festivals of Madhya Pradesh

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मध्यप्रदेश के प्रमुख त्योहार

Table of Contents

    गणगौर :-

    festivals of Madhya Pradesh गणगौर महिलाओं का पर्व है। शिव और पार्वती की पूजा वाला यह पर्व एक वर्ष में दो बार मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में इसे गौर कहते हैं और कार्तिक माह में मनाते हैं । मालवा में इसे दो बार मनाया जाता है। चैत्र माह तथा भादप्रद माह में स्त्रियां शिव-पार्वती की मूर्तिया बनाती हैं तथा पूजा करती हैं, पूजा के दौरान महिलाएं नृत्य करती हैं। पताशे बांटती हैं और प्रतिमाओं को जलाशय या नदी में विसर्जित करती हैं। विभिन्न भागों में इस पर्व से संबंधित अनेक जनश्रुतियाँ हैं।

    भाईदूज :-

    भाईदूज वर्ष में दो बार मनाई जाती है। एक चैत्र माह में होली के उपरांत तथा दूसरी कार्तिक में दीपावली के बाद। यह रक्षाबंधन की तरह ही है। बहनें भाई को कुमकुम, हल्दी, चावल से तिलक करती हैं तथा भाई, बहिनों को उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। इस पर्व से संबंधित एक प्रचलित कथा इस प्रकार है। यमुना (नदी), यमराज (मृत्यु के देवता), की बहन थी एक बार यमराज भाईदूज के दिन बहन से टीका कराने कुछ उपहार आदि लेकर पहुंचे तो यमुना ने उपहार लेने से इंकार कर दिया और कहा हे भाई! मृत्यु के स्वामी! मुझे वचन दो कि आज के दिन जो भाई, बहिन से टीका कराएगा, उसकी उम्र में एक दिन बढ़ जाएगा। यमराज ने कहा “तथास्तु”।इस तरह की अनेक कहानियां इस संबंध में प्रचलित हैं। festivals of Madhya Pradesh

    आखातीज :-

    आखातीज अविवाहित लड़कियों का प्रमुख त्यौहार है। वैशाख (अप्रैल-मई) माह का यह उत्सव दूसरे अर्थों में विवाह का स्वरूप लिए है। इसमें अकाव की डालियों का मंडप बनाते हैं। इसके नीचे पड़ोसियों को दावत दी जाती है । कुछ स्थानों पर इसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं।

    संजा व मामुलिया :-

    मालवा तथा निमाड अंचल में संजा अश्विन माह में 16 दिन तक चलने वाला अविवाहित लड़कियों का उत्सव है। लड़कियां प्रति दिन दीवार पर नई-नई आकृतियाँ बनाती हैं और सायं एकत्र होकर गीत गाती हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की लड़कियों का ऐसा ही एक पर्व है, मामुलिया। किसी वृक्ष की टहनी या झाड़ी (विशेषकर नींबू) को रंगीन कुरता या ओढ़नी पहनाकर उसमें फूलों को उलझाया जाता है। सांझ को लड़कियां इस डाली को गीत गाते हुए किसी नदी या जलाशय में विसर्जित कर देती हैं। festivals of Madhya Pradesh

    नीरजा :-

    नौ दिन तक चलने वाला महिलाओं का यह उत्सव दशहरे के पूर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर स्त्रियाँ मां दुर्गा की पूजा करती हैं। “मालवा” के कुछ क्षेत्रों में गुजरात के “गरबा उत्सव” को कुछ स्थानीय विशेषताओं के साथ इन दिनों मनाते हैं।

    घड़ल्या :-

    मालवा अंचल में लड़कियां नीरजा के नौ दिनों में घड़ल्या भी मानती हैं। समूह में लड़कियां, एक लड़की के सिर पर छिद्रयुक्त घड़ा रखती है जिसमें दीपक जल रहा होता है। फिर दरवाजे-दरवाजे जाती हैं और अनाज या पैसा एकत्र करती है। अविवाहित युवक भी इस तरह का एक उत्सव “छला” के रूप में मनाते हैं। festivals of Madhya Pradesh

    सुआरा :-

    बुंदेलखण्ड क्षेत्र का “सुआरा” पर्व मालवा के घड़ल्या की तरह ही है। दीवार से लगे एक चबूतरे पर एक राक्षस की प्रतिमा बैठाई जाती है। राक्षस के सिर पर शिव-पार्वती की प्रतिमाएं रखी जाती है। दीवार पर सूर्य और चन्द्र बनाए जाते हैं। इसके बाद लड़कियां पूजा करती हैं और गीत गाती हैं।

