इंटरनेट :-
इंटरनेट दुनियाभर के अनेक छोटे-बड़े कम्प्यूटर नेटवर्कों के विभिन्न संचार माध्यमों से जुड़ने से बना विशाल व विश्व व्यापी जाल है, जो समान नियमों का अनुपालन कर एक-दूसरे से संपर्क स्थापित करते हैं तथा सूचनाओं का आदान -प्रदान संभव बनाते हैं। इंटरनेट इंटरनेशनल नेटवर्किंग का संक्षिप्ताक्षर है। यह नेटवर्कों का नेटवर्क है। यह संसार का सबसे बड़ा नेटवर्क है जो दुनियाभर में फैले व्यक्तिगत, सार्वजनिक, शैक्षिक, व्यापारिक तथा सरकारी नेटवर्कों के आपस में जुड़ने से बना नेटवर्क है।इंटरनेट Internet
नेटवर्क :-
हैं , नेटवर्क विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा आपस में जुड़े स्वायत्त कम्प्यूटरों का समूह है जो समान नियमों का अनुपालन कर डाटा तथा सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकते हैं तथा संसाधनों का साझा उपयोग करते हैं। इंटरनेट Internet
नेटवर्क के प्रकार :-
लोकल एरिया नेटवर्क LAN :-
एक सीमित और छोटे भौगोलिक क्षेत्र (1 किमी से 10 किमी तक) में स्थित कम्प्यूटरों के आपस में जुड़ने से बना नेटवर्क लोकल एरिया नेटवर्क कहलाता है। यह किसी आफिस, फैक्टरी या विश्वविद्यालय कैंपस में स्थित हो सकता है। इसका आकार छोटा, डाटा स्थानांतरण की गति तेज तथा त्रुटियां कम होती हैं। ईथरनेट लैन का लोकप्रिय उदाहरण है। लैन से जुड़े कम्प्यूटर विभिन्न संसाधनों जैसे- डाटा, प्रिंटर, स्कैनर आदि का साझा उपयोग कर सकते हैं।
मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क MAN :-
किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र (100 कि.मी. त्रिज्या) में स्थित कम्प्यूटरों का नेटवर्क मैन का उदाहरण है। इसका उपयोग किसी एक शहर में स्थित विभिन्न स्कूल, यूनिवर्सिटी या बड़ी कंपनी के निजी या सार्वजनिक कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है। इंटरनेट Internet
वाइड एरिया नेटवर्क WAN :-
यह एक विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र जैसे – किसी देश, महाद्वीप, या संपूर्ण विश्व में फैले कम्प्यूटरों का नेटवर्क है। बैंको का नेटवर्क, रेलवे/हवाई जहाज आरक्षण का नेटवर्क, सैन्य नेटवर्क आदि वेन के उदाहरण हैं। इंटरनेट को संसार का सबसे बड़ा वैन कहा जा सकता है।
पर्सनल एरिया नेटवर्क PAN :-
किसी व्यक्ति या संस्था के अधिकार क्षेत्र के भीतर (10मीटर से 100 मीटर तक) सीमित क्षेत्र में स्थित कम्प्यूटरों तथा उनके सहायक उपकरणों को आपस में जुड़ने से बना नेटवर्क पैन कहलाता है.
