भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG )
- भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक भारत के संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
- यह भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग का प्रमुख और सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख संरक्षक है।
- इस संस्था के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये सरकार और अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है और यह जानकारी जनसाधारण को दी जाती है। CAG भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक
पृष्ठभूमि :-
- महालेखाकार का कार्यालय वर्ष 1858 में स्थापित किया गया था, ठीक उसी वर्ष जब अंग्रेज़ों ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथों में लिया था।
- वर्ष 1860 में सर एडवर्ड ड्रमंड को पहले ऑडिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया। इसके कुछ समय बाद भारत के महालेखापरीक्षक को भारत सरकार का लेखा परीक्षक और महालेखाकार कहा जाने लगा।
- वर्ष 1866 में इस पद का नाम बदलकर नियंत्रक महालेखा परीक्षक कर दिया गया और वर्ष 1884 में इसे भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के रूप में फिर से नामित किया गया।
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत महालेखापरीक्षक को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया क्योंकि इस पद को वैधानिक दर्जा दिया गया था।
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय ढाँचे में प्रांतीय लेखा परीक्षकों के लिये प्रावधान करके महालेखापरीक्षक के पद को और शक्ति दी।
- इस अधिनियम में नियुक्ति और सेवा प्रक्रियाओं का भी उल्लेख था और भारत के महालेखापरीक्षक के कर्त्तव्यों का संक्षिप्त विवरण भी।
- वर्ष 1936 के लेखा और लेखा परीक्षा आदेश ने महालेखापरीक्षक के उत्तरदायित्वों और लेखा परीक्षा कार्यों का प्रावधान किया।
- यह व्यवस्था वर्ष 1947 तक अपरिवर्तित रही। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक नियंत्रक और महालेखापरीक्षक नियुक्त किये जाने का प्रावधान किया गया।
- वर्ष 1958 में CAG के क्षेत्राधिकार में जम्मू और कश्मीर को शामिल किया गया।
- वर्ष 1971 में केंद्र सरकार ने नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 लागू किया।
- अधिनियम ने CAG को केंद्र और राज्य सरकारों के लिये लेखांकन और लेखा परीक्षा दोनों की ज़िम्मेदारी दी।
- वर्ष 1976 में CAG को लेखांकन के कार्यों से मुक्त कर दिया गया। CAG भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक
संवैधानिक प्रावधान :-
अनुच्छेद 148 :- CAG की नियुक्ति, शपथ और सेवा की शर्तों से संबंधित है।
Article 149 :- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है।
अनुच्छेद 150 :- संघ और राज्यों को खातों का विवरण राष्ट्रपति के अनुसार (CAG की सलाह पर) रखना होगा।
Article 151 :- संघ के खातों से संबंधित CAG की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी, जो संसद के प्रत्येक सदन के पटल पर रखी जाएगी।
नोट :- किसी राज्य के लेखाओं के संबंध में भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी, जो उन्हें राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखेगा।
अनुच्छेद 279 :- ‘शुद्ध आय’ की गणना CAG द्वारा प्रमाणित की जाती है, जिसका प्रमाणपत्र अंतिम माना जाता है।
तीसरी अनुसूची :- भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची की धारा IV भारत के CAG और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पदभार ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का प्रावधान करती है।
छठी अनुसूची :- इस अनुसूची के अनुसार, ज़िला परिषद या क्षेत्रीय परिषद के खातों को राष्ट्रपति की अनुमति के साथ CAG द्वारा अनुमोदित प्रारूप के अनुसार रखा जाना चाहिये। CAG भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक
भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की स्वायत्तता :-
- CAG की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिये संविधान में कई प्रावधान किये गए हैं।
- CAG राष्ट्रपति की सील और वारंट द्वारा नियुक्त किया जाता है और इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है।
- CAG को राष्ट्रपति द्वारा केवल संविधान में दर्ज प्रक्रिया के अनुसार हटाया जा सकता है जो कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के तरीके के समान है।
- एक बार CAG के पद से सेवानिवृत्त होने/इस्तीफा देने के बाद वह भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय का पदभार नहीं ले सकता।
- CAG भारत में सरकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक कड़ी है। अन्य कड़ियों में सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और संघ लोक सेवा आयोग शामिल हैं।
- कोई भी मंत्री संसद में CAG का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।
- CAG का वेतन और अन्य सेवा शर्तें नियुक्ति के बाद कम नहीं की जा सकतीं।
- उसकी प्रशासनिक शक्तियाँ और भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग में सेवारत अधिकारियों की सेवा शर्तें राष्ट्रपति द्वारा उससे परामर्श के बाद ही निर्धारित की जाती हैं।
- CAG के कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, जिसमें सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं जिन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता। CAG भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक
CAG के कार्य और शक्तियाँ :-
CAG को विभिन्न स्रोतों से ऑडिट करने के अधिकार प्राप्त हैं, जैसे-
- CAG भारत की संचित निधि और प्रत्येक राज्य, केंद्रशासित प्रदेश जिसकी विधानसभा होती है, की संचित निधि से संबंधित खातों के सभी प्रकार के खर्चों का परीक्षण करता है।
- भारत की आकस्मिक निधि और भारत के सार्वजनिक खाते के साथ-साथ प्रत्येक राज्य की आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाते से होने वाले सभी खर्चों का परीक्षण करता है।
- केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग के सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण, लाभ- हानि खातों, बैलेंस शीट और अन्य अतिरिक्त खातों का ऑडिट करता है।
- संबंधित कानूनों द्वारा आवश्यक होने पर वह केंद्र या राज्यों के राजस्व से वित्तपोषित होने वाले सभी निकायों, प्राधिकरणों, सरकारी कंपनियों, निगमों और निकायों की आय-व्यय का परीक्षण करता है।
- राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुशंसित किये जाने पर किसी अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करता है, जैसे- कोई स्थानीय निकाय।
- केंद्र और राज्यों के खाते जिस प्रारूप में रखे जाएंगे, उसके संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देता है।
- केंद्र के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट को राष्ट्रपति को सौंपता है, जो संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती है।
- किसी राज्य के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है, जो राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाती है।
- संसद की लोक लेखा समिति के मार्गदर्शक, मित्र और सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है।
- भारत के वर्तमान नियंत्रक और महालेखापरीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू हैं।
- स्वतंत्र भारत के पहले नियंत्रक और महालेखा परीक्षक वी. नारहारी राव थे ।
- “भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा व्यक्ति है जो यह देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों पर ही धन खर्च किया जाए।” –डॉ. भीम राव अम्बेडकर CAG भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक