मध्यप्रदेश विधानसभा

मध्यप्रदेश विधानसभा

विधान सभा :-

    मध्यप्रदेश विधानसभा में मनोनीत एंग्लो.इंडियन मिलाकर 231 सदस्य है। एंग्लो.इंडियन सदस्य का मनोनयन राज्यपाल द्वारा सरकार की सिफारिश पर किया जाता है। विधानसभा को अपने कार्य संचालन के विनियमन तथा प्रक्रिया के लिए नियम बनाने का अधिकार है। नेता प्रतिपक्ष राज्य के मंत्री के बराबर वेतन और सुविधाओं का पात्र होता है।

    सितम्बर 1956 में विधानसभा भवन के लिए इमारत मिंटो हॉल का चयन कर लिया गया था। 12 नवंबर, 1909 को गवर्नर जनरल लार्ड मिंटो जब भोपाल आए तो उन्हें यहीं ठहराया था अतएव इस इमारत का नामकरण मिन्टो हॉल कर दिया गया। नए भवन का उद्घाटन 3 अगस्त, 1996 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने किया। इसका नाम इंदिरा गाँधी विधान सभा है। इस भवन का डिजाइन विख्यात वास्तुविद् चार्ल्स कोरिया ने तैयार किया है। वृत्ताकार आकार में बने इस भवन का व्यास 140 मीटर है। उसके प्रवेश द्वार ‘ जीवन वृक्ष‘ नामक विशाल पेड़ है।

मध्यप्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष :-

विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा एवं विधानसभा सचिवालय का प्रमुख होता है। विधानसभा के निर्वाचित सदस्य अपनें सदस्यों के बीच से ही विधानसभा अध्यक्ष को निर्वाचित करते हैं। विधानसभा अध्यक्ष को भारतीय संविधान के अनुसार एवं स्थापित संसदीय परंपराओं के अनुसार व्यापक अधिकार प्राप्त होते हैं। सभा के परिसर में उनका प्राधिकार सर्वोच्च होता है। सभा की व्यवस्था बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी होती है।    वर्ष 1956 में निर्वाचित राज्य की पहली विधानसभा के अध्यक्ष कुंजीलाल दुबे (1956 से 1967 तक) तीन बार अध्यक्ष रहे ।

क्र.मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्षकार्यकाल की अवधिविधानसभा
1.पंडित कुंजीलाल दुबे01/11/1956 से 01/07/1957पहली
2.पंडित कुंजीलाल दुबे02/07/1957 से 26/03/1962दूसरी
3.पंडित कुंजीलाल दुबे27/03/1962 से 07/03/1967तीसरी
4.काशीप्रसाद पाण्डे24/03/1967 से 24/03/1972चौथी
5.तेजलाल टेंभरे25/03/1972 से 10/08/1972पांचवी
6.गुलशेर अहमद14/08/1972 से 14/07/1977पांचवी
7.मुकुंद नेवालकर15/07/1977 से 02/07/1980छठवी
8.यज्ञदत्त शर्मा03/07/1980 से 19/07/1983सातवी
9.रामकिशोर शुक्ला05/03/1984 से 13/03/1985सातवी
10.राजेंद्र प्रसाद शुक्ल25/03/1985 से 19/03/1990आठवी
11.बृजमोहन मिश्रा20/03/1990 से 22/12/1993नौंवी
12.श्रीनिवास तिवारी24/12/1993 से 01/02/1999दसवी
13.श्रीनिवास तिवारी02/02/1999 से 11/12/2003ग्यारवी
14.ईश्वरदास रोहाणी16/12/2003 से 04/01/2009बारहवी
15.ईश्वरदास रोहाणी07/01/2009 से 05/11/2013तेरहवी
16.डॉ. सीताशरण शर्मा09/01/2014 से 01/01/2019चौदहवी
17.नर्मदा प्रसाद प्रजापति08/01/2019 से 23/03/2020पंद्रहवी
18.गिरीश गौतम22/02/2021 से अब तकपंद्रहवी

संसदीय कार्य :-

    राज्य के स्वतंत्र रूप से संसदीय कार्य विभाग की स्थापना वर्ष 1986 में हुई। विभाग विधेयकों प्रगति पर निगरानी रखता है। यह विधानसभा सदस्यों की परामर्शदात्री समितियाँ गठित करता है। इस समय विभिन्न विभागों में सम्बद्ध 38 समितियाँ है।

संसदीय  विद्यापीठ :-

    ससंदीय प्रक्रिया तथा पद्धति की जानकारी तथा प्रशिक्षण देने के लिए पंडित कुंजीलाल दुबे राष्ट्रीय संसदीय विद्यापीठ की स्थापना वर्ष 1998 में की गई है, जिसके द्वारा निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

सत्रों का बुलाया जाना और सत्रावास :-

    संविधान के अनुच्छेद 174 के अनुसार राज्यपाल, समय-समय पर विधान-मण्डल के सदन को ऐसे समय और स्थान पर जो वे ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत कर सकते हैं। और सदन का सत्रावसान कर सकते हैं तथा विधानसभा का विघटन कर सकते हैं।

