ठोसों में बैंड सिद्धांत :-
Electronics इलेक्ट्रोनिकी धातु में ठोस एवं गलित दोनों अवस्थाओं में विद्युत का संचालन करती हैं।
धातुओं की यह चालकता परमाणु में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है। यह परमाणु आपस में मिलकर अणु कक्षक का निर्माण करते हैं इन अणु कक्षक की ऊर्जाएं इतनी पास-पास होती हैं कि यह एक बैंड का रूप ले लेती हैं। इसे ही ठोसों में बैंड सिद्धांत कहते हैं।
बैंड सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक तत्व में दो प्रकार के बैंड उपस्थित होते हैं। संयोजक बैंड तथा चालकता बैंड। इन दोनों बैंडों के बीच की दूरी को ऊर्जा अंतराल कहते हैं।
बैंड सिद्धांत के आधार पर चालक, अर्धचालक तथा विद्युतरोधी पदार्थ के विद्युत गुणों की व्याख्या की जा सकती है। Electronics इलेक्ट्रोनिकी
1. चालक :-
जिन धातुओं में संयोजकता बैंड आंशिक रूप से भरा होता है या रिक्त चालकता बैंड के साथ अतिव्यापन करता है। जिससे विद्युत क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन का प्रवाह आसानी से हो जाता है। और धातुएं चालकता का गुण प्रदर्शित करती हैं।
या वे ठोस पदार्थ जिनकी चालकता 104 से 107 ओम-1-मीटर-1 के बीच में होती है तो उन्हें चालक कहते हैं। जिन धातुओं की चालकता 107 ओम-1-मीटर-1 होती है तो वह उत्तम चालक होते हैं।
2. अर्धचालक :-
जिनमें ऊर्जा अंतराल कम होता है इस कारण कुछ इलेक्ट्रॉन संयोजक बैंड से चालकता बैंड में चले जाते हैं। जिससे अर्धचालक पदार्थ कम चालकता प्रदर्शित करते हैं। ताप बढ़ाने पर अर्धचालक की चालकता बढ़ जाती है।
या वे ठोस पदार्थ जिनकी चालकता 10-6 से 104 ओम-1-मीटर-1 के बीच में होती है तो उन्हें अर्धचालक कहते हैं। Electronics इलेक्ट्रोनिकी
3. विद्युतरोधी
इनमें उर्जा अंतराल बहुत अधिक होता है जिस कारण इलेक्ट्रॉन गति नहीं कर पाते हैं अतः इलेक्ट्रॉन के गति न करने पर इन में विद्युत का संचालन नहीं होता है अर्थात यह विद्युत की कुचालक होते हैं।
या वे ठोस पदार्थ जिनकी चालकता बहुत कम 10-20 से 10-10 ओम-1-मीटर-1 के बीच में होती है तो उन्हें विद्युतरोधी कहते हैं।
Note –परमशून्य ताप 0K (केल्विन) पर अर्धचालक के इलेक्ट्रॉनों में पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती है। जिसके कारण यह इलेक्ट्रॉन संयोजक बैंड से चालकता बैंड में नहीं जा पाते हैं। अर्थात् परमशून्य ताप पर अर्धचालक विद्युतरोधी के जैसे ही व्यवहार करते हैं।
अर्धचालको में संयोजकता बैंड एवं चालकता बैंड के मध्य कम अंतराल होता है जिसके कारण कुछ इलेक्ट्रॉन इस अंतराल को लांघ सकते हैं एवं कुछ नहीं लांघ सकते हैं जिस कारण उनकी चालकता अल्प होती है। अगर ताप को बढ़ाया जाता है तो इन अर्धचालको की चालकता बढ़ा जाती है क्योंकि इलेक्ट्रॉन अधिक संख्या में अंतराल को लांघ जाते हैं। जर्मीनियम तथा सिलिकॉन अर्धचालको के सबसे अच्छे उदाहरण है। Electronics इलेक्ट्रोनिकी
PN संधि डायोड :-
जब एक p टाइप अर्धचालक क्रिस्टल को किसी विशेष विधि द्वारा n टाइप क्रिस्टल के साथ जोड़ दिया जाता है। तब इस प्रकार के संयोजन को pn संधि डायोड कहते हैं।
PN संधि डायोड में अवक्षय परत :-
pn संधि के दोनों ओर की वह परत जिसमें चलनशीन आवेश वाहक नहीं रहते हैं। तब उस परत को अवक्षय परत कहते हैं। अवक्षय परत pn संधि पर बनी दाता व ग्राही आयनों की परत होती है। अवक्षय परत की मोटाई लगभग 10-6 मीटर होती है।
