दिल्ली सल्तनत-तुगलक वंश

dillee saltanat-tugalak vansh

तुगलक वंश दिल्ली सल्तनत का एक राजवंश था, जिसने 1320 ई.से लेकर 1414ई. तक दिल्ली की सत्ता पर शासन किया।


गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325ई.)


5 सितंबर 1320 का खुसरो को पराजित करके गाजी तुगलक ने गयासुद्दीन तुगलक के नाम से तुगलक वंश की स्थापना की।

यह सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के शासन काल में उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत का शक्तिशाली गवर्नर नियुक्त हुआ था।
शासक बनने के बाद इसने खुसरो द्वारा वितरित धन को पुनः प्राप्त करने पर बल दिया।

इसी क्रम में सुल्तान का सूफी संत निजामुद्दीन औलिया से विवाद हो गया। इसी संदर्भ में सूफी संत ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के लिये कहा था – हनुज दिल्ली दूरस्त ( दिल्ली अभी दूर है। )
गयासुद्दीन तुगलक के द्वारा करवाया गया निर्माण कार्य-
इसने दल्ली के समीप तुगलकाबाद नामक नगर बसाया।तथा दिल्ली में मजलिस-ए-हुक्मरान की स्थापना की।
तुगलकाबाद में रोमन शैली में एक दुर्ग का निर्माण किया जिसे छप्पनकोट के नाम से जाना जाता है।

गयासुद्दीन तुगलक के अभियान –


इसके समय 1323ई. में पुत्र जौना खाँ ( मुहम्मद बिन तुगलक ) ने वारंगल पर आक्रमण किया

लेकिन असफल रहा।इस समय वारंगल का शासक प्रतापरुद्रदेव था।
1324ई. में जौना खाँ ने वारंगल पर पुनः आक्रमण किया इसे(वारंगल ) जीतकर इसका नाम तेलंगाना / सुल्तानपुर रखा।
राजमुंदरी के अभिलेखों में जौना खाँ ( उलुग खाँ )को दुनिया का खान कहा गया है।
गयासुद्दीन तुगलक का अंतिम सैन्य अभियान बंगाल की गङबङी को समाप्त करना था , क्योंकि बलबन के लङके बुगरा खाँ ने बंगाल को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।
1324ई. में गयासुद्दीन ने बंगाल का अभियान किया तथा नासिरुद्दीन को पराजित कर बंगाल के दक्षिण एवं पूर्वी भाग को सल्तनत में मिलाया तथा उत्तरी भाग पर नासिरुद्दीन को अपने अधीन शासक घोषित किया।
Note: सर्वप्रथम गयासुद्दीन तुगलक ने ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया था। इसमें सर्वप्रथम वारंगल को मिलाया गया।

• 1325ई. में बंगाल विजय के बाद वापिस दिल्ली लौटते समय दिल्ली से कुछ दूर जौना खाँ द्वारा सुल्तान के स्वागत के लिये बनाये गये लकङी के महल से गिर जाने से सुल्तान की मृत्यु हो गयी।
• तुगलकाबाद ( दिल्ली ) में इसे दफनाया गया।

मुहम्मद बिन तुगलक ( 1325-1351 ) –


गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा था।

यह सल्तनत काल का सबसे विद्वान सुल्तान था।

इसने सोने का सिक्का – दीनार(200ग्रेन), चांदी के सिक्के – अदली ( 167 ग्रेन )

तथा अन्य धातुओं के भी कई सिक्के जारी किये थे।

इसे सिक्कों का राजकुमार कहा गया है।
इसने अल-सुल्तान जिल्ली अल्लाह ( ईश्वर सुल्तान का समर्थक है) की उपाधी धारण की।
मुहम्मद बिन तुगलक ने इंशा-ए-महरु नामक पुस्तक की रचना की।
तुगलक भारतीय इतिहास में पागल, सनकी, रक्तपिसासु आदि नामों से जाना जाता है।
मुहम्मद बिन तुगलक के काल में दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य सर्वाधिक विस्तृत था।
इसके शासन काल में 1333ई. में अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता भारत आया था। सुल्तान ने उसका खूब स्वागत किया तथा दिल्ली का काजी नियुक्त किया।1342 में इब्नबतूता सुल्तान के राजदूत की हैसियत से चीनी शासक तोगन किमूर के दरबार में गया। इस यात्री ने मुहम्मद बिन तुगलक के समय की घटनाओं का अपनी पुस्तक रेहला में उल्लेख किया है।