राज्यपाल का अभिभाषण :-

    संविधान के अनुच्छेद 175 तथा 176 में राज्यपाल द्वारा अभिभाषण के लिए प्रावधान किया गया हैं। यह एक अधिकार देने वाला प्रावधान है जिसको यथावश्यक प्रयोग में लाया जा सकता है। संविधान का अनुच्छेद 176 आज्ञापक है क्योंकि यह राज्यपाल को प्रत्येक आम चुनाव के पश्चात् प्रथम सत्र प्रारंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में विधानसभा में अभिभाषण में करने के लिए आदिष्ट करता है।

अध्यादेश :-

    संविधान के अनुच्छेद 213 के अनुसार उस समय को छोड़कर जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो, यदि किसी समय राज्यपाल को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जो उन्हें उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों। वह अध्यादेश जारी करेगा।

विभागीय परामर्शदात्री समितियाँ  :-

    वर्ष 1969 में समितियों के गठन और कार्य चालन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश तैयार किए गए। म.प्र. राज्य में भी केन्द्र अनुरूप ही परामर्शदात्री समितियों का गठन इस विभाग द्वारा किया जाता है, इन समितियों के गठन और कार्यकरण को विनियमित करने के लिये मार्गदर्शी सिद्धांत बनाए गए हैं।

मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्यवाही की प्रक्रिया :-

(1)             शपथ या प्रतिज्ञान              

(2)             राज्‍यपाल का अभिभाषण               

(3)             मंत्रियों का परिचय              

(4)             निधन संबंधी उल्‍लेख           

(5)             प्रश्‍न (अल्‍प-सूचना प्रश्‍नों सहित)                

(6)             सभा का कार्य स्‍थगित करने के प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करने की अनुमति         

(7)             विशेषाधिकार भंग संबंधी प्रश्‍न          

(8)             नियम 267-क के अधीन ऐसे मामले उठाना जो औचित्‍य प्रश्‍न नहीं है           

(9)             सभा पटल पर रखे जाने वाले पत्र               

(10)           राज्‍यपाल के संदेश सुनाना              

(11)            कार्य मंत्रणा समिति के प्रतिवेदन को स्‍वीकार करने के लिये प्रस्‍ताव               

(12)           विधेयकों पर राज्‍यपाल अथवा राष्‍ट्रपति की अनुमति के बारे में सूचना            

(13)            सभा के सदस्‍यों की गिरफ्तारी, नजरबंदी अथवा रिहाई के बारे में मजिस्‍ट्रेटों अथवा अन्‍य प्राधिकारियों

                 से प्राप्‍त सूचना.        

(14)           ध्‍यान दिलाने वाली सूचना              

(15)            सभा की बैठकों से सदस्‍यों की अनुपस्थिति की अनुमति के बारे में अध्‍यक्ष की घोषणा                

(16)           सभा के सदस्‍यों के पद त्‍याग, सभापति तालिका, समितियों आदि में नाम-निर्देशन आदि विविध

                 विषयों के बारे में अध्‍यक्ष द्वारा घोषणा           

(17)           अध्‍यक्ष द्वारा विनिर्णय या घोषणाएं              

(18)           समितियों के प्रतिवेदनों का उपस्‍थापन          

(19)           याचिकाओं का उपस्‍थापन             

(20)           मंत्रियों द्वारा विविध वक्‍तव्‍य    

(21)           अपने पद के त्‍याग के स्‍पष्‍टीकरण में भूतपूर्व मंत्री द्वारा व्‍यक्तिगत वक्‍तव्‍य

विधानसभा चुनाव  :-

    मध्य प्रदेश गठन के बाद वर्ष 1957 में राज्य में पहले विधानसभा चुनाव हुए। तत्कालीन चुनाव के सीटों पर दोहरे प्रतिनिधि का प्रावधान था, अर्थात् एक सीट से दो विधायक निर्वाचित होते थे। वर्ष 1957 के पहले चुनाव में राज्य में कुल 288 सीटें थी। इस चुनाव में भारतीय कांग्रेस 232 सीटों पर जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इनमें अनुसूचित जाति के लिए 43, अनुसूचित जनजाति के लिए 54 सीटें आरक्षित थीं। वर्ष 1976 में विधानसभा की सीटों की संख्या बढ़कर 296 हो गई। मध्य प्रदेश विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ राज्य बना तो मध्य प्रदेश के हिस्से में विधानसभा की 230 सीटें आईं। इन 230 सीटों में सामान्य 148 और अनुसूचित जाति के लिए 35 एवं अनुसूचित जनजाति के लिए 47 आरक्षित हैं। राज्य विधानसभा में एक सदस्य का मनोनयन एंग्लो-इंडियन समुदाय से किया जाता है।

लोकसभा चुनाव :-

    1956 में मध्य प्रदेश गठन के बाद 1957 में लोक सभा चुनाव हुआ तब मध्य प्रदेश में लोकसभा की 27 सीटें थीं। इनमें अनूसूचित जनजाति के लिए तीन सीटों का आरक्षण था। वर्तमान मध्य प्रदेश के हिस्से में लोकसभा की 29 सीटें हैं। उन सीटों में अनुसूचित जाति के लिए 4 एवं अनुसूचित जनजाति के लिए 5सीटें आरक्षित की गई थीं। जो वर्तमान में क्रमशः 4 व 6 हैं।