विभव प्राचीर :-
pn संधि के दोनों ओर बनी अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर को विभव प्राचीर कहते हैं। इसे रोधिका विभव भी कहते हैं। एवं विभव प्राचीर का मान संधि के ताप तथा अर्धचालकों में मिश्रित अपद्रव्य की सांद्रता पर निर्भर करता है। Electronics इलेक्ट्रोनिकी
pn संधि डायोड में विद्युत धारा का प्रवाह :-
pn संधि डायोड को किसी बाह्य ऊर्जा स्रोत से दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है।
1. अग्र अभिनति
2. पश्च अभिनति
1. अग्र अभिनति :-
जब pn संधि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को किसी बाह्य बैटरी के धन सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के ऋण सिरे से जोड़ दिया जाता है। तो यह संधि अग्र अभिनति (forward bias) कहते हैं। कहीं कहीं इसे अग्र दिशिक भी कहा जाता है।
Note – PN संधि डायोड को अग्र अभिनत करने पर में अवक्षय परत की चौड़ाई कम हो जाती है फलस्वरुप विभव प्राचीर भी कम हो जाता है।
2. पश्च अभिनति :-
जब pn संधि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को किसी बाह्य बैटरी के ऋण सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के धन सिरे से जोड़ दिया जाता है। तो यह संधि पश्च अभिनति (reverse bias) कहते हैं। कहीं कहीं इसे उत्क्रम दिशिक भी कहा जाता है। Electronics इलेक्ट्रोनिकी
Note – PN संधि डायोड का पश्च अभिनति में धारा का प्रतिरोध अधिकतम होता है।
सौर सेल :-
सौर सेल एक ऐसी युक्ति होती है जिसकी सहायता से सौर ऊर्जा (प्रकाश ऊर्जा) को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
सोलर सेल की रचना :-
चूंकि सोलर सेल एक प्रकार का p-n संधि डायोड ही होता है बस इसमें कुछ भिन्नता होती हैं सोलर सेल में p-n संधि के p-क्षेत्र को n-क्षेत्र की तुलना में काफी पतला बनाया जाता है।
इसमें सबसे ऊपर p-क्षेत्र का अर्धचालक लगा होता है। जिसके ऊपर इलेक्ट्रोड लगा देते हैं जो कि सूर्य से आने वाली भी विकिरण को रोके बिना सीधे p-क्षेत्र के अर्धचालक तक पहुंचा जाए।
p-क्षेत्र के नीचे p-n संधि लगी रहती है जिसके n-क्षेत्र में विद्युत धारा का संग्रह करने के लिए इसमें इलेक्ट्रोड लगे होते हैं। संधि के ऊपर कांच का कवर (आवरण) चढ़ाया जाता है ताकि p-n संधि में कोई खराबी न हो।
सौर सेल की कार्य विधि :-
सौर सेल बनाने में सिलिकॉन तथा गैलियम आर्सेनिक अर्धचालक का प्रयोग किया जाता है। गैलियम आर्सेनिक, सिलिकॉन अर्धचालक की तुलना में काफी श्रेष्ठ है।
जब सूर्य का प्रकाश सौर सेल पर गिरता है तो यह p-क्षेत्र को पार करके p-n संधि तक पहुंच जाती है। अवक्षय परत में n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर विद्युत क्षेत्र होता है। इसलिए इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र की ओर गति करते हैं। तथा शेष बचे कोटर p-क्षेत्र में रह जाते हैं जो कि p-क्षेत्र की ओर गति करते हैं। तथा शेष बचे इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र में रह जाते हैं इस प्रकार यह युक्ति एक बैटरी की भांति व्यवहार करती है।
(i) सौर सेल से बनी सोलर पैनलों का प्रयोग, वह स्थान जहां विद्युत ऊर्जा का कोई स्रोत नहीं है इन पैनलों की सहायता से प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तन करके, लाइट, बल्ब तथा टीवी आदि उपकरण चलाए जा सकते हैं।
