मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था 73वें संविधान संशोधन के बाद देश में मध्य प्रदेश पंचायती राज के चुनाव करवाने वाला प्रथम राज्य था ।
पंचायती राज व्यवस्था का विकास :-
- स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है 1882 में लार्ड रिपन के द्वारा स्थानीय स्वशासन संबंधी प्रस्ताव लाया गया
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बलवंत राय मेहता ने किया
- स्थानीय स्वशासन राज्य सूची का विषय है
अनुच्छेद 40 में राज्यों द्वारा ग्राम पंचायत के गठन का उल्लेख है, नीति निदेशक तत्व (DPSP) में उल्लेख होने के कारण यह वाद योग्य नहीं है इसलिए अनुच्छेद 40 लागू करने के लिए राज्य बाध्यकारी नहीं थे।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम :-
- 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया ।
- 1953 में राष्ट्रीय सविस्तार योजना लागू की गई ।
दोनों कार्यक्रमों का उद्देश सामान्य जनता को अधिक से अधिक विकास प्रक्रिया में सहभागी किया जाना था , परंतु दोनों ही कार्यक्रम असफल रहे । मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
बलवंत राय मेहता समिति :-
- 1957 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय सविस्तार योजना की असफलता का विश्लेषण करने बलवंत राय मेहता समिति (ग्रामोद्धार समिति) का गठन किया गया।
- बलवंत राय मेहता समिति ने दोनों कार्यक्रमों की असफलता का कारण अधिकतम केंद्रीकरण बताया ।
- बलवंत राय मेहता ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शब्द दिया था , इसलिए बलवंत राय मेहता को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का जनक कहा जाता है ।
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के लिए बलवंत राय मेहता ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की
त्रिस्तरीय पंचायतीराज के स्तर
- ग्राम या नगर पंचायत
- विकासखंड या ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति
- जिला स्तर पर जिला परिषद
बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें 1 अप्रैल 1958 को लागू की गई इसकी सिफारिशों के आधार पर सर्वप्रथम 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई इसलिए भारत में जवाहरलाल नेहरू को पंचायती राज व्यवस्था का संस्थापक कहा जाता है राजस्थान के बाद आंध्र प्रदेश में पंचायती राज अधिनियम लागू किया गया ।
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था वाले राज्य :-
मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिल नाडु इत्यादि राज्यों में है
अशोक मेहता समिति :-
1977 मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया इस समिति ने दो स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की । मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
दो स्तरीय पंचायती राज के स्तर :-
- जिला परिषद
- मंडल पंचायत
दो स्तरीय पंचायती स्तर वाले राज्य :-
हरियाणा, असम, कर्नाटक, उड़ीसा, दिल्ली, पांडिचेरी राज्यों में दो स्तरीय पंचायती व्यवस्था है
Note – जनजाति परिषद मेघालय, नागालैंड, मिजोरम में है
डॉ जी बी के राव समिति 1985 :-
- इस समिति ने पंचायतों का चुनाव नियमित करवाने तथा विकेंद्रीकरण की बात कही इस समिति ने एससी एसटी व महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की ।
- पंचायत में चार स्तरीय पंचायती व्यवस्था की सिफारिश डॉक्टर जीवीके राव समिति के द्वारा की गई ।
चार स्तरीय पंचायत के स्तर :-
- राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद
- जिला स्तर पर जिला विकास परिषद
- मंडल स्तर पर मंडल पंचायत
- ग्राम स्तर पर ग्राम सभा
वर्तमान में पश्चिम बंगाल में चार स्तरीय पंचायती व्यवस्था लागू है
लक्ष्मी मल सिंघवी समिति 1986 :-
पंचायतों को संवैधानिक दर्जा एम एल सिंघवी समिति की सिफारिशों के आधार पर दिया गया तथा इस समिति ने पंचायतों को आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराने की बात भी कही
पी के थुंगन समिति 1988 :-
थुंगन समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को संविधान में स्थान देने की बात की
