धार्मिक और समाज सुधार आन्दोलन

19 vee aur 20 vee sadee ke pramukh dhaarmik aur samaaj sudhaar aandolan

19 वी और 20 वी सदी के प्रमुख धार्मिक और समाज सुधार आन्दोलन

कारण :-

  • भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से जन्मी बौद्धिक विकास एवं पाश्चात्यीकरण की प्रक्रिया।
  • मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म का प्रसार एवं भारतीयों को ईसाई बनाना।
  • हिन्दु धर्म एवं समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियां एवं असमानता।
  • देसी एवं विदेशी विद्वानों की चिन्तनशील गतिविधियां।
  • पाश्चात्य शिक्षा, मानवतावाद एवं सार्वभौमवाद का विकास।

विशेषताएं :-

  • विश्ववादी नजरिया एवं धार्मिक सार्वभौमवाद
  • सामाजिक स्थिति पर व्यापक नजर
  • तर्क एवं बौद्धिक विचारों को आधार बनाया
  • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अतीत की व्याख्या
  • राष्ट्रीय एकता एवं समरसता

 

ब्रह्म समाज :-

  • राजा राम मोहन राय ने 20 अगस्त, 1828 में ब्रह्म सभा नाम से एक संस्था की स्थापना की। यही बाद में ब्रह्म समाज के नाम से जानी गयी।
  • इसका उद्देश्य हिन्दु धर्म में सुधार, पुरोहितवाद की समाप्ति, समाजिक समानता में वृद्धि, धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों को दूर करना, भारत का धार्मिक एवं सामाजिक रूप से उत्थान करना था।
  • अवधारणा: एकेश्वरवाद, आस्तिकता एवं आचार आदि विचारों पर आधारित।
  • क्रियाकलाप: मूर्तिपूजा का विरोध, एकेश्वरवाद की स्थापना, धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या के लिए पुरोहितवाद को नकारना, अवतारवाद का खण्डन, जाति व्यवस्था पर प्रहार, बाल विवाह का विरोध, सती प्रथा का विरोध, स्त्री पुरूष की आधुनिक शिक्षा का प्रयास, राष्ट्रीयता का प्रसार।

विकास :-

  • 1830 में राजा राम मोहन राय के इंग्लैण्ड जाने के बाद समाज का नेतृत्व आचार्य रामचन्द्र विद्या वागीश ने किया।
  • 1833 में समाज का संचालन द्वारिका नाथटैगोर के हाथ में आया।
  • 1843 में नियंत्रण देवेन्द्र नाथ टैगोर के हाथ में आया।
  • 1856 में समाज का नियंत्रण केशव चन्द्र सेन के हाथ में आया।
  • केशव चन्द्र सेन के नेतृत्व में ब्रह्म समाज का विस्तार बंगाल से बाहर हुआ एवं उत्तर प्रदेश, पंजाब व मद्रास में शाखाएं खोली गयी।

ब्रह्म समाज में फूट :-

केशव चन्द्र सेन के अति उदारवादी विचारों के कारण ब्रह्म समाज का विभाजन हुआ। केशव चन्द्र सेन के नियंत्रण में ब्रह्म समाज के अन्दर ऐसी अनेक गतिविधियां होने लगी जिनकी वजह से केशव चन्द्र सेन एवं देवेन्द्र नाथ टैगोर के बीच मतभेद हो गया जैसे –

  • समाज का अन्तर्राष्ट्रीय करण
  • समाज में सभी धर्मों की पुस्तकों का पाठ (ईसाई, मुसलमान, पारसी और चीन)
  • केशव चन्द्र सेन हिन्दु धर्म को संकीर्ण मानते थे। संस्कृत के मूल पाठ को ठीक नहीं माना।
  • केशव चन्द्र सेन ने यज्ञोपवीत पहनने के विरूद्ध प्रचार किया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय विवाह को प्रोत्साहन देना इत्यादि।
  • देवेन्द्र नाथ टैगोर ने 1865 ई. में केशव चन्द्र सेन को आचार्य की पदवी से निकाला।
ब्रह्म समाज
प्रथम विभाजन(1865 ई. में)
ब्रह्म समाजआदि ब्रह्म समाज
यह मूल ब्रह्म समाज ही था जिसका संचालन विभाजन के बाद देवेन्द्र नाथ टैगोर ने कियाकेशव चन्द्र द्वारा स्थापित शाखा
द्वितीय विभाजन: 1878 में 
आदि ब्रह्म समाजसाधारण ब्रह्म समाज 
केशव चन्द्र सेन द्वारा स्थापित पुरानी शाखाआनंद मोहन बोस एवं शिवनाथ शास्त्री द्वारा स्थापित 

