मध्य प्रदेश की जलवायु

मध्य प्रदेश की जलवायु

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    मध्य प्रदेश की जलवायु मानसूनी (उष्णकटिबंधीय) प्रकार की है, जो भारतीय जलवायु का ही प्रतिरूप है।

    यहाँ की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में समुद्र तट से दूरी, अक्षांशी स्थिति, औसत ऊँचाई, प्राकृतिक वनस्पति, धरातलीय स्वरूप, वायु दिशा आदि प्रमुख हैं।

    कर्क रेखा प्रदेश के मध्य से होकर गुजरती है, जिस कारण प्रदेश में अपेक्षाकृत गर्मी अधिक होती है। “किसी क्षेत्र विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के सम्मिलित रूप को जलवायु कहते हैं।”

    जलवायु क्षेत्र :-

    मध्य प्रदेश भारत के मध्य में स्थित है, जिसके कारण यहाँ मानसूनी जलवायु की सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं।

    यहाँ के जलवायु क्षेत्र को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है-

    1. उत्तर का मैदानी क्षेत्र
    2. मालवा का पठार       
    3. बघेलखंड का पठार    
    4. विंध्य पर्वतीय क्षेत्र      
    5. नर्मदा घाटी क्षेत्र

    उत्तर का मैदानी क्षेत्र :-

    • इस क्षेत्र का जलवायु समुद्र से दूर स्थित होने के कारण महाद्वीपीय प्रकार की है।
    • अत: यहाँ ग्रीष्म ऋतु में गर्मी अधिक तथा शीत ऋतु में ठंड अधिक होती है।
    • इस क्षेत्र की औसत वर्षा 75 सेमी से कम है, जिससे इस क्षेत्र को उप-आर्द्र की श्रेणी में खाजा है।
    • इस क्षेत्र का गर्मियों में औसत तापमान 40°C से 45.5°C तथा सर्दियों में औसत तापमान 15°C-18°C रहता है।

    मालवा का पठार :-

    • इस क्षेत्र में सम जलवायु पाई जाती है। इसी कारण यहाँ ग्रीष्म ऋतु में न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही शीत ऋतु में अधिक ठंडी।
    • इस क्षेत्र में सर्वाधिक गर्मी मई महीने में पड़ती है।
    • इस क्षेत्र का औसत तापमान लगभग 10°C से 15°C सर्दियों में तथा 40°C से 42°C गर्मियों में होता है।
    • यहाँ पर सर्वाधिक वर्षा अरब सागर से आने वाली मानसून से होती है।
    • इस क्षेत्र में वर्षा दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से उत्तर-पूर्व की ओर घटती जाती है।

    बघेलखंड का पठार :-

    • कर्क रेखा इस क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती है, जिसके कारण बघेलखंड पठार क्षेत्र की जलवायु मानसूनी प्रकार की है।
    • यहाँ ग्रीष्म ऋतु में गर्मी उष्णार्द्र एवं शीत ऋत में ठंडी सामान्य एवं शुष्क होती है।
    • यहाँ ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 35.5°C तथा शीत ऋतु का 12.5°C रहता है। बघेलखंड पठार की औसत वार्षिक वर्षा 125 सेमी. होती है।
    • इन क्षेत्रों में सोन नदी अपवाह तंत्र का विस्तार है, इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई लगभग 400 मी. है।

    विंध्य पर्वतीय क्षेत्र :-

    • इस पर्वतीय क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में न तो अधिक गर्मी और न ही शीत ऋतु में अधिक ठंड पड़ती है।
    • इसलिये इसे ‘स्वास्थ्यवर्द्धक क्षेत्र’ कहते हैं। पंचमढ़ी एवं अमरकंटक इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते है।
    • यहाँ पर वर्षा अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी दोनों शाखाओं से होती हैं।

    नर्मदा घाटी क्षेत्र :-

    • नर्मदा घाटी क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में गर्मी अधिक तथा शीत ऋतु में ठंड सामान्य रहती है, ऐसा इसलिये होता है क्योंकि यह क्षेत्र कर्क रेखा के समीप स्थित है।
    • यहाँ अधिकतम तापमान मई में तथा न्यूनतम तापमान दिसंबर में रहता है। चट्टानों वाले क्षेत्रों में कई बार 46°C से 50°C के बीच ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ती है।
    • यहाँ वर्षा की दिशा पूर्व से पश्चिम की तरफ कम होती जाती है। यहाँ वर्षा सामान्यतः 57.5 सेमी. से 142.5 सेमी तक होती है।
    • नर्मदा, दुधी, तवा, शक्कर आदि इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं।

    ऋतुएँ  :-

    मध्य प्रदेश में मुख्यतः तीन ऋतुएँ पाई जाती हैं, मध्य प्रदेश में ऋतु संबंधी आँकड़ों को एकत्रित करने वाली वेधशाला इंदौर में स्थित है।

    1. ग्रीष्म ऋतु
    2. वर्षा ऋतु
    3. शीत ऋतु

    ग्रीष्म ऋतु

    • इस ऋतु का प्रारंभ मध्य मार्च से प्रारंभ होकर मध्य जून तक रहता है। प्रदेश का अधिकतम तापमान मई महीने में रहता है।
    • 40° सेंटीग्रेड की समताप रेखा ग्रीष्म ऋतु में प्रदेश को दो बराबर भागों में विभक्त करती है।
    • राज्य का अधिकतम तापमान 42.5 डिग्री तक पहुँच जाता है। इस ऋतु में तेज धूल भरी आँधी चलती है, जिसे सामान्यतः ‘लू’ भी कहा जाता है तथा आकाश साफ रहता है।
    • मध्य प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु को युनाला कहते हैं।

    वर्षा ऋतु :-

    • प्रदेश में वर्षा मध्य जून से लेकर मध्य अक्टूबर तक होती है। इस प्रदेश में वर्षा बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर दोनों ही शाखाओं से होती है।
    • इस प्रदेश की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है।
    • प्रदेश की भौतिक बनावट के स्वरूप के कारण यहाँ औसत वार्षिक वर्षा में स्थानीय भिन्नता पाई जाती है।
    • मध्य प्रदेश के पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है।
    • इस ऋतु में सितंबर व अक्टूबर माह में कम वर्षा होती है तथा गर्मी बढ़ने लगती है, जिसे द्वितीय ग्रीष्म ऋतु कहते हैं।
    • मध्य प्रदेश में वर्षा ऋतु को ‘चौमासा’ कहते हैं।

    शीत ऋतु :-

    • शीत ऋतु मध्य अक्टूबर से प्रारंभ होकर मध्य मार्च तक रहती है, दिसंबर से जनवरी के बीच ठंड का प्रकोप अत्यधिक होता है।
    • शीतऋतु में मध्य प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण हल्की वर्षा होती है, जिसे ‘मावठ’ कहते हैं।
    • रबी फसल के लिये यह वर्षा उपयोगी सिद्ध होती है।
    • जनवरी माह में उत्तरी भाग का औसत तापमान 15°C से 18°C के बीच रहता है और दक्षिण भाग के तापमान में वृद्धि होती रहती है।
    • मध्य प्रदेश में शीत ऋतु को ‘सियाला’ कहते हैं।

    तापमान  :-

    • प्रदेश का औसत तापमान लगभग 25°C-35°C के मध्य होता है।
    • तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों में सूर्य की स्थिति, समुद्र तल से ऊँचाई व दूरी आदि शामिल हैं।
    • मध्य प्रदेश में सर्वाधिक दैनिक तापांतर मार्च महीने में दर्ज किया जाता है।

    मध्यप्रदेश में वर्षा  :-

    प्रदेश औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त करने वला राज्य है।

    यहाँ अधिकांश वर्षा जून से सितम्बर के मध्य होती है।

    इन चार महीनों में राज्य को 80% से 92% तक वर्षा प्राप्त होती है।

    यह वर्षा उन हवाओं द्वारा होती है जिन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं।

    दिसम्बर-जनवरी में कुछ वर्षा चक्रवातों से होती है।

    अन्य महीनों में बहुत कम वर्षा होती है।

    मध्यप्रदेश में मानसून की वर्षा बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दोनों क्षेत्रों से उठने वाली हवाओं से होती है।

    पश्चिमी भाग जब अरब सागर की मानूसनी हवाओं से जल प्राप्त करता है उसी समय बंगाल की खाड़ी से उठने वाली हवाओं से पूर्वी भाग में वर्षा होती है।

    मध्यप्रदेश में मानसून की क्रियाविधि :-

    जुलाई  माह में सूर्य कर्क रेखा से भूमध्य रेखा की ओर आने लगता है. जिससे कर्क रेखा पर उच्च तापमान होता है। पश्चिमी मध्यप्रदेश में पूर्वी मध्यप्रदेश की तुलना में तापमान अधिक होता है। जिसके फलस्वरूप दक्षिणी-पश्चिमी मध्यप्रदेश में न्यून वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। न्यून वायुदाब बनने के कारण खंभात की खाड़ी व अरब सागर में उठने वाली हवाएँ महाराष्ट्र, गुजरात व दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान से होते हुए मध्यप्रदेश में प्रवेश करती हैं, ये हवाएँ नमी/जल युक्त होती हैं। जो मध्यप्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में वर्षा करते हुए आगे बढ़ती हैं। मानसून पूर्वी मध्यप्रदेश से उत्तरी दिशा में होते हुए उत्तर पश्चिमी दिशा की ओर आगे बढ़ जाता है।

         जनवरी माह से सूर्य मकर रेखा से भूमध्य रेखा की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है जिससे सूर्य भूमध्य रेखा व मकर रेखा के बीच चमकता है और वहाँ उच्च तापमान होता है। उच्च तापमान के कारण इस क्षेत्र में न्यून वायुदाब बन जाता है। मध्यप्रदेश में जनवरी माह में उत्तर-पूर्वी व उत्तर-पश्चिमी भाग में सूर्य की अधिक दूरी के कारण उत्तर-पूर्वी मानसून मध्य भारत का पठार, बुन्देलखण्ड, विंध्यन कगारी प्रदेश से/ मध्यप्रदेश में प्रवेश करते हुए संपूर्ण मध्यप्रदेश में फैल जाता है। जनवरी माह में उत्तरी-पश्चिमी मध्यप्रदेश में राजस्थान व उत्तरप्रदेश की ओर बर्फीली हवा चलने लगती है जिससे ओले के साथ वर्षा होती है।

    वर्षा वितरण :-

        इस प्रदेश की सर्वाधिक वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है,

    यहाँ की भौतिक बनावट के कारण वर्षा बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर दोनों शाखाओं से होती है।

        वर्षा की भिन्नता के आधार पर प्रदेश को निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा गया है-

    अधिक वर्षा वाले क्षेत्र :-

    • प्रदेश के दक्षिण-पूर्व भागों में औसत वर्षा 150 सेमी. से अधिक होती है। इसका प्रमुख कारण नर्मदा घाटी से आने वाली अरब सागरीय शाखा है।
    • इन क्षेत्रों के अंतर्गत महादेव पर्वत, पंचमढ़ी, सीधी, मंडला तथा बालाघाट में सर्वाधिक वर्षा होती है।

    औसत से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र :-

    • प्रदेश के पूर्व भाग में स्थित होने के परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में सर्वाधिक आर्द्रता होने से  अधिक वर्षा होती है।
    • इन क्षेत्रों में लगभग 125 सेमी. से 150 सेमी. के मध्य वर्षा होती है। इन क्षेत्रों में बैतूल, छिंदवाड़ा, क्षेत्र होशंगाबाद, सिवनी, नरसिंहपुर आदि जिले आते हैं।

    औसत वर्षा वाले क्षेत्र :-

    • प्रदेश के उत्तर-पूर्वी ज़िले इसके अंतर्गत आते हैं। मध्य उच्च पठार, बुंदेलखंड का पठार, रीवा-पन्ना के पठार में औसत वर्षा होती है। इसका मुख्य कारण वायुमंडलीय आर्द्रता का कम होना है।
    • इस क्षेत्र की औसत वर्षा 75 सेमी. से 80 सेमी. के मध्य होती है।

    निम्न वर्षा वाले क्षेत्र :-

    • प्रदेश का पश्चिमी भाग निम्न वर्षा वाले क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र में मानसून का आर्द्र होना का कारण माना जाता है।
    • दक्षिण-पूर्वी मानसून यहाँ तक आते-आते आर्द्रता रहित या न्यून आर्द्रता वाला ही रह जाता है। इसलिये इस क्षेत्र में निम्न वर्षा होती है।
    • यहाँ औसत वर्षा 50 सेमी. से 75 सेमी. के मध्य होती है।
    • मंदसौर, नीमच, धार, रतलाम, झाबुआ आदि ज़िले इस क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।