    दशहरा :-

    दशहरा मध्य प्रदेश का एक प्रमुख त्यौहार है। इसे विजयादशमी कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे विजय के प्रतिक स्वरूप राम की रावण पर विजय के रूप में मनाते हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में इस दिन लोग एक-दूसरे से घर-घर जाकर गले मिलते हैं और एक दूसरे को पान खिलाते हैं।

    गोवरधन पूजा (गोवर्धन) :-

    कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन गोवरधन पूजा होती है। यह पूजा गोवर्धन पर्वत और गौधन से संबंधित है। महिलाएं गोबर से पर्वत और बैलों की आकृतियां बनाती हैं। मालवा में भील आदिवासी पशुओं के सामने अवदान गीत गाते हैं। गौड़ या भूमिया जैसी जातिया यह पर्व नहीं मनाती पर पशु पालक अहीर इस दिन खेरदेव की पूजा करते हैं। चंद्रावली नामक कथागीत भी इस अवसर पर गाया जाता है।

    लारूकाज :-

    गोंडों का नारायण देव के सम्मान में मनाया जाने वाला यह पर्व सुअर के विवाह का प्रतीक माना जाता है। आज कल यह पर्व शनै:-शनै: लुप्त होता जा रहा है। इस उत्सव में सुअर की बलि दी जाती है। परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए इस तरह का आयोजन एक निश्चित अवधि के बाद करना आवश्यक होता है।

    काकसार :-

    स्त्री व पुरूषों को एकान्त प्रदान करने वाला यह पर्व अबूझमाड़िया आदिवासियों का प्रमुख पर्व है। इसकी विशेष बात यह है कि युवा लड़के-लड़कियां एक दूसरे के गांवों में नृत्य करते पहुंचते हैं। वर्षा की फसलों में जब तक बालियां नही फूटती अबूझमाड़िया स्त्री-पुरूषों में एकान्त में मिलना वर्जित होता है। काकसार उनके इस व्रत को तोड़ने का उपयुक्त अवसर होता है। काकसार में लड़के और लड़कियां अलग-अलग घरों में रात भर नाचते और आनन्द मनाते हैं। कई अविवाहित युवक-युवतियों को अपने लिए श्रेष्ठ जीवन साथी का चुनाव करने में यह पर्व सहायक सिद्ध होता है। festivals of Madhya Pradesh

    रतन्नवा festivals of Madhya Pradesh :-

    मंडला जिले के बैगा आदिवासियों का यह प्रमुख त्यौहार है। बैगा आदिवासी इस पर्व के संबंध में अपने पुराण पुरूष नागा-बैगा से बताते हैं। इस बारे में बड़ी रोचक कथा प्रचलित है- एक बार मोहती और अन्हेरा झाड़ियों में लगी शहद से एक बूंद शहद जमीन पर जा गिरी। नागा-बैगा ने उसे उठाकर चख लिया। चखते ही सारी मधुमक्खियां बाघ बन गई। बैगा जान बचाकर भागा। जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि सारा घर मधुमक्खियों से भरा है। उसने मधुमक्खियों को वचन दिया कि वह हर नौवें वर्ष उनके पूजन का आयोजन करेगा तब ही उसका छुटकारा हुआ।

    होली :-

    रंगों का पर्व होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। सभी वर्गों के लोग, यहां तक कि आदिवासी भी इसे उत्साह  से मनाते हैं। इस पर्व में पांच से सात दिन प्रदेश के विभिन्न अंचलों में अलग-अलग विधियों से लकड़ियां एकत्र कर होली जलाते हैं। इसकी आंग को प्रत्येक गांव वाला अपने घर ले जाता है। यह नई पवित्र आग मानी जाती है। दूसरे दिन से लोग तरह-तरह के स्वांग रचकर मनोरंजन करते हैं और पिचकारियों में रंग भरकर एक दूसरे पर डालते हैं। यह क्रम कई दिन तक चलता है। होली का पर्व लगभग सभी हिन्दू त्यौहारों में सर्वाधिक आनंद, उमंग और मस्ती भरा त्यौहार है।

    गंगा दशमी :-

    आदिवासियों और गैर आदिवासियों द्वारा खाने, पीने और मौज करने के लिए मनाया जाने वाला यह उत्सव जेठ (मई-जून) माह की दसमी  तिथि को पड़ता है। इसका नाम गंगा-दशमी होने का एक कारण है कि हिन्दुओं में यह विश्वास है कि उस दिन पृथ्वी पर गंगा का अवतरण हुआ था। यह पर्व धर्म से सीधा संबंध नहीं रखता। लोग इस दिन अपनी-अपनी पत्नी के साथ नदी किनारे खाते-पीते नाचते -गाते और तरह-तरह के खेल खेलते हैं। festivals of Madhya Pradesh

