दिल्ली सल्तनत गुलाम वंश
दिल्ली सल्तनत का उदय कब हुआ ये तो सही प्रकार से ज्ञात नहीं है क्यूंकि मुस्लिम और अंग्रेज इतिहासकारों ने दिल्ली का इतिहास अपने हिसाब से लिखा है। विदेशी इतिहासकारों के मत से 1206 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है। ये पाँच वंश ये थे- गुलाम वंश (1206 – 1290), ख़िलजी वंश (1290- 1320), तुग़लक़ वंश (1320 – 1414), सैयद वंश (1414 – 1451), तथा लोधी वंश (1451 – 1526)।
इनमें से चार वंश मूलतः तुर्क थे जबकि अंतिम वंश अफगान था। अब यहाँ ये गौर करने वाली बात है की गुलाम वंश जो की मुहम्मद गौरी के गुलाम का वंश था उन्हें ये दिल्ली का नाम कहाँ से ज्ञात हुआ। और भी ज्यादा हैरानी की बात है की सम्राट पृथ्वीराज चौहान जिन्हें दिल्ली का आखरी हिन्दू सम्राट कहा जाता है वो दिल्ली की ही तख़्त पर थे और उन्हें ये सिंहासन अपने नाना अनंगपाल तोमर से प्राप्त हुआ था जो की तोमर राजपूत वंशीय थे अर्थात पृथ्वीराज चौहान से पहले भी दिल्ली साम्राज्य व्याप्त था। तो ये बात तो कतई मानी नहीं जा सकती की दिल्ली की सभ्यता का आरम्भ विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा किया गया।
मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना भारतीय ठिकानों का प्रतिनिधि नियुक्त किया।
मुहम्मद गोरी ने ऐबक को मलिक का पद प्रदान किया।
मोहम्मद ग़ौरी का गुलाम कुतुब-उद-दीन ऐबक, गुलाम वंश का पहला सुल्तान था।
दिल्ली सल्तनत के वंश :-
गुलाम/मामलूक वंश(1206-1290ई.)
खिलजी वंश(1290-1320ई.)
तुगलक वंश(1320-1398ई.)
सैय्यद वंश(1414-1451ई.)
लोदी वंश(1451-1526ई.)
गुलाम वंश
गुलाम वंश (1206-1290 ई. ) – मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था।
इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था
जिसे मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद नियुक्त किया था।
इस वंश ने दिल्ली सल्तनत पर 84 वर्षों तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया था।
इस वंश के संस्थापक गुलाम थे, ये राजा नहीं थे।
इसलिये इसे राजवंश की बजाय सिर्फ वंश ही कहा जाता है।
गुलाम वंश का प्रथम शासक ( संस्थापक ) कुतुबुद्दीन ऐबक तथा गुलाम वंश का अंतिम शासक क्यूमर्श था।
गुलाम वंश को इतिहासकारों ने अलग-2 नामों से पुकारा है। इसका विवरण निम्नलिखित है।
- गुलाम वंश – प्रारंभिक इतिहासकारों ने इसे गुलाम वंश कहा, क्योंकि इस वंश के कुछ शासक गुलाम रह चुके थे।लेकिन यह नाम सर्वाधिक उपयुक्त नहीं है।
- मामलुक वंश – यह नाम भी उपयुक्त नहीं है, क्योंकि मामलुक का अर्थ – ऐसे गुलाम (दास)से है जिनके माता-पिता स्वतंत्र हों या ऐसे दास जिन्हें सैनिक कार्यों में लगाया जाता था।
- इल्बरी वंश – यह नाम सर्वाधिक उपयुक्त नाम है, क्योंकि कुतुबुद्दीन ऐबक को छोङकर इस वंश के सभी शासक इल्बरी जाति के तुर्क थे।
इसी समय चंगेज खाँ के नेतृत्व में भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर मंगोलों का आक्रमण भी हुआ।
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)-
भारत में तुर्की राज्य/ दिल्ली सल्तनत/ मुस्लिम राज्य की स्थापना करने वाला शासक ऐबक ही था।
जीवन परिचय–
ऐबक का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। यह एक तुर्क जनजाति का था। ऐबक बचपन में ही अपने माता-पिता से बिछुङ गया था। एक व्यापारी इसे बाजार में ले गया जहां पर काजी फखरुद्दीन अजीज कूफी ने ऐबक को खरीद लिया। ऐबक का लालन-पालन काजी ने बहुत ही अच्छे तरीके से किया। ऐबक ने कुरान पढना भी सीखा था जिसके कारण ऐबक को कुरान खाँ के नाम से भी जाना जाता है।
