महाजनपद काल (600 ई.पू. से 325 ई.पू.)
स्त्रोत
बौद्ध साहित्य – अंगुत्तर निकाय तथा महावस्तु से 16 महाजनपदों के विषय में जानकारी मिलती है। सुत्त पिटक तथा विनय पिटक से महाजनपद काल की जानकारी मिलती है।
जैन साहित्य – भगवती सूत्र से 16 महाजनपदों की सूचना मिलती है।
विदेशी विवरण – नियार्कस, जस्टिन, प्लूटार्क, अरिस्टोबुलस एवं अनेसिक्रिटस आदि विदेशी लेखको की रचनाओं से भी महाजनपद काल के बारे में जानकारी मिलती है।.
महाजनपद
महाजनपद – राजधानी
अंग – चम्पा
अवन्ति – उज्जैन/महिष्मति
काशी – वाराणसी
कौशल – श्रावस्ती/कुशावती
कम्बोज – हाटक
कुरू – हस्तिनापुर
गांधार – तक्षशिला
अश्मक – पोटन/पैथान
मगध – गिरिव्रज/राजगीर/राजगृह
मल्ल – कुशीनगर
मत्स्य – विराटनगर(बैराठ)
वत्स – कौशाम्बी
वज्जीय – वैशाली
पांचाल – अहिच्छल/काम्पिल्य
चेदि – सोथीवति/सुक्तिवती
सूरसेन – मथुरा
नोट – इनमें से 15 महाजनपद नर्मदाघाटी के उत्तर में थे जबकि अश्मक गोदावरी घाटी में स्थित था।
महावस्तु में जिन महाजनपदों की सूची मिलती है उनमें गांधार एवं कंबोज के स्थान क्रमशः शिवि(पंजाब) एवं दर्शना(मध्य भारत) का उल्लेख है।
महाजनपद काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता “आहत सिक्का” या “पंचमार्क सिक्का” है।
महाजनपद एवं उनकी विशेषताएं : –
अंग : –
राजधानी – चम्पा(प्राचीन नाम – मालिनी)
क्षेत्र – आधुनिक भागलपुर व मुंगेर(बिहार)
प्रमुख नगर – चम्पा(बंदरगाह), अश्वपुर, भद्रिका
शासक – बिम्बिसार के समय यहां का शासक ब्रह्मदत्त था। ब्रह्मदत्त को मगध के शासक बिम्बिसार ने पराजित कर अंग को मगध में मिलाया था।
अवन्ति :-
राजधानी – उज्जैन एवं महिष्मति
क्षेत्र – उज्जैन जिले से लेकर नर्मदा नदी तक(मध्य प्रदेश)
शासक – महावीर स्वामी तथा गौतम बुद्ध के समकालीन यहां का शासक चण्ड प्रद्योत था।
प्रमुख नगर – कुरारगढ़, मुक्करगढ़ एवं सुदर्शनपुर
पुराणों के अनुसार अवन्ति के संस्थापक हैहय वंश के लोग थे।
बिम्बिसार ने वैध जीवक को चण्ड प्रद्योत के उपचार के लिए भेजा था।
नोट – लोहे की खान होने के कारण यह एक प्रमुख एवं शक्तिशाली महाजनपद था।
वत्स :-
राजधानी – कौशाम्बी(वर्तमान इलाहबाद एवं बान्दा जिला)
क्षेत्र – इलाहबाद एवं मिर्जापुर जिला(उत्तर प्रदेश)
शासक – गौतम बुद्ध एवं बिम्बिसार के समकालीन उदयिन यहां का शासक था।
उदयिन के साथ चण्ड प्रद्योत एवं अजातशत्रु का संघर्ष रहा।
चण्डप्रधोत ने अपनी पुत्री वासदत्ता का विवाह उदयिन से किया।
गौतम बुद्ध के शिष्य पिण्डोल ने उदयिन को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
कालान्तर में अवन्ति ने वत्स पर अधिकार किया एवं अंतिम रूम में शिशुनाग के वत्स को मगध में मिला लिया।
अश्मक :-
राजधानी – पोटन/पैथान(प्राचीन नाम – प्रतिष्ठान)
क्षेत्र – नर्मदा एवं गोदावरी नदियों के मध्य का भाग
स्थापना व शासक – इसकी स्थापना इक्वाकु वंश के शासक मूलक द्वारा।
यह एक मात्र महाजनपद था जो दक्षिण भारत में स्थित था।
जातक के अनुसार, यहां के शासक प्रवर अरूण ने कलिंग पर विजय प्राप्त की एवं अपने राज्य में मिलाया।
कालान्तर में अवन्ति ने अश्मक राज्य पर विजय प्राप्त की।
काशी :-
राजधानी – बनारस/वाराणसी
क्षेत्र – वाराणसी का समीपवर्ती क्षेत्र
स्थापना – काशी का संस्थापक द्विवोदास था।
शासक – काशी का शासक अजातशत्रु था। अजातशत्रु के समय ही काशी मगध का हिस्सा बना था।
काशी का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है।
जातक के अनुसार, राजा दशरथ एवं राम काशी के राजा थे।
काशी वरूणा एवं अस्सी नदियों के किनारे बसा हुआ था।
काशी सूत्री वस्त्र एवं अश्व व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
कौशल :-
राजधानी – श्रावस्ती/कुसावती/अयोध्या
क्षेत्र – आधुनिक अवध(फैजाबाद, गोण्डा, बहराइच) का क्षेत्र/सरयू नदी
शासक – बुद्ध के समकालीन यहां का शासक प्रसेनजित था।
महाकाव्य काल में इसकी राजधानी अयोध्या थी।
प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु के साथ किया और काशी दहेज में दिया था।
कुरू :-
राजधानी – इन्द्रप्रस्थ एवं हस्तिनापुर
बुद्ध के समकालीन यहां का शासक कौरण्य था।
इसका उल्लेख महाभारत एवं अष्ठाध्यायी में मिलता है।
इस महाजनपद के अन्दर मेरठ, दिल्ली व थानेश्वर का क्षेत्र आता है।
पांचाल :-
राजधानी – अहिक्षत्र एवं काम्पिल्य
यहां का शासक चुलामी ब्रह्मदत्त था।
इस महाजनपद के अन्दर बरेली, बदायु, फर्रूखाबाद क्षेत्र शामिल थे।
इसका उल्लेख महाभारत एवं अष्ठाध्यायी में मिलता है।
सूरसेन/शूरसेन :-
राजधानी – मथुरा
यहां के शासक यदुवंशी भगवान कृष्ण थे।
मेगास्नीज की पुस्तक इण्डिका में शूरसेन का उल्लेख मिलता है।
यहां बुद्ध का समकालीन शासक अवन्तिपुत्र था।
मल्ल :-
राजधानी – कुशीनारा/पावापुरी
यहां का शासक ओक्काक था।
यहां का शासन गणतंत्रात्मक था।
इस महाजनपद में ही महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था।
वज्जि :-
राजधानी – मिथिला/वैशाली
यह 8 गणराज्यों(विदेह, लिच्छिवी, वज्जि, ज्ञातृक, कुण्डग्राम, भोज, इक्कबाकु, कौरव) का संघ था। इनमें विदेह, लिच्छिवी व वज्जि प्रमुख थे।
यहां का प्रमुख शासक चेटक था।
यहां गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी।
समस्त वज्जि संघ की राजधानी वैशाली की स्थापना इक्वाकुवंशी विशाल ने की।
कम्बोज :-
राजधानी – हाटक(वैदिक युग में – राजपुर)
यहां पाकिस्तान का रावपिण्डी, पेशावर, काबुल घाटी का क्षेत्र शामिल था।
यह क्षेत्र श्रेष्ठ घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था।
महाभारत में यहां के दो शासक चन्द्रवर्मण एवं सुदक्षिण की चर्चा हुई है।
चेदी :-
राजधानी – शुक्तिमति
यहां महाभारत कालीन राजा शिशुपाल राज किया करता था जिसका वध भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र द्वारा किया था।
इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश व बुन्देलखण्ड का यमुना नदी क्षेत्र शामिल है।
गान्धार :-
राजधानी – तक्षशिला
यहां का शासक बिम्बिसार के समकालीन पुष्कर सरीन था।
इसमें आधुनिक पेशावर, रावलपिण्डी का क्षेत्र शामिल था।
गांधार के शासक द्रुहिवंशी थे।
यह क्षेत्र ऊनी वस्त्र उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
मत्स्य :-
राजधानी – विराटनगर
इसमें राजस्थान के अलवर, जयपुर व भरतपुर का क्षेत्र शामिल था।
मनु स्मृति में मत्स्य का कुरूक्षेत्र, पांचाल एवं सूरसेन को ब्राह्मण मुनियों का अधिवास ब्रह्मर्षिदेश कहा गया है।
मगध :-
राजधानी – गिरिव्रज/राजगीर/राजगृह
यह आधुनिक बिहार के ‘पटना’ एवं ‘गया’ जिले तक व्याप्त था।
नोट – पुराणों एवं बौद्ध/जैन ग्रंथ के अनुसार मगध पर सर्वप्रथम शासक वंश को लेकर मतभेद है।
पुराणों के अनुसार मगध पर सबसे पहले ब्रहद्रथ वंश ने शासन किया जबकि बौद्ध ग्रंथ के अनुसार मगध पर सर्वप्रथम हर्यक वंश का शासन था।
हर्यक वंश (अन्य नाम – पित्हंता वंश) (544 BC – 412 BC )
स्थापना – हर्यंक वंश की स्थापना बिम्बिसार ने की थी।
बिम्बिसार (544 BC – 492 BC ):-
जैन साहित्य में इसे श्रेणिक कहा गया है।
बिम्बिसार ने विजयों तथा वैवाहिक संबंधों के द्वारा वंश का विस्तार किया।
प्रथम विवाह लिच्छिवी गणराज्य के शासक चेटक की बहिन चेलना से।
द्वितीय विवाह – कोशल नरेश प्रसेनजित की बहिन महाकौशला से।
तीसरा विवाह – मद्र प्रदेश की राजकुमारी क्षेमा से।
बिम्बिसार ने अंग महाजनपद को मगध साम्राज्य में मिलाया।
बिम्बिसार ने अपने राजवेद्य जीवक को अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत के पाण्डु रोग(पीलिया) के इलाज के लिए अवन्ति भेजा।
हत्या – पुत्र अजातशत्रु द्वारा
अजातशत्रु (492 -461 BC ):-
उपनाम – कुणिक
अपने पिता की हत्या कर राजगद्दी पर बैठा।
कोशल नरेश प्रसेनजित को हराया। लिच्छिवी गणराज्य की राजधानी वैशाली को जीता एवं दोनों को मगध साम्राज्य का हिस्सा बनाया।
वज्जि संघ से युद्ध में दो नए हथियार रथमूसल(टैंक) एवं महाशिला कण्टक(पत्थर फैंकने वाला हथियार) का प्रयोग किया एवं वज्जि संघ को भी मगध का हिस्सा बनाया।
यह गौतम बुद्ध का समकालीन था। इसी के समय बुद्ध को महापरिनिर्वाण(मोक्ष) की प्राप्ति हुई।
इसके शासन काल में 483 BC में इसकी राजधानी राजगृही में प्रथम बौद्ध महासंगीति हुई।
हत्या – पुत्र उदयिन द्वारा।
उदयिन :- (461 BC – 445 BC )
उपनाम – उदय भद्र
इसने पाटलिपुत्र(वर्तमान पटना) नगर की स्थापना की एवं इसे अपनी राजधानी बनाया।(राजगृह से पटलिपुत्र)
बौद्ध ग्रंथों में इसे पितृ हन्ता कहा गया है।
यह जैन धर्म का पालन करता था।
इसके बाद कुछ समय इसके पुत्रों ने शासन किया ।
इस वंश का अंतिम शासक नगदशक हुआ जिसकी हत्या उसके अमात्य शिशुनाग ने की , और मगध में नाग वंश की स्थापना की ।
शिशुनाग वंश (412 -344 BC ) :-
संस्थापक – शिशुनाग
शिशुनाग(412 ई.पू. से 394 ई.पू.) :-
इसका सबसे मुख्य कार्य अवन्ति राज्य को जीतकर मगध में मिलाना था।
इसने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से वैशाली में स्थानांतरित की।
कालाशोक(394 ई.पू. से 366 ई.पू.) :-
उपनाम – काकवर्ण
इसने राजधानी पुनःपाटलिपुत्र में स्थानान्तरित कर दी।
इसके शासनकाल में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।
हर्षचरितानुसार, महापद्मनन्द ने कालाशोक की हत्या की।
नंदिवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था। जिसकी हत्या 344 BC में महापद्मनन्द ने की और नन्द वंश की स्थापना की ।
नन्द वंश (344BC – 322 BC ) :-
महापद्मनन्द :-
बौद्ध ग्रंथ महाबोधिवंश में इसे उग्रसेन, पुराणों में सर्वक्षत्रान्तक तथा एकराट कहा गया है।
अन्य नाम – उग्रसेन, सर्वक्षात्रान्तमक एवं एकराट
सर्वक्षत्रान्तमक – सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला
इसे परशुराम का अवतार कहा गया है । अत्यधिक संपत्ति व सेना रखने वाला कहा गया है।
महापद्मनंद ने पौरव, इक्वाकु, पांचाल, हैहय, कलिंग, सूरसेन, मिथिला आदि को मगध साम्राज्य में मिलाया इसी कारण इसे एकछत्र या एकराट कहा गया।
नोट – खारवेल के हाथीगुफा अभिलेख से महापद्मनंद की कलिंग विजय की जानकारी मिलती है।
व्याकरणाचार्य पणिनी महापद्मनंद के मित्र थे।
घनानन्द :-
यह नन्द वंश का अंतिम सम्राट था।
पश्चिम साहित्य/यूनानी साहित्य में इसे अग्रमीज(नाई) कहा गया है।
इसके शासनकाल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था।
नन्द वंश के शासक जैन मत के पोषक थे।
चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द को मारकर मौर्य वंश की स्थापना की।
मगध के उत्कर्ष के कारण :-
अनुकूल भौगोलिक स्थिति – उपजाऊ मिट्टी, वन एवं संसाधनों की पर्याप्तता
राजधानी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी।
नगरीकरण तथा आहत सिक्कों से मगध का उत्कर्ष बढ़ा।
मगध समाज रूढ़िवादी नहीं था।
शासकों की साम्राज्य विस्तार की लालसा।
महाजनपदों के उदय के कारण