    हरेली :-

    किसानों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। वे इस दिन अपने कृषि उपयोग में आने वाले उपकरणों की पूजा करते हैं। श्रावण माह की अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। मंडला जिले यह इसी माह की पूर्णिमा को तथा मालवा क्षेत्र में अषाढ़ के महीने में मनाया जाता है। मालवा में इसे “हर्यागोधा” कहते हैं। स्त्रियां इस दिन व्रत रखती हैं।

    मेघनाथ :-

    फाल्गुन के पहले पक्ष में यह पर्व गोंड आदिवासी मनाते हैं। इसकी कोई निर्धारित तिथि नही है। मेघनाथ गोंडों के सर्वोच्च देवता हैं चार खंबों पर एक तख्त रखा जाता है जिसमें एक छेद कर पुन: एक खंभा लगाया जाता है और इस खंबे पर एक बल्ली आड़ी लगाई जाती है। यह बल्ली गोलाई में घूमती है। इस घूमती बल्ली पर आदिवासी रोमांचक करतब दिखाते हैं। नीचे बैठे लोग मंत्रोच्चारण या अन्य विधि से पूजा कर वातावरण बनाकर अनुष्ठान करते हैं। कुछ जिलों में इसे खंडेरा या खट्टा नाम से भी पुकारते हैं। festivals of Madhya Pradesh

    भगोरिया :-

    फाल्गुन माह में मालवा क्षेत्र के भीलों का यह प्रिय उत्सव है। इसकी विशेष बात यह है कि इस पर्व में आदिवासी युवक-युवतियों को अपने जीवन साथी का चुनाव करने का अवसर मिलता है। भगोरिया हाट के दिन क्षेत्र भर से किसान, भील आदिवासी सजधज कर तीर तलवारों से लेस होकर हाट वाले गांव में पहुंचते हैं।

    वहां मैदान में ये लोग डेरे लगाते हैं। हाट के दिन परिवार के बुजुर्ग डेरी में रहते हैं पर अविवाहित युवक-युवतियां हाथ में गुलाल लेकर निकलते हैं। कोई युवक जब अपनी पसन्द की युवती के माथे पर लगा देता है तो और लड़की उत्तर में गुलाल लड़के के माथे पर लगा देती है तो यह समझा जाता है कि दोनों एक दूसरे को जीवन साथी बनाना चाहते हैं।

    पूर्व स्वीकृति की मोहर तब लग जाती है जब लड़की लड़के के हाथ से माजून (गुड़ और भांग) खा लेती है। यदि लड़की को रिश्ता मंजूर नहीं होता तो वह लड़के के माथे पर गुलाल नहीं लगाती। भगोरिया को दुश्मनी निकालने का दिन भी समझा जाता है। (मध्यप्रदेश का राजकीय पर्व ) festivals of Madhya Pradesh

    नव संवत्सर/गुड़ी पड़वा /नव रात्र /कलश स्थापना  :-

     नव संवत्सर भारतीय अस्मिता का महत्वपूर्ण पर्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शालिवाहन  शंक संवत तथा विक्रम संवत पंचाग का प्रथम दिन है। इसी दिन मालवा सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी तथा विक्रम संवत का प्रवर्तन हुआ था। संपूर्ण मध्यप्रदेश में इस दिन शक्ति पूजन का पर्व मानकर बासंतिक नवरात्र मनाते हैं। नवरात्र वर्ष में दो बार मनाते हैं, एक चैत्र में एक आश्विन माह में। चैत्र में बासंतिक नवरात्र में नवदुर्गा के पूजन अनुष्ठान का प्रथम दिन है। अतः इसी दिन कलश स्थापन होता है।

    बुन्देलखण्ड के अधिकांश परिवारों में कलश स्थापन करके नौ दिन तक दुर्गा पूजा करने की परम्परा है। मध्यप्रदेश के मालवा तथा निमाड़ क्षेत्रों में इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। उस दिन एक ध्वज या खिड़कियों में गुड़ी बांधते हैं। नीम की पत्ती खाकर दिन प्रारम्भ करते हैं

    यह पर्व चैत्र शुक्त तृतीया को शिव-गौरा पूजन के रूप में मनाया जाता है। मूलतः यह राजस्थान की लोक परम्परा का पर्व है। festivals of Madhya Pradesh