बी एन गाडगिल समिति 1989 :-
गैर दलीय आधार पर चुनाव करवाने की सिफारिश बीएन गाडगिल के द्वारा की गई तथा संवैधानिक दर्जा देने की बात भी इनके द्वारा कही गई पंचायतों को कर लगाने व वसूलने का अधिकार होना चाहिए पंचायतों के तीनों स्तरों में जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षण का सुझाव दिया त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में कार्यकाल 5 वर्ष रखने का प्रस्ताव दिया पंचायतों के लिए वित्त आयोग के गठन की बात कही जिससे पंचायत आर्थिक सक्षम हो सकें
64 वां संविधान संशोधन विधेयक :-
जुलाई 1989 राजीव गांधी सरकार के समय बी एन गाडगिल और एम एल सिंघवी समितियों की सिफारिश के फलस्वरुप 64 वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया तथा अगस्त 1989 लोकसभा में पारित कर दिया गया लेकिन कांग्रेस के पास राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यह विधेयक पास नहीं हो सका । मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
पंचायती राज अधिनियम 1992 :-
73 वां संविधान संशोधन विधेयक 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में आया तथा यह 24 अप्रैल 1993 को पंचायती राज्य व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता मिली । 24 अप्रैल पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है । मूल संविधान के भाग 9 मे अनुच्छेद 243 के अंतर्गत पंचायती राज को रखा गया है । भाग 9 पंचायत नामक शीर्षक के अंतर्गत अनुच्छेद 243 से 243(O)पंचायती राज्य का उल्लेख है । अनुच्छेदों की कुल संख्या 16 है। 73 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई।
मध्यप्रदेश पंचायती राज :-
मध्यप्रदेश में 73 वें संविधान संशोधन के अंतर्गत 30 दिसम्बर 1993 को म.प्र पंचायती राज अधिनियम 1993 लागु किया गया, जिसे 25, जनवरी 1994 को पारित किया गया और 20 अगस्त, 1994 को लागू किया गया।
इस अधिनियम के अनुसार पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर है। सभी तीनों स्तरों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है .
ग्राम पंचायत :-
- 1000 से अधिक जनसँख्या वाले गावों में एक ग्राम पंचायत बनाई जाएगी।
- गाव को वार्ड में बाटा जाता है।
- मुखिया: सरपंच
- सदस्य संख्या न्यूनतम: 10
- सदस्य संख्या अधिकतम: 20
- सरपंच व पंच प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा व उप-सरपंच अप्रत्यक्ष रूप से पंचों द्वारा चुना जाता है।
- ग्राम के सदस्य मतदाता होते है।
पंचायत सचिव :-
पंचायत द्वारा नियुक्त किया जाता है, पर वह एक शासकीय कर्मचारी होता है।
तथ्य :-
- सरपंच, उपसरपंच को उनके 5 साल के कार्यकाल से पहले भी, अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
- Right To Recall के अधिकार द्वारा सरपंच निर्वाचित होने के 2 बर्ष के बाद 2/3 बहुमत द्वारा उसे हटाया जा सकता है।
- वर्तमान में पंचायतो की सबसे बड़ी समस्या वित की कमी है।
- वर्तमान म.प्र. में ग्राम पंचायतो की संख्या: 23,012
- किसी भी ग्रामसभा में 200 या उससे अधिक की जनसंख्या का होना आवश्यक है।
- 1000 तक की आबादी वाले गाँवों में 10 ग्राम पंचायत सदस्य, 2000 तक 11 तथा 3000 की आबादी तक 15 सदस्य होने चाहिए।
- ग्राम सभा की बैठक साल में चार बार होनी जरूरी है। जिसकी सूचना 15 दिन पहले नोटिस से देनी होती है।
- ग्रामसभा की बैठक बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को होता है। बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति जरूरी होती है।
- सरपंच की अनुपस्थिति में ग्रामसभा का मुखिया उपसरपंच होगा ।
- सरपंच और उपसरपंच दोनों की अनुपस्थिति में ग्रामसभा का मुखिया अन्य वरिष्ठ पंच होगा । मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
ग्राम पंचायत के कार्य :-
पंचायत के लिए 11 वीं अनुसूची में वर्णित 29 विषय पर कार्य करने का अधिकार है ।
- गाँव की सफाई, प्रकाश एवं पेयजल व्यवस्था, आँगनवाड़ियो का संचालन, ग्रामीण विकास कार्यक्रमो की निगरानी
- कृषि संबंधी कार्य
- ग्राम्य विकास संबंधी कार्य