 

ब्रह्म समाज का योगदान :-

  • बहुदेव वाद तथा मूर्तिपूजा का विरोध।
  • बहुपत्नि प्रथा एवं सती प्रथा का विरोध।
  • विधवा विवाह का समर्थन एवं बाल विवाह का विरोध।
  • नैतिकता पर बल, कर्मफल में विश्वास, सर्वधर्म समभाव, निर्गुण ब्रह्म की उपासना
  • धार्मिक पुस्तकों, पुरूषों एवं वस्तुओं की सर्वोच्चता में अविश्वास
  • छूआछूत, अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव का विरोध।
  • बांग्ला एवं अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार को समर्थन।
  • हिन्दुओं द्वारा विदेश यात्रा को धर्म-विरूद्ध घोषित करने की आलोचना।

राजा राम मोहन राय :-

राजा राम मोहन राय का जन्म 1774 ई. में बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा पटना एवं वाराणसी में हुई।

अन्य नाम/उपाधियां:  पुनर्जागरण आन्दोलन का अग्रदूत, भारतीय जाग्रति का जनक, सुधार आन्दोलनों का प्रवर्तक, आधुनिक भारत का पिता, अतीत और भविष्य के मध्य सेतु, भारतीय राष्ट्रवाद का जनक, भारत का प्रथम आधुनिक पुरूष, नव प्रभात का तारा।

भाषा ज्ञान:  संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, अरबी, फ्रेंच, ग्रीक, जर्मन, लैटिन, हिब्रू एवं अन्य।

पत्रिका/पुस्तक लेखन :-

  1. तुहफातउलमुहदीन(एकेश्वरवादियों को उपहार) : प्रथम ग्रंथ था जो फारसी भाषा में लिखा गया था। यह 1809 ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें मूर्तिपूजा का विरोध किया एवं एकेश्वर वाद सब धर्मों का मूल बताया।
  2. प्रीसेप्ट्स आॅफ जीसस : सन 1820 ई. में लिखी जो 1823 ई. में जाॅन डिग्बी के प्रयासों से लंदन से प्रकाशित हुई।
  3. संवाद कौमुदी :–  सती प्रथा का विरोध किया। 1821 में बंगाली भाषा की पत्रिका।
  4. मिरातउलअखबार :–  1822 ई. में फारसी भाषा में।
  5. ब्रह्मनिकल मैगजीन :–  अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ब्रह्मनिकल मैगजीन।

 

राजा राम मोहन राय की विचारधारा :-

  • राजा राममोहन राय आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं सामाजिक समानता व ऐकेश्वरवाद में विश्वास रखते थे।
  • धर्म के मामले में उनके विचार उपयोगिता वादी थे वह धर्मों को सत्य की कसौटी पर परखना नहीं चाहते थे बल्कि धर्मों के सामाजिक लाभ को देखते थे।
  • उनका उद्देश्य संसार के सभी धर्मों को जाति, मत एवं देश इत्यादि बंधनों से दूर, एक ईश्वर के चरणों में लाना था।
  • सती प्रथा का विरोध, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन, स्त्री शिक्षा का समर्थन, बाल विवाह का विरोध, बहुपत्नी प्रथा का विरोध आदि के माध्यम से वह स्त्रियों की दशा में सुधार के पक्षधर थे।
  • जातिवाद पर प्रत्यक्ष प्रहार, छुआछूत का विरोध, समाजिक समानता में वृद्धि के पक्षधर होना बताता है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में वे अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे।

 