- काजी की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने ऐबक को किसी व्यापारी को बेच दिया ।
- व्यापारी ऐबक को गजनी ले गया जहाँ पर मुहम्मद गौरी ने ऐबक को खरीद लिया।
- मुहम्मद गौरी ने ऐबक को अमीर ए आखूर(अस्तबलों का प्रधान ) के पद पर नियुक्त किया।
- 1192 ई. के तराइन के युद्ध में ऐबक ने गौरी की सहायता की।
- तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद गौरी ने ऐबक को अपने मुख्य भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया।
- 1194 में कन्नौज के शासक जयचंद्र तथा मुहम्मद गौरी के मध्य हुए युद्ध में भाग लिया।
- 1197 में गुजरात की राजधानी अन्हिलवाङा को ऐबक ने लूटा ।
ऐबक का राज्याभिषेक-
मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद लाहौर की जनता ने गौरी के प्रतिनिधि के रूप में ऐबक को लाहौर पर शासन करने के लिए आमंत्रित किया जिसे ऐबक ने स्वीकार किया। जून 1206 में राज्याभिषेक करवाया तथा सुल्तान की बजाय मलिक / सिपहसालार की उपाधि धारण की। इसने अपने नाम के सिक्के भी नहीं चलाये एवं न अपने नाम का खुतबा पढवाया।
- खुतबा एक रचना होती थी जो मौलवियों से सुल्तान शुक्रवार की रात को नजदीक की मस्जिद में अपनी प्रशंसा में पढवाते थे।
- खुतबा शासक की संप्रभूता का सूचक होता था।
- ऐबक ने प्रारंभ में इंद्रप्रस्थ ( दिल्ली के पास )को सैनिक मुख्यालय बनाया
- तथा कुछ समय बाद यल्दौज तथा कुबाजा (मुहम्मद गौरी के दास ) के संघर्ष को देखते हुये लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
- ऐबक ने यल्दौज पर आक्रमण कर गजनी पर अधिकार कर लिया,
- लेकिन गजनी की जनता यल्दौज के प्रति वफादार थी तथा 40 दिनों के बाद ऐबक ने गजनी छोङ दिया।
ऐबक की दानशीलता–
मिनहास उस सिराज ने ऐबक को एक वीर एवं उदार बताया है।ऐबक अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध था जिसके कारण उसने स्वयं ही लाखबक्श (काफी लोगों को रिहा किया तथा गरीब लोगों में लाखों का दान किया) नामक उपाधि धारण की थी। कुरान का ज्ञाता होने के कारण कुरान खाँ की उपाधि दी गई ।
इसके शासनकाल के बारे में एक मत प्रसिद्ध था कि “बकरी व शेर एक ही घाट पर पानी पिते हैं।”
- ऐबक के दरबारी विद्वान–
ऐबक के दरबार में कई विद्वान लोगों को भी आश्रय प्राप्त था। “ताज उल मासिर “के लेखक हसन निजामी तथा “आदाब उल हर्ष वा शुजाआत” के लेखक फख्र ए मुदव्विर जैसे विद्वान इसके दरबार में रहते थे।
- ऐबक द्वारा बनवाई गई इमारतें–
ऐबक को स्थापत्य कला से भी लगाव था।
इसने उत्तर भारत में पहली मस्जिद “कुव्वत उल इस्लाम” का निर्माण करवाया जो विष्णु मंदिर के स्थान पर बनवाई गई है। यह मस्जिद दिल्ली में है।
अजमेर में संस्कृत विद्यालय के स्थान पर “ढाई दिन का झोंपङा” का निर्माण करवाया
तथा सूफी संत “कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी” की याद में कुतुबमीनार का निर्माण प्रारंभ करवाया
जिसको इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
- ऐबक की मृत्यु–
1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोङे से गिर जाने के कारण ऐबक की मौत हो गई।
इसका मकबरा लाहौर में ही बनाया गया है ।
इल्तुतमिश (1210 – 1236 ई.)