- प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय व अनौपचारिक शिक्षा के कार्य
- युवा कल्याण सम्बंधी कार्य
- राजकीय नलकूपों की मरम्मत व रखरखाव
- चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सम्बंधी कार्य
- महिला एवं बाल विकास सम्बंधी कार्य
- पशुधन विकास सम्बंधी कार्य
- समस्त प्रकार की पेंशन को स्वीकृत करने व वितरण का कार्य
- समस्त प्रकार की छात्रवृत्तियों को स्वीकृति करने व वितरण का कार्य
- राशन की दुकान का आवंटन व निरस्तीकरण
- पंचायती राज सम्बंधी ग्राम्यस्तरीय कार्य आदि।
ग्राम पंचायत की समितियां :-
- नियोजन एवं विकास समिति
- निर्माण कार्य समिति
- शिक्षा समिति
- प्रशासनिक समिति
- स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति
- जल प्रबंधन समिति
पंचायत की आय के साधन :-
- भारत सरकार से प्राप्त अंशदान, अनुदान या ऋण अथवा अन्य प्रकार की निधियाँ
- राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त चल एवं अचल सपंत्ति से प्राप्त आय
- भूराजस्व एवं सेस से प्राप्त राशियाँ
- राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अंशदान, अनुदान या ऋण सबंधी अन्य आय
- राज्य सरकार की अनुमति से किसी निगम, निकाय, कम्पनी या व्यक्ति से प्राप्त अनुदान या ऋण
- दान के रूप में प्राप्त राशियाँ या अंशदान
- सरकार द्वारा निर्धारित अन्य स्रोत मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
जनपद पंचायत :-
सदस्य संख्या न्यूनतम: 10
सदस्य संख्या अधिकतम: 25
- वर्तमान मध्यप्रदेश में 313 जनपद पंचायतें हैं ।
- यह मध्य स्तर है , जिसका गठन विकासखण्ड पर होता है।
- 5 हजार से अधिक आबादी वाले विकासखण्ड में एक जनपद पंचायत का गठन किया जाता है।
- सदस्यो का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा जबकि अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से सदस्यो द्वारा किया जाता है।
- पदेन सदस्य: सांसद , सरपंच ओैर विधायक होते है ।
- सहकारी बैकों का अध्यक्ष सहयोजित सदस्य होता है।
- जनपद पंचायत का मुख्य प्रशासकीय अधिकारी CEO होता जो राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित अधिकारी होता है ।
जनपद पंचायत के आय के साधन :-
- जिला परिषद् से प्राप्त स्थानीय सेस, भूराजस्व का अंश और अन्य रकम
- कर, चुंगी, अधिभार (surcharge) और फीस से प्राप्त आय
- सार्वजनिक घाटों, मेलों, हाटों तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से आनेवाली आय
- वैसे अंशदान या दान, जो जिला परिषदों, ग्राम पंचायतों, अधिसूचित क्षेत्र समितियों, नगरपालिकाओं या न्यासों एवं संस्थाओं से प्राप्त हो
- भारत सरकार और राज्य सरकार से प्राप्त अंशदान या अनुदान या ऋण सहित अन्य प्रकार की निधियाँ
- अन्य संस्थाओं से प्राप्त ऋण आदि
जनपद पंचायत की स्थाई समितियाँ :-
- कृषि, पशुपालन, लघु सिंचाई और सहकारिता समिति
- शिक्षा समिति जिसमें समाज-शिक्षा, स्थानीय कला और शिल्प, लघु बचत तथा कुटीर उद्योग और शिक्षा आदि होंगे
- सार्वजनिक स्वास्थ्य और सफाई समिति, यातायात और निर्माण समिति
- आर्थिक और वित्तीय समिति
- समाज कल्याण समिति इत्यादि
सदस्य :-
- प्रखंड की प्रत्येक पंचायत के सदस्यों द्वारा निर्वाचित दो सदस्य होंगे. जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे।
- आरक्षित पदों में भी तीस प्रतिशत पद अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहेंगे. यदि दो ही पद आरक्षित हों तो एक महिला के लिए आरक्षित रहेगा।
- अनारक्षित पदों में भी 30% स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे। मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था
जिला पंचायत :-
- पंचायती राज व्यवस्था का शीर्षस्तर ज़िला पंचायत है।
- इसका अध्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है।
ज़िला पंचायत सदस्य :-
- इसकी सदस्य संख्या न्यूनतम 10 व अधिकतम 35 हो सकती है ।
- अध्यक्ष, निर्वाचित सदस्य, ज़िले से सम्बन्धित, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा तथा विधान परिषद् के सदस्य
- महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित।
