खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य पदार्थ विभिन्न कारणों से संसाधित किए जाते रहे हैं। 

प्राचीन काल से फसल कटने पर अनाजों को सुखा लिया जाता है,

जिससे उनका सुरक्षा काल बढ़ जाता है।

प्रांरभ में खाद्य पदार्थों का संसाधन स्वाद सुधारने और खाद्य पदार्थ की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चत करने के लिए किया जाता था।

भारत में आचार, मुरब्बा और पापड़ संरक्षित उत्पादों के उदाहरण हैं

जो कुछ सब्जियों,फलों, अनाजों से बनाए जाते हैं।

समय बीतने के साथ-साथ, उन्नत परिवहन, संचार और बढ़ते औद्योगिकरण ने ग्राहकों की आवश्यकताओं को अधिक विविध बना दिया

और सुविधाजनक खाद्यों, ‘ताजे‘ और ‘अधिक प्राकृतिक‘ खाद्यों, ‘सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक‘ खाद्यों

तथा पर्याप्त सुरक्षा काल वाले खाद्यों की मॉंग बढ़ती जा रही है।

            उपभोक्ता बेहतर गुणवत्ता वाले खाद्यों  की अपेक्षा करते हैं जिनमें पोषक तत्व सुरक्षित रहें और जो विशिष्ट क्रियात्मक गुणों और स्वाद/रचना/उपयुक्त गाढ़ेपन वाले, साथ ही खराब नहीं होने वाले और आसानी से पैक, भंडारित और परिवहन किए जा सकने वाले हों। इन सभी ने वैज्ञानिकों को प्रेरित किया कि वे खाद्यों को संसाधित करने की ऐसी विधियां और तकनीक विकसित करें जिससे सभी बने बनाए खाद्य पदार्थ खाते हैं। ये बिस्कुट, ब्रेड, अचार/पापड़ से लेकर खाने के लिए तैयार तरकारियों, अल्पाहर इत्यादि व्यंजन हो सकते हैं। कुछ के लिए साधारण परंपरागत विधियाँ अभी भी काम में ली जाती हैं, जबकि बड़े पैमाने पर खाद्यों को उत्पादन के नयी विधियाँ और प्रौद्योगिकियां काम में ली जाती हैं।

भारत में खाद्य सरंक्षण का महत्व :-

भारत ने एक कृषि-न्यून वाले देश से अब कृषि-आधिक्य वाले देश के रूप में प्रगति की है। इससे कृषि और बागवानी के उत्पादों के भंडारण और प्रसंस्करण की आवश्यकता उत्पन्न हो गई। फलस्वरूप भारतीय खाद्य उद्योग, संसाधित खाद्यों के प्रमुख उत्पादन के रूप में उभरा है और लगभग 6 प्रतिशत जी.डी.पी. के योगदान के साथ आकार की दृष्टि से पॉचवे स्थान पर है। उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण भारत में खाद्य संसाधन उद्योग को बढ़ावा मिला है। इसी क्रम में भारत सरकार बहुत अधिक संख्या में वृहत खाद्य संसाधन पार्कों की देश में अलग-अलग स्थानों पर स्थापना की है तथा आगे भी यह कार्य जारी है।

सामान्य अनाज पर आधारित मुख्य भोजन में अक्सर कुछ पोषक तत्वों की कमी होती है, जिससे पोषण की कमी वाले रोग हो जाते हैं। अतः खाद्य पदार्थों या मसालों में जिन पोषक पदार्थों की कमी होती है, जिससे पोषण की कमी वाले रोग हो जाते हैं। अतः खाद्य पदार्थों या मसालों में जिन पोषक पदार्थों की कमी होती है, उन्हें मिलाकर खाद्य पदार्थों का प्रबलीकरण (फूड फॉर्टीफिकेशन) किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि आहार की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं। उदाहरण- आयोड़ीन युक्त नमक फोलिक अम्ल युक्ट आटा आदि।      