- इल्तुतमिश का पूरा नाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश था। यह दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का प्रमुख शासक था।
- इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था,
- जिसे 1197 में अन्हिलवाङा (गुजरात) के आक्रमण के समय ऐबक ने खरीदा था।
- लेकिन अपनी योग्यता से इल्तुतमिश इक्तेदार ( सामंत ) तथा कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद बन जाता है।
- ऐबक की मृत्यु के समय इल्तुतमिश बदायू ( यू. पी. ) का इक्तेदार था।
· तुर्कान – ए – चहलगामी
इल्तुतमिश ने अपने 40 तुर्की सरदारों को मिलाकर तुर्कान- ए -चहलगामी नामक प्रशासनिक संस्था की स्थापना की थी।
· इक्ता प्रणाली का संस्थापक-
- इल्तुतमिश ने प्रशासन में इक्ता प्रथा को भी स्थापित किया। भारत में इक्ता प्रणाली का संस्थापक इल्तुतमिश ही था।
- इसने दोआब (गंगा-यमुना) क्षेत्र में हिन्दू जमीदारों की शक्ति तोङने के लिये शम्सी तुर्की ( उच्च वर्ग ) सरदारों को ग्रामीण क्षेत्र में इक्तायें (जागीर) बांटी ।
- राजपूतों से संघर्ष–
इल्तुतमिश के समय दिल्ली व आसपास के क्षेत्र में राजपूत शासकों ने संघर्ष शुरु कर दिया था,
उसने अनेक अभियानों में राजपूतों की शक्ति को तोङा।
बंगाल की स्थिति–
- इल्तुतमिश के समय बंगाल के अधिकारी इवाजखाँ ने ग्यासुद्दीन के नाम से स्वतंत्रता धारण कर ली। दिल्ली व बंगाल के बीच दूरी अधिक थी। जिस कारण इल्तुतमिश को बंगाल संभालने में कई दिक्कतों का सामना करना पङा। क्योंकि जैसे ही इल्तुतमिश दिल्ली जाता पिछे से विद्रोह उठ खङे होते।
- इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नसीरुद्दीन मुहम्मद के नेतृत्व में 1229 ई. में बंगाल को फिर से जीता।
- नसीरुद्दीन की मृत्यु होने के कारण बल्का खिलजी नामक अधिकारी ने बंगाल में फिर से आक्रमण किया।
- अंततः 1230 ई. में बंगाल को इल्तुतमिश जीत पाया।
· मंगोलो की समस्या-
- 1221 ई. में मंगोल शासक तमेचिन (चंगेज खाँ) ने ख्वारिज्म ( पश्चिमि एशिया ) पर आक्रमण कर उसे नष्ट किया
- और ख्वारिज्म के राजकुमार जलालुद्दीन मांगबर्नी का पीछा करता हुआ 1224 ई. में सिंधु नदी तक आ पहुँचा ।
- जलालुद्दीन द्वारा इल्तुतमिश से संरक्षण मांगने पर इल्तुतमिश ने मना किया
- इसी के साथ चंगेज खाँ भी जलालुद्दीन का पिछा करता हुआ भारत से चला गया
- तथा मंगोल आक्रमण का खतरा टल गया।
दिल्ली को राजधानी बनाया – इल्तुतमिश प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने दिल्ली को राजधानी बनाया।
· इल्तुतमिश के शत्रु-
इसके समय अनेक इक्तेदारों ने विरोध कर दिल्ली को घेर लिया –
- कबीरुद्दीन एयाज ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया।
- मलिक मुहम्मद सलारी ने बदायूं पर अधिकार कर लिया।
- मलिक सैफूद्दीन कूची ने हाँसी पर अधिकार कर लिया।
इनके विद्रोहों को दबाने के लिये रुकनुद्दीन दिल्ली से बाहर गया। उसकी अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुये रजिया ने दिल्ली की जनता के समर्थन से शाहतुर्कान (रुकनुद्दीन की माँ ) व रुकनुद्दीन की हत्या करवाकर स्वयं शासिका बनी।
इल्तुतमिश के समय भी यल्दौज व कुबाचा के साथ टकराहट बनी रही।
1215 ई. में इल्तुतमिश ने तराइन के तीसरे युद्ध में यल्दौज कुबाचा को पराजित कर सिंधु नदी में डुबोकर मार डाला।
· निर्माण कार्य-
