मौलिक अधिकार कर्तव्य नीति निर्देशक तत्व

मौलिक अधिकार कर्तव्य नीति निर्देशक तत्व

मौलिक अधिकार कर्तव्य नीति निर्देशक तत्व

मौलिक अधिकार

  • संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक मौलिक अधिकारो का वर्णन किया गया है ।
  • मौलिक अधिकारो का प्रावधान संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया है
  • मौलिक अधिकारों से तात्पर्य वे अधिकार जो व्यक्तियों के सर्वागिण विकास के लिए आवश्यक होते है इन्हें राज्य या समाज द्वारा प्रदान किया जाता है।तथा इनके संरक्षण कि व्यवस्था की जाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को वैश्विक मानवाधिकारो की घोषणा की गई इसलिए प्रत्येक 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
  • मौलिक अधिकार वादयोग्य है ।

भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकारों का वर्णन दिया गया था –

  1. समानता का अधिकार – अनुच्छेद 14 से 18 तक
  2. स्वतंन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19 से 22 तक
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 व 24
  4. धार्मिक स्वतंन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28 तक
  5. शिक्षा एवम् संस्कृति का अधिकार – अनुच्छेद 29 और 30
  6. सम्पति का अधिकार – अनुच्छेद 31
  7. सवैधानिक उपचारो का अधिकार – अनुच्छेद 32

प्रमुख अनुच्छेद और उनके प्रावधान :-

अनुच्छेद – 12 :- राज्य की परिभाषा

अनुच्छेद – 13 :- राज्य मौलिक अधिकारों का न्युन(अतिक्रमण) करने विधियों को नहीं बनाऐंगा।

  • 44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा “सम्पति के मौलिक अधिकार” को इस श्रेणी से हटाकर “सामान्य विधिक अधिकार” बनाकर ‘अनुच्छेद 300(क)’ में जोड़ा गया है।
  • वर्तमान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है।

समानता का अधिकार- अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18

अनुच्छेद – 14 :-विधी कके समक्ष समानता ब्रिटेन से तथा विधि का समान सरंक्षण अमेरिका से लिया

अनुच्छेद – 15 :- राज्य जाती धर्म लिंग वर्ण, आयु और निवास स्थान के समक्ष भेदभाव नहीं करेगा।

राज्य सर्वाजनिक स्थलों पर प्रवेश से पाबन्दियां नहीं लगायेगा।

article 15(3) :- इसके अन्तर्गत राज्य महीलाओं और बालकों को विशेष सुविधा उपलब्ध करवा सकता है।

अनुच्छेद – 16 :- लोक नियोजन में अवसर की समानता(सरकारी नौकरीयों में आरक्षण का प्रावधान)

article 16(1) :- राज्य जाती, धर्म, लिंग वर्ण और आयु और निवास स्थान के आधार पर नौकरी प्रदान करने में भेदभाव नहीं करेगा लेकिन राज्य किसी प्रान्त के निवासियो को छोटी नौकरीयों में कानुन बनाकर संरक्षण प्रदान कर सकता है।

अनुच्छेद 16(4) :- इसके अन्तर्गत राज्य पिछडे वर्ग के नागरिको को विशेष संरक्षण प्रदान कर सकता है।

इसमें भुमिपुत्र का सिद्धान्त दिया गया है।

अनुच्छेद – 17 :- अस्पृश्यता/छुआ छुत का अन्त – भारतीय संसद ने अस्पृश्यता निशेध अधिनियम 1955 बनाकर इसे दण्डनिय अपराध घाषित किया है।

अनुच्छेद – 18 :- उपाधियों का अन्त किया गया है राज्य सैन्य और शैक्षिक क्षेत्र के अलावा उपाधि प्रदान नहीं करेगा(वर्तमान में समाज सेवा केा जोड़ा गया) । उपाधि ग्रहण करने से पुर्व देश के नागरिक तथा विदेशी व्यक्तियों को राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है।

स्वतन्त्रता का अधिकर- अनुच्छेद 19 से 22 तक

अनुच्छेद – 19 :- इस अनुच्छेद में सात प्रकार की स्वतंन्त्रता दी गई थी 44 वें संविधान संशोधन 1978(सम्पति अर्जित की स्वतन्त्रता हटा दिया)

अनुच्छेद 19(1)(क) – भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता

– प्रैस और मिडिया की स्वतंन्त्रता

– सुचना प्राप्त करने का अधिकार – 12 अक्टूबर 2005 से जोड़ा।

अनुच्छेद 19(1)(ख) – शान्ति पूर्वक बिना अस्त्र-शस्त्र के सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता।

अपवाद – सिखों को कटार धारण करने का अधिकार।

अनुच्छेद 19(1)(ग) – संघ या संगम बनाने की स्वतंन्त्रता।

अपवाद – सैन्य संगठन और पुलिस बल संघ नहीं बना सकते है।

article 19(1)(घ) – बिना बाधा के घुमने – फिरने की स्वतंन्त्रता ।

अनुच्छेद 19(1)(ड़) – व्यापार या आजिविका कमाने की स्वतन्त्रता।

article 19(1)(च) – सम्पति अर्जन की स्वतन्त्रता(हटा दिया)

अनुच्छेद 19(1)(छ) – स्थायी रूप से निवास करने की स्वतन्त्रता।

अपवाद – जम्मू – कश्मीर।

article – 20 :-

अपराधों के दोषसिद्ध के सम्बन्ध में सरंक्षण प्राप्त करने का अधिकार।

अनुच्छेद 20(1) :- किसी व्यक्ति को तब तक अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है जब तक लागु कानुन का उल्लगन न किया हो।

article 20(2) :- किसी व्यक्ति के लिए एक अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता है।