राजा राम मोहन राय द्वारा स्थापित संस्थाएं :-

  • 1814-15 ई. में आत्मीय सभा का गठन किया।
  • 1816 ई. में वेदान्त सोसायटी की स्थापना की।
  • 1821 ई. में कलकत्ता यूनीटेरियन कमेटी की स्थापना की।
  • 1817 ई. में डेविड हेयर के सहयोग से कलकत्ता में हिन्दु काॅलेज की स्थापना की।
  • 1825 ई. में वेदान्त काॅलेज की स्थापना की।
  • 20 अगस्त, 1828 ई. में ब्रह्म सभा (ब्रह्म समाज) की स्थापना की।
  • राजा राम मोहन राय जाॅन डिग्बी के दीवान रहे थे।
  • इन्हें राजा की उपाधि अकबरII ने 1830 . में दी थी।
  • राजा राममोहन राय की मृत्यु 1833 . में ब्रिस्टल(इंग्लैण्ड) में हुई थी। यहां उनकी समाधि स्थित है।

 

 

आर्य समाज :-

आर्य समाज की स्थापना 1875 . में स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा बम्बई में की गई। प्रारम्भं में इसका मुख्यालय बम्बई था बाद में 1877 ई. में लाहौर को बनाया गया।

 

आर्य समाज की स्थापना का उद्देश्य –

  • प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुनः स्थापना करना।
  • भारत को सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक रूप से एक सूत्र में पिरोना।
  • भारतीय सभ्यता व संस्कृति को, पाश्चात्य प्रभाव से विकृत होने से बचाना।

आर्य समाज व दयानन्द सरस्वती की विचारधारा :-

  • आर्य समाज ने छुआछूत, जाति व्यवस्था का विरोध किया परन्तु वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया।
  • ईश्वर के प्रति पितृत्व एवं मानव के प्रति भ्रातृत्व की भावना, स्त्री पुरूष समानता, लोगों के बीच पूर्ण न्याय की स्थापना एवं सभी राष्ट्रों के मध्य सौहार्दपूर्ण व्यवहार।
  • हिन्दु धर्म में आत्मसम्मान एवं आत्म विश्वास की भावना जगाना एवं पाश्चात्य जगत की श्रेष्ठता के भ्रम से मुक्त कराना।
  • इस्लामी एवं ईसाई मिशनरियों से हिन्दु धर्म की रक्षा कर अक्षुण्य बनाना।
  • आधुनिकता एवं देशभक्ति के आदर्शों को अपनाना।
  • अन्तर्जातीय विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करना।
  • प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों को सहायता पहुंचाना।
  • शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देना।
  • लोगों का ध्यान परलोक की बजाय वास्तविक संसार में रहने वाले लोगों की समस्याओं की ओर आकृष्ट करना।
  • ऐकेश्वरवाद को स्थापित करना, अवतारवाद का खण्डन करना।
  • आत्मा की अमरता को स्वीकार किया एवं पुनर्जन्म को सत्य माना परन्तु श्राद्ध जैसे कर्मकाण्डों का विरोध किया।
  • कर्मफल एवं मोक्ष में विश्वास करते थे।
  • वेदों को हिन्दुओं की सर्वोच्च धार्मिक पुस्तक माना।
  • आर्य समाज ने लडकों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 25 वर्ष एवं लडकियों के लिए न्यूनतम उम्र 16 वर्ष निर्धारित की।

 

आर्य समाज एवं दयानन्द सरस्वती के 10 प्रमुख सिद्धांत :-

  • सत्य केवल वेदों में निहित है अतः वेद पाठ अति आवश्यक है।
  • वेद मंत्रों के साथ हवन करना।
  • मूर्ति पूजा का विरोध
  • अवतारवाद एवं धार्मिक यात्राओं का विरोध
  • कर्म सिद्धान्त और आवागमन (पुनर्जन्म) सिद्धांत का समर्थन।
  • निराकार ईश्वर की एकता में विश्वास
  • स्त्री शिक्षा में विश्वास
  • विशेष परिस्थितियों में विधवा विवाह की स्वीकृति
  • बाल विवाह एवं बहुविवाह का विरोध।
  • हिन्दी, संस्कृत भाषा का प्रचार।

नोट: पण्डिता रमा बाई ने आर्य महिला समाज की स्थापना की।

स्वामी दयानन्द सरस्वती :-

  • स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 1824 . में मौरवी जिला गुजरात में हुआ। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था।
  • स्वामी पूर्णानन्द ने 1848 ई. में इन्हें दयानन्द सरस्वती नाम दिया।
  • 1861 ई. में सरस्वती मथुरा में स्वामी बिरजानन्द से मिले एवं इनके शिष्य बन गए।
  • 1863 ई. में सरस्वती ने हिन्दु धर्म रक्षा के लिए आगरा में पाखण्ड खण्डिनी पताका फहरायी।
  • 1875 ई. में आर्य समाज की स्थापना की।
  • सरस्वती जी ने जन्म के स्थान पर कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया।

