Information & Communication Technology

सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी

सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी :-

संचार :- दो या दो से अधिक माध्यमों के बीच सूचना या संदेश का आदान प्रदान संचार कहलाता है। संचार, सूचना या संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना है  ताकि प्राप्तकर्ता उसका सही अर्थ लगा सके।

संचार व्यवस्था का इतिहास एवं वर्तमान :-

  • आरंभ से मनुष्य तथा जीवजंतु ध्वनि के द्वारा सूचनओं का आदान-प्रदान करते रहे हैं। प्रारंभ में ध्वनि संकेतों, जैसे- बोलकर या ढ़ोल नगाड़ा पीटकर सूचनाएं प्रेषित की जाती थी। लंबी दूरी तक सूचनाओं के प्रेषण के लिए संदेश वाहक का प्रयोग किया जाता था। इसमे समय तथा श्रम अधिक लगता था एवं विश्वसनीयता भी प्रमाणित नहीं रहती थी।
  • विज्ञान एवं प्रद्यौगिकी के विकास ने संचार व्यवस्था में भी परिवर्तन किया। आज टेलीग्राफ, टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, ईमेल, वाट्सअप, फेसबुक, ट्विटर तथा उपग्रह संचार के माध्यम से हम अपना संदेश पलक झपकते ही विश्व के किसी कोने में पहुंचा सकते हैं। संचार क्रांति में हुए क्रांतिकारी परिवर्तन को हम संचार क्रांति का नाम दे सकते हैं। जिसने मानव जीवन पर दूरगामी प्रभाव छोड़ा है।
  • आधुनिक संचार व्यवस्था में सूचना को विद्युत तरंगों में बदलकर उन तरंगो को विभिन्न माध्यमों के जरिए इलेक्ट्रानिक उपकरणें द्वारा पुनः सूचना में बदल दिया जाता है। इस तरह, कम समय में लंबी दूरी तक सूचनाओं का विश्वसनीय संप्रेषण किया जा सकता है। इसी कारण इस व्यवस्था को दूर संचार का नाम दिया गया है।.

दूर संचार का विकास :-

  • लंबी दूरी तक सूचनाओं के संप्रेषण का प्रारंभ टेलीग्राफ के विकास से संभव हुआ। अंतरमहाद्वीपीय टैलीग्राफ व्यवस्था की शुरूआत अमेरिका और यूरोप के बीच 1850 में हुई जब दोनों महादेशों के बीच ट्रांस-अटलांटिक केबल डाली गई
  • रेडियो संप्रेषण के सिद्धांत की परिकल्पना सर्वप्रथम भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने 1899 में दी। इसके दो वर्ष बाद, 1901 में यूरोपीय वैज्ञानिक मार्कोनी ने प्रथम दूरसंचार संप्रेषण व्यवस्था स्थापित किया। 1915 में अमेरिका में निर्वात ट्यूब का प्रयोग कर टेलीफोन व्यवस्था की शुरूआत की गई।
  • 1948 में अर्द्धचालकों से बने ट्रांजिस्टर का निर्माण ने संचार व्यवस्था में एक नए युग का सूत्रपात किया जिससे संचार व्यवस्था में गुणात्मक सुधार हुए ।
  • 1962 में टेलस्टार नामक उपग्रह के छोड़े जाने से उपग्रह संचार व्यवस्था का प्रारंभ हुआ।
  • 1965 में अर्ली बर्ड नामक प्रथम संचार उपग्रह छोड़ा गया जिससे विभिन्न देशों के मध्य संचार तंत्र का जाल सा बिछ गया।
  • 1968 में आर्पानेट नामक इंटरनेट व्यवस्था तथा 1970 में प्रकाशीय तंतु संचार का प्रारंभ किया गया जो दूर संचार व्यवस्था में मिल का पत्थर साबित हुआ।