    रामनवमी/दुर्गानवमी :-

    यह चैत्र शुक्ल पक्ष की  नवमी को भगवान राम के जन्म दिन के रूप में मनाते हैं। राम जन्म के पश्चात सोहर तथा बधावा लोकगीत गाते हैं। बुन्देलखण्ड तथा मालवा में इसे मनाने की परम्परा है। इसी दिन दुर्गा नवमी भी मनाते हैं। दुर्गा पूजन का जो कलश स्थापना तथा अनुष्ठान प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है उसका समापन हवन पूजन के साथ होता है तथा संध्या के समय जवारे, देवी मंदिरों में चढ़ाकर जलाशय में विसर्जित कर देते हैं।

    जगन्नाथ की पूजा festivals of Madhya Pradesh :-

    यह पूजा चैत्र माह के प्रथम से अंतिम सोमवार तक की जाती है। अंतिम सोमवार को बड़ी पूजा की जाती है। यह पर्व बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्रचलित है। यह नयी फसल के स्वागत का पर्व है। जिन परिवारों के कोई भी सदस्य जगन्नाथपुरी की यात्रा कर चुके हैं तथा वहां से उनका बेंत (छड़ी) लाते है, उन्हीं परिवारों में यह पूजा होती है। यह बेंत अन्न भण्डार में रख देने से भण्डार में वृद्धि होती है।

    आसमाई :-

    यह पूजा बुन्देलखण्ड अंचल में प्रचलित है। इसमें आटा का चैकर पूरकर उस पर पाटा रखकर पान पर सफेद चंदक से चार पुतरियों अंकित करते हैं। प्रतयेक पुतरिया पर एक कौड़ी रखते हैं। एक घड़े में जौ भरकर उसकी पूजा करते हैं। इसके बाद पाटे पर पाॅसे की तरह कौडियां फेंकते हैं।

    वैशाखी :-

    वैशाखी यानी वैशाख शुक्ल पूर्णिमा का पर्व। नई फसल आने का यह उत्सव सर्वाधिक हर्ष एवं उल्लास के साथ मूल रूप से पंजाब में मनाया जाता है। स्वतंत्रता के पश्चात पंजाबी समुदाय के लोग पूरे देश में बस गए हैं। मध्यप्रदेश राज्य में भी काफी संख्या में है इसी दिन पंजाबी समुदाय के लोग एक साथ मिलकर ‘बुल्लेशाह‘ के टप्पे गाते हैं, भांगड़ा तथा अन्य नृत्य करके एक दूसरे को बैशाखी की बधाई देते हैं। festivals of Madhya Pradesh

    वट सावित्री पूजन/ बरा-बरसातें/ डोड बलई  :-

    यह पर्व जयेष्ठमाह की  कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां वट वृक्ष की पूजन करती हैं तथा व्रत रखती हैं। बुन्देलखण्ड में वट को बर या बरा (बरगद का संक्षिप्त रूप) कहने के कारण इसे बरा-पूजन या ‘बर अमावस‘ भी कहते हैं। सभी लोकांचलों में वट सावित्री का पूजन किया जााता है। लोक मान्यता के अनुसार सावित्री को पति का जीवन वट वृ़क्ष के नीचे वापिस मिला था अतः वट वृक्ष का पूजन अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति की कामना से किया जाता है।

    बिदरी/घायिला festivals of Madhya Pradesh :-

    यह त्योहार ज्येष्ठ या आषाढ़ में आयोजित किया जाता है। यह बैगा जनजाति का एक कृष पर्व है। जो फसल बोने के पूर्व सामूहिक रूप से ग्रामवासियों द्वारा अच्छी पैदावार की कामना से किया जाता है। मान्यता है कि बिदरी  के दिन विधिवत पूजित अनाज को खेत में बोऐ जाने वाले बीज में मिला देने से अंकुरण अच्छा होता है। फसल को कीड़ो या पशुओं से क्षति नहीं होती है। गौंड बाहुल क्षेत्रों में बुआई के पूर्व ‘घायिला‘ का आयोजन ज्येष्ठ माह में किया जाता है। इसमें गाॅव के मुखिया आनुष्ठानिक पूजन करता है। तत्तपश्चात बखर चलाए जाते हैं।

    दिवासा :-

    भील जनजाति में दिवासा का पर्व इन्द्रदेव को प्रसन्न करके अच्छी वर्षा की कामना के लिए श्रावण मास की आमावस्थ्या का मनाया जाता है। festivals of Madhya Pradesh

