Major Dynasties of Madhya Pradesh

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मध्यप्रदेश के प्रमुख राजवंश

Major Dynasties of Madhya Pradesh मध्यप्रदेश का इतिहास उतना ही पुराना है , जितना प्राचीन भारत का इतिहास है ।

मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी , बेतवा नदी , चंबल नदी और अन्य नदी घाटियां इस बात का प्रमाण देती है ।

इसी ऐतिहासिक भूमि मध्यप्रदेश पर प्राचीन काल से ही अनेकों शासकों ने शासन किया और मध्यप्रदेश के इतिहास में एक अमिट छाप छोडी है , उन राजवंशो के बारे में विस्तार से पढ़ने वाले है । Dynasties of Madhya Pradesh

Table of Contents

    पाषाण  काल

     मानव के पृथ्वी पर अभ्युदय के साथ ही मानव ने अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सर्वप्रथम पत्थरो का प्रयोग शुरू किया , मानव सभ्यता के इसी काल को पाषाण काल के नाम से जानते है । 

    पाषाण काल की अवधि अनंत से 10000 ईसा पूर्व तक मानी जाती है ।

    अलग – अलग आकार के पत्थरो और इनके औजारो के प्रोयोग और उनकी उपलब्धता के आधार पर पाषाण काल को निम्नलिखित भागो में विभाजित किया गया है।

    1. पुरापाषाण  काल

    2. मध्यपाषण  काल

    3. नवपाषाण  काल

    मध्यप्रदेश में पुरापाषाण काल (Paleolithic Period)

    नर्मदा घाटी से ही सर्वाधिक पाषाण कालीन स्थल एवं उपकरण प्राप्त हुए हैं।

    यहाँ पर हस्तनिर्मित एवं प्राकृतिक वस्तुओं को औजार या हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता था।

    इस काल के प्रमुख औजारों में बिना हत्थे वाली कुल्हाड़ी, हत्थे वाली कुल्हाड़ी (हस्तकुठार), खुरचन तथा मुष्ठ आदि सम्मिलित थे।

    ये कुल्हाड़ियाँ नर्मदा घाटी के उत्तर में देवरी, सुकचाई नाला बुधाना, केन घाटी, बरखस,तथा दमोह जिले में प्राप्त हुए हैं।

    इसी काल में मध्यप्रदेश के सीहोर जिले से नर्मदा नदी के किनारे से एक मानव खोपड़ी मिली जिसका नाम नर्मदा मानव रखा गया है ।

    5 दिसंबर, 1982 भू विज्ञानी अरुण सोनकिया ने  सीहोर जिले बुदनी के हथनोरा गाँव में नर्मदा के तट पर दुनिया सबसे बड़े जीवाश्म को खोजा था।

    नरसिंहपुर जिले में भूतरा नामक स्थान पे पाषाण कालीन उपकरण मिला है।

    महादेव  पिपरिया से 860  औजार मिले हैं Dynasties of Madhya Pradesh

    मध्यपाषाण  काल (mesolithic period )

    नवपाषण काल (neolithic period )

       मध्य पाषाण काल के साक्ष्य  सोन  घाटी  मिले , इसके अलावा मंदसौर ,नाहरगढ़ ,इंदौर ,भीमबेटका ,सीहोर  से उपकरण  मिले हैं , बी. बी  मिश्रा  ने भीमबेटका  से ब्लेड  अवयव  ढ़ूँढ़ा , आर.बी  जोशी ने होशांगाबाद स्तिथ 25 हजार उपकरण  प्राप्त किये

     लगभग 5000 ईसा पूर्व    

     इस  काल  के   औजार  जटकारा,जबलपुर, दमोह,सागर, होशंगाबाद  मे  मिलते हैं ,  भोपाल  के बैरागढ़  के निकट  स्थित  शैलाश्रय ,में  अर्धचन्द्राकार  तथा समलम्ब  नवपाषाणकालीन  उपकरण मिले  है

    ताम्रपाषाण  काल ( chalcolithic  period )

    मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के नागदा,आवरा , नवदाटोली, बेसनगर में  ताम्र कालीन उपकरण मिले है , मालवा में मूर्तियों में वृषभ का प्रमाण मिला है

      ऐतिहासिक  काल (लौह काल)

    मध्यप्रदेश में लौह काल के उपकरण मालवा, भिंड मुरैना से प्राप्त हुए हैं जिनमें धूसर चित्रित मृदभांड के अवशेष मिले है

    वैदिक सभ्यता

    उत्तर वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रंथों एवं आरण्यकों में मध्य प्रदेश से संबंधित विवरण प्राप्त होते हैं। कौषीतकि उपनिषद् में अप्रत्यक्ष रूप से विंध्य पर्वत का उल्लेख है।

    शतपथ ब्राह्मण तथा वैदिकोत्तर साहित्य में रेवोत्तरम् का उल्लेख मिलता है, जिसे इतिहासकार वेबर  रेवा (नर्मदा ) नदी मानते हैं।

        महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में नर्मदा घाटी में यादवों का एक समूह बस गया था और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमन प्रारंभ हुआ।

    उत्तर वैदिक काल  में कुछ अनार्य विशेष कर निषाद जाति के लोगों का ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लेख मिलता है, जो मध्य प्रदेश के घने जंगलों में निवास करते थे।Dynasties of Madhya Pradesh

    महाकाव्य काल

    रामायण काल में प्राचीन म.प्र. के अंतर्गत दण्डकारण्य व महाकान्तार के घने वन थे। यदुवंशी नरेश मधु इस क्षेत्र के शासक थे । जो अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन थे। राम ने अपने वनवास का कुछ समय दण्डकारण्य (अब छत्तीसगढ़) में बिताया था।

    शुत्रध्न के पुत्र शुत्रघाती ने दशार्ण (वर्तमान विदिशा) पर शासन किया था, जिनकी राजधानी कुशावती थी। पुराणों में वर्णन है कि विंध्य प्रदेश व सतपुड़ा के वनों में कभी निषाद जाति के लोग निवास करते थे, जिनका आर्यों से अच्छा संबंध था।

    महाभारत के युद्ध में इस क्षेत्र के राजाओं का भी अच्छा योगदान रहा। इस युद्ध मे वत्स, काशी, चेदि, दशार्ण व मत्स्य जनपदों के राजाओं ने पाण्डवों का साथ दिया, वहीं महिष्मति के नील, अवन्ति के बिन्द, भोज, अंधक, विदर्भ व निषाद के राजाओं ने कौरवों की तरफ से लड़ा।

    पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहॉ के वनों में भी व्यतीत किया था। कुन्तलपुर (कौंडि़या), विराटपुरी (सोहागपुर), महिष्मती (महेश्वर) व उज्जयिनी  (उज्जैन ) महाकाव्य काल के प्रमुख नगर थे। Dynasties of Madhya Pradesh

    महाजनपद  काल 

    प्राचीन नाम नवीन   नाम 
    अवन्ति उज्जैन 
    वत्स ग्वालियर 
    चेदि खजुराहो 
    अनूप निमाड ( खण्डवा/खरगौन)
    दशार्णविदिशा 
    तुंडिकेर दमोह 
    नालपुर नरवर (शिवपुरी)

    600 ईसा पूर्व  जब   महाजनपद  थे तब मध्यप्रदेश राज्य  से 2 महाजनपद चेदि  तथा अवन्ति  थे

    अवन्ति महाजनपद

    अवन्ति महाजनपद के 2 भाग थे  उत्तरी अवन्ति एवं दक्षिणी अवन्ति । उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयनी (उज्जैन )तथा दक्षिणी अवन्ति की राजधानी महिष्मति(महेश्वर ) थी ।

    जीवक (बिंबिसार का राजवेद्य )के लेखों में विदिशा, गोननद (आधुनिक दुराहा),उज्जैन तथा माहिष्मती का उल्लेख मिलता है।

         बौद्ध तथा जैन ग्रंथों के अनुसार, अवन्ति के दो अन्य प्रसिद्ध नगर कुररघर तथा सुदर्शनपुर थे। अवन्ति बौद्ध धर्म का भी सुप्रसिद्ध केन्द्र था। इसका बौद्धकालीन नाम अच्युतगामी अथवा अच्युतगामिनी था।

    चेदि महाजनपद

    चेदि राज्य का विस्तार सोन और नर्मदा घाटियों के मध्य था। परवर्ती चेदि राज्य में कलचुरि वंश का शासन था, जिसका विस्तार उत्तर में कालिंजर तक था, महाभारत कालीन चेदि राज्य की राजधानी शुक्तिमती या शुक्तिसाह्वय थी, जिसे जातक कथाओं में सोत्थिवती कहा गया है। यहाँ का शासक शिशुपाल था जिसे श्री कृष्ण ने मारा था ।

    मौर्य काल(322 BC  -185 BC )

    बिंदुसार के शासन काल में अशोक 11 वर्ष तक अवन्ति का राज्य पाल था। अशोक ने राज्यपाल रहते हुए विदिशा के सेठ की बेटी महादेवी से विवाह किया था । उसने उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था।

    मध्य प्रदेश के गुर्जरा (दतिया )एवं रुप नाथ लघु शिलालेख से अशोक के शासन की जानकारी मिलती है। गुर्जरा लघु शिलालेख में अशोक का नाम अशोक, देवनाप्रिय प्रियदर्शिन् उल्लिखित हैं। Dynasties of Madhya Pradesh

    मौर्यकालीन स्मारक

    साँची का स्तूप :–  1818 ई. में जनरल टेलर ने साँची स्तूप की खोज की थी। सांची मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में बसा हुआ है । इसका पुराना नाम ककनाम था । सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई.पू. में साँची के बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था, जो मूल रूप से ईटों से निर्मित था। सांची के स्तूप की वर्तमान संरचना का निर्माण शुंग काल में किया गया था ।

    तुमैन का स्तूप :- गुना जिले मे स्थित इस स्थान से तीन मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप मिले है ।

    उज्जैन का बौद्ध महास्तूप :-  सम्राट अशोक द्वारा अपनी पत्नी कुमार देवी के लिए उज्जैन में एक बोद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था, जिसके अवशेष वैश्य टेकरी (कानीपुरा) नामक टीले के रूप में विद्यमान हैं। Dynasties of Madhya Pradesh

    कसरावद के स्तूप :-  खरगोन जिले मे स्थित इस स्थान से स्थित इतबर्डी नामक टीले के उत्खनन से 11  मौर्यकालीन स्तूप प्राप्त हुए हैं।

    देउरकोठार के स्तूप :-  रीवा जिले मे स्थित इस स्थान से मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप प्राप्त हुए हैं।

    पनगुड़ारिया का स्तूप :-  सीहोर जिले मे स्थित इस स्थान से भी मौर्यकालीन प्रदक्षिणापथ युक्त स्तूप प्राप्त हुआ है

    शुंग  वंश  ( 185-72 ई.पू.)

        पुष्यमित्र ने 185  ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की  थी। मालविकाग्निमित्रम्, जो महाकवि कालिदास ( भारत के सेक्सपियर ) द्वारा रचित एक नाटक है, से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुग का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था  ।

    शुंग वंश के वंशज उज्जैन से संबंधित थे। शुंग वंश के शासको की द्वितीय राजधानी विदिशा थी ।

         शुंग वंश के आठवें शासक भागवत् (काशीपुत्र भाग भद्र) के शासनकाल में ग्रीक राजा एंटिओकस  का राजदूत हेलियोडोरस विदिशा आया था। उसने भागवत धर्म अपनाया तथा उसने बेसनगर (विदिशा )में भगवान विष्णु को समर्पित प्रसिद्ध गरुड़ स्तम्भ का निर्माण करवाया था।

    शुंग शासको ने सांची के स्तूप को पत्थरो के द्वारा पक्का बनवाया तथा स्तूप की वेदिका और तोरण द्वार का निर्माण करवाया ।

    इसी काल में भरहुत के स्तूप का निर्माण किया गया था । Dynasties of Madhya Pradesh

    सातवाहन  वंश

    संस्थापक शासक– सिमुक

    सातवाहन वंश मुख्य रूप से दक्षिण भारत से संबन्धित है , परंतु इस वंश के महानतम शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी का उल्लेख साँची स्तूप के दक्षिणी तोरण (द्वार ) के शिलालेख में भी किया गया है।

       सातवाहन शासकों में राजा सिरिसात के नामाँकित सिक्के उज्जैन, देवास, होशंगाबाद (जमुनिया), जबलपुर (तेवर,भेड़ाघाट, त्रिपुरी) तथा वशिष्ठी पुत्र पुलुमावी (130 ई. से 154 ई.) के सिक्के भेलसा  एवं देवास से प्राप्त हुए हैं।

        अंतिम सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णी (165 ई. से 193 ई.) के सिक्के बेसनगर, तेवर और देवास से प्राप्त हुए हैं। त्रिपुरी से सातवाहन वंश के शासकों द्वारा जारी सीसे के सिक्के प्राप्त हुए हैं।

    कुषाण वंश

    कुषाण वंश की स्थापना कुजुल कडफिसेस ने की थी । कुषाण मूल रूप से चीन से आए थे ।  

        इस वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था। इनकी राजधानी पुरुषपुर या पेशावर थी। कुषाणों की द्वितीय राजधानी मथुरा थी।

        कनिष्क ने 78 ई० (राज्यरोहण के समय) में एक संवत् चलाया, जिसे  शक-संवत् कहते है , जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। कनिष्क का  उल्लेख  मालवा  के क्षेत्रो  से मिलता हैं उसने  शको  को हराकर इन  क्षेत्रो  कब्ज़ा  किया  था । Dynasties of Madhya Pradesh

    नाग  वंश

    कुषाणो  के बाद मध्यप्रदेश के क्षेत्रों पर नाग वंश  के शासको ने शासन किया । इस वंश की राजधानी  पद्मावती(ग्वालियर) थी ।

    गुप्त  वंश (280 -550 ईस्वी )

    संस्थापक –श्री  गुप्त

    राजधानी -पाटलिपुत्र (पटना)

    वास्तविक संस्थापक -चन्द्रगुप्त प्रथम – उपाधि महाराजाधिराज, गुप्त संवत की शुरुआत (319-320 ईस्वी )

    गुप्तकाल के अभिलेख

    मंदसौर अभिलेख :- गुप्त सम्राट कुमारगुप्त द्वितीय के शासनकाल का मंदसौर (दशपुर)अभिलेख प्राप्त हुआ जो पश्चिमी मालवा में स्थित है। इन्होंने दशपुर में एक सूर्य मंदिर का निर्माणकराया था। यह अभिलेख साहित्यिक संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवाया गया था, जिससे तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अवस्था पर प्रभाव पड़ता है। इस अभिलेख से रेशम बुनकरो की श्रेणी की जानकारी प्राप्त होती है  ।

    उदयगिरी शिलालेख :- मध्यप्रदेश के विदिशा  जिले में स्थित इस अभिलेख में शंकर नामक व्यक्ति द्वारा इस स्थान पर पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित किये जाने का उल्लेख है। उदयगिरि की गुफा में भगवान विष्णु के वराह अवतार की झांकी देखने को मिलती है ।

    साँची अभिलेख :- साँची से प्राप्त इस अभिलेख मेंहरिस्वामिनी द्वारा काकनाद में स्थित यहाँ के आर्य संघ को धनका दान दिये जाने का उल्लेख कियागया है।

    तुमैन अभिलेख :-   गुना जिले में स्थित इस अभिलेख मेंराजा कुमार गुप्त को शरद्कालीनसूर्य की भाँति बताया गया है।

    ऐरण अभिलेख :- यह अभिलेख सागर जिले में स्थित है इसका नाम स्वभोग नगर था। एरण अभिलेख हूणों की उपस्थिति को दर्शाता है। इस अभिलेख से सती प्रथा के  प्रथम साक्ष्य मिलते है । इस अभिलेख का निर्माण भानुगुप्त ने करवाया था ।

    बाघ की गुफा का निर्माण गुप्त काल मे हुआ था जो धार जिले  के समीप बाघ नामक स्थान पर विंध्यपर्वत को काटकर बनायी गयी थी।

        चन्द्रगुप्त II के शासनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास थे।

        चन्द्रगुप्त II के दरबार में रहनेवाले आयुर्वेदाचार्य धन्वन्तरि थे ।

        गुप्तकाल में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंच तंत्र (संस्कृत) को संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ माना जाता है। 

        सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है ।

    परमार  वंश 

    परमार वंश की स्थापना उपेन्द्रराज ने की थी । इसकी राजधानी धारा नगरी (वर्तमान धार )थी।

    वाक्पति मुंज (973-998 ई.)  :-     सियक द्वितीय द्वारा राज्य त्याग के पश्चात् उसका पुत्र वाक्पति मुंज शासक बना । मुंज एक महान योद्धा, विद्वान एवं सुयोग्य प्रशासक था। उसके समय मालवा में स्वर्ण युग का आरंभ हुआ। उसने धार में मुंज सागर झील का निर्माण करवाया। मुंज के द्वारा महेश्वर, उज्जैन, ओंकारेश्वर और धरमपुरी में भी सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया गया।

    नवसाहसाङ्कचरित के रचयिता पद्मगुप्त, दशरूपक के रचयिता धनंजय, धनिक, हलायुध एवं अमित गति जैसे विद्वान वाक्यपति मुंज के दरबार में रहते थे।

    राजा भोज :-     

    परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज था। राजा भोज ने भोपाल के दक्षिण में भोजताल  नामक झील का निर्माण करवाया।

    राजा भोज ने चिकित्सा, गणित एवं व्याकरण पर अनेक ग्रंथ लिखे। भोजकृत युक्तिकल्पतरु में वास्तुशास्त्र के साथ-साथ विविध वैज्ञानिक यंत्रों व उनके उपयोग का उल्लेख है।

    राजा भोज ने कविराज की उपाधि धारण की थी ।  राजा भोज ने अपनी राजधानी धारा नगरी (धार ) में एक सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर के विशाल परिसर में संस्कृत विद्यालय भी खोला गया था। राजा भोज के शासनकाल में धारा नगरी (धार ) विद्या एवं विद्वानों का प्रमुख केन्द्र थी । राजा भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया। राजा भोज ने भोजपुर नगर की स्थापना की थी । आयुर्वेद सर्वस्व और समरांगण सूत्र धार इत्यादि ग्रंथो की रचना की थी ।

    जेजाकभुक्ति का चंदेल  वंश

    इस वंश की स्थापना नन्नुक ने 831 AD में की थी । वर्तमान बुदेलखंड का प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है। प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद बुंदेलखंड की भूमि पर चन्देल वंश का स्वतंत्र राजनीतिक इतिहास प्रारंभ हुआ। इनकी राजधानी खजुराहो थी। प्रारंभ में इसकी राजधानी नन्नुक कालिंजर (महोबा) थी।

    यशोवर्मन :- चदेल वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं सबसे प्रतापी राजा यशोवर्मन था। यशोवर्मन ने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा देव पाल को हराया तथा उससे एक विष्णु की प्रतिमा प्राप्त की, जिसे उसने खजुराहो के विष्णु मंदिर में स्थापित की।

    राजा धंग देव :- राजा धंग ने अपनी राजधानी कालिंजर से खजुराहो में स्थानान्तरित की थी, इसके अलावा धंग ने ग्वालियर पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया था ।

     राजा धंग देव ने खजुराहो (छतरपुर ) में जिन्ननाथ, विश्वनाथ एवं वैधनाथ और प्रसिद्ध कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण 999 ई० में करवाया गया था ।

    गंड :-  धंग के पुत्र गंड ने खजुराहो(छतरपुर )  में  (1008 ईस्वी ) ने जगदम्बा और चित्र गुप्त  मंदिर  बनवाये थे ।

    परमार्दिदेव   :-   अंतिम योग्य  चंदेल शासक परमार्दिदेव थे । जिनके वीर सेनापति आल्हा और ऊदल  ने  पृथ्वी राज चौहान से युद्ध में अत्यधिक शौर्य के साथ युद्ध किया था ।

    दिल्ली सल्तनत (1206 से 1526 ई.) :-

        मध्य प्रदेश में 10 वीं शताब्दी में ही मुस्लिम आक्रमणकारियों के आक्रमण शुरू  हो चुके थे।  महमूद गजवनी :-  1019 में महमूद गजवनी ने ग्वालियर भूभाग पर आक्रमण किया।

        कुतुबुद्दीन ऐबक :- दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक शासक ऐबक की महत्वपूर्ण विजयों में बंुदेलखण्ड की विजय शामिल थी।

       इल्तुतमिश:-  कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद प्रतिहार शासकों  ने ग्वालियर, चंदेलों ने कालिंजर व अजयगढ़ पर अपना अधिकार कर लिया। इल्तुतमिश द्वारा 1231 ई. में ग्वालियर के किले पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की गई ।  

    1233-34 ई. में कालिंजर व उसके आसपास के क्षेत्रों को जीता गया।

    1234-35 में इल्तुतमिश द्वारा मालवा पर आक्रमण किया गया जिनमें उसने भैलसा व उज्जैन से काफी धन लूटा। Dynasties of Madhya Pradesh

    अलाउद्दीन खिलजी :- 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मुल्तान के सूबेदार अईन-उल-मुल्क को मालवा पर आक्रमण हेतु भेजा ।  जिसने राजा महलकदेव व उसके पुत्र को युद्ध में मारकर इस  क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने उज्जैन, धारानगरी व चंदेरी आदि को भी जीता। यहीं से पहली बार मालवा का दिल्ली सल्तनत में प्रवेश हुआ।

    हुसैनशाह :- 1401 ई. में दिलावर खाँ की मृत्यु के पश्चात्  यहाँ का शासक हुसैनशाह बना, जिसे गुजरात के शासक मुजफ्फरशाह द्वारा मालवा पर आक्रमण के फलस्वरूप कैद कर लिया गया परंतु मालवा में विद्रोह हो जाने के बाद मुजफ्फरशाह  ने हुसैनशाह को ही भेजा, जिन्होंने पुनः अपना अधिकार जमाया। इसके पश्चात् उन्होंने मांडू को अपनी राजधानी बनाया। मांडू नगर को बसाने का श्रेय भी उसी को ही है। इस वंश के शासक महमूदशाह द्वितीय के काल में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने 1531 ई. में मालवा पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।

    मुगल काल (1526 से 1857 ई.)