गौ रक्षा आन्दोलन: गायों की रक्षा हेतु आर्य समाज ने आन्दोलन चलाया।

शुद्धि आन्दोलन: हिन्दु धर्म त्याग कर दूसरा धर्म स्वीकार कर चुके लोगों को पुनः हिन्दु धर्म में वापस लाने के लिए आर्य समाज द्वारा चलाया गया आन्दोलन।

स्वामी दयानन्द की रचनाएं: – सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेद भाष्य, वेद भाष्य, पाखण्ड खण्डन, अद्वैतमत का खण्डन, वल्लभाचार्य मत खण्डन, पंच महायज्ञ विधि।

स्वामी दयानन्द का निधन 1883 ई. में अजमेर में हुआ।

 

प्रार्थना समाज :-

प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 . में डा. आत्माराम पाण्डुरंग ने केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा से बम्बई में की।

तथ्य :-

  • यथार्थ रूप में यह ब्रह्म समाज की ही एक शाखा थी। यह एक गुप्त समाज थी और मुख्य रूप से समाज सुधार गतिविधियों पर केन्द्रत थी।
  • 1869 ई. में महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना समाज से जुड़े एवं इसे प्रसिद्धि दिलाई।
  • आर. जी. भण्डारकर एवं एन. जी. चन्दावरकर प्रार्थना समाज के अन्य प्रमुख सहयोगी थे।
  • 1871 में रानाडे ने सार्वजनिक समाज की स्थापना की। रानाडे की प्रतिभा के कारण इन्हें ‘महाराष्ट्र का सुकरात’ कहा जाता है।

प्रार्थना समाज के मुख्य उद्देश्य :-

  • जाति व्यवस्था को अस्वीकृत करना।
  • स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देना।
  • विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन देना।
  • बाल विवाह का विरोध और लड़के, लड़कियों की विवाह की आयु में वृद्धि।
  • प्रार्थना समाज ने दलितों, अछूतों, पिछड़ों तथा पीड़ितों की दशा एवं दिशा में सुधार हेतु ‘ दलित जाति मण्डल’, ‘समाज सेवा संघ’ तथा दक्कन शिक्षा सभा(रानाडे द्वारा) का गठन किया।

 

महादेव गोविन्द रानाडे :-

  • रानाडे ने 1884 में पुणे में दक्कन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की। जिसे बाद में पूना फग्र्यूसन काॅलेज कहा गया।
  • 1891 में महाराष्ट्र में विडो रिमैरिज एसोसिएशन की स्थापना की।
  • इनके प्रमुख सहयोगी धोंदो केशव कर्वे (डी. के. कर्वे) ने 1899 ई. में ‘विधवा आश्रम संघ’ (विडो होम) की स्थापना की। कर्वे विधुर थे और उन्होंने 1893 ई. एक विधवा से विवाह किया। स्त्री शिक्षा के लिए श्री कर्वे ने 1916 ई. में बम्बई में प्रथम ‘भारतीय महिला विश्वविद्यालय’ की स्थापना की।

 

 

रामकृष्ण मिशन एवं स्वामी विवेकानन्द :-

  • रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 . में स्वामी विवेकानन्द ने वेल्लूर, कलकत्ता में की।
  • इसका उद्देश्य लोक सेवा एवं समाज सुधार, दरिद्र नारायण(व्यक्ति) की सेवा, भारत का सांस्कृतिक उत्थान, हिन्दु धर्म में जागृति लाना। रामकृष्ण परमहंस के विचारों का प्रसार करना।
  • रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता में एक मंदिर के पुजारी थे। इनकी भारतीय विचार एवं संस्कृति में पूर्ण आस्था थी परन्तु ये सभी धर्मों को सत्य मानते थे।
  • ये ऐकेश्वरवाद में विश्वास रखते थे साथ ही मूर्ति पूजा में भी विश्वास था।
  • इन्होने चिन्ह एवं कर्मकाण्ड की उपेक्षा आत्मा पर बल दिया।
  • वे ईश्वर प्राप्ति के लिए ईश्वर के प्रति निःस्वार्थ और अनन्य भक्ति में आस्था रखते थे। इन्हें दक्षिणेश्वर संत भी कहा जाता था।