    हरियाली तीज :-

    यह त्योहार श्रावण शुक्ल तृतीया को मनाया जात हैं बुन्देलखण्ड क्षेत्र में यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन पूजा घर में भगवान जी का हिंडोला लगाते हैं। तथा उसे कदम्बर के पत्तों, फूलों एवं अन्य सुगंधित पुष्पों से सजाते हैं। भगवान के विग्रह को अनुष्ठान पूर्वक हिंडोला में बैठाकर उसका पूजा अर्चन करते हैं, कजरी के गीत गाते हैं। जिन परिवारों में लड़की का विवाह पिछली रक्षाबंधन तथा सावनतीज के बची में हुआ होता है, उनके यहाँ वर पक्ष की ओर से ‘साउनी‘ भेजने का क्रम भी सावनीतीज से रक्षाबंधन तक चलता है। मंदिरों में यह त्यौहार विशेष उत्साह के साथ ‘समैया‘ के रूप में मनाया जाता है।

    नाग पंचमी  :-

    नाग पंचमी का त्योहार श्रावण शुक्ल पंचमी को मनाते हैं। वैसे तो यह पर्व सभी लोकांचलों में मनाया जाता है किन्तु निमाड़ में इसकी विशेष मान्यता हैं निमाड़ मं यह पर्व वहां के शासक कार्कोटिक नागों की स्मृति में मनाते हैं। वहां के कोरकू कार्कोटिक नागों के वंशज माने जाते हैं। यह पर्व इस लोक विश्वास के साथ जुड़ा है कि इस दिन नाग पूजा करने से सात पीढ़ियों तक सर्पदंश का भय नहीं रहता है। सभी लोकाचंलों में नाग-पूजन के लोककला चित्र मिलते हैं। festivals of Madhya Pradesh

    रक्षा बंधन/ राखी  :-

    रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के प्रेम का अमर पर्व है। इसे मध्यप्रदेश के सभी भागों में उत्साहपूर्वक मनाते हैं इसे साउन या राखी भी कहते हैं।

                एक पौराणिक आख्यान के अनुसार एक बार सुर-असुरों में बारह वर्ष तक युद्ध चला। युद्ध समाप्त होते न देखकर  इन्द्राणी चितिंत हुई। उसने ब्राम्हाणों द्वारा स्वास्ति वाचन कराकर इन्द्र के दाहिने हाथ में रक्षा बंधन बाॅधकर युद्ध में भेजा था। उसमें इन्द्र विजयी हुई। भाई के हाथ में बहन द्वारा राखी बाॅधने की परम्परा तभी से प्रारंभ हुई।

                निमाड़ में राखी के आठ दिन पूर्व ‘इरपस‘ मनाया जाता है। इस दिन भाई विवाहित बहन के ससुराल में ‘इरपस‘ लेकर जाता है। इसमें बहन को देने के लिए गेहूॅ, गुड़, नारियल, वस्त्र आदि रखे जाते हैं। साथ में बहन से मायके चलने का आग्रह किया जाता है।

    भुजरियाँ (कजलियाँ) :-

    यह त्योहार बुन्देलखण्ड अंचल में भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसे ‘बासा सावन‘ भी कहते हैं। इस दिन भुजरियाँ (कजलियाँ) जो सावन सुदी नवमी पर बोई जाती है, पूजा विधान सहित तालाबों में विसर्जित की जाती है। कजलियाँ मूलतः रक्षाबंधन के दिन ही तालाब में विसर्जित ही जाती है।  इस दिन स्थान-स्थान पर मेले लगते हैं लोग गले मिल भेंट कर स्नेह प्रदर्शित करते तथा बधाई देते हैं।

    कजली तीज :-

    यह त्योहार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया को विशेष रूप से मालवा में मनाया जाता है। इसकी सोलह वर्षीय अनुष्ठान परम्परा है। प्रतिवर्ष इसका व्रत रखकर सोलहवे वर्ष उद्यापन किया जाता है। festivals of Madhya Pradesh

    Major festivals of Madhya Pradesh

    Gangaur festivals of Madhya Pradesh :-

    Gangaur is a festival of women. This festival worshiping Shiva and Parvati is celebrated twice a year. In Chhattisgarh it is called Gaur and is celebrated in the month of Kartik. Malwa it is celebrated twice. the month of Chaitra and Bhadprad, women make idols of Shiva-Parvati and worship them, women dance during the worship. Patashe is distributed and the idols are immersed in a water body or river. There are many legends related to this festival in different parts.