वर्चुअल प्रायवेट नेटवर्क VPN :-
यह एक व्यक्तिगत नेटवर्क है जिसमें नेटवर्क के कुछ उपकरणों के बीच संचार इंटरनेट के माध्यम से स्थापित किया जाता है जबकि शेष उपकरण विशेषीकृत लाइनों द्वारा जुड़े होते हैं। इसमें सूचना की गोपनीयता बनाये रखने के लिए कोडिंग तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
इंटरनेट का विकास :-
- प्रो. जे.सी. लिक्लाइडर ने सर्वप्रथम इंटरनेट की स्थापना का विचार 1962 में दिया था।
- इंटरनेट का प्रारंभ 1969 ई. में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा अर्पानेट ARPANET के विकास में किया गया।
- World wide Web का प्रस्ताव टिम बर्नस ली द्वारा 1990 ई. में दिया गया था।
- World wide Web (WWW) का पहला आम प्रयोग 6 अगस्त 1991 में किया गया।
- मोसोइक World wide Web पर प्रयुक्त पहला GUI ग्राफिकल वेब ब्राउसर था जिसका विकास मार्क एण्डरसन ने 1993 में किया था।
- 1993 ई. में European Organisation for nuclear research (सीईआरएन CERN) ने World wide Web को निःशुल्क उपयोग के लिए उपलब्ध कराया।
- 1994 ई. में World wide Web के लिए विभिन्न मानकों तथा प्रोटोकाॅल का विकास करने के लिए World wide Web Community (W3C) की स्थापना की गई।
- 15 अगस्त 1995 ई. को विदेश संचार निगम लिमिटेड द्वारा भारत में इंटरनेट सेवा का प्रारंभ किया गया । इंटरनेट Internet
इंटरनेट से जुड़ना :-
किसी व्यक्ति को इंटरनेट सेवा से जुड़ने हेतु निम्नलिखित उपकरणों/साफ्टवेयर की आवश्यकता होती है-
- पी.सी. (पर्सनल कम्प्यूटर)
- मॉडेम
- संचार माध्यम- टेलीफोन लाइन, या विशेषीकृत लाइन या प्रकाशीय तंतु या वायरलेस तकनीक आदि।
- वेब ब्राउजर एप्लीकेशन
- इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर
इंटरनेट सर्विस प्रदाता को निर्धारित शुल्क देकर इंटरनेट खाता, यूजर नेम, पासवर्ड प्राप्त किया जाता है। इंटरनेट से जुड़े सभी कम्प्यूटरों को एक विशेष आई.पी. एड्रेस प्रदान किया जाता है जो उस कम्प्यूटर की पहचान बताता है।
इंटरनेट पर प्रयुक्त प्रोटोकाल :-
किसी भी नेटवर्क में दो या अधिक कम्प्यूटरों के बीच सूचनाओं के त्रुटि रहित आदान प्रदान को संभव बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों कम्प्यूटर एक समान नियमों व प्रतिमानों का अनुपालन करें। नियमों तथा प्रतिमानों के समूह को प्रोटोकाल कहा जाता है।
कम्प्यूटर नेटवर्क में प्रयोग किये जाने वाले प्रमुख प्रोटोकाल :-
TCP/IP :-
- यह इंटरनेट पर प्रयुक्त सर्वाधिक लोकप्रिय प्रोटोकाल है। ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल तथा इंटरनेट प्रोटोकाल दो अलग-अलग प्रोटोकाल हैं, पर चूंकि इनका प्रयोग एक साथ किया जाता है, अतः इन्हें सम्मिलत रूप से इंटरनेट प्रोटोकाल सूट कहा जाता है। इसका उपयोग कर इंटरनेट पर दूरस्थ कम्प्यूटर तथा सर्वर के बीच संचार स्थापित किया जाता है।