 

स्वामी विवेकानन्द :-

  • स्वामी विवेकानन्द का जन्म 1862 ई. में हुआ। इनके बचपन का नाम नरेन्द नाथ दत्त था।
  • स्वामी विवेकानन्द के गुरू का नाम राम कृष्ण परमहंस (गदाधर चट्टोपाध्याय) था।
  • 1893 . में विवेकानन्द ने शिकागो में आयोजित प्रथम विश्वधर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया एवं प्रसिद्धि प्राप्त की।
  • राजस्थान में खेतड़ी के राजा कुंवर अजीत राज सिंह के सुझाव पर इन्होंने अपना नाम स्वामी विवेकानन्द रखा।
  • फरवरी 1896 ई. में इन्होंने न्यूयाॅर्क में वेदान्त सोसायटी की स्थापना की।
  • 1897 ई. में इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
  • 1900 में पेरिस में आयोजित द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में भी भाग लिया।
  • 4 जुलाई, 1902 को कलकत्ता में इनका देहावसान हो गया।
  • स्वामी विवेकानन्द ने मूर्ति पूजा एवं बहुदेववाद का समर्थन किया। इन्होंने ईश्वर के साकार एवं निराकार दोनों रूपों को माना।
  • स्वामी विवेकानन्द को नव हिन्दु जागरण का संस्थापक माना जाता है।
  • सुभाष चन्द्र बोस ने विवेकानन्द को ‘आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का आध्यात्मिक पिता’ कहा था।
  • वेलेंटाइन शिराॅल ने ‘विवेकानन्द के उद्देश्यों को राष्ट्रीय आन्दोलन का कारण माना था।’
  • आयरिश महिला माग्रेट नोबल (सिस्टर निवेदिता) ने विवेकानन्द के उपदेशों का प्रचार प्रसार किया।

यंग बंगाल आन्दोलन :-

यंग बंगाल आन्दोलन की स्थापना हेनरी विवियन डेरोजियो ने की थी।

इसका उद्देश्य –

  • जर्जर एवं पुराने रीति-रिवाजों का विरोध
  • आत्मिक उन्नति एवं समाज सुधार
  • नारी शिक्षा की वकालत करना एवं नारी अधिकारों की मांग
  • प्रेस की स्वतंत्रता, जमींदारों की निरंकुशता पर प्रतिबंध एवं उच्च सेवाओं में भारतीयों की नियुक्ति की मांग।
  • डेरोजियो ने आत्म वितार एवं समाज सुधार हेतु ‘एकेडेमिक एसोसिएशन, एवं ‘सोसायटी फाॅर द एग्जिीविशन आॅफ जेनरल नाॅलेज’ की स्थापना की। इन्होंने ‘एग्लो-इंडियन हिन्दु एसोसिएशनः बंगहित सभा’ एवं ‘डिबेटिंग क्लब’ की भी स्थापना की। डेरोजियो ने ‘ईस्ट इंडिया’ नामक दैनिक पत्र का भी संपादन किया।
  • हिन्दु कट्टरपंथियों के विरोध एवं हिन्दु काॅलेज के प्रबंधकों द्वारा इस आन्दोलन से संबद्ध विधार्थियों पर प्रतिबंध लगाया गया और यह आन्दोलन सफल न हो सका।

 

थियोसोफिकल सोसायटी :-

  • थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 . में रूसी महिला एच. पी. ब्लावैटस्की एवं अमेरिकी कर्नल एम. एस. अल्काट ने न्यूयार्क में की।
  • 1882 ई. में अड्यार (मद्रास के पास) को मुख्यालय बनाया। यही इसका अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय बना।
  • इसका उद्देश्य प्राचीन हिन्दु धर्म के लोगों के आत्मविश्वास को जागाना, धर्म को समाज सेवा का मुख्य आधार बनाना और भेदभाव का विरोध करना था।

सिद्धांत: धर्म, दर्शन एवं गुह्य विद्या का मिश्रण

दर्शन:–  मुख्य रूप से हिन्दु एवं बौद्ध दर्शन से लिया

विचारधारा:–  दैव-विज्ञान

धार्मिक शिक्षा के चार बिन्दु :-

  1. ईश्वर की एकता
  2. विश्व बंधुत्व
  3. परमेश्वर के विविध रूप
  4. दिव्य आत्मायें तथा प्राणियों का क्रम