स्थापत्य कला के अन्तर्गत इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक के निर्माण कार्य (कुतुबमीनार) को पूरा करवाया।
भारत में सम्भवतः पहला मकबरा निर्मित करवाने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है।
इल्तुतमिश ने बदायूँ की जामा मस्जिद एवं नागौर में अतारकिन के दरवाजा का निर्माण करवाया।
उसने दिल्ली में एक विद्यालय की स्थापना की।
· मृत्यु-
बयाना पर आक्रमण करने के लिए जाते समय मार्ग में इल्तुतमिश बीमार हो गया।
इसके बाद इल्तुतमिश की बीमारी बढती गई।
अन्ततः अप्रैल 1236 में उसकी मृत्यु हो गई।
इल्तुतमिश प्रथम सुल्तान था, जिसने दोआब के आर्थिक महत्त्व को समझा था और उसमें सुधार किया था।
मकबरा
इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में स्थित है, जो एक कक्षीय मकबरा है।
रजिया (1236 – 1240 ई. )-
- ग्वालियर से वापिस आने के बाद इल्तुतमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और चाँदी के टंके पर उसका नाम अंकित करवाया।
- रजिया को इतिहास में रजिया सुल्तान या रजिया सुल्ताना के नाम से भी जाना जाता है। यह इल्तुतमिश की पुत्री थी। यह मुस्लिम तथा तुर्की इतिहास की पहली महिला शासक थी।
- रजिया दिल्ली के अमीरों तथा जनता के सहयोग से सिंहासन पर बैठी। रजिया ने पर्दा प्रथा को त्यागकर पुरुषों के समान काबा (चोगा) पहनकर दरबार में कारवाई में हिस्सा लिया।
शासक ने जब एक गैर तुर्की अफ्रीकी मुस्लिम जलालुद्दीन याकूत को अमीर ए आखूर (शाही अस्तबल का प्रधान) के पद पर स्थापित किया तो चहलगामी रजिया के और विद्रोही बन गये तथा उन्होंने रजिया के विरुद्ध षङयंत्र शुरु कर दिया।
रजिया के विरुद्ध हुए विद्रोह-
- 1238 में कबीर खाँ एयाज ने विद्रोह कर दिया जिसमें तुर्कान ए चहलगामी का समर्थन व सहयोग भी सामिल था।
- रजिया ने कबीर खाँ एयाज को दरबार में बुलाकर धोखे से मार दिया। इस कदम से चहलगामी अत्यधिक आक्रोशित हो गये।
- 1240 में भटिण्डा के इक्तेदार अल्तूनिया ने विद्रोह किया । इस विद्रोह को दबाने के लिये रजिया ने दिल्ली से बाहर विद्रोह किया, लेकिन रजिया पराजित हुई तथा अल्तूनिया ने उसे गिरफदार कर लिया इसका लाभ उठाकर चहलगामी ने इल्तुतमिश के दूसरे पुत्र मुइजुद्दीन बहरामशाह को नया सुल्तान बनाया।
मृत्यु-
रजिया ने अल्तूनिया से विवाह का प्रस्ताव रखा व दिल्ली पर आक्रमण की योजना बनाई लेकिन रजिया व अल्तूनिया की संयुक्त सेना पराजित हुई और वापसी के समय 13 अक्टूबर 1240 को कैथल ( हरियाणा) में कुछ डाकुओं ने अल्तूनिया व रजिया की हत्या कर दी।
मुइजुद्दीन बहरामशाह (1240-1242 ई.)
बहरामशाह एक मुस्लिम तुर्की शासक था, जो दिल्ली का सुल्तान था । बहरामशाह गुलाम वंश का था। रजिया सुल्तान को अपदस्थ करके तुर्की सरदारों ने मुइज़ुद्दीन बहरामशाह को दिल्ली के तख्त पर बैठाया।(1240-1242 ई.)
- यह इल्तुतमिश का पुत्र तथा रजिया का भाई था।
अलाउद्दीन मसूदशाह (1242 – 1246 ई.)
अलाउद्दीन मसूदशाह इल्तुतमिश का परपोता था। जब बहरामशाह ने सुल्तान की शक्तियों को अपने हाथों में लेना चाहा तो चहलगानी ने उसे हटाकर रुकनुद्दीन के पुत्र अलाउद्दीन मसूदशाह को शासक बनाया। इसके काल में बलबन अमीर– ए– हाजिब के पद पर था।
- बलबन ने नसीरूद्दीन महमूद एवं उसकी माँ से मिलकर अलाउद्दीन मसूद को सिंहासन से हटाने का षडयंत्र रचा।
नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266 ई.)