खाद्य प्रौद्योगिकी से जुड़ी मूलभूत संकल्पनाएँ :-

खाद्य विज्ञान :-

यह एक विशिष्ट क्षेत्र है जिसमें आधारभूत विज्ञान विषयों जैसे- रसायन और भौतिकी, पाक कलाओं, कृषि विज्ञान और सूक्ष्मजीव विज्ञान के अनुप्रयोग शामिल हैं। यह एक बहुत व्यापक विषय है जिसमें फसल काटने से लेकर भोजन पकाने और उपभोग तक खाद्य के सभी तकनीकी पहलू जुड़े हुए हैं। खाद्य वैज्ञानिकों को खाद्य पदार्थों का संघटन, फसल काटने से लेकर विभिन्न प्रक्रमों के भंडारण की विभिन्न स्थितियों में होने वाले परिवर्तनों, उनके नष्ट होने के कारण से लेकर विभिन्न प्रक्रमों और भंडारण की विभिन्न स्थितियों में होने वाले परिवर्तनों, उनके नष्ट होने के कारण और खाद्य संसाधन से जुड़े सिद्धांतों के अध्ययन के लिए जीवविज्ञान, भौतिक विज्ञान और अभियांत्रिकी का उपयोग करना पड़ता है। खाद्य वैज्ञानिक खाद्य के भौतिक-रासायनिक पहलुओं से संबंध रखते हैं,अतः हमे ंखाद्य की प्रकृति और गुणों को समझने में मदद करते हैं।

खाद्य प्रौद्योगिकी :-

प्रौद्योगिकी एक ऐसा विज्ञान है जिसमें वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक ज्ञान और उत्पादन के कानूनी नियमों का व्यावहारिक उपयोग होता है। खाद्य प्रद्योगिकी विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों  के उत्पादन के लिए खाद्य विज्ञज्ञन और खाद्य अभियांत्रिकी का उपयोग करती है, उसका लाभ उठाती है। खाद्य प्रौद्योगिकी से सरुक्षित,पोषक, संपूर्ण, वॉछनीय के साथ-साथ सस्ते, सुविधाजनक खाद्य पदार्थों का चयन, भंडारण, सरंक्षण, संसाधन, पैक करने के कौशलों को विकसित करता है। खाद्य प्रौद्योगिकी का अन्य महत्वपूर्ण पहलू सभी उत्पादित खाद्यों को सुरक्षित करना और उपयोग में लाना।

खाद्य उत्पादन :-

इसमें खाद्य उत्पादों को बढ़ती जनसंख्या की विविध मॉगों को पूरा करने के लिए खाद्य प्रौद्योगिकी के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है। खाद्य उत्पादन वर्तमान काल का सबसे बड़ा उत्पादन उद्योग है।

खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का विकास :-

कई दशकों से खाद्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध कार्य किया गया है। वर्ष 1810 में निकोलस ऐप्पर्ट द्वारा खाद्य पदार्थों को डिब्बों में बंद करने की प्रक्रिया को विकसित करना एक निर्णायक घटना थी। डिब्बाबंदी का खाद्य संरक्षण तकनीकों पर प्रमुख प्रभाव पड़ा।

बाद में वर्ष 1864 में लुई पाश्चर द्वारा अंगूरी शराब के खराब होने पर शोध ‘उसे खराब होने से कैसे बचाएँ‘ का वर्णन खाद्य प्रौद्योगिकी को वैज्ञानिक आधार देने का प्रांरभिक प्रयास था। अंगूरी शराब के खराब होने के अतिरिक्त पाश्चर ने एल्कोहल, सिरका, अंगूरी शराब और बीयर के अतिरिक्त दूध के खट्टा होने पर शोध कार्य किया। उन्होंने रोग उत्पन्न करने वाले जीवों को नष्ट करने के लिए पाश्चुरीकरण(निर्जीवीकरण) प्रक्रम को विकसित किया। पाश्च्चुरीकरण खाद्य की सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए महत्वपूर्ण  कदम था।

खाद्य प्रौद्योगिकी का प्रांरभ सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया गया । बीसवीं सदी में कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को विशेष रूप से पूरा करने के लिए तत्काल मिलाकर बनने वाले सूप मिश्रण और पकाने को तैयार पदार्थ एवं भोजन सम्मिलत करते हुए प्रौद्योगिकियाँ विकसित हईं।

खाद्य संसाधन :-

यह ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह है, जो कच्ची सामग्रियों को तैयार या आधे तैयार  उत्पादों में बदल देता है। खाद्य संसाधन के लिए पौधो और जंतुओं से प्राप्त अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जिसे आकर्षक, विपणन योग्य और अक्सर लंबे सुरक्षा काल वाले खाद्य उत्पादों में बदला जाता है।

खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिए संसाधित विधियों की मूलभूत संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • ऊष्मा का अनुप्रयोग
  • जल को हटाना
  • भंडारण के समय ताप कम करना
  • पीएच कम करना
  • ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की उपलब्धता पर नियंत्रण

खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण :-

खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण, संसाधन की सीमा और प्रकार के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है।

न्यूनतम संसाधित खाद्य- ये कम से कम संसाधित खाद्य पदार्थ होते हैं, जिससे ताजे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बनी रहती है। सामान्यतः इसके लिए उपयोग में लाई जाने वाली प्रक्रियाएँ हैं- साफ करना, काट-छॉट करना, छीलना, काटना, पतले टुकड़े करना और निम्न ताप अर्थात प्रशीतन ताप पर भंडारण करना।

संरक्षित खाद्य- इसके अंतर्गत संरक्षण के लिए प्रयुक्त की गई विधियाँ उत्पाद के गुणों में अधिक परिर्तन नहीं करती, जैसे- हिमशीतित मटर, हिमशीतित सब्जियाँ, निर्जलित मटर, निर्जजिलत सब्जियां और डिब्बाबंद फल आदि।

विनिर्मित खाद्य- इस प्रकार के उत्पादों में कच्ची सामग्री के मूल गुण काफी समाप्त हो जाते हैं और सरंक्षण के लिए मूलभूत विधियां काम में लाई जाती हैं, अक्सर विभिन्न संघटकों जैसे- नमक, शक्कर, तेल या रासायनिक संरक्षकों का उपयोग किया जाता है। इसका उदाहरण हैं-अचार, जैम, मुरब्बा पापड़ आदि।

फार्मूलाबद्ध खाद्य-

विभिन्न संघटकों को मिलाकर और संसाधित करके ये उत्पाद तैयार किए जाते हैं,

जिसमें प्राप्त खाद्य उत्पादों का शैल्फकाल अपेक्षाकृत अधिक हो सके।

इनके उदाहरण हैं- डबलरोटी, बिस्कुट, आइसक्रीम केक इत्यादि।

खाद्य व्युत्पन्न- उद्योग में खाद्य पदार्थों के संघटकों को कच्ची सामग्री से शोधन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है,

जैसे गन्ना से शक्कर, अथवा तिलहन से से तेल।

कुछ मामलों में व्युत्पन्न अथवा संघटक को अधिक संसाधित किया जाता है

जैसे तेल का वनस्पति घी में परिवर्तन (इस प्रक्रिया को हाइड्रोजनीकरण कहते हैं)

संशलेषित खाद्य- ये उत्पाद सूक्ष्मजैविक अथवा रासायनिक संशलेषण द्वारा विनिर्मित किए जाते हैं,

उदाहरण के लिए उद्योगों में उपयोग में आने वाले एंजाइम और पोषक जैसे कि विटामिन।

कार्यमूलक खाद्य- ये खाद्य पदार्थ मानव स्वास्थ्य पर लाभप्रदायक प्रभाव डालते हैं।

चिकित्सकीय खाद्य- ये रोगों के आहारी प्रबंधन में उपयोग में लाए जाते हैं,

उदाहरण के लिए कम सोडियम वाला नमक, लैक्टोस असह्यता वाले व्यक्तियों के लिए लैक्टोस मुक्त दूध।

मध्यप्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण :-

मध्यप्रदेश शासन द्वारा उद्यानिकी के क्षेत्र में प्रदेश को अग्रणी बनाने की दिशा में एवं कृषि पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी तथा मध्यप्रदेश कृषि उद्योग विकास निगम को मिलाकर, कृषि विभाग से पृथक कर, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग का गठन किया गया है, जिसकी अधिसूचना दिनांक 22 दिसम्बर 2005 को जारी की गई। उद्यानिकी के क्षेत्र में विस्तार हेतु योजनाओं को आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप तीब्रगामी, समयानुकूल, रूचिकर, आकर्षक तथा बृहद कृषक समूह एवं गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले खेतिहर एवं भूमिहीन मजदूरों के लिए उपयोगी बनाने की महती आवश्यकता है।

योजनाएं / नीतियाँ

  1. राज्य सेक्टर योजना
  2. राष्ट्रीय बागवानी मिशन
  3. मध्यप्रदेश राज्य औषधीय पादप मिशन
  4. म प व स र प
  5. लघु सिंचाई योजना (केन्द्र द्वारा संचालित)
  6. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर के वी वाई)


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