प्रयास:-

  • बाल विवाह एंव जाति पांति का विरोध
  • विधवाओं की दशा में सुधार
  • प्रजाति, नस्ल, लिंग, जाति व रंग के भेदभाव को समाप्त कर लोगों के कल्याण के लिए प्रयत्न।
  • हिन्दु धर्म की प्राचीन विरासत एवं पहचान को पुनस्र्थापित करना

तथ्य :-

एनी बेसेन्ट 1893 ई. में भारत आयी।

  • एनी बेसेन्ट ने 1898 ई. में वाराणसी में सेन्ट्रल हिन्दु काॅलेज की नींव रखी इसी काॅलेज को मदन मोहन मालवीय ने 1916 . में बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।
  • 1907 ई. में एनीबेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा चुनी गयी।

 

वेद समाज :-

  • वेद समाज की स्थापना 1864 . में के. श्री धरालु नायडू ने मद्रास में की।
  • वेद समाज को, ‘दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज’ कहा जाता है।

अन्य आन्दोलन

संस्थास्थापनास्थलसंस्थापकउद्देश्य
परमहंस मण्डली1849-50 ई.बम्बईआत्माराम पाण्डुरंगधर्म तथा जनता के आचरण में सुधार करके सामाजिक असमानता को मिटाना।
देव समाज1887 ई.लाहौरशिव नारायण अग्निहोत्रीआत्मा की शुद्धि, गुरू की श्रेष्ठता की स्थापना एवं अच्छे मानवीय कार्य करना।
तत्वबोधिनी सभा1839 ई.बंगालदेवेन्द्र नाथ टैगोरराममोहन राय के विचारों का प्रचार-प्रसार
धर्म सभा1830 ई.बंगाल(कलकत्ता)राजा राधाकांत देवसती प्रथा का समर्थन एवं ब्रह्म समाज का विरोध
राधा स्वामी आन्दोलन1861 ई.आगराशिवदयाल खत्री(तुलसीराम)ऐकेश्वरवादी सिद्धांतों में विश्वास तथा पवित्र सामाजिक जीवन जीने में विश्वास
भारत सेवक संघ1905 ई.बम्बईगोपाल कृष्ण गोखलेभारतीयों की सेवा करना तथा अंग्रेजों के विरूद्ध उन्हें जागृत करना
सामाजिक सेवा संघ1921 ई.बम्बईनारायण मल्हार जोशी
सेवा समिति1914 ई.इलाहाबादह्रदयनाथ कुंजरूप्राकृतिक आपदाओं में समाज सेवा एवं शिक्षा तथा स्वास्थ्य में जनसहयोग।
भील सेवा मण्डल1922 ई.बम्बईअमृतालाल विट्ठल दास(ठक्कर बापा)आदिवासियों के उत्थान के लिए अथक प्रयत्न किया और इन्हें ‘जनजाति’ की संज्ञा प्रदान की।
सेवा सदन1885बम्बईबहराम जी मालाबारीसमाज सुधार, समाज कल्याण एवं चिकित्सा सेवा का कार्य
शारदा सदन1889 ई.बम्बई(बाद में पूना)पण्डिता रमाबाई…..
श्री नारायण धर्म परिपालन योगम1903 ई.केरलश्री नारायण गुरूइजर्यावस जाति (केरल की सबसे दलित एवं अछूत जाति) की सामाजिक स्थिति में सुधार करना

 

 

अन्य धर्मों से जुड़े सुधार आन्दोलन :-

सिख :-

सिंह सभा की स्थापना ठाकुर सिंह संहांवालिया एवं ज्ञानी ज्ञान सिंह के द्वारा 1 अक्टूबर, 1873 में अमृतसर में की गई.

  1. कूका नामधारी आन्दोलन भगत जवाहर मल द्वारा चलाया गया, बाद में रामसिंह एवं बालक सिंह भी जुड़ गए.
  2. बाबा दयाल सिंह द्वारा प्रारम्भ निरंकारी आन्दोलन एक पुनरुत्थानवादी आन्दोलन था.

गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन (अकाली आन्दोलन) वर्ष 1920 में भ्रस्ट सिख महंतों के विरुद्ध हुआ. वर्ष 1922 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम (Sikh Gurdwaras Act) पास हुआ जो वर्ष 1925 में संशोधित किया गया. तत्पश्चात् शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना हुई.