    बाबर :- 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली गई।

    29जनवरी, 1528 ई. को मालवा के सूबेदार मेदिनी राय की युद्ध में हत्या कर बाबर ने चंदेरी पर अपना अधिकार जमाया।

    हुमायूँ :- बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ मुगल सम्राट बना, जिसके समय में सम्पूर्ण मालवा जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।

    शेरशाह सूरी  :-  

     कन्नौज(1540 ई.) के बिलग्राम के युद्ध में शेरशाह ने मुगल सम्राट  हुमायूँ को हराकर इस राज्य के माण्डू , उज्जैन, सारंगपुर आदि क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। शेरशाह ने 1545 ई. में बुदेलखण्ड के कालिंजर किले पर आक्रमण किया जिसमें बारूद फटने से उसकी मृत्यु हो गई। यह किला उस समय कीरत सिंह के कब्जे में था। शेरशाह द्वारा किया गया यह युद्ध रीवा के राजा वीरभान बघेला को कीरत सिंह द्वारा उसे न सौंपे जाने का एक बहाना मात्र था। शेरशाह की मृत्यु के पूर्व इस किले पर अफगानों को विजय मिल चुकी थी।

    अकबर :-

    मुगल सम्राट अकबर ने 1561 ई. में आसफखाँ को मालवा पर आक्रमण हेतु भेजा जहाँ उसे बाज बहादुर पर सफलता मिल गई।

    इस राज्य का गोंडवाना प्रदेश, जो रानी दुर्गावती के अधिकार क्षेत्र में था में अकबर ने युद्ध के लिए आसफ खाँ के नेतृत्व में मुगल सेना भेजी, जिसमें मुगल सेना की विजय हुई तथा रानी दुर्गावती (गोंडवाना) की पराजय हुई।

    उसने अपने सतीत्व की रक्षा हेतु स्वयं आत्महत्या कर ली। इसके पश्चात् गोंडवाना प्रदेश मुगल साम्राज्य में चला गया।

    अकबर ने 1569ई. में कालिंजर के किले पर अपना अधिकार कर लिया, उस समय यह किला, राजा रामचन्द्र के अधीन था।

    अकबर ने स्वयं 1601 ई. असीरगढ़ के किले पर अपना अधिकार जमाया।

    जहाँगीर :- 1617 ई. में मुगल सम्राट जहाँगीर का दक्षिण की देखभाल हेतु स्वयं माण्डू जाना तथा खुर्रम का बुरहानपुर पहुँचना राज्य की महत्ता को स्पष्ट करता है।  

    औरंगजेब :-     

    औरंगजेब की धार्मिक नीति के कारण मालवा व बुंदेलखण्ड में भी विद्रोह हुए, जिनमें बुंदेलखण्ड का विद्रोह सफल रहा। Dynasties of Madhya Pradesh

    ओरछा के राजा चम्पत राय ने औरंगजेब के विरूद्ध विद्रोह का झण्डा खड़ा कर 1661 ई. मुगल आधिपत्य स्वीकार करने के बजाय आत्महत्या करना उचित समझा। इसके बाद उसका पुत्र छत्रसाल मुगलों की सेना में चला गया। वह जब मुगल सेना के साथ दक्षिण की तरफ विजय अभियान हेतु गया तो वह शिवाजी से प्रभावित होकर अपनी सेवाएँ उन्हें देनी अर्पित कर दी। उसने धमानी व कालिंजर पर अपना अधिकार जमाया। शिवाजी ने बुंदेलखण्ड में जाकर युद्ध प्रारंभ करने की सलाह दी। इस प्रकार 1705 ई. में औरंगजेब से उसे संधि करनी पड़ी परन्तु 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद वह बुंदेलखण्ड का एक स्वतंत्र शासक बन गया और उसने पेशवा बाजीराव को बुंदेलखण्ड का पर्याप्त बड़ा भाग जागीर के रूप में दे दिया। यहीं से प्रदेश में मराठों का प्रवेश शुरू हुआ।

    मराठा काल(1707 से 1818 ई.)

    मुगल सम्राट फर्रूखसियर के विरूद्ध अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने के लिए हुसैन अली (जो सैयद बन्धु का एक भाई था) ने मराठों से सहायता लेने के लिए एक संधि की जिसके अनुसार, खानदेश व गोंडवाना, जो मराठा शासकों द्वारा जीता गया था, को शाहू को सौंपे जाने की बात थी। यह स्थिति मराठा शासकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण व मुगल शासकों के लिए नुकसानदायक थी।

    1722 ई. में बाजीराव ने मालवा पर प्रथम बार आक्रमण किया। इसके बाद 1724 ई. में इस भू-भाग में चौथ के लिए युद्ध किया। इसके पश्चात् पेशवा की तरफ से मल्हार राव होल्कर, रानोजी सिन्धिया व उदय पवार आदि लोगों ने मालवा की देखरेख में तीसरी बार आक्रमण किया और उसके बाद इस भू-भाग पर मराठों के निरंतर आक्रमण होते रहे।

    1737 ई. में पेशवा बाजीराव से एक संधि करनी पड़ी, जो दुरई सराय की संधि के नाम से प्रसिद्ध थी। Dynasties of Madhya Pradesh

    होल्कर वंश :-

    होल्कर वंश भारत में इन्दौर के मराठा शासक रहे हैं। इन्हें मूलरूप से एक चरवाहा जाति या कृषक वंश के रूप में जाना जाता था, जो मथुरा ज़िले से आकर दक्कन के गाँव ‘होल’ या ‘हल’ में बस गये थे। इसी गाँव के निवासी होने के कारण इनका पारिवारिक नाम ‘होल्कर’ हो गया। इस राजवंश के संस्थापक मल्हारराव होल्कर अपनी योग्यता के बलबूते पर किसान मूल से ऊपर उठे थे। मल्हारराव की मृत्यु के पश्चात् उनकी पुत्रवधु अहिल्याबाई होल्कर ने राजपाट अपने हाथों में ले लिया और बड़ी ही कुशलता के साथ उसका संचालन किया।

    अहिल्याबाई :-

    1724 ई. में मराठा राज्य के पेशवा (प्रधानमंत्री) बाजीराव प्रथम ने मल्हारराव होल्कर को 500 घुड़सवार सैनिकों की कमान सौंपी और जल्दी ही वह मालवा में पेशवा के प्रधान सेनापति बन गये, जिसका मुख्यालय ‘महेश्वर’ व ‘इन्दौर’ में था। 1766 ई. में मृत्यु होने तक मल्हारराव मालवा के वास्तविक शासक थे। 1767 से 1794 ई. तक उनके पुत्र खाण्डेराव की विधवा अहिल्याबाई होल्कर ने बहुत कुशलता और योग्यतापूर्वक राज्य का शासन चलाया। हिंसा के सागर में इन्दौर समृद्धि तथा शान्ति का सागर था और अहिल्याबाई के शासन, न्याय व बुद्धि के लिए विख्यात था। उन्होंने अपने दूर के सम्बन्धी तुकोजी होल्कर को अपना सेनापति नियुक्त किया था, जो दो वर्ष बाद अहिल्याबाई होल्करअहिल्याबाई की मृत्यु होने पर उनके उत्तराधिकारी बने। 1797 ई. में तुकोजी होल्कर के नाजायज़ बेटे जसवन्तराव ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया।Dynasties of Madhya Pradesh

    अंग्रेज़ों की अधीनता :-

    1803 में दूसरा मराठा युद्ध छिड़ने पर जसवन्तराव तटस्थ रहे, लेकिन 1804 ई. में सिंधिया (मराठा महासंघ की एक रियासत) की पराजय के बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना पर हमला किया और दिल्ली को घेर लिया। लेकिन नवम्बर, 1804 ई. में डीग और फ़र्रुख़ाबाद में उनकी सेनाएँ हार गईं और एक वर्ष बाद उन्होंने अंग्रेज़ों समझौता कर लिया। इसके बाद वह विक्षिप्त हो गये और 1811 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। विवादों और पदत्यागों से जूझते ‘होल्कर वंश’ का शासन 1947 ई. में देश के आज़ाद होने और राज्य के अलग अस्तित्व की समाप्ति तक चलता रहा।

    सिंधिया वंश :-

    इस वंश की स्थापना रणोजी सिंधिया ने की थी, जिन्हें 1726 ई. में पेशवा (मराठा राज्य के प्रमुख मंत्री) द्वारा मालवा का प्रभारी बनाया गया था। 1750 ई. में मृत्यु होने से पहले रणोजी सिंधिया ने उज्जैन में अपनी राजधानी स्थापित कर ली थी। बाद में सिंधिया राजधानी को ग्वालियर के पहाड़ी दुर्ग में ले आये।

        महादजी सिंधिया

    रणोजी के उत्तराधिकारियों में महादजी सिंधिया (शासन काल, 1761-1794 ई.) सम्भवत: सबसे महान् उत्तराधिकारी थे। महादजी सिंधिया ने पेशवा से अलग उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था।

       

    ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ हुए युद्ध (1775-1782 ई.) में वह पश्चिमोत्तर भारत के मान्यता प्राप्त शासक के रूप में उभरे।

        फ़्राँसीसी अधिकारियों की सहायता से उन्होंने राजपूतों को हराया और मुग़ल बादशाह शाहआलम को अपने संरक्षण ले लिया।

        सन 1791 के अंत तक महादजी सिंधिया ने राजपूतों को भी पराजित कर दिया। नर्मदा से सतलुज तक का पूरा उत्तरी भारत उनके आधिपत्य में था। अपनी सफलता के चरमोत्कर्ष में, 12 वर्षों बाद, वह महाराष्ट्र लौटे थे।

        दो वर्ष पूना में रहकर (1792-1794) महादजी सिंधिया ने महाराष्ट्र संघ को पुन: संगठित करने का सतत, किंतु विफल प्रयत्न किया।

        जून, 1793 में लाखेरी में तुकोजी होल्कर की पूर्ण पराजय महादजी की अंतिम विजय थी, यद्यपि पारस्परिक विभेद से दु:खी महादजी ने इसे ‘विजय दिवस’ संबोधित करने की अपेक्षा ‘शोक दिवस’ ही की संज्ञा दी। 12 फ़रवरी, 1794 को उनकी मृत्यु हुई।

     अंग्रेज़ों से टकराव

       इस बीच उनके चचेरे पोते दौलत राम को गम्भीर पराजय का सामना करना पड़ा, जब 1803 ई. में उनका अंग्रेज़ों से टकराव हुआ। चार लड़ाइयों में जनरल ग्रेरार्ड द्वारा हराए जाने पर उन्हें फ़्राँसीसियों से प्रशिक्षित अपनी सेना को तोड़ना पड़ा और एक सन्धि पर हस्ताक्षर करना पड़ा। उन्होंने दिल्ली का नियंत्रण छोड़ दिया, लेकिन 1817 ई. तक राजपूताना को अपने पास रखा।

        1818 ई. में सिंधिया अंग्रेज़ों के अधीन हो गये और 1947 ई. तक एक रजवाड़े के रूप में बने रहे।

    Dynasties of Madhya Pradesh

    The history of Madhya Pradesh is as old as the history of ancient India. Narmada river, Betwa river, Chambal river and other river valleys of Madhya Pradesh give proof of this. Many rulers have ruled this historical land of Madhya Pradesh since ancient times and have left an indelible mark in the history of Madhya Pradesh, we are going to read about those dynasties in detail.

    stone age :-

     With the rise of man on earth, man first started using stones to meet his daily needs, this period of human civilization is known as stone age. The period of the Stone Age is considered from infinity to 10000 BC.

    On the basis of the use and availability of stones of different sizes and their tools, the Stone Age has been divided into the following parts.

    1. Palaeolithic

    2. Mesolithic period

    3. Neolithic Age

    Paleolithic Period in Madhya Pradesh :-

    Most of the stone age sites and tools have been obtained from the Narmada valley itself. Here handmade and natural objects were used as tools or weapons.

    The main tools of this period included the handleless axe, the handle ax (Hastkuthar), scraper and fist etc. These axes have been found in Deori, Sukchai Nala Budhana, Ken Valley, Barkhas, and Damoh districts in the north of the Narmada valley.

    During this period, a human skull was found from the banks of river Narmada in Sehore district of Madhya Pradesh, which has been named Narmada Manav. December 5, 1982 Geologist Arun Sonkia discovered the world’s largest fossil on the banks of the Narmada in Hathnora village of Sehore district Budni.

    Stone carpet tools have been found at a place called Bhutra in Narsinghpur district.

    860 tools have been found from Mahadev Pipariya

    mesolithic period :-

       Evidence of Middle Stone Age was found in Son Valley, apart from this tools were found from Mandsaur, Nahargarh, Indore, Bhimbetka, Sehore, B. B. Mishra found blade components from Bhimbetka, RB Joshi found 25 thousand tools from Hoshangabad

    neolithic period :-

     around 5000 BC

     The tools of this period are found in Jatkara, Jabalpur, Damoh, Sagar, Hoshangabad, semi-circular and trapezoid Neolithic tools have been found in the rock shelter near Bairagarh, Bhopal.

    Chalcolithic period :-

    Copper carpet tools have been found in Nagda, Awara, Navdatoli, Besnagar of Malwa region of Madhya Pradesh, evidence of Taurus has been found in Malwa idols.

    Historical Period (Iron Age) :-

    In Madhya Pradesh, Iron Age tools have been found from Malwa, Bhind, Morena, in which remains of gray painted pottery have been found.