    Bhai Dooj :-

    Bhai Dooj is celebrated twice a year. One after Holi in the month of Chaitra and the other after Diwali in Kartik. It is just like Raksha Bandhan. Sisters apply tilak to brothers with kumkum, turmeric, rice and brothers promise to protect their sisters. A popular story related to this festival is as follows. Yamuna (river) was the sister of Yamraj (the god of death), once on the day of Bhai Dooj, Yamuna arrived with some gifts etc. to get her sister vaccinated, Yamuna refused to accept the gift. Where else did hey brother! lord of death! Promise me that the brother or sister who gets vaccinated on this day, his age will increase by one day. Yamraj said “Amen”. Many such stories are prevalent in this regard. festivals of Madhya Pradesh

    Akhatij :-

    Akhatij is the main festival of unmarried girls. This festival of Vaishakh (April-May) month has taken the form of marriage in another sense. In this, a pavilion is made of Akav’s branches. Under this, a feast is given to the neighbors. In some places it is also called Akshaya Tritiya.

    Sanja and Mamuliya: –

    In Malwa and Nimad region, Sanja is a festival of unmarried girls lasting for 16 days in the month of Ashwin. The girls draw new figures on the wall every day and sing songs together in the evening. Mamuliya is one such festival of the girls of Bundelkhand region. A branch of a tree or a bush (especially lemon) is dressed in a colorful kurta or odhani and flowers are entangled in it. In the evening, the girls immerse this branch in a river or reservoir while singing songs. festivals of Madhya Pradesh

    Neerja :-

    This nine-day festival of women is celebrated before Dussehra. On this occasion women worship Maa Durga. Some areas of “Malwa” celebrate the “Garba Utsav” of Gujarat with some local specialties these days.

    Ghadalya: –

    In Malwa region, girls also believe in Ghadalya during the nine days of Neerja. The girls in a group hold a pot with holes in it, in which a lamp is burning, on the head of a girl. Then goes door to door and collects grain or money. Unmarried youths also celebrate such a festival as “Chhala”. festivals of Madhya Pradesh

    Suara :-

    “Suara” festival of Bundelkhand region is similar to Ghadalya of Malwa. A statue of a demon is placed on a platform attached to the wall. The idols of Shiva-Parvati are placed on the head of the demon. Sun and moon are made on the wall. After this the girls worship and sing songs.

    Dussehra :-

    Dussehra is a major festival of Madhya Pradesh. This is called Vijayadashami. In some regions, it is celebrated as a symbol of victory of Rama over Ravana. In the Bundelkhand region, on this day people go from house to house and hug each other and feed each other betel leaf.

    Govardhan Puja (Goverdhan) :-

    Govardhan Puja is performed on the second day of Diwali in the month of Kartik. This worship is related to Govardhan Parvat and Gaudhan. Women make figures of mountains and bulls from cow dung. In Malwa, the Bhil tribals sing Avadaan songs in front of the animals. Castes like Gaur or Bhumiya do not celebrate this festival, but cattle rearers Ahirs worship Kherdev on this day. A story song called Chandravali is also sung on this occasion. festivals of Madhya Pradesh

    Larukaz festivals of Madhya Pradesh :-

    Celebrated by the Gonds in honor of Narayan Dev, this festival is considered a symbol of the marriage of the pig. These days this festival is gradually disappearing. Pig is sacrificed in this festival. For the prosperity and health of the family, it is necessary to organize such events after a certain period.

    Kaksar :-

    This festival, which provides solitude to men and lady , is the main festival of Abujhmadia tribals. Its special thing is that young man and women reach each other’s villages dancing. It is forbidden for men and lady of Abujhmadiyas to meet in solitude until the earrings of the crops of rain break. Kaksar is a suitable opportunity to break this fast. In Kaksar, boys and women dance and revel throughout the night in different homes. This festival proves helpful to many unmarried young men and lady in choosing the best life partner for themselves. festivals of Madhya Pradesh

    Ratnava :-

    This is the main festival of Baiga tribals of Mandla district. The Baiga tribals tell about this festival from their Purana Purush Naga-Baiga. There is a very interesting story about this – once a drop of honey fell on the ground from the honey planted in the Mohti and Anhera bushes. Naga-Baiga picked it up and tasted it. All the bees became tigers as soon as they tasted it. Baiga ran away after saving his life. When he reached home, he saw that the whole house was full of bees. He promised the bees that he would organize their worship every ninth year only then he was freed.