नासिरूद्दीन महमूद इल्तुतमिश का पोता तथा एक तुर्की शासक था,
जो दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना।
यह भी गुलाम वंश से था।यह मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था
तथा खाली समय में कुरान की नकल करना उसकी आदत थी।
नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु–
1266 ई.में सुल्तान की मृत्यु हो गई। इसकी मृत्यु के बारे में अलग-2 विद्वानों ने अलग-2 मत प्रस्तुत किये हैं-
- इब्नबतूता के अनुसार बलबन ने सुल्तान की हत्या करवायी।
- तारीख ए मुबारकशाही के लेखक याहिया बिन सरहिंदी के अनुसार सुल्तान की मृत्यु बिमारी से हुई।
बलबन (1266-1286)
- बलबन इल्तुतमिश का दास था तथा इल्तुतमिश ने ग्वालियर को जीत लेने के बाद बलबन को खरीदा था।
- अपनी योग्यता के आधार पर ही उसने इल्तुतमिश एवं रजिया के समय में अमीर- ए- आखूर का पद प्राप्त किया।
- बलबन ने अपने आप को फिरदौसी के शाहनामा में वर्णित अफरासियाब वंशज तथा शासन को ईरानी आदर्श के रूप में सुव्यवस्थित किया।
- नासिरुद्दीन महमूद के साथ ही इल्तुतमिश के शम्सी वंश का अंत हुआ एवं बलबनी वंश का सल्तनत पर अधिकार हो गया। इसका वास्तविक नाम बहाउद्दीन बलबन था।बलबन ने 20 वर्ष तक वजीर की हैसियत से तथा 20 वर्ष तक सुल्तान के रूप में शासन किया।
- बलबन एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का उपयोग करता था। वह पहला शासक था। जिसने सुल्तान के पद और अधिकारियों के बारे में विस्तृत रूप से विचार प्रकट किये।
- बलबन भी तुर्कान – ए –चहलगानी का सदस्य था, रजिया के समय अमीर – ए – शिकार का सदस्य था तथा बहरामशाह के समय अमीर – ए – आखूर के पद पर, तथा अलाउद्दीन मसूदशाह के समय अमीर – ए –हाजिब के पद पर था।नासिरुद्दीन महमूद के समय बलबन नायब – ए – ममलिकात के पद पर था।
- बलबन ने नवरोज उत्सव शुरू करवाया, जो फारसी (ईरानी) रीति-रिवाज पर आधारित था।
- बलबन राजपद के दैवी सिद्धांत को मानता था तथा राजा को पृथ्वी पर निभायते खुदायी (ईश्वर की छाया) मानता था।
- इसने अपने सिक्कों पर खलीफा का नाम खुदवाया । बलबन ने अपने दरबार के नियम और साज-सज्जा में ईरानी शैली का प्रयोग किया।
बलबन की मृत्यु–
- 1286 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई।इसकी मृत्यु के बाद इसका पौत्र कैकुबाद उत्तराधिकारी हुआ। यह एक विलासी एवं कामुक व्यक्ति था। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण प्रशासन अराजकता से ग्रस्त हो गया तथा राजदरबार अमीरों की उच्च आकांक्षाओं एवं संघर्षों की गिरफ्त में आ गया।
अमीरों के एक गुट आरिज-ए-मुमालिक मलिक फीरोज (जलालुद्दीन) ने 1290 में गुलाम वंश के अंतिम शासक कैकुबाद की हत्या करके राजसत्ता अधिकृत कर खिलजी वंश की स्थापना की।इस प्रकार दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का अंत हो गया।
डा.ए.हबीबुल्ला ने बलबन के शासनकाल को सुदृढता का युग कहते हुए उसके लिए consalidation शब्द का प्रयोग किया है।
अमीर खुसरो (1253-1325)
- अमीर खुसरो का पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन था। अमीर खुसरो दहलवी का जन्म में उत्तर-प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक ग्राम में गंगा किनारे हुआ था। गाँव पटियाली उन दिनों मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था। अमीर खुसरो दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख लेखक, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित था।