- वर्तमान मध्यप्रदेश में 51 जिला पंचायतें हैं ।
- 50 हजार या अधिक आबादी वाले क्षेत्र में एक जिला पंचायत का गठन किया जाता है
- सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से व अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का निर्वाचन सदस्यो द्वारा अप्रत्क्ष रूप से किया जाता है।
- इसके पदेन सदस्य के रूप मे जनदप पंचायत के अध्यक्ष , विधायक व सांसद होते है।
- कलेक्टर भी पदेन सदस्य होता है।
- कार्यकारी अधिकारी एक IAS होता है। जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
सचिव:-
- सचिव ज़िला पंचायत का प्रमुख अधिकारी होता है। वह ज़िला पंचायत की माँग पर सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। सचिव ज़िला पंचायत का बजट तैयार करता है तथा उसे ज़िला पंचायत के सम्मुख प्रस्तुत करता है।
- वह ज़िला पंचायत की ओर से सरकारी अनुदान तथा धन प्राप्त करता है। उसके द्वारा ज़िला पंचायत के आय-व्यय की अदायगी की जाती है।
मुख्य कार्यपालिका अधिकारी :-
यह प्रान्तीय सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के उच्च टाइम स्केल अधिकारियों में से नियुक्त किया जाता है।
ज़िला पंचायत के कार्य:-
ज़िले में क्षेत्र पंचायतों तथा पंचायतों के कार्यों में ताल मेल उत्पन्न करती है, उनको परामर्श देती है तथा उनके कार्यों की देखभाल करती है। ज़िला पंचायत को स्वास्थ्य, शिक्षा तथा समाज कल्याण आदि के क्षेत्रों में कार्यकारी कार्य भी करने पड़ते हैं।
ज़िला पंचायत की समितियाँ :-
- कार्यकारी समिति
- नियोजन एवं वित्त समिति
- उद्योग एवं निर्माण कार्य समिति
- शिक्षा समिति
- स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति
- जल प्रबन्धन समिति
आय के स्रोत
- केन्द्र तथा प्रान्तीय सरकारों द्वारा अनुदान,
- अखिल भारतीय संस्थाओं से प्राप्त अनुदान,
- राजस्व का निश्चित हिस्सा,
- ज़िला पंचायत द्वारा क्षेत्र पंचायतों से की गई वसूलियाँ,
- ज़िला पंचायत द्वारा प्रशासनिक ट्रस्ट्रों से आय,
- ज़िला पंचायत द्वारा तथा लोगों द्वारा दिया गया अनुदान,
- ज़िला पंचायत सरकारी ऋण तथा सरकार की पूर्व अनुमति से ग़ैर-सरकारी ऋण भी ले सकती है।
पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
- 26 जनवरी 2001 से ग्राम स्वराज योजना लागू की गई ।
- चुनाव संबंधी कार्यों के लिये 19 जनवरी 1994 को मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग का गठन किया गया । जो इन तीनों स्तरों के चुनाव का कार्य करवाता है । मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग के प्रथम अध्यक्ष B. लौहानी थे ।
- मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग के वर्तमान अध्यक्ष श्री बसंत प्रताप सिंह हैं ।
- मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग के वर्तमान सचिव श्री राकेश सिंह हैं ।
- पंचायतों को राज्य शासन से वित्त उपलब्ध करानें हेतु मध्य – प्रदेश वित्त आयोग का गठन प्रत्येक 5 बर्ष के अंतराल पर किया जाता है ।
- मध्यप्रदेश सरकार के वित्त विभाग ने पांचवें राज्य वित्त आयोग का गठन 2017 में किया है। आयोग के अध्यक्ष के तौर पर वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को अध्यक्ष और मिलिंद वाईकर को सदस्य सचिव की भूमिका दी गई है।
- मध्य प्रदेश पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत मध्य प्रदेश में प्रथम चुनाब मार्च – अप्रैल 1994 में हुऐ ।
- तीनों स्तरों पर SC,ST,OBC व महिलाओं के लिये आरक्षण की भी व्यवस्था की गई है ।
- 73 वाँ संविधान संशोधन लागू करने वाला म.प्र. प्रथम राज्य था।
- 25 जनबरी को प्रतिवर्ष मतदाता दिवस मनाया जाता है ।
- म.प्र. पहला राज्य है जिनसे स्थानीय निकायो में Right To Recall का प्रावधान किया है।
- मध्यप्रदेश में Right To Recall का सर्वप्रथम प्रयोग शहडोल जिले की अनुपपूर तहसील में किया गया था।
म.प्र. में नगरीय निकाय
- राज्य की स्थापना 1 नवम्बर 1956 के बाद नगरपालिका अधिनियम 1956 लागू हुआ।
- बाद में म.प्र. नगरपालिका अधिनियम 1961 पारित हुआ।
- 30 दिसम्बर 1993 को विधानसभा में म.प्र. नगरपालिका विधेयक पारित हुआ।