अनुच्छेद 20(3) :- किसी व्यक्ति को स्वंय के विरूद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।

article 20 और 21 आपातकाल में निलम्बित नहीं किया जाता।

अनुच्छेद – 21 :-

प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार।

article 21(क) :- 86 वां संविधान संशोधन 2002, 6-14 वर्ष के बालकों को निशुल्क् अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, 1 अप्रैल 2010 से सम्पुर्ण भारत में लागु।

अनुच्छेद – 22 :- कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार, इसमें निवारक ,निरोधक विधि भी शामिल है।

article 22(1) :- गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उसके कारण बताने होंगे।

अनुच्छेद 22(2) :- उसे वकील से परामर्श प्राप्त करने का अधिकार।

अनुच्छेद 22(3) :-  24 घंटे में सबंधित न्यायलय में पेश करना होगा – यात्रा व अवकाश का समय शामिल नहीं।

निवारक निरोध विधि के अन्तर्गत – शत्रु देश के नागरिक को गिरफ्तार किया जाता है या ऐसी आशंका ग्रस्त व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जाता है इन्हें उपर के सामान्य (22(1),(2),(3)) अधिकार प्राप्त नहीं है।

शोषण के विरूद्ध अधिकार-अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24

अनुच्छेद – 23 :- इसमें मानव का अवैध व्यापार, दास प्रथा, तथा बेगार प्रथा को पूर्णतय प्रतिबन्धित किया गया है। अपवाद – राज्य किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अनिवार्य श्रम लागू कर सकता है।

अनुच्छेद – 24 :- 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को उद्योग धन्धों में काम पर नहीं लगाया जाता है। अर्थात् बाल श्रम प्रतिबन्धित किया गया है।

वर्तमान में ऐसी आयु के बालको को घरेलु कार्यो में भी नहीं लगाया जा सकता है।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28

अनुच्छेद – 25 :- अन्तकरण के आधार पर धर्म को मानने की स्वतन्त्रता ।

article – 26 :- माने गये धर्म के प्रबंधन करने की स्वतन्त्रता(प्रबन्धन- चल और अचल सम्पति का)।

article – 27 :- राज्य किसी धर्म की अभिवृदि पर धार्मिक आधार पर कोई कर नहीं लगायेगा।

अनुच्छेद – 28 :- सरकारी वित्त पोषित विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा नहीं दि जा सकती है। लकिन किसी विन्यास(ट्रस्ट) द्वारा स्थापित विद्यालय में कुछ प्रावधानों के अन्तर्गत धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है। लेकिन इसमें सभी को बाध्य नहीं किया जा सकता है।

शिक्षा और संस्कृति का अधिकार-अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30

यह अधिकार अल्पसंख्यक वर्गो को प्राप्त है।

अनुच्छेद – 29 :- राज्य के अन्तर्गत रहने वाला प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा, लिपी और संस्कृति को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार है।

अनुच्छेद – 30 :- भाषा,लिपी और संस्कृति की सुरक्षा हेतु सभी अल्पसंख्यक वर्गो को अपनी पसन्द की शिक्षण संस्थान की स्थापना करने का अधिकार है ऐसी संस्थाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जायेगा।

संवैधनिक उपचारों का अधिकार-अनुच्छेद – 32

डॉ . अम्बेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा है।

मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु 5 प्रकार कि रिटे जारी करता है ताकि मौलिक अधिकारों को उचित संरक्षण प्रदान किया जा सके।

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण – बंदी प्रत्यक्षीकरण
  2. परमादेश – मैण्डमस
  3. प्रतिषेध – प्रोहिविजन
  4. उत्प्रेषण – सैरिसिरियो
  5. अधिकार पृच्छा – क्यू वारेन्टो

    इन रिटो को न्याय का झरना कहा जाता है।

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण – यह नागरिक अधिकारों की सर्वोत्तम रिट है। बंदी बनाये गये व्यक्ति को 24 घण्टे में न्यायलय बंदी बनाये गये कारणों की समीक्षा करता है।
  2. परमादेश – किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा गलत आदेश दिया जाता है तो इसके कारणों की समीक्षा न्यायलय करता है।
  3. प्रतिषेध – मना करना – सर्वोच्च न्यायलय अपने अधिनस्थ न्यायलय को सीमा से बाहर जाकर कार्य करने को मना करता है।
  4. उत्प्रेषण – ओर अधिक सुचित करना- सर्वोच्च न्यायलय अपने अधिनस्थ न्यायलय से और अधिक सुचना मांगता है।
  5. अधिकार पृच्छा – किसी अधिकार से किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा जब कोई पद वैद्य या अवैद्य तरीके से प्राप्त किया जाता है तो उसके कारणों की समीक्षा करता है।

रिट 3 और रिट 4 न्यायलय से न्यायलय में परिवर्तीत कि जाती है।

मौलिक कर्तव्य

  • भारत के मूल संविधान में मौलिक कर्तव्य शामिल नही थे ।
  • मौलिक कर्तव्य को संविधान के भाग 4(क)अनुच्छेद 51(क) में 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर जोड़े गये। इनके संख्या 10 रखी गई। परंतु वर्तमान में इनकी संख्या 11 है।
  • 11 वां मौलिक कर्तव्य- 86 वें संविधान संशोधन 2002 से जोड़ा गया। प्रत्येक माता – पिता/ संरक्षक/अभिभावक को अपने 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को शिक्षा दिलