपासना की विधियों के रूप में कर्मकांडों तथा यज्ञों का परित्याग किया।
    • भक्ति आंदोलन समतावादी आंदोलन था जिसने जाति या धर्म पर आधारित भेदभाव का पूर्णतया निषेध किया।
    • भक्ति संतों ने जनसाधारण की सामान्य भाषा ( क्षेत्रीय भाषा ) में उपदेश दिया, जिसके कारण हिन्दी, मराठी, बंगाली और गुजराती भाषाओं का विकास हुआ।
    • भक्ति आंदोलन के मूल सिद्धांत सूफी संतों की शिक्षाओं से बहुत मिलते जुलते हैं।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत-

रामानुज- (12वी.शता.)

  • भक्ति आंदोलन के प्रारंभिक प्रतिपादन महान वैष्णव गुरु रामानुज थे।
    • उनका जन्म तमिलनाडु राज्य में पेरंबदूर में हुआ था।
    • वे सगुण ईश्वर में विश्वास करते थे।
    • उन्होंने मनुष्य की समानता पर बल दिया और जाति व्यवस्था की भर्त्सना की।
    • रामानुज के क्रिया-कलाप का मुख्य केन्द्र काँची और श्रीरंगपट्टम था।
    • किन्तु इनके उपदेशों के प्रति चोल प्रशासन के विरोध के कारण यह स्थान छोङना पङा।
    • रामानुज ने विशिष्टद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया।
    • भक्ति आंदोलन के दूसरे नायक रामानुज के समकालीन निम्बार्क थे।
    • वे द्वैताद्वैत दर्शन में विश्वास करते थे तथा ईश्वर के प्रति समर्पण पर बल देते थे।

माधवाचार्य – ( 13वी. शता. )

  • माधवाचार्य ने शंकर और रामानुज दोनों के मतों का विरोध किया।
    • माधवाचार्य का विश्वास द्वैतवाद में था और वे आत्मा व परमात्मा को पृथक-2 मानते थे।
    • वे लक्ष्मी नारायण के उपासक थे।

रामानंद (15वी. शता.)-

  • रामानंद उत्तरी भारत के पहले महान भक्त संत थे।
    • वे रामानुज के शिष्य थे।
    • रामानंद ने दक्षिण और उत्तर भारत के भक्ति आंदोलन के बीच सेतु का काम किया अर्थात् भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाये।
    • 4.      उनका जन्म इलाहबाद में हुआ था।
    • 5.      उन्होंने विष्णु के स्थान पर राम की भक्ति आरंभ की। 
    • 6.      उन्होंने अपमे उपदेश संस्कृत के स्थान पर हिन्दी में दिये जिससे यह आंदोलन लोकप्रिय हुआ और हिन्दी साहित्य का निर्माण आरंभ हुआ।
    • 7.      रामानंद ने चारों वर्णों को भक्ति का उपदेश दिया।
    • 8.      उन्होंने सिद्धांत के आधार पर जाति प्रथा का कोई विरोध नहीं किया किन्तु उनका व्यावहारिक जीवन जाति समानता में विश्वास करने का था।

रामानंद (1236 जानकारी उपलब्ध नहीं)

  • के 12 शिष्य थे- उनमें कई जातियों के लोग थे, जैसे – रविदास ( रैदास ) चमार, कबीर जुलाहा, धन्ना जाट ( किसान ), सेन नाई, सघना कसाई, पीपा राजपूत आदि।
    • वास्तव में मध्ययुग का धार्मिक आंदोलन रामानंद से आरंभ हुआ।

कबीर-(1440-1510ई.)

  • कबीर सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
    • उन्होंने अपने गुरु रामानंद के सामाजित दर्शन को सुनिश्चित रूप दिया।
    • वे हिन्दू मुस्लिम एकता केहिमायती थे।
    • कबीर के ईश्वर निराकार और सर्वगुण थे।
    • उऩ्होंने ननते जात- पात, मूर्ति पूजा तथा अवतारसिद्धांत को अस्वीकार किया।
    • कबीर की शिक्षाएं बीजक मेंं संग्रहीत है।
    • उनके अनुयायियों को कबीरपंथी कहा जाता था।
    • निर्गुण भक्ति धारा में कबीर पहले संत थे जो संत होकर भी अंत तक गृहस्थ बने रहे।
    • वे साम्यवादी विचारधारा के थे।
    • जो लोग तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के तीव्र आलोचक थे और हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षपाती थे।
    • उनमें से कबीर और नानक का योगदान सबसे अधिक है।

रविदास – (रैदास) (15वी. शता.)

  • ये रामानंद के अति प्रसिद्ध शिष्यों में से थे।
    • जे जन्म से चमार थे लेकिन इनका धार्मिक जीवन जितना गूढ था, उतना ही उन्नत और पवित्र था।
    • सिक्खों के गुरू ग्रंथ साहिब में संग्रहीत रविदास के तीस से अधिक भजन हैं।
    • रविदास के अनुसरार मानव सेवा ही जीवन में धर्म की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति का माध्यम है।

दादू (1544-1603ई.)-

  • कबीर तथा नानक के साथ निर्गुण भक्ति की परंपरा में दादू  का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
    • इनका जम्म अहमदाबाद में एक जुलाहा के यहाँ हुआ था
    • इऩकी मृत्यु 1603ई. में  राजस्थान के नराना या नारायण गाँव में हुई जहाँ इनके अनुयायियों ( दादू- पंथियों ) का मुख्य केन्द्र है।

गुरुनानक (1469-1538ई.)

  • इनका जन्म 1469ई. में तलवंडी (आधुनिक ननकाना) पंजाब में एक खत्री परिवार में हुआ।
    • एकेश्वरवाद तथा मानव मात्र की एकता गुरु के मौलिक सिद्धांत थे।

चैतन्य (1486-1533ई.)-

  • इनका जन्म 1486ई. में नवद्वीप या नदिया (बंगाल) में हुआ था।
    • चैतन्य का वास्तविक नाम विश्वभर था पर बाल्यावस्था में इनका नाम निमाई था।
    • शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत इन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की गई।

वल्लभाचार्य (1479-1531ई.)-

बल्लभाचार्य वैष्णव धर्म के कृष्ण मार्गी शाखा के दूसरे महान संत थे।

मीराबाई (1498-1546ई.)-

मीराबाई सोलहवीं शता. के भारत की एक महान महिला संत थी।

सूरदास (16वी.-17वी.शता.)-

इनका जन्म आगरा मथुरा मार्ग पर रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। ये अकबर एवं जहाँगीर के समकालीन थे।

तुलसीदास (1532-1623ई.)-

 तुलसीदास जी मुगल शासक अकबर के समकालीन थे।


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