    Vedic Civilization :-

    Details related to Madhya Pradesh are found in later Vedic Civilization, Brahmin texts and Aranyakas. Kaushitaki Upanishad indirectly mentions Vindhya mountain. Revottaram is mentioned in Shatpath Brahmin and later Vedic literature, which historian Weber considers to be Reva (Narmada) river.

        A group of Yadavas had settled in the Narmada valley under the leadership of Maharishi Agastya and it was from here that the arrival of Aryans started in this region. In the later Vedic period, some non-Aryans, especially the people of the Nishad caste, are mentioned in the Aitareya Brahmin, who used to live in the dense forests of Madhya Pradesh.

    Mahakavya period :-

    Ancient Madhya Pradesh in the Ramayana period. Under this there were dense forests of Dandakaranya and Mahakantar. Yaduvanshi Naresh Madhu was the ruler of this region. Who was contemporary of King Dasaratha of Ayodhya. Rama spent some time of his exile in Dandakaranya (now in Chhattisgarh). Shutraghati, the son of Shutradhna, ruled Dasharna (present-day Vidisha), whose capital was Kushawati. It is described in Puranas that people of Nishad caste used to reside in the forests of Vindhya Pradesh and Satpura, who had a good relation with Aryans.

    The kings of this region also had a good contribution in the war of Mahabharata. In this war, the kings of Vatsa, Kashi, Chedi, Dasharna and Matsya Janapadas sided with the Pandavas, whereas Mahishmati’s Neel, Avanti’s Bind, Bhoja, Andhak, Vidarbha and Nishad’s kings fought on the side of the Kauravas.

    The Pandavas had spent some time of their exile in the forests here as well. Kuntalpur (Kaundiya), Viratpuri (Sohagpur), Mahishmati (Maheshwar) and Ujjayini (Ujjain) were the major cities of the epic period.

    Mahajanapada period

    old name   –    new name

    Avanti    –      Ujjain

    Vats         –   Gwalior

    Chedi       –  Khajuraho

    Anoop –       Nimad (Khandwa/Khargone)

    Darshan     –  Vidisha

    Tundiker   –  Damoh

    Nalpur    –  Narwar (Shivpuri)

    600 BC when there were Mahajanapadas then there were 2 Mahajanapadas Chedi and Avanti from the state of Madhya Pradesh

    Avanti Mahajanapada :-

    The Avanti Mahajanapada had two parts, Northern Avanti and Southern Avanti. The capital of Northern Avanti was Ujjayini (Ujjain) and the capital of Southern Avanti was Mahishmati (Maheshwar).

    Vidisha, Gonad (modern Duraha), Ujjain and Mahishmati are mentioned in the writings of Jivaka (Rajveda of Bimbisara).

         According to Buddhist and Jain texts, two other famous cities of Avanti were Kurarghar and Sudarshanpur. Avanti was also a famous center of Buddhism. Its Buddhist name was Achyutgami or Achyutgamini.

    Chedi Mahajanapada :-

    The expansion of the Chedi kingdom was between the Sone and Narmada valleys. The later Chedi kingdom was ruled by the Kalachuri dynasty, which extended as far north as Kalinjar, the capital of the Mahabharata-era Chedi kingdom was Shuktimati or Shuktisahvaya, which is called Sotthivati ​​in the Jataka tales. The ruler here was Shishupala who was killed by Shri Krishna.

    Maurya period(322 BC -185 BC) :-

    During the reign of Bindusara, Ashoka was the ruler of Avanti for 11 years. Ashoka had married Mahadevi, the daughter of Seth of Vidisha, while he was the governor. He made Ujjayini his capital. The Gurjara (Datia) and Rupnath short inscriptions of Madhya Pradesh give information about Ashoka’s rule. Ashoka’s name Ashoka, Devnapriya Priyadarshina are mentioned in the Gurjara short inscription.

    mauryan monument :-

    Stupa of Sanchi :-

    In 1818 AD General Taylor had discovered the Sanchi Stupa. Sanchi is situated in the Raisen district of Madhya Pradesh. Its old name was Kaknam. Emperor Ashoka in the 3rd century BC. The Buddhist Stupa of Sanchi was built in AD, which was originally made of bricks. The present structure of the Stupa at Sanchi was built during the Shunga period.

    Stupa of Tumain :-

     Three Mauryan Buddhist Stupas have been found from this place located in Guna district.

    Buddhist Mahastupa of Ujjain :-

    A Buddhist Stupa was built by Emperor Ashoka for his wife Kumara Devi in ​​Ujjain, the remains of which exist in the form of a mound named Vaishya Tekri (Kanipura). Dynasties of Madhya Pradesh

    Stupas of Kasrawad :-

    11 Mauryan Stupas have been found from the excavation of a mound named Itabardi located from this place in Khargone district.

    Stupas of Deorkothar :-

    Mauryan Buddhist stupas have been found from this place located in Rewa district.

    Pangudaria’s Stupa: –

    From this place located in Sehore district, a stupa with Maurya’s Pradakshinapath has also been found.

    Shunga dynasty (185–72 BC) :-

        Pushyamitra killed the last Maurya emperor Brihadratha in 185 BC and established the Shunga dynasty. Malavikagnimitram, a play composed by the great poet Kalidasa (India’s Shakespeare), reveals that Agnimitra, the son of Pushyamitra Suga, was the governor of Vidisha. The descendants of Shunga dynasty belonged to Ujjain. Vidisha was the second capital of the rulers of the Sunga dynasty.

    Heliodorus, the ambassador of the Greek king Antiochus, came to Vidisha during the reign of Bhagvat (Kashiputra Bhag Bhadra), the eighth ruler of the Sunga dynasty. He adopted Bhagwat religion and he got the famous Garuda Stambha built in Besnagar (Vidisha) dedicated to Lord Vishnu. Dynasties of Madhya Pradesh

    The Sunga rulers made the Stupa of Sanchi paved with stones and got the Stupa’s altar and Torana gate constructed.

    The Stupa of Bharhut was built during this period.

    Satavahana dynasty :-

    Founding Ruler– Simuk

    The Satavahana dynasty is mainly related to South India, but the greatest ruler of this dynasty, Gautamiputra Satakarni, is also mentioned in the inscription of the southern pylon (gateway) of the Sanchi Stupa. Dynasties of Madhya Pradesh

       Among the Satavahana rulers, coins named for King Sirisat have been found at Ujjain, Dewas, Hoshangabad (Jamuniya), Jabalpur (Tevar, Bhedaghat, Tripuri) and coins of Vashishthi’s son Pulumavi (130 AD to 154 AD) have been obtained from Bhelsa and Dewas.

    Coins of the last Satavahana ruler Yajnashri Shatkarni (165 AD to 193 AD) have been obtained from Besnagar, Tevar and Dewas. Lead coins issued by the rulers of the Satavahana dynasty have been found from Tripuri.

    Kushan dynasty :-

    The Kushan dynasty was founded by Kujul Kadphises. The Kushans originally came from China. Dynasties of Madhya Pradesh

        The most glorious king of this dynasty was Kanishka. Their capital was Purushpur or Peshawar. The second capital of the Kushans was Mathura.

        Kanishka started a Samvat in 78 AD (at the time of Ascension), which is called Saka-Samvat, which is used by the Government of India. The mention of Kanishka is found in the areas of Malwa, he had captured these areas by defeating the Shakas.