1326-1337ई. के बीच मुहम्मद बिन तुगलक ने कई प्रशासनिक प्रयोग किए ।

इन प्रयोगों का क्रम बरनी, फरिश्ता, इब्नबतूता, इसामी ने इस प्रकार बताया है-
राजधानी परिवर्तन (1326 ई.)
दोआब में कर वृद्धि

खुरासान अभियान
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
करांचिल अभियान (1337 ई.)
सुल्तान की योजनाओं का उद्देश्य सही व दूरगामी था,

लेकिन योजनाओं को सही तरीके से लागू न करने,

अधिकारियों व जनता के असहयोग व भ्रष्टाचार के कारण उद्देश्य में अच्छी होते हुये

तथा भी असफल हो गयी।

इससे राज्य को आर्थिक हानि हुई तथा विभिन्न वर्गों में विद्रोह भी पनपा

जिसने दिल्ली सल्तनत के पतन को निर्मित कर दिया।
मुहम्मद बिन तुगलक ने मुस्लिम राजस्व का सिद्धांत दिया तथा अपने सिक्कों पर अल-सुल्तान-जिल्ले-इलाही अंकित कराया।
इस सुल्तान के समय 1328ई. में एक मात्र मंगोल आक्रमण तरमाशरीन के नेतृत्व में हुआ।
सल्तनत काल में सबसे बङा साम्राज्य विस्तार इसी का था।

मुहम्मद बिन तुगलक के समय हुये विद्रोह-


1326-27ई. में सागर ( यू.पी.) के इक्तेदार का असफल विद्रोह ।
1328ई. में मुल्तान, उच्छ, लाहौर के इक्तेदारों ने असफल विद्रोह किये।
• 1335ई. में माबर ( मदुरा ) के इक्तेदार एहसानशाह ने विद्रोह किया तथा सफल रहा।
1338ई. में बंगाल के इक्तेदार फखरुद्दीन ने सफल विद्रोह किया।
1336ई. में हरिहर प्रथम व बक्का प्रथम ने विजयनगर को स्वतंत्र कराया।तथा विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की।
1347ई. में अलाउद्दीन बहमनशाह (हसन कांगू) ने बहमनी राज्य (महाराष्ट्र) को स्वतंत्र कराया।तथा बहमनी राज्य की स्थापना की।

इसके शासनकाल में कान्हा नायक ने विद्रोह कर स्वतंत्र वारंगल राज्य की स्थापना की।

मृत्यु-


• मुहम्मद बिन तुगलक के जीवन के अंतिम समय में प्लैग फैला इससे बचने के लिये सुल्तान यू.पी. में कन्नौज के स्वर्गनगरी में रुका तथा 1351 ई. में सिंध अभियान में इसकी मृत्यु हो गयी।

फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.)


फिरोज शाह तुगलक दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश का शासक ,दिपालपुर की हिदूं राजकुमारी का पुत्र था। इसने अपनी हूकूमत के दौरान कई हिन्दूयों को मुस्लिम धर्म अपनाने पर मजबूर किया।
उसने अपने शासनकाल में ही चांदी के सिक्के चलाये| फिरोजशाह तुगलक मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई एवं सिपहसलार ‘रजब’ का पुत्र था। उसकी माँ ‘बीबी जैजैला’ (‘भड़ी’ रजामल की पुत्री) राजपूत सरदार रजामल की पुत्री थी।
मुहम्मद बिन तुगलक की मुत्यु के बाद 20 मार्च 1351 को फिरोजशाह तुगलक का राज्याभिषेक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फिरोज शाह का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के बाद फिरोजशाह तुगलक ने सभी कर्ज (लगभग 24) माफ कर दिए, जिसमें ‘सोंधर ऋण’ भी शामिल था, जो मुहम्मद बिन तुगलक के समय किसानों को दिया गया था।
फिरोज तुगलक ने शरीयत द्वारा स्वीकृत 4 करों – खराज ( लगान ), जजिया ( गैर-मुस्लिमों से वसूला जाने वाला कर), खम्स ( युद्ध में लूट का माल ), जकात ( मुस्लमानों से लिया जाने वाला कर ) आदि को ही प्रचलन में मुख्य रूप से रखा।
इसने सिंचाई कर हक-ए-शर्ब लगाया, जो सिंचित भूमि की कुल उपज का 1/10 था। इसने सर्वप्रथम राज्य की आय का ब्यौरा तैयार करवाया।