    Holi :-

    Holi, the festival of colours, is celebrated on the full moon day in the month of Phalgun. People of all classes, even tribals celebrate it with enthusiasm. In this festival, Holi is lit for five to seven days by collecting wood in different ways in different areas of the state. Every villager takes its ember to his house. This is considered the new holy fire. From the second day onwards, people entertain themselves by creating various farces and pouring colors on each other in pichkaris. This sequence continues for several days. The festival of Holi is the festival full of joy, enthusiasm and fun in almost all Hindu festivals. festivals of Madhya Pradesh

    Ganga Dashami :-

    Celebrated by tribals and non-tribals to eat, drink and have fun, this festival falls on the tenth day of the month of Jeth (May-June). One of the reasons why it is named Ganga-Dashami is that Hindus believe that the Ganga descended on earth on that day. This festival is not directly related to religion. On this day, people eat, drink, dance, sing and play various games with their wives on the banks of the river.

    Hareli :-

    This festival has special significance for the farmers. They worship their agricultural implements on this day. This festival is celebrated on the new moon day of Shravan month. In Mandla district it is celebrated on the full moon of this month and in Malwa region in the month of Ashada. In Malwa it is called “Haryagodha”. Women observe fast on this day.

    Meghnath :-

    Gond tribals celebrate this festival in the first fortnight of Falgun. There is no fixed date for this. Meghnath is the supreme deity of the Gonds. A plank is placed on four pillars, in which a pillar is put through a hole and a bat is placed horizontally on this pillar. This bat moves in a circle. Tribals perform thrilling stunts on this rotating bat. The people sitting below perform rituals by creating an environment by chanting mantras or worshiping with other methods. In some districts it is also called by the name Khandera or Khatta.

    Bhagoriya :-

    This is a favorite festival of the Bhils of Malwa region in the month of Phalgun. Its special thing is that in this festival, tribal youths get an opportunity to choose their life partner. On the day of Bhagoriya Haat, farmers, Bhil tribals from all over the region, dressed up with arrows and swords, reach the village of Haat.

    These people camp there in the field. On the day of the market, the elders of the family stay in the dairy, but unmarried young men and lady go out with gulal in their hands. When a young man applies gulal on the forehead of the girl of his choice, and the girl in response applies gulal on the boy’s forehead, then it is understood that both want to make each other a life partner. Are.

    The stamp of pre-approval is given when the girl eats Majoon (Jaggery and Bhang) from the boy’s hand. If the girl does not approve of the relationship, she does not apply gulal on the boy’s forehead. Bhagoriya is also considered as the day to remove enmity.

    New Year / Gudi Padwa / New Night / Kalash Sthapana :-

     New Year is an important festival of Indian pride. Chaitra Shukla Pratipada Shalivahan is the first day of Shank Samvat and Vikram Samvat Panchag. On this day Malwa Emperor Vikramaditya had conquered the Shakas and Vikram Samvat was started. Basantik Navratri is celebrated all over Madhya Pradesh on this day as a festival of Shakti Pujan. Navratri is celebrated twice a year, once in Chaitra and once in the month of Ashwin. Chaitra is the first day of Navadurga’s worship ritual in Basantik Navratri. That’s why the urn is established on this day.

    In most of the families of Bundelkhand, there is a tradition of worshiping Durga for nine days by setting up an urn. This day is celebrated as Gudi Padwa in Malwa and Nimar regions of Madhya Pradesh. On that day a flag or Gudi is tied in the windows. start the day by eating neem leaves

    This festival is celebrated on Chaitra Shukta Tritiya as Shiva-Gaura worship. Basically it is a festival of folk tradition of Rajasthan. festivals of Madhya Pradesh

    Ram Navami / Durgan Navami :-

    It is celebrated on the Navami of Chaitra Shukla Paksha as the birthday of Lord Rama. After the birth of Ram, Sohar and Badhawa sing folk songs. There is a tradition of celebrating it in Bundelkhand and Malwa. Durga Navami is also celebrated on this day. The Kalash Sthapana and ritual of Durga Pujan which begins on Pratipada ends with Havan Pujan and in the evening, Jawares are offered in Devi temples and immersed in the reservoir.

    Worship of Jagannath:

    This worship is done from first to last Monday of Chaitra month. On the last Monday, a big puja is performed. This festival is prevalent in the Bundelkhand region. This is the festival of welcoming the new crop. This puja is performed only in those families whose members have traveled to Jagannathpuri and brought their canes from there. Keeping this cane in the grain store increases the store. festivals of Madhya Pradesh

    Aasmayi:-

    This worship is prevalent in Bundelkhand region. In this, filling a checker of flour and placing a pata on it, four daughters are marked on the betel leaf with white sandalwood. A penny is kept on each plank. They worship him by filling a pot with barley. After this, cowries are thrown on the floor like dice.