    Naga dynasty :-

    After the Kushanas, the rulers of the Naga dynasty ruled the regions of Madhya Pradesh. The capital of this dynasty was Padmavati (Gwalior).

    Gupta Dynasty (280 -550 AD) :-

    Founder – Shri Gupta

    Capital – Patliputra (Patna)

    Actual founder – Chandragupta I – title Maharajadhiraja, beginning of the Gupta era (319-320 AD) Dynasties of Madhya Pradesh

    Inscriptions of the Gupta period

    Mandsaur Inscription :-

    Mandsaur (Dashpur) inscription of the reign of Gupta Emperor Kumargupta II was found which is located in western Malwa. He had built a Sun Temple in Dashpur. This inscription was engraved in the literary Sanskrit language, which has an impact on the then social, religious and cultural condition. Information about the category of silk weavers is obtained from this inscription.

    Udayagiri Inscription :-

    In this inscription located in Vidisha district of Madhya Pradesh, it is mentioned that a person named Shankar installed the idol of Parshvanath at this place. A tableau of the Varaha avatar of Lord Vishnu can be seen in the cave of Udayagiri. Dynasties of Madhya Pradesh

    Sanchi Inscription: –

    In this inscription received from Sanchi, the donation of money by Hariswamini to the Arya Sangh located in Kaknad has been mentioned.

    Tumain Inscription: –

    In this inscription located in Guna district, Raja Kumar Gupta has been described as the autumn sun.

    Airan inscription: –

    This inscription is located in Sagar district, its name was Swabhog Nagar. Eran inscription shows the presence of Hunas. The first evidence of Sati System is found from this record. This inscription was made by Bhanugupta.

    The cave of Bagh was built in the Gupta period, which was made by cutting Vindhya Parvat at a place called Bagh near Dhar district. Dynasties of Madhya Pradesh

        The most famous poet of Sanskrit language during the reign of Chandragupta II was Kalidasa.

        Dhanwantari was an Ayurvedacharya living in the court of Chandragupta II.

    The Panch Tantra (Sanskrit) written by Vishnu Sharma in the Gupta period is considered to be the most prevalent book in the world.

        Due to cultural achievements, the Gupta period is called the golden age of Indian history. Dynasties of Madhya Pradesh

    Parmar dynasty :-

    The Parmar dynasty was founded by Upendraraj. Its capital was Dhara Nagari (present day Dhar).

    Vakpati Munj (973-998 AD) :-

    After Siyak II abdicated the kingdom, his son Vakpati Munj became the ruler. Munj was a great warrior, scholar and capable administrator. During his time the golden age started in Malwa. He got the Munj Sagar lake constructed in Dhar. Beautiful temples were also built by Munj in Maheshwar, Ujjain, Omkareshwar and Dharampuri. Dynasties of Madhya Pradesh

    Scholars like Padmagupta, the author of Navasahasankacharita, Dhananjay, Dhanika, Halayudh and Amit Gati, the author of Dasharupaka, lived in the court of Vakyapati Munj.

    Raja Bhoj: –

    The most powerful ruler of Parmar dynasty was Raja Bhoj. Raja Bhoj got a lake named Bhojtal built in the south of Bhopal. Raja Bhoj wrote many books on medicine, mathematics and grammar. Bhojkrit Yuktikalpataru mentions various scientific instruments and their uses along with Vaastu Shastra.

    Raja Bhoj assumed the title of Kaviraj. Raja Bhoj had built a Saraswati temple in his capital city of Dhara (Dhar). Sanskrit school was also opened in the huge premises of this temple. During the reign of Raja Bhoj, the city of Dhara (Dhar) was a major center of learning and scholars.

    Raja Bhoj got the Tribhuvan Narayan Temple constructed in Chittor. Raja Bhoj had established the city of Bhojpur. Ayurveda Sarvasva and Samarangana Sutra Dhar etc. were composed. Dynasties of Madhya Pradesh

    Chandela dynasty of Jejakabhukti :-

    This dynasty was founded by Nannuk in 831 AD. The ancient name of present Budelkhand is Jejakbhukti. After the fall of the Pratihara kingdom, the independent political history of the Chandella dynasty began on the land of Bundelkhand. Their capital was Khajuraho. Initially its capital was Nannuk Kalinjar (Mahoba). Dynasties of Madhya Pradesh

    Yashovarman :-

    The first independent and most majestic king of Chadel dynasty was Yashovarman. Yashovarman invaded Kannauj and defeated the Pratihara king Dev Pal and obtained a Vishnu statue from him, which he installed in the Vishnu temple at Khajuraho.

    Raja Dhang Dev :-  

    Raja Dhang had shifted his capital from Kalinjar to Khajuraho, besides this, Dhang attacked Gwalior and took it under his control.

     King Dhang Dev got the construction of Jinnath, Vishwanath and Vaidyanath and the famous Kandariya Mahadev temple in Khajuraho (Chhatarpur) in 999 AD.

    Gand :-

    Dhang’s son Gand had built Jagdamba and Chitra Gupta temples in Khajuraho (Chhatarpur) (1008 AD).

    Parmardidev :-

    The last eligible Chandela ruler was Parmardidev. Whose brave commanders Alha and Udal fought with great bravery in the war with Prithviraj Chauhan. Dynasties of Madhya Pradesh

    Delhi Sultanate (1206 to 1526 AD) :-

        The attacks of Muslim invaders had started in Madhya Pradesh in the 10th century itself. Mahmud Ghazwani :- In 1019, Mahmud Ghazwani invaded the Gwalior territory.

    Qutbuddin Aibak :-

    The victory of Bundelkhand was included in the important victories of Aibak, the initial ruler of the Delhi Sultanate. Dynasties of Madhya Pradesh

    Iltutmish:-

    After the death of Qutbuddin Aibak, the Pratihara rulers took control over Gwalior, Chandelas over Kalinjar and Ajaygarh. Iltutmish conquered the Gwalior fort by attacking it in 1231 AD.

    Kalinjar and its surrounding areas were conquered in 1233-34 AD.

    Malwa was attacked by Iltutmish in 1234-35, in which he looted a lot of money from Bhailsa and Ujjain.

    Alauddin Khilji: –  

    In 1305 AD, Alauddin Khilji sent Multan’s Subedar Ain-ul-Mulk to attack Malwa. Who killed King Mahalakdev and his son in the war and took possession of this area. After this he also won Ujjain, Dharanagari and Chanderi etc. It was from here that Malwa entered the Delhi Sultanate for the first time.

    Hussain Shah: –

    After the death of Dilawar Khan in 1401 AD, Hussain Shah became the ruler here, who was imprisoned as a result of the attack on Malwa by Muzaffar Shah, the ruler of Gujarat, but after the rebellion in Malwa, Muzaffar Shah sent Hussain Shah, who Reclaimed his authority. After this he made Mandu his capital. The credit for settling Mandu Nagar is also to him. During the reign of Mahmudshah II, the ruler of this dynasty, Bahadur Shah, the ruler of Gujarat, attacked Malwa in 1531 and conquered it. Dynasties of Madhya Pradesh

    Mughal period (1526 to 1857 AD) :-

    Babur: –

    In 1526 AD, Babur defeated Ibrahim Lodi, the last ruler of the Delhi Sultanate, and laid the foundation of the Mughal Empire in India.