- इतिहास लेखन के अलावा अमीर खुसरो ने गायन की अनेक रागों – सनम, धोरा, तोङी, मियां की मल्हार का निर्माण किया तथा तबला, सारंगी जैसे वाद्य यंत्रों का भी निर्माण किया है।
- अमीर खुसरो ने 7 सुल्तानों का शासन(बलबन, मुहम्मद, कैकुबद, जलालुद्दीन खिलजी,अलाउद्दीन खिलजी,मुबारक शाह खिलजी, ग्यासुद्दीन तुगलक ) देखा था I अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है I अमीर खुसरो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फारसी में एक साथ लिखा I उन्हे खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है I सबसे पहले उन्हीं ने अपनी भाषा के लिए हिन्दवी का उल्लेख किया था।
- वे फारसी के कवि भी थे। उनको दिल्ली सल्तनत का आश्रय मिला हुआ था। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की है जिनका इतिहास को जानने में महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा है।
- ये मध्य एशिया के तुर्क सैफुद्दीन के पुत्र थे। खुसरो की माँ बलबनके युद्धमंत्री इमादुतुल मुल्क की पुत्री तथा एक भारतीय मुसलमान महिला थी।
- खुसरो ने अपना सारा जीवन राज्याश्रय में ही बिताया। राजदरबार में रहते हुए भी खुसरो हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे।
- साहित्य के अतिरिक्त संगीत के क्षेत्र में भी खुसरो का महत्वपूर्ण योगदान है I भारतीय गायन में क़व्वालीऔर सितार को इन्हीं की देन माना जाता है।
रचनाएँ-
अमीर खुसरो ने कई पुस्तकों की रचना की है जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं, जो प्रतीयोगीता परीक्षाओं में ज्यातर पुछे जाते हैं-
1. किरान-उल-सदामन – इस ग्रंथ में दिल्ली को हजरत दिल्ली कहा गया है। (इनके द्वारा लिखा गया यह ग्रंथ पद्य में है। इस ग्रंथ में बलबन के पुत्र बुगराखाँ तथा कैकुबाद का वर्णन है।)
2. मिफताह-उल-फुतुल – इस ग्रंथ में जलालुद्दीन के विजय अभियानों का वर्णन है। यह ग्रंथ भी पद्य में लिखा गया है।
3. खजाइन-उल-फुतुह (तारीख-ए- इलाही) – इस ग्रंथ में अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियान और उसके समय मंगोल आक्रमण का वर्णन मिलता है। इसी ग्रंथ में अमीर खुसरो कहता है कि सतरंज का आविष्कार भारत में हुआ।
4. देवल-रानी-खिज्रखाँ (आशिका) – इसमें देवलदेवी एवं पुत्र खिज्रखाँ का वर्णन मिलता है।
5. नुह -सिपहर- इस ग्रंथ में उसने हिन्दुस्तान की दो कारणों से प्रशंसा की है-
- हिन्दुस्तान अमीर खुसरो की जन्म भूमि है।
- हिन्दुस्तान स्वर्ग के बगीचे के समान है।
यह ग्रंथ मुबारकशाह खिलजी के समय की घटनाओं की जानकारी प्रदान करता है।
§ तुगलकनामा – इसमें ग्यासुद्दीन के समय की घटनाओं का वर्णन मिलता है।
§ एजाज-ए-खुसरबी – इसमें राजकीय पत्रों का संकलन मिलता है।
कैकुबाद और क्यूमर्स
कैकुबाद अथवा ‘कैकोबाद’ (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में दिल्ली की गद्दी पर बैठाया गया था। वह सुल्तान बलबन का पोता और उसके सबसे पुत्र बुगरा ख़ाँ का लड़का था। कैकुबाद ने गैर तुर्क सरदार जलालुद्दीन खिलजी को अपना सेनापति बनाया, कैकुबाद को लकवा मार गया। कैकुबाद को लकवा मार जाने के कारण वह प्रशासन के कार्यों में पूरी तरह से अक्षम हो चुका था। प्रशासन के कार्यों में उसे अक्षम देखकर तुर्क सरदारों ने उसके तीन वर्षीय पुत्र शम्सुद्दीन क्यूमर्स को सुल्तान घोषित कर दिया। कालान्तर में जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी ने उचित अवसर देखकर शम्सुद्दीन का वध कर दिया। इस प्रकार से दिल्ली की राजगद्दी पर खिलजी वंश की स्थापना हुई।