    Baisakhi :-

    Baishakhi means the festival of Vaishakh Shukla Purnima. This festival of new crop is celebrated with maximum joy and gaiety originally in Punjab. After independence, people from the Punjabi community have settled all over the country. There are also a large number of people in the state of Madhya Pradesh. On this day, people of the Punjabi community come together to sing ‘Bulleshah’ tappes, perform Bhangra and other dances and congratulate each other on Baisakhi. festivals of Madhya Pradesh

    Vat Savitri Pujan / Bara-Barsaatein / Dod Balai :-

    This festival is celebrated on Krishna Amavasya of Jayeshtha month. On this day fortunate women worship the banyan tree and keep a fast. In Bundelkhand, the tree is called Bara or Bara (abbreviated form of Banyan) and it is also called Bara-Pujan or ‘Bar Amavas’. Vat Savitri is worshiped in all Lokanchals. According to folk belief, Savitri got her husband’s life back under the banyan tree, so the banyan tree is worshiped with the wish of getting unbroken good fortune.festivals of Madhya Pradesh

    Bidri / ghayila :-

    This festival is organized in Jyestha or Ashadh. It is a Krish festival of the Baiga group . Which is done collectively by the villagers with the wish of good yield before sowing the crop. It is believed that on the day of Bidri, if the grain duly worshiped is mixed with the seed sown in the field, germination is good. The crop is not damaged by insects or animals. In Gond dominated areas, ‘Ghayila’ is organized in the month of Jyestha before sowing. In this the head of the village performs ritual worship. After that the scatters are run.

    Divasa :-

    In the Bhil group, the festival of Divasa is celebrated in the month of Shravan to please Lord Indra and wish for good rains.

    Hariyali Teej: –

    This festival is celebrated on Shravan Shukla Tritiya. This festival is specially celebrated in Bundelkhand region. On this day, God’s carousel is installed in the house of worship. And decorate it with kadambar leaves, flowers and other fragrant flowers. The deity of God is worshiped by ritualistically sitting in a carousel, singing songs of Kajri. In the families where the marriage of the girl took place in the last Rakshabandhan and in the remainder of Sawantij, the order of sending ‘Sauni’ from the groom’s side also continues from Sawantij to Rakshabandhan. This festival is celebrated with special enthusiasm in the temples as ‘Samaiya’. festivals of Madhya Pradesh

    Nag Panchami :-

    The festival of Nag Panchami is celebrated on Shravan Shukla Panchami. By the way, this festival is celebrated in all Lokanchals, but it has special recognition in Nimar. In Nimar, this festival is celebrated in the memory of Karkotik Nag, the rulers there. The Korkus there are believed to be the descendants of the Karkotik Nag. This festival is associated with the folk belief that by worshiping snakes on this day, there is no fear of snakebite for seven generations. Folk art pictures of snake-worship are found in all Lokanchals.

    Raksha Bandhan / Rakhi :-

    Raksha Bandhan is an immortal festival of brother-sister love in Indian culture. It is celebrated enthusiastically in all parts of Madhya Pradesh, it is also called Saun or Rakhi.

                According to a mythological legend, once there was a war between Sur and Asura for twelve years. Indrani was worried when she did not see the end of the war. He sent the brahmins to fight by tying a raksha bandhan on the right hand of Indra after reciting Swasti. Indra was victorious in that. Since then the tradition of tying rakhi by sister on brother’s hand started.

                ‘Irpas’ is celebrated eight days before Rakhi in Nimar. On this day the brother takes ‘Irpas’ to the in-laws of the married sister. Wheat, jaggery, coconut, clothes etc. are kept in it to give to the sister. Along with this, the sister is urged to go to her parental home. festivals of Madhya Pradesh

    Bhujriyas (Kajaliyas) :-

    This festival is celebrated on Bhadrapada Krishna Pratipada in Bundelkhand region. It is also called ‘Basa Sawan’. On this day Bhujariyas (Kajaliyas) which are sown on Sawan Sudi Navami are immersed in the ponds along with the Puja Vidhan. Kajaliyas are basically immersed in the pond only on the day of Raksha Bandhan. On this day, fairs are held at various places, people show affection by hugging and congratulating. festivals of Madhya Pradesh

    Kajali Teej: –

    This festival is celebrated on Tritiya of Bhadrapada Krishna Paksha especially in Malwa. It has a sixteen year ritual tradition. Udyapan is done for the sixteenth year by observing its fast every year.


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