 

पारसी :-

  1. पारसी समाज तथा धर्म में सुधार की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी के मध्य बम्बई (मुंबई) से प्रारम्भ हुई.
  2. वर्ष 1951 में नौरोजी फरदोनजी, दादाभाई नौरोजी तथा एसएस बंगाली ने रहनुमाई मज्दयासन सभा की स्थापना की.
  3. सने सुधार सन्देश के प्रचार के लिए रफ्तगोफ्तार (पत्रनिकाला.

 

मुस्लिम :-

उन्नीसवीं शताब्दी में समय-समय पर मुस्लिम धर्म सुधारकों ने अनेक धर्म सुधार आन्दोलन चलाये. इनकी प्रवृत्ति मुख्यतः दो प्रकार की थी. एक पुनरुत्थान (वहाबी, फराजी, तैयूनी) तथा दुसरे आधुनिकीकरण युक्त आन्दोलन; जैसे – अलीगढ़ आन्दोलन थे.

 

अलीगढ़ आन्दोलन :-

  1. अलीगढ़ आन्दोलन, सर सैय्यद अहमद ख़ाँ द्वारा अंग्रेजी शिक्षा व विज्ञान के द्वारा मुस्लिम समाज को शिक्षित करने तथा उन्हें आधुनिकता से परिचित कराने हेतु शुरू किया गया.
  2. W.W. Hunter की पुस्तक इंडियन मुसलमान में ब्रिटिश सरकार को मुसलामानों से समझौता कर उन्हें रियायत देकर अपनी ओर मिलाने की सलाह दी गयी.
  3. सी सुझाव के तहत व्रिटिश सरकार द्वारा “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” के विरुद्ध सर सैय्यद अहमद ख़ाँ को तैयार किया गया.

 

वहाबी आन्दोलन :-

इस आन्दोलन का उद्देश्य “दारुल हर्ब” को “दरउलइस्लाम” में बदलना था. इस विचारधारा को आन्दोलनकारी रूप रायबरेली के “सैय्यद अहमद बरेलवी” तथा “मिर्जा अजीज” ने दिया.

  1. सर्वप्रथम सैय्यद अहमद द्वारा पंजाब के सिखों के विरुद्ध जेहाद छेड़ा गया. वर्ष 1831 में पेशावर जीतने की कोशिश में बालाकोट के प्रसिद्ध युद्ध में वे मारे गए.
  2. बाद में आन्दोलन का मुख्यालय पटना में बनाया गया. यहाँ के प्रमुख नेता- विलायत अली, इनायत अली, फरहत अली आदि थे.
  3. वर्ष 1863 में अँगरेज़ सेनापति “Neville Chamberlain” ने सैकड़ों वहाबियों को मार डाला.

देवबंद आन्दोलन :-

30 मई, 1866 को मुहम्मद कासिम ननौत्वी तथा रशीद अहमद गंगोही ने सहारनपुर के पास देवबंद में दारुल उलूम (Darul Uloom) की स्थापना की.

  1. यह आन्दोलन हदीस की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करने तथा विदेशी शासनों के विरुद्ध नारा देने के उद्देश्य से शुरू हुआ था.
  2. देवबंद स्कूल की विचारधारा से मौलाना अबुल कलाम आजाद, डॉ. अंसारी तथा शिबली नूमानी जैसे लोग प्रभावित थे.
  3. कांग्रेस की स्थापना का स्वागत किया गया. साथ ही सैय्यद अहमद ख़ाँ की संस्थाओं के विरुद्ध फतवा जारी किया गया.
  4. शिबली नूमानी ने वर्ष 1894-96 में लखनऊ में नदवतुलउलूम मदरसे (Nadwatu Uloom) की स्थापना की.

अन्य प्रमुख मुस्लिम सुधार आन्दोलन

  • अहमदिया आन्दोलन (1889) मिर्जा गुलाम अहमद द्वारा.
  • टीटू मीर आन्दोलन (1782-1831) मीर नीथार अली द्वारा.
  • तैय्यूनी आन्दोलन करामात अली (जौनपुरी) द्वारा.
  • फैराजी आन्दोलन हाजी शरीयतुल्लाह (फरीदपुर, पश्चिम बंगाल) द्वारा.

 

दक्षिण भारत में सुधार आन्दोलन

ब्रह्म समाज की गतिविधियों के प्रभाव, केशवचंद्र सेन की प्रेरणा तथा ईसाई मिशनरियों के प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वर्ष 1864 में धरलू नायडू वेद समाज की स्थापना मद्रास में हुई.

  1. 1871 में श्रीधरलू नायडू ने इसे पुनर्गठित किया. इन्होंने वेद समाज को नया नाम ब्रह्म समाज ऑफ़ साउथ इंडिया दिया.
  2. 1878 में वीरेशंलिगम पंतुलू ने राजमुंदरी सोशल रिफार्म एसोसिएशन (Rajahmundry Social Reform Association) की स्थापना की.

केरल में श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1927 में “नारायण धर्म परिपालन योगम (Narayana Dharma Paripalana Sabha)” की स्थापना की. अद्वैत वेदान्त के साथ ही श्री नारायण गुरु ने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता तथा जातिवाद का विरोध किया.

19वीं शताब्दी में मद्रास प्रांत में दो हिन्दू संगठन प्रमुख थे – पहला 1892 ई. में वीरेशलिंगम पन्तुलु द्वारा स्थापित “मद्रास हिंदू सामाजिक सुधार समिति” और दूसरा एनी बेसेंट द्वारा स्थापित “मद्रास हिन्दू समिति”. पन्तलु की  हिन्दू समिति ने एक सामाजिक शुद्दतावादी आन्दोलन चलाया और तत्कालीन सामाजिक अंधविश्वासों और देवदासी प्रथा का कड़ा विरोध किया. दूसरी ओर, राष्ट्रीय आधार पर हिन्दू सभ्यता के आदर्शों के अनुरूप हिन्दुओं का धार्मिक एवं सामाजिक उठान करना करना एनी बेसेंट के संगठन का प्रमुख उद्देश्य था.

 

कुछ अन्य सामजिक, धार्मिक संगठन

संगठनसंस्थापकस्थानवर्ष
दीनबंधु सार्वजनिक सभाज्योतिबा फूलेमहाराष्ट्र1884
देव समाजशिवनारायण अग्निहोत्रीलाहौर1887
इंडियन नेशनल सोशल कांफ्रेंसरानाडेबम्बई1887
विधवा आश्रमडीके कर्वेपूना1899
सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटीगोखलेबम्बई1905
पूना सेवा सदनरमाबाई रानाडेपूना1909
सोशल सर्विस लीगएनएम जोशीबम्बई1911
सेवा समितिएचएन कुंजरुइलाहाबाद1914
विश्व भारतीरबीन्द्रनाथ टैगोरबंगाल1918
हरिजन सेवक संघमहात्मा गांधीअहमदाबाद1932

 

सामजिक सुधार अधिनियम :-

अधिनियमवर्षगवर्नर जनरलविषय
शिशु वध प्रतिबंध/ Infanticide Prevention Act1802वेजलीशिशु हत्या पर प्रतिबंध
सती प्रथा प्रतिबंध/Sati (Prevention) Act1829लॉर्ड विलियम बैंटिकसती प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध (राजा राममोहन के प्रयास से)
बाल विवाह निषेध विधेयक/The Prohibition of Child Marriage Act1829लॉर्ड विलियम बैंटिक18 वर्ष से कम आयु के लड़कों के विवाह पर प्रतिबंध
दास प्रथा प्रतिबंध/Slavery Act1843एलनबरो1843 में दासता प्रतिबंध
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह/Hindu Widows’ Remarriage Act1856लॉर्ड कैनिंगविधवा विवाह की अनुमति (विद्यासागर के प्रयास से)
नेटिव मैरिज एक्ट/Native Marriage Act1872नॉर्थब्रुकअंतर्जातीय विवाह (केशवचंद्र सेन के प्रयास से)
एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट/Age of Consent Act1891लैंसडाउनविवाह की आयु 21 वर्ष लड़कियों के लिए निर्धारित (बहरामजी मालाबारी के प्रयास से)
शारदा एक्ट/Sharada Act1930इरविनविवाह की आयु 18 वर्ष लड़कों के लिए निर्धारित (हरविलास शारदा के प्रयास से)
इन्फेंट मैरिज प्रिवेंशन एक्ट/Infant Marriage Prevention Act1931इरविनबाल विवाह प्रतिबंध

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