(i) कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाइट) में लगी बैटरी के आवेशन के लिए इन सोलर पैनलों का ही प्रयोग होता है।
डायोड के उपयोग :-
- डायोड का उपयोग Alternating Current को Direct Current में change किया जाता है
- Over Voltage Protection के लिए डायोड का उपयोग किया जाता है
- Radio demodulation में डायोड का उपयोग होता है
- तापमान मापने में डायोड का उपयोग होता है
- Circuit में Current को मोड़ने में डायोड का उपयोग होता है Current Steering की तरह
- Signal limiters में,Oscillator में डायोड का use होता है
- Voltage Regulator,Signal mixer में डायोड का use होता है
- डायोड का मुख्य काम अल्टरनेटिंग करंट को डायरेक्ट करंट में परिवर्तित करने का होता है और यह कार्य क्षमता उन्हें रेक्टिफायर बना देती है। इनका इस्तेमाल घरों में लगने वाले इलेक्ट्रिकल स्विचस के तौर पर किया जाता है क्योंकि यह बढ़ी हुई वोल्टेज को भी आसानी से रोक लेते हैं।
- डायोड्स को डिजिटल लॉजिक गेट्स की तरह इस्तेमाल में लिया जाता है। करोड़ों डायोड्स लॉजिक गेट्स की तरह ही काम करते हैं और इनका इस्तेमाल आजकल के आधुनिक प्रोसेसर में किया जाता है।
- Light Emitting Diodes का इस्तेमाल सेंसर के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा इसे अन्य लेजर उपकरणों मे भी उपयोग में लिया जाता है।
- Zener Diodes का इस्तेमाल वोल्टेज रेगुलेटर के तौर पर किया जाता है।
- इसका इस्तेमाल पावर सप्लाई को बनाने में किया जाता है साथ ही साथ इसे वोल्टेज डबलर के रूप में भी इस्तेमाल में लिया जाता है।
ट्रांजिस्टर :-
एक ट्रांजिस्टर एक अर्धचालक युक्ति है जो p व n प्रकार के अर्धचालक से बनी होती है यह इलेक्ट्रॉन और विद्युत के प्रवाह को रोकने के काम आता है। ट्रांजिस्टर के तीन भाग होते हैं पहला आधार दूसरा संग्राहक तथा तीसरा उत्सर्जक होता है। ट्रांजिस्टर अर्धचालक की खोज वैज्ञानिकों बार्डीन, शोकले तथा बेरिन ने सन् 1948 ई० में की थी, इस खोज पर इनको सन् 1956 ई० में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। Electronics इलेक्ट्रोनिकी
ट्रांजिस्टर के प्रकार :-
ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं।
(i) PNP ट्रांजिस्टर
(ii) NPN ट्रांजिस्टर
PNP ट्रांजिस्टर :-
इसमें n-टाइप अर्धचालक की एक बहुत पतली परत होती है जो दो p-टाइप अर्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबा कर रखते हैं। इस पतली परत को आधार तथा दाएं व बाएं ओर के क्रिस्टलो को संग्राहक व उत्सर्जक कहते हैं। इन्हें क्रमशः B, C तथा E से प्रदर्शित करते हैं।
NPN ट्रांजिस्टर :-
इसमें p-टाइप अर्धचालक की एक बहुत पतली परत होती है जो दो n-टाइप अर्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबा कर रखी जाती है। इस पतली परत को आधार तथा दाएं व बाएं ओर के क्रिस्टलो को संग्राहक व उत्सर्जक कहते हैं। इन्हें क्रमशः B, C, E से प्रदर्शित करते हैं।
लॉजिक गेट :-
लॉजिक गेट ऐसे डिजिटल परिपथ होते हैं जो कि निवेशी तथा निर्गत सिग्नलों के बीच किसी तर्क संगत संबंध पर आधारित होते हैं। लॉजिक गेट डिजिटल परिपथों का आधार है। यह सामान्य स्विचों, रिले, डायोडो, ट्रांजिस्टर तथा एकीकृत परिपथ (I.C.) को प्रयुक्त करके बनाए जाते हैं।
मूल लॉजिक गेट तीन प्रकार के होते हैं –
- OR गेट
- AND गेट
- NOT गेट