    On January 29, 1528 AD, Babar established his authority over Chanderi by killing Medini Rai, the Subedar of Malwa in the war.

    Humayun :-

    After the death of Babur, Humayun became the Mughal emperor, in whose time entire Malwa was conquered and merged into the Mughal Empire.

    Sher Shah Suri :-

    In the battle of Bilgram of Kannauj (1540 AD), Sher Shah defeated the Mughal Emperor Humayun and captured Mandu, Ujjain, Sarangpur etc. areas of this state. Sher Shah attacked the Kalinjar fort of Budelkhand in 1545 AD, in which he died due to gunpowder explosion. This fort was under the control of Kirat Singh at that time. This war by Shershah was just an excuse for not handing over King Virbhan Baghela of Rewa to him by Kirat Singh. Before the death of Sher Shah, the Afghans had conquered this fort. Dynasties of Madhya Pradesh

    Akbar :-

    Mughal emperor Akbar sent Asafkhan to attack Malwa in 1561 AD where he got success on Baj Bahadur.

    In the Gondwana region of this state, which was under the jurisdiction of Rani Durgavati, Akbar sent the Mughal army under the leadership of Asaf Khan for the war, in which the Mughal army won and Rani Durgavati (Gondwana) was defeated.

    He himself committed death to protect his chastity. After this the Gondwana region went to the Mughal Empire.

    Akbar in 1569 AD. I took possession of the fort of Kalinjar, at that time this fort was under Raja Ramchandra.

    Akbar himself established his authority over the fort of Asirgarh in 1601 AD.

    Jahangir: –

    In 1617 AD, the Mughal emperor Jahangir himself went to Mandu to take care of the south and Khurram reached Burhanpur, explains the importance of the state. Dynasties of Madhya Pradesh

    Aurangzeb :-

    Due to the religious policy of Aurangzeb, there were rebellions in Malwa and Bundelkhand, in which the rebellion of Bundelkhand was successful.

    Orchha’s Raja Champat Rai raised the flag of rebellion against Aurangzeb in 1661. Instead of accepting Mughal suzerainty, he thought it appropriate to commit death After this his son Chhatrasal went to the Mughal army.

    When he went south with the Mughal army for the victory campaign, he was impressed by Shivaji and offered his services to him.

    He established his authority over Dhamani and Kalinjar. Shivaji advised to go to Bundelkhand and start the war. Thus, he had to make a treaty with Aurangzeb in 1705 AD, but after Aurangzeb’s death in 1707 AD, he became an independent ruler of Bundelkhand and he gave Peshwa Bajirao a substantial part of Bundelkhand as jagir. It was from here that the entry of Marathas started in the state. Dynasties of Madhya Pradesh

    Maratha period (1707 to 1818 AD) :-

    To strengthen his power against Mughal emperor Farrukhsiyar, Hussain Ali (who was a brother of Sayyid Bandhu) made a treaty to seek help from Marathas, according to which Khandesh and Gondwana, which were won by Maratha rulers, were given to Shahu. It was about to be handed over to This situation was very important for the Maratha rulers and harmful for the Mughal rulers.

    In 1722 AD, Bajirao attacked Malwa for the first time. After this, in 1724 AD, there was a war for Chauth in this land. After this, people like Malhar Rao Holkar, Ranoji Scindia and Uday Pawar attacked for the third time under the supervision of Malwa on behalf of Peshwa and after that there were continuous attacks of Marathas on this land.

    In 1737 AD, a treaty had to be made with Peshwa Bajirao, which was famous as the treaty of Durai Sarai.

    Holkar dynasty: –

    The Holkar dynasty has been the Maratha ruler of Indore in India. They were originally known as a pastoral caste or agricultural clan, who came from Mathura district and settled in the village of ‘Hol’ or ‘Hal’ in the Deccan. Being a resident of this village, his family name became ‘Holkar’. Malharrao Holkar, the founder of this dynasty, rose above the farmer’s origin on the basis of his ability. After the death of Malharrao, his daughter-in-law Ahilyabai Holkar took over the Rajpat in her hands and operated it with great skill. Dynasties of Madhya Pradesh

    Ahilya Bai :-

    In 1724, the Peshwa (prime minister) of the Maratha kingdom, Bajirao I, gave Malharrao Holkar the command of 500 cavalry and soon he became the Peshwa’s commander-in-chief in Malwa, with his headquarters at ‘Maheshwar’ and ‘Indore’. Malharrao was the de facto ruler of Malwa till his death in 1766 AD. From 1767 to 1794 AD, Ahilyabai Holkar, the widow of his son Khanderao, ruled the state very efficiently and competently. Indore was an ocean of prosperity and peace in an ocean of violence and was famous for Ahilyabai’s rule, justice and wisdom. He appointed his distant relative Tukoji Holkar as his commander-in-chief, who succeeded Ahilyabai Holkar after Ahilyabai’s death two years later. In 1797 AD, Tukoji Holkar’s illegitimate son Jaswantrao captured the power. Dynasties of Madhya Pradesh

    Subjugation of the British :-

    Jaswantrao remained neutral when the Second Maratha War broke out in 1803, but after the defeat of Scindia (a princely state of the Maratha confederacy) in 1804 he attacked the British army and besieged Delhi. But in November, 1804, his forces were defeated at Deeg and Farrukhabad and a year later he entered into an agreement with the British. After this he became deranged and died in 1811 AD. Struggling with controversies and resignations, the rule of the ‘Holkar dynasty’ continued till the independence of the country in 1947 AD and the end of the separate existence of the state.

    Scindia dynasty: –

    The dynasty was founded by Ranoji Scindia, who was put in charge of Malwa by the Peshwa (chief minister of the Maratha kingdom) in 1726 AD. Before his death in 1750 AD, Ranoji Scindia had established his capital at Ujjain. Later Scindia moved the capital to the hill fort of Gwalior.

    Among Ranoji’s successors, Mahadji Scindia (reign, 1761-1794 AD) was probably the greatest. Mahadji Scindia had established his empire in North India apart from Peshwa.

        In the war with the British East India Company (1775-1782 AD), he emerged as the recognized ruler of North-West India.

    With the help of French officers, he defeated the Rajputs and took the Mughal emperor Shah Alam under his protection.

        By the end of 1791, Mahadji Scindia defeated the Rajputs as well. The entire northern India from Narmada to Sutlej was under his suzerainty. At the height of his success, after 12 years, he returned to Maharashtra.

        Staying in Poona for two years (1792-1794), Mahadji Scindia made continuous but unsuccessful efforts to re-organize the Maharashtra Union.

    The complete defeat of Tukoji Holkar at Lakheri in June, 1793 was the last victory of Mahadji, although saddened by mutual differences, Mahadji termed it as ‘Mourning Day’ instead of addressing it as ‘Victory Day’. He died on February 12, 1794.

        Meanwhile, his cousin Daulat Ram had to face a serious defeat when he clashed with the British in 1803 AD. Defeated by General Gerard in four battles, he was forced to disband his French-trained army and sign a treaty. He gave up control of Delhi, but retained Rajputana till 1817 AD.

        In 1818 AD, Scindia became under the British and remained as a princely state till 1947 AD. Dynasties of Madhya Pradesh


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