संचार के मूलभूत घटक :-

किसी भी संचार व्यवस्था के लिए निम्नलिखित मूल घटकों का होना आवश्यक है-

  1. सूचना या संदेश   
  2. प्रेषक यंत्र (ट्रांसमीटर)- यह इलेक्ट्रानिक उपकरण होता है जो सूचना या संदेश को विद्युत तरंगों में बदलकर माध्यम में संप्रेषित करता है।
  3. प्रेषक माध्यम (ट्रांसमिशन मीडियम) – यह विद्युत तरंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए वाहक का काम करता है।
  4. प्राप्तकर्ता (रिसीवर)- यह एक उपकरण है जो माध्यम द्वारा लाए गए तरंगों को ग्रहण कर उसे पुनः विश्वसनीयता के साथ सूचना या संदेश में बदलता है।

संचार की विधि  :-

संचार व्यवस्था को संप्रेषण के आधार पर मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है-

1. बिंदु से बिंदु तक सूचना को किसी निश्चित स्थान से प्रेषित किया जाता है तथा उसे किसी निश्चित स्थान पर ही प्राप्त किया जाता है। इसमें एक प्रेषक यंत्र तथा एक ही प्राप्तकर्ता यंत्र का प्रयोग किया जाता है। जैसे टेलीफोन

2. संचारण – सूचना को किसी एक स्थान से प्रेषित किया जाता है तथा इसे एक साथ कई स्थानों पर ग्रहण किया जा सकता है। इसमें एक प्रेषक यंत्र जबकि कई रिसीवर यंत्र हो सकते हैं। जैसे- रेडियो, टेलीविजन आदि।

संचार व्यवस्था के प्रकार :-

संचार व्यवस्था को प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता के बीच क्रिया के आधार पर तीन भागों में बांटा जाता है-

सिम्पलेक्स विधि :-

सूचना को केवल एक ही दिशा अर्थात् प्रेषक से प्राप्तकर्ता की ओर संचारित किया जाता है। इसमें सूचना का प्राप्त होना सुनिश्चित नहीं होता। जैसे-रेडियो या टेलीविजन का प्रसारण।

अर्द्धडुप्लेक्स विधि :-

इसमें सूचनाओं का संचारण दोनों दिशाओं अर्थात् प्रेषक से प्राप्तकर्ता तथा प्राप्तकर्ता से प्रेषक की ओर किया जा सकता है,पर एक समय में सूचना केवल एक ही दिशा में प्रेषित की जा सकती है। जैसे- वॉकी टॉकी

पूर्ण डुप्लेक्स विधि :-

सूचना को एक साथ दोनों दिशाओं में संप्रेषित किया तथा प्राप्त किया जा सकता है। इसमें सूचना का प्राप्त होना तत्काल सुनिश्चत किया जा सकता है। इसके लिए चार तार की आवश्यकता पड़ती है।

संचार के प्रकार  :-

संचार व्यवस्था को विभिन्न आधारों पर विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया जाता है। जैसे-

1 सूचना के प्रकार के आधार पर :-

  • ध्वनि संप्रेषण ,उदाहरण- रेडियो, टेलीफोन
  • फोटो संप्रेषण ,उदाहरण- टेलीविजन
  • फेसिमाइल संप्रेषण – उदाहरण- डाक्युमेंट या तस्वीर भेजना
  • डाटा संप्रेषण – सूचना को डाटा में परिवर्तित कर भेजना।

2. संप्रेषण विधि के आधार पर संचार के प्रकार :-

    एनालॉग संचार – सूचना को उसके एनालॉग  रूप में ही संप्रेषित किया जाता है।

    डिजिटल संचार- सूचना को पहले एनालॉग  से डिजिटल में बदला जाता है तथा डिजिटल सूचना को संप्रेषित किया जाता है। डिजिटल सूचना बाइनरी ( 0 या 1 ) में हो सकती है।

3. संप्रेषण माध्यम के आधार पर संचार के प्रकार :-

तार के माध्यम से संचार

  1. युग्म तार माध्यम
  2. को एक्सियल तार
  3. प्रकाशीय तंतु

बिना तार के संचार

  1. भू-तरंगे
  2. आकाशीय तरंगें
  3. माइक्रोवेव
  4. संचार उपग्रह

4.माड्यूलेशन के आधार पर

  1. आयाम माड्यूलेशन
  2. आवृत्ति माड्यूलेशन
  3. कला माड्यूलेशन
  4. पल्स कोड माड्यूलेशन-

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