मध्य प्रदेश के खनिज पर आधारित उद्योग
1.मध्य प्रदेश के प्रमुख सीमेन्ट उद्योग :-
प्रदेश में चूना पत्थर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। सीमेंट उद्योग के लिए इस राज्य में अनुकूल दशाएं हैं।
यहां सीमेन्ट के कई कारखाने हैं, जो इस प्रकार हैं:
(i) बानमोर फैक्ट्री:
- यह फैक्ट्री सन् 1922 में मुरैना जिले के बानमोर नामक स्थान पर एसोसिएटेड सीमेंट कम्पनी के स्वामित्व में गठित की गयी थी।
- यह कारखाना आई प्रौद्योगिक विधि के द्वारा साधारण पोर्टलैण्ड सीमेंट का उत्पादन करता है।
- इसकी उत्पादन क्षमता 60000 मीट्रिक टन से अधिक है तथा वहां 800 से अधिक मजदूरों को रोजगार प्राप्त है।
(ii) कैमूर फैक्ट्री
- एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी के स्वामित्व में 1923 में कटनी के समीप कैमूर में आई विधि से पोर्टलैंड सीमेंट बनाने का कारखाना स्थापित किया गया।
- यहां एस्बेस्टस तथा सीमेन्ट की चादरें बनाने का कारखाना भी है।
- 8 लाख मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता वाले इस कारखाने में 2600 श्रमिक कार्यरत हैं।
(iii) सतना सीमेंट वर्क्स :
- यह पोर्टलैण्ड सीमेंट का कारखाना है। इसकी स्थापना बिड़ला जूट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने 1959 में की थी।
- इसकी उत्पादन क्षमता 6 लाख मीट्रिक टन है तथा यहां लगभग 1100 लोग कार्यरत हैं।
(iv) मैहर फैक्ट्री:
यह फैक्ट्री 1980-81 में सतना जिले में स्थापित हुई थी।
इसकी उत्पादन क्षमता 75000 लाख मीट्रिक टन सीमेंट है और यहां लगभग 1500 श्रमिक कार्यरत हैं।
(v) नीमच फैक्ट्री:
यह फैक्ट्री 1980-81 में मंदसौर जिले (वर्तमान नीमच ) में स्थापित की गयी थी।
इसकी उत्पादन क्षमता 4 लाख मीट्रिक टन सीमेंट है और यहां 900 श्रमिक कार्यरत हैं।
2 मध्य प्रदेश के भारी विद्युत उपकरण
भोपाल में सन् 1960 में ब्रिटेन के एक कारखाने की मदद से सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली का भारी सामान बनाने का कारखाना स्थापित किया गया। भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स के नाम से प्रसिद्ध यह इकाई वाष्प एवं जल टरबाईन, जनरेटर, ट्रांसफॉर्मर, स्विच गियर, रेक्टीफायर, विद्युत मोटर तथा रेलवे ट्रेक्शन हेतु विद्युत प्रणालियों आदि के निर्माण एवं आपूर्ति के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर है।
3 मध्य प्रदेश के चीनी मिट्टी उद्योग
चीनी मिट्टी एवं फायर क्ले की उपलब्धता के आधार पर मध्य प्रदेश में यह उद्योग स्थापित हुआ है।
ग्वालियर, जबलपुर तथा रतलाम में चीनी मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं।
जबलपुर एवं कटनी में फायर क्ले से ईंटें आदि बनाई जाती हैं। प्याले, तश्तरी तथा अचार पॉट जबलपुर में तथा चाय, दूध आदि के बर्तन ग्वालियर में बनाए जाते हैं। जबलपुर तथा कटनी में मिलने वाले क्ले से पाइप तथा बेसिन इत्यादि बनते हैं।
मध्य प्रदेश के वनों पर आधारित उद्योग-धन्धे
(1) मध्यप्रदेश में कागज उद्योग :
1948-49 में ‘नेशनल न्यूज प्रिंट एण्ड पेपर मिल नेपानगर (बुरहानपुर ) तथा ओरियंट पेपर मिल (अनुपपुर ) की स्थापना के बाद प्रदेश के कागज उद्योग को एक नई दिशा मिली है। इसके अलावा भोपाल, रतलाम तथा ग्वालियर में भी कागज बनाया जाता है। इंदौर में महीन कागज (टिशू पेपर ) तथा होशंगाबाद में नोट छापने का कागज बनाया जाता है। करेंसी छापाखाना देवास में स्थित है। नेशनल न्यूज प्रिंट एण्ड पेपर मिल, नेपानगर की वार्षिक स्थापित क्षमता 88 हजार मीट्रिक टन है। नेपा लिमिटेड की स्थापना के बाद अब अखबारी कागज विदेशों से आयात नहीं करना पड़ता।
बिड़ला द्वारा स्थापित इमलाई का कागज कारखाना शहडोल से कुछ दूर कटनी-बिलासपुर रेलवे मार्ग पर स्थित है। इस कारखाने को रीवा, सीधी, मंडला, बालाघाट तथा अब छत्तीसगढ़ में स्थित बिलासपुर तथा रायगढ़ से बांस प्राप्त होता है। इस कारखाने को बुढ़ार खदान ( सोहागपुर कोयला क्षेत्र) से कोयला दिया जाता है। इस कारखाने में 90% पुस्तक छापने योग्य व लिखाई योग्य कागज बनता है। कागज उद्योग ने प्रदेश के वनों के उत्पादन का समुचित उपयोग किया है, जिससे न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को सहारा मिला है, बल्कि रोजगार में भी बढ़ोतरी हुई है।
(2) मध्य प्रदेश में बीड़ी उद्योग :
प्रदेश में तेंदूपत्ता प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह तेंदूपत्ता कई परिवारों के जीविकोपार्जन का साधन है। तेंदूपत्तों को संगृहीत कर बीड़ियां बनाना प्रदेश के उन श्रमिकों का प्रमुख धंधा है, जो अवकाश मजदूरी करते हैं तथा कभी भी फैक्ट्रियों से निकाल दिए जाते हैं। इस व्यवसाय में न केवल पुरुष, बल्कि बूढ़े, महिलाएं व बच्चे भी संलग्न हैं। इस उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र जबलपुर है ।
(3) लकड़ी चीरने का उद्योग :
प्रदेश में लकड़ी चीरने का व्यवसाय भी काफी प्रचलित है। यहां पर इमारती लकड़ी के बड़े-बड़े लट्ठे लाए जाते हैं और उन्हें उपयुक्त आकार में चीरा जाता है। इसका मुख्य केंद्र जबलपुर है।
मध्य प्रदेश हथकरघा उद्योग :-
राज्य शासन द्वारा हथकरघा उद्योग के विकास हेतु संचालित समस्त योजनाओं एवं कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य हथकरघा के वस्त्र उत्पादन में यथासंभव वृद्धि के साथ-साथ सहकारिता के आधार पर बुनकरों को रोजगार उपलब्ध कराना है ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके। चंदेरी और माहेश्वरी पारंपरिक हस्तशिल्प और हथकरघे से बने कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है।
मध्य प्रदेश पावरलूम उद्योग :-
कपड़ा मिलों के लगातार बंद होने पर उसका स्थान पॉवरलूम उद्योग ले रहा है। पावरलूम उद्योग के विकास के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनमें सहकारी समितियों एवं पावरलूम बुनकरों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए ब्याज अनुदान, अंश पूंजी ऋण अनुदान, मार्जिन मनी, शासकीय धनवेष्ठन, बुनकरों के प्रशिक्षण, नए पावरलूम के क्रय हेतु सहायता समूह पावरलूम कर्मशाला भवन, आवास गृह में पावरलूम लगाने हेतु सहायता तथा बुनकरों की बीमा योजनाएं प्रमुख हैं।
मध्य प्रदेश के कुटीर उद्योग
मध्य प्रदेश की जनता का बड़ा भाग कुटीर उद्योगों से अपना जीवकोपार्जन चला रहा है। यहां के प्रमुख कुटीर उद्योग हैं बीड़ी, सिगार व तम्बाकू का निर्माण, हथकरघा कपड़े का उद्योग, जिसमें चन्देरी की साड़ियां विश्वविख्यात हैं। जूट, बटुआ व सिल्क का काम शीशे, मोती, लाख के जेवरात, हीरा तराशना व उन पर पॉलिश करना, खजूर के पत्तों का सामान बनाना, कपड़ों की छपाई, खाद्य पदार्थों में बेकरी, अचार, चटनी आदि बनाना, शरबत, सोडा व अन्य पेय, लकड़ी के खिलौने, फर्नीचर, कागज का निर्माण, छपाई व प्रकाशन का कार्य, चमड़े से बनी वस्तुएं, टायर ट्यूब व रबर से बनी वस्तुएं, मधुमक्खी पालन आदि प्रमुख हैं।