- म.प्र. में प्रथम नगरपालिका का गठन 1864 में जबलपुर में हुआ था।
- 1992 में 74 वॉं संविधान संशोधन अधिनियम बना जो 16 जनवरी 1993 से लागू हुआ।
- म.प्र. में 74 वॉं संविधान के क्रियान्वयन हेतु म.प्र. नगरपालिका अधिनियम 1994 पारित किया गया।
- इसके तहत त्रि-स्तरीय नगरीय निकायों की व्यवस्था की गई है।
- म.प्र. इस अधिनियम का अनुपालन करने वाला देश का प्रथम राज्य है।
- म.प्र में स्थानीय संस्थाओं में महिला प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत है।
नगर निगम :-
- शहरी ग्रामीण संबंध समिति ने सिफारिश की थी कि ऐसे क्षेत्र में नगर निगम स्थापित किए जाएँ जहॉं जनसंख्या 5 लाख व आय एक करोड रूपये वार्षिक हो।
- नगर निगम में सदस्यों पार्षद की संख्या 40 से 85 तक होती है।
- महापौर एवं पार्षदों का चुनाव प्रत्यक्ष रीति से होता है।
- नगर निगमों की संख्या म.प्र- में 16 है।
- महापौर नगर का प्रथम नागरिक होता है।
- नगर निगम का कार्यकाल 5 वर्ष होता हैं
- राईट टू रीकॉल के माध्यम से वापस भी बुलाया जा सकता है। कम से कम दो वर्ष बीत गये हो एवं अन्तिम छः माह पूर्व होना चाहिए।
- मुख्य प्रशासनिक अधिकारी निगम आयुक्त होता है तथा राजनैतिक प्रमुख महापौर होता है।
- मेयर इन कौसिल नगर निगम की मुख्य समिति है।
- इस समिति का महापौर पदेन अध्यक्ष होता है।
- नगर निगम परिषद में लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, के पदेन सदस्य होते है। 6 विशेषज्ञ सदस्य राज्यपाल द्वारा नियुक्त होते हैं।
- महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है।
पालिका :-
- वर्तमान में म.प्र. में 100 नगरपालिका है।
- नगरपालिका में सदस्यों की संख्या 15 से 40 होती है।
- 20 हजार से अधिक व एक लाख से कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में गठित की जाती है।
- नगर पालिका का प्रशासनिक प्रमुख मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सी.एम.ओ.) एवं राजनैतिक प्रमुख नगरपालिका अध्यक्ष होता है।
- अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का अप्रत्यक्ष रीति से किया जाता है।
- महिलाओं को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया गया है।
- राईट टू रीकॉल की व्यवस्था भी है। जो दो वर्ष बाद एवं छः माह कार्यकाल के पहले होता है।
- कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
- मनोनीत सदस्यों की संख्या 4 होती है।
- नगर पालिका की सीमिति को प्रेसीडेन्ट इन कौसिल कहा जाता है।
- समिति का अध्यक्ष नगर पालिका अध्यक्ष पदेन अध्यक्ष होता है।
- समिति में 8 सदस्य होते हैं।
नगर पंचायत :-
- नगर पंचायते संक्रमणशील क्षेत्रों में गठित की जाती है।
- नगर पंचायत में 5 हजार से अधिक एवं 20 हजार से कम जनसंख्या होती है।
- वर्तमान में नगर पंचायतों की संख्या 263 है।
- नगर पंचायत में सदस्यों की संख्या 15 से 40 होती है।
- नगर पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
- राईट टू रीकॉल के माध्यम से वापस बुलाया जा सकता है जो दो वर्ष पश्चात एवं छः माह कार्यकाल के पहले अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।
- नगर पंचायत का प्रशासनिक प्रमुख मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सी.एम.ओ.) होता है एवं राजनैतिक प्रमुख अध्यक्ष होता है।
- अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रीति से एवं उपाध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से होता है।
- नगर पंचायत की समिति को प्रेसिडेन्ट इन कौसिल कहा जाता है।
- समिति का अध्यक्ष नगर पंचायत अध्यक्ष पदेन अध्यक्ष होता है।
- अध्यक्ष सहित कुल छः सदस्य होते हैं।
- 2 विशेषज्ञ सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत तथा बाकी सांसद विधायक आदि होते हैं।
म.प्र. के नगर निगम :-
- इंदौर
- रीवा
- देवास
- भोपाल
- उज्जैन
- सिंगरौली
- जबलपुर
- कटनी
- खण्डवा
- ग्वालियर
- बुरहानपुर
- सतना
- सागर
- रतलाम
- मुरैना
- छिन्दवाडा
नगर पालिका निगम छिन्दवाड़ा और मुरैना 2014 में नगर निगम के रूप में अस्तित्व में आए हैं।