 बंगाल के दूसरे अभियान से लौटते समय फिरोज तुगलक ने उङिसा के गंग शासक जाजपुर(उङिसा) पर आक्रमण कर उसे लूटा। तथा उत्तर प्रदेश में जौनपुर नामक नगर की स्थापना की और इस नगर का नाम जौनाखाँ (मुहम्मद बिन तुगलक) के नाम पर रखा।

 तीसरा अभियान 1360-61ई.में नगरकोट(बंगाल) पर किया तथा ज्वालामुखी मंदिर पर लूटपाट कर मंदिर को नष्ट कर दिया तथा मंदिर में स्थित पुस्तकालय के संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करवाया। इनमें प्रमुख ग्रंथ था दलालत- ए- फिरोजशाही ( यह ग्रंथ दर्शन व नक्षत्र विज्ञान से संबंधत फारसी में अनुवाद हैं। इसका अनुवादक था आजुद्दीन खालिदखानी।

 सिंध के शासक जैमवबानिया के विरुद्ध 1362ई. में युद्ध किया । इस अभियान के दौरान फिरोज तुगलक की सेना रास्ता भटक गई। बाद में तुगलक का वजीर खान-ए-जहां-मकबूल द्वारा सहायता भेजने पर फिरोज तुगलक द्वारा सिंध के शासक पर नाममात्र की अधीनता स्वीकार करवाई।

फिरोज तुगलक द्वारा निर्मित नगर –


इसनें स्थापत्य कला के विकास पर भी बल दिया तथा इसके लिए उसने दीवाने-इमारत नामक नया विभाग स्थापित किया। इस विभाग द्वारा अनेक मदरसों (प्राथमिक शिक्षण), मकतबों (उच्च शिक्षण) का निर्माण हुआ।इस विभाग द्वारा तुगलक ने कुतुबमीनार की मरम्मत करवाई।
Note : इल्तुतमिश द्वारा निर्मित नासीरिया मदरसा, हौज-ए-शम्सी की मरम्मत फिरोज तुगलक ने करवाई थी। इसके साथ ही अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित हौज-ए-खास की मरम्मत भी फिरोज तुगलक ने ही करवाई थी।
फिरोज तुगलक ने अनेक नगरों का निर्माण करवाया जैसे – फिरोजपुर, फतेहाबाद, फिरोजाबाद, हिसार(हरियाण)-फिरोजा, जौनपुर। इसके काल में दो प्रमुख स्थापितविद थे- मलिक-ए-सहना तथा इसी का शिष्य अहमद।
कुछ इतिहासकार फिरोज तुगलक को सल्तनत काल का अकबर भी कहते हैं।
आधुनिक इतिहासकारों ने फिरोज तुगलक को कल्याणकारी निरंकुश काल का शासक बताया है।
फिरोज तुगलक ने अपनी आत्मकथा फुतुहात-ए-फिरोजशाही लिखी थी।

फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु-


1388ई. में फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश का पतन हो गया और उसका पौता तुगलकशाह गयासुद्दीन द्वितीय के नाम से शासक बना, जिसके पश्चात अनेक कमजोर शासक हुये जो क्रमानुसार इस प्रकार हैं – अबूबक्र – मुहम्मदशाह – हुमायूं- अलाउद्दीन सिकंदरशाह – नसीरुद्दीन महमूद ( अंतिम तुगलक शासक था)
नासिरुद्दीन महमूद के समय 1398ई. में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। सुल्तान गुजरात भाग गया तथा तैमूरलंग ने दिल्ली को लूटा। जाते समय तैमूर ने पंजाब क्षेत्र पर अपने अधिकारी खिज्रखाँ को स्थापित किया।
कमजोर तुगलक उत्तराधिकारियों के समय तुगलक सल्तनत का विघटन प्रारंभ हो गया।

कुछ विद्रोहियों ने विद्रोह कर कई क्षेत्रों को स्वतंत्र कर लिया जो इस प्रकार हैं-
1389ई. में मलिक-उल-शर्क ने जौनपुर में विद्रोह कर दिया।
1401 ई. में दिलावर खाँ सूरी ने मालवा में विद्रोह कर दिया.
1407 ई. में जाफर खाँ (मुजफ्फरशाह) ने गुजरात में विद्रोह कर उसे स्वतंत्र करा लिया था।

1413 ई. में नासीरुद्दीन महमूद की मृत्यु हो गई तथा कुछ महीनों के लिये दौलत खाँ नामक अफगान ने दिल्ली पर शासन किया , जिसे खिज्रखाँ ने पराजित कर सैयद वंश की स्थापना की।


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