- जब किसी सूचना या डाटा को किसी कम्प्यूटर या सर्वर द्वारा इंटरनेट पर भेजा जाता है, तो ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल उस सूचना को छोटे-छोटे समूहों (यूनिट) में विभाजित कर देता है। इन समूहो को पैकेट कहा जाता है।
- इंटरनेट प्रोटोकाल प्रत्येक पैकेट को एक विशेष पता देता है तथा गंतव्य तक पहंुचाने के एि उनका रास्ता तय करता है। जरूरी नहीं है कि किसी सूचना के सभी पैकेट्स एक ही रास्ते से गंतव्य तक पहुंचे बल्कि ये अलग-अलग रास्तों से भी अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। नेटवर्क से जुड़ा राउटर प्रत्येक पैकेट को अपने गंतव्य तक पहंुचाने में मदद करता है।
- गंतव्य स्थान पर पुनः इन पैकेट्स को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल की सहायत से सही क्रम में व्यवस्थित कर कम्प्यूटर को उपयोग के लिये दिया जाता है। इंटरनेट Internet
SMTP :-
यह इंटरनेट पर ई-मेल के लिए प्रयुक्त होने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय प्रोटोकाल है। उपयोगकर्ता के कम्प्यूटर से मैसेज को ई-मेल सर्वर तक और पुनः सर्वर से प्राप्तकर्ता तक भेजने के लिए इस प्रोटोकाल का प्रयोग किया जाता है।
HTPP (Hyper text transfer protocol) :-
यह World Wide Web को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए प्रयुक्त सर्वाधिक लोकप्रिय प्रोटोकाल है। वेब सर्वर से उपयोगर्ता तक वेब पेज का हस्तांतरण इसी प्रोटोकाल द्वारा किया जाता है।
FTP ( File Transfer Protocol) :-
- यह इंटरनेट पर प्रयुक्त एक प्रोटोकाल है जिसका प्रयोग नेटवर्क से जुड़े किसी कम्प्यूटर तथा सर्वर के बीच फाइल स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है। फाईल में डाटा, टैक्स्ट, ग्राफ, चित्र, ध्वनि, या चलचित्र हो सकता है।
- फाइल स्थानांतरण के लिए दूरस्थ कम्प्यूटर से लाग-इन द्वारा संपर्क स्थापित किया जाता है। इसके बाद फाइल को अपलोड या डाउनलोड़ किया जाता है। फाइल स्थानांतरण के लिए उपयोगकर्ता के पास दूरस्थ कम्प्यूटर तक जाने का अधिकार होना आवश्यक है। इंटरनेट पर कुछ अज्ञात एफटीपी साइट होती हैं जिन्हें किसी भी व्यक्ति द्वारा उपयोग किया जा सकता है।
राउटर :-
हैं ,राउटर कम्प्यूटर नेटवर्क में प्रयोग की जाने वाली वे डिवाईस होती हैं जो दो या दो से अधिक विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा जुड़े कम्प्यूटर नेटवर्क को आपस में जोड़ता है तथा इनके बीच डाटा पैकेट्स का आदान प्रदान संभव बनाता है।
राउटर साफ्टवेयर की मदद से नेटवर्क पर भेजे गए डाटा पैकेट्स पर अंकित पते की जांच करता है तथा उसे सही दिशा में प्रेषित करता है। इसके लिए राउटिंग टेबल का प्रयोग किया जाता है। यह दो अलग अलग हार्डवेयर का प्रयोग करने वाले नेटवर्क के बीच इंटरफेस का काम भी करता है।
गेटवे :-
दो या अधिक अलग अलग प्रोटोकाल का उपयोग करने वाले नेटवर्क को आपस में जोड़ने के लिए बनाया गया इंटरफेस है। इसे प्रोटोकाल कनवर्टर भी कहा जाता है। यह हार्डवेयर या साफ्टवेयर की सहायता से दो अलग-अलग नेटवर्क के बीच संवाद व डाटा आदान प्रदान संभव बनाता है।
मॉडेम :-
- यह मॉड्यूलेटर -डी मॉड्यूलेटर का संक्षिप्त रूप है। माडेम टेलीफोन लाइन के माध्यम से कम्प्यूटर को नेटवर्क से जोड़ता है। सामान्य टेलीफोन लाइन पर केवल एनोलॉग संकेत भेजा जा सकता है जबकि कम्प्यूटर डिजिटल डाटा उत्पन्न करता है। माडेम कम्प्यूटर द्वारा उत्पन्न डिजिटल डाटा को एनोलॉग डाटा में बदलता है जिसे टेलीफोन लाइन पर भेजा जाता है। दूसरी तरफ, टेलीफोन लाइन पर प्राप्त एनोलॉग डाटा को मॉडेम द्वारा डिजिटल डाटा में बदलकर कम्प्यूटर के उपयोग के लायक बनाया जाता है।
- डिजिटल डाटा को एनोलॉग डाटा में बदलना मॉड्यूलेशन कहलाता है जबकि एनोलॉग डाटा को डिजिटल डाटा में बदलना डी- मॉड्यूलेशन कहलाता है। मॉडेम की गति का बॉण्ड में मापा जाता है। नये संचार माध्यमों जैसे आईएसडीएन, डीएसल, आदि जिनमें डिजिटल डाटा सीधे भेजा जा सकता है केक साथ मॉडेम के प्रयोग की आवश्कयता नहीं पड़ती है। इंटरनेट Internet
WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) :-
- यह इंटरनेट पर उपलब्ध सर्वाधिक लोकप्रिय व उपयोगी सेवा है। यह हाइपर लिंक द्वारा आपस में जुड़े हुए सूचनओं का विशाल समूह है जिसे इंटरनेट पर वेब ब्राउजर की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है। वर्ल्ड वाइड वेब एक ऐसा तंत्र है जिसमें विभिन्न कम्प्यूटरों में एकत्रित सूचनओं को हाइपर टेक्स्ट डाक्यूमेंट की सहायता से एक-दूसरे से जोड़ा जाता है। इन सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए http एचटीपीपी प्रोटोकाल का प्रयोग किया जाता है। वर्ल्ड वाइड वेब ने इंटरनेट पर सूचनाओं का आदान-प्रदान आसान बनाया है तथा इंटरनेट को सूचना राजमार्ग में परिवर्तित कर दिया है।
- वर्ल्ड वाइड वेब पर संग्रहित प्रत्येक पेज वेब पेज कहलाता है। ये वेब पेज एचटीएमएल का प्रयोग कर तैयार किए जाते हैं तथा हायपर द्वारा एक दूसरे से जुड़े होते हैं। वह स्थान जहां ये वेब पेज संग्रहित रहते हैं वेबसाइट कहलाती है। प्रत्येक वेबसाइट का प्रथम पृष्ठ जो उसके अंदर स्थित सूचनाओं की सूची प्रदान करता है होम पेज कहलाता है। किसी वेबसाइट को खोलने पर सबसे पहले होमपेज ही दिखाई देता है। वेब पेज को एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक भेजने के लिए हायपर टेक्सट ट्रंासफर प्रोटोकाल का प्रयोग किया जाता है। इस प्रोटोकाल से इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाला कम्प्यूटर वेब सर्वर कहलाता है। जबकि इस सेवा का प्रयोग करने वाला कम्प्यूटर वेब क्लाइ्रंट कहलाता है।
वर्ल्ड वाइड वेब का विकास :-
- वर्ल्ड वाइड वेब के विकास का प्रस्ताव सर्वप्रथम सीईआरएन के वैज्ञानिक टिम बर्नस ली ने 1989 ई. में दिया था। इसका उद्देश्य एक ऐसे वातावरण का विकास करना था जिसमें हायपर टेक्स्ट डाक्यूमेंट का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साझा उपयोग किया जा सके। वर्ल्ड वाइड वेब का पहला प्रयोग 6 अगस्त 1991 ई. को किया गया । 1993 में मार्क एण्डरसन वर्ल्ड वाइड वेब पर प्रयोग के लिए पहला ग्राफिकल यूजर इंटरफेस वाला ब्राउजर विकसित किया जिसे मोजेइक नाम दिया गया । 1993 में सीईआरएन ने वर्ल्ड वाइड वेब को सभी लोगों के उपयोग के लिए निःशुल्क बना दिया। 1994 में टिम बर्नस ली के प्रयासों से वर्ल्ड वाइड वेब के लिए विभिन्न मानकों तथा प्रोटोकाल का विकास करने के लिए वर्ल्ड वाइड वेब संघ की स्थापना की गई। वर्ल्ड वाइड वेब के विकास में अपने योगदान के कारण ही टिम बर्नस ली को Father of World Wide Web कहा जाता है।
वर्ल्ड वाइड वेब तथा इंटरनेट में अंतर :-
- इंटरनेट पर उपलब्ध सेवा वर्ल्ड वाइड वेब की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सामान्यतः वर्ल्ड वाइड वेब तथा इंटरनेट का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है। पर वास्तव में वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट का एक उपयोग मात्र है। वर्ल्ड वाइड वेब और इंटरनेट में मुलभूत अंतर इस प्रकार हैं-
- इंटरनेट एक अंतर्राष्ट्रीय संचार नेटवर्क है जो हार्डवेयर व साफ्टवेयर का इस्तेमाल कर दुनियाभर में फैले छोटे बड़े कम्प्यूटर नेटवर्कों को आपस में जोड़ता है। दूसरी तरफ, वर्ल्ड वाइड वेब हायपरलिंग द्वारा आपस में जुड़े सूचनाओं का एक समूह है जिनका साझा उपयोग किया जाता है।
- इंटरनेट के लिए इंटरनेट प्रोटोकाल सूट टीसीपी/आईपी का प्रयोग किया जाता है जबकि वर्ल्ड वाइड वेब के लिए HTPP एचटीपीपी का प्रयोग किया जाता है।
- इंटरनेट के प्रयोग के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाता को शुल्क देना पड़ता है जबकि वर्ल्ड वाइड इंटरनेट पर उपलब्ध एक निःशुल्क सर्शत सुविधा है।
- इंटरनेट हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर दोनों के समन्वय से कार्य करता है जबकि वर्ल्ड वाइड वेब केवल विभिन्न साफ्टवेयर का प्रयोग करता है।
- वर्ल्ड वाइड वेब एक सुविधा है और इंटरनेट उस तक पहुंचने का माध्यम है।
HTML (Hypertext Markup Language) :-
- वर्ल्ड वाइड वेब पर वेब पेज को तैयार करने के लिए प्रयुक्त एक प्रोग्रामिंग भाषा है जिसमें हायपर तथा हायपर लिंक का प्रयोग किया जाता है।
- एच.टी.एम.एल. में विभिन्न वेब पेज को हाइयपर लिंग का प्रयोग कर आपस में जोड़कर रखा जाता है जिससे उपयोगकर्ता अपनी इच्छानुसार एक वेबस पेज से दूसरे वेब पेज या वेब साइट तक जा सकता है। एचटीएमल का विकास टिम बर्नसल ली ने 1990 में किया था।
Hyper Text:-
यह कम्प्यूटर या किसी वेब पेज पर प्रदर्शित वह टेक्सट है जो उसी या किसी अन्य वेब पेज पर उपलब्ध टेक्स्ट, ग्राफिक्स, चित्र, चलचित्र या किसी अन्य डिवाइस से जुड़ा रहता है। हाइपर टेक्सट को स्क्रीन पर गहरे नीलजे रंग में या रेखांकित कर दिखाया जाता है। इस टेक्स्ट पर कर्सर को ले जाने पर वह हाथ के चिन्ह के जैसा हो जाता है। हाइपर टेक्स्ट को माउस या की-बोर्ड द्वारा एक्टिवेट करने पर उपयोगर्ता तुरंत उससे जुड़ी सूचना तक पहुंच जाता है।
डोमेन नेम :-
- नेटवर्क में प्रत्येक वेब साइट को एक विशेष नाम दिया जाता है जिसे डोमेन नेम कहते हैं। यह नाम उस वेबसाइट का पता होता है।
- डोमेन नेम में उस वेब साइट का नाम तथा एक्सटेंशन नाम शामिल होता है। प्रत्येक वेबस साइट का अपना अलग-अलग नाम होता है। जबकि एक्सटेंशन नाम कुछ पूर्व निर्धारित विकल्पों में से कोई एक हो सकता है। नाम तथा एक्सटेंशन को डॉट के द्वारा अलग किया जाता है।
उदाहरण Google.com, Facebook.com, pscadda.com
- डोमेन नेम में अंक या अक्षर हो सकते हैं। इसमें अधिकमत 64 कैरेक्टर हो सकते हैं।
- इसमे एकमात्र विशेष कैरेक्टर हायफन का प्रयोग किया जा सकता है।
- डोमेन नेम का अंतिम भाग, जिसे डाट के बाद लिखा जाता है किसी संगठन या देश को इंगित करता है इसे डोमेन इंडीकेटर भी कहते हैं।
- संगठन को इंगित करने वाला डोमेन नेम जेनरिक डोमेन कहलाता है जबकि देश का इंगित करने वाला डोमेन नेम कंट्री डोमेन कहलाता है। इंटरनेट Internet
डोमेन एक्सटेंशन के कुछ उदाहरण :-
.com or .edu | is a top-level domain name (TLD) |
cornell.edu | is a second-level domain name (SLD) |
bigred.cornell.edu | is a third-level or three-part domain name |
project.bigred.cornell.edu | is a fourth-level or four-part domain name |
IP Address (इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रेस) :-
- इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर या उपकरण को उसकी पहचान के लिए एक विशेष अंकीय पता दिया जाता है जिसे आई.पी. एड्रेस कहा जाता है। यह अंकीय पता इंटरनेट से जुड़ने पर आई.एस.पी. द्वारा दिया जाता है।
- आई.पी. एड्रेस इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर को एक विशेष पहचान प्रदान करता है। इसमें कम्प्यूटर या उपकरण द्वारा प्रयुत प्रोटोकाल का नाम तथा नेटवर्क पर उसकी स्थिति शामिल रहता है। इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर यदि किसी कम्प्यूअर को स्थायी आई.पी. एड्रेस प्रदान करता है तो उसे स्टेटिक आई.पी. एड्रेस कहते हैं। यदि किसी कम्प्यूटर को इंटरनेट से जुड़ने पर हर बार नया आई.पी. एड्रेस दिया जाता है तो उसे डायनामिक आईपी एड्रेस कहा जाता है।
- IPv4 इंटरनेट प्रोटोकाल वर्जन 4 का प्रयोग आई.पी. एड्रेस के लिए अभी तक किया जा रहा है। इसमें एड्रेस के लिए 32 बिट नंबर का प्रयोग किया जाता है। आपी वी4 में 0 से 255 तक के अंको का चार समूह होता है जिसे तीन डॉट द्वारा अलग किया जाता है। जैसे – 198.0.0.14
- इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की बढ़ती संख्या के कारण 32 बिट एड्रेस कम पड़ने लगा। इसी कारण IPv6 इंटरनेट प्रोटोकाल वर्जन 6 का विकास किया गया जो एड्रेस के लिए 128 बिट नंबर का प्रयोग करता हैं आपी वी 6 में चार हेक्साडेसिमिल अंको का आठ समूह होता है जिसे कोलोन द्वारा अलग किया जाता है। जैसे 2001:db8:a0b:12f0::1
- इंटरनेट से जुडे प्रत्येक कम्प्यूटर या उपकरण को सर्वर द्वारा एक विशेष अंकीय पता दिया जाता है, जिसे आईपी एड्रेस कहते हैं। इस अंकीय पता को याद रखना एक कठिन कार्य है। दूसरी तरफ कम्प्यूटर सर्वर केवल बाइनरी अंको वाले अंकीय पता की ही पहचान कर सकता है। इस समस्या के हल के लिए डोमेन नेम सिस्टम डीएनएस का प्रयोग किया जाता है।
- जब हम किसी वेब ब्राउजर पर किसी वेबसाइट का डोमेन नेम टाइप करते हैं तो वह डोमेन नेम सिस्टम उसे अंकीय पता में बदल देता है ताकि सर्वर उस कम्प्यूटर की पहचान कर उससे संपर्क स्थापित कर सकें।
- डोमेन नेम केस सेंसेटिव नहीं होता, अर्थात उन्हें बड़े अक्षरों या छोटे अक्षरों किसी में भी टाइप करने पर समान वांछित परिणाम प्राप्त होता है।
URL :-
वर्ल्ड वाइड वेब पर किसी वेबसाइट या वेब पेज का विशेषीकृत पता उस वेब साइट या वेज पेज का यूआरएल कहलाता है। यह कम्प्यूटर नेटवर्क व्यवस्था है जो यह बतलाता है कि वांछित सूचना कहां उपलब्ध है और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है। वेब ब्राउजर का उपयोग कर किसी वेब साइट या वेब पेज तक पहुंचने के लिए वेब ब्राउजर के एड्रेस बार पर उसका यूआरएल टाइप किया जाता है।
किसी भी यूआरएल में शामिल होता है-
- Transfer protocol का नाम
- Colon and Double Slash (://)
- Server का नाम पता इसे host computer का domain भी कहा जाता है
- फाइल या वेब पेज तक पहुंचने का रास्ता Directory Path
- File का नाम
यूआरएल का उदाहरण :- https://www.pscadda.com/
- यूआरल मे खाली स्थान का प्रयोग नहीं होता तथा इसमें प्रयुक्त फारवर्ड स्लेश फाइल के डायरेक्ट्री पाथ को दर्शाता है।
- युनीफार्म रिसोर्स आइडेंटिफायर
- यूआरआई वर्ल्ड वाइड वेब पर स्थित किसी फाइल या सूचना का नाम और उसकी स्थिति बताता है। यूआरआई में यूआरएल का कुछ या पूरा हिस्सा शामिल होता है। यूआरएल सूचना की स्थिति तथा उसे प्राप्त करने का मार्ग बतलाता है।
वेब ब्राउजर :-
- इंटरनेट पर वर्ल्ड वाइड वेब का प्रयोग वेब ब्राउजर साफ्टवेयर के माध्यम से किया जाता है। वेब ब्राउजर एक एप्लीकेशन प्रोग्राम है जो वर्ल्ड वाइड वेब पर स्थित हाइपर टेक्स्ट डाक्यूमेंट को उपयोगर्ता के लिए उपलब्ध कराता हैं
- किसी वेब ब्राउजर में जब हम किसी वेब साइट या वेब पेज का यूआरएल टाइप करते है, तो वेब ब्राउजर उस यूआरएल को डोमेन नेम सिस्टम की मदद से आई.पी. एड्रेस में बदल देता है तथा इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के जरिये उस वेबसाइट से हमें जोड़ देता है।
- सबसे पहले वेब ब्राउजर का विकास टिम बर्नस ली ने 1891 में किया था।
- वर्तमान में प्रचलित कुछ वेब ब्राउजर
- Internet Explorer
- Google Chrome
- Mozilla Firefox
- Safari
- Opera
इंटरनेट एक्सप्लोरर :-
यह माइक्रोसाफ्ट कार्पोरेशन द्वारा विकसित वेब ब्राउजर है जो विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में शामिल रहता है। यह विश्व का सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाने वाला वेब ब्राउजर है।
Mozilla Firefox :-
इसका विकास मोजिला कार्पोरेशन द्वारा किया गया है। इस वेब ब्राउजर का प्रयोग विंडो, लाइनक्स तथा मैकनटोस आदि ऑपरेटिंग सिस्टम में किया जाता है। यह एक निःशुल्क वेब ब्राउजर है अर्थात् इसका उपयोग करने के लिए कोई शुल्क नहीं देनी पड़ती है।
ओपेरा :-
यह ओपेरा साफ्टवेयर कंपनी द्वारा विकसित वेब ब्राउजर है जो मोबाईल फोन तथा पीडीए में प्रयोग के लिए एक समय प्रचलित है। वर्तमान में इसका प्रयोग गुगल chrome वेब ब्राउजर आने के बाद बहुत कम हो गया है।
एप्पल सफारी Safari :-
सफारी वेब ब्राउजर का विकास एप्पल कार्पोरेशन द्वारा 2007 में किया गया था। यह मैकनटास आपरेटिंग सिस्टम में शामिल रहता है तथा इसका प्रयोग आईफोन आईपेड के लिया भी किया जाता है।
गूगल क्रोम :-
यह गूगल कंपनी द्वारा सन 2008 में विकसित किया गया वेब ब्राउजर है जो अपने बेहतर सुरक्षा प्रावधानों तथा उच्च गति क्षमता के लिए लोकप्रिय है।
इंट्रानेट Intranet :-
किसी संस्था के नियंत्रण के भीतर स्थापित कम्प्यूटर नेटवर्क जिसमें इंटरनेट पर प्रयुक्त हार्डवेयर, साफ्टवेयर तथा इंटरनेट प्रोटोकाल का प्रयोग किया जाता है, इंट्रानेट कहलाता है। इंट्रानेट में टीसीपी/आईपी प्रोटोकाल, सर्वर, वेब ब्राउजर साफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है। इंट्रानेट पर इंटरनेट की सभी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं साथ ही नेटवर्क पूरी तरह सुरक्षित भी होता हैं
एक्स्ट्रानेट Extranet :-
किसी संस्था के नियंत्रण में स्थित नेटवर्क जो किसी अन्य नेटवर्क तथा इंटरनेट से जुड़ा होता है, एक्स्ट्रानेट कहलाता है। एक्स्ट्रानेट अन्य नेटवर्क से जुड़े उपयोगकर्ताओं को अपने नेटवर्क के सीमित उपयोग का अधिकार देता है। इस तरह एक्स्ट्रानेट एक लोक एरिया नेटवर्क है जो किसी अन्य नेटवर्क जैसे इंटरनेट से जुड़ा होता है।
सर्च इंजन :-
वर्ल्ड वाइड वेब सूचनाओं का अथाह भंडार है जिसमें करोड़ों वेब पेज स्थित हैं। जिन्हें इंटरनेट की मदद से प्राप्त किया जा सकता है। इस अथाह भंडार में से वांछित सूचना खोजने में सर्च इंजन हमारी मदद करता है। सर्च इंजन वेब पर स्थित सभी वेज पेज की सूची बना कर रखता है। यह वेब पेज के टाइटल, उसके मुख्य शब्द या वेज पर स्थित किसी शब्द या शब्द समूह के आधारपर वेब पेज की खोज करता है।
वेब ब्राउजर में जब हम कोई टेक्स्ट या फ्रेज डालते हैं तो सर्च इंजन इससे संबंधित वेब पेज की सूची प्रदर्शित करता है।
प्रमुख सर्च इंजन :-
- Bing.
- Yahoo
- Baidu
- AOL
- Ask.com
- Excite
- DuckDuckGo
सर्फिंग :-
वर्ल्ड वाइड वेब पर अपने पंसद की सूचना की खोज में एक वेब पेज से दूसरे वेब पेज पर जाना सर्फिंग कहलाता है। वेब पेज पर उपलब्ध हायपर लिंक की व्यवस्था इस कार्य को आसान बनाती है। वस्तुतः बिना किसी सही दिशा और उद्देश्य के एक वेब पेज से दूसरे वेब पेज तक जाना ही सर्फिंग कहलाता है।
हिट्स :-
वर्ल्ड वाईड वेब पर किसी सूचना को प्राप्त करने के लिए वेब सर्च इंजन पर उस वेब पेज का टाइटल या कुछ मुख्य शब्द टाइप किया जाता है। सर्च इंजन इसके परिणामों की एक सूची प्रदर्शित करता है जिसे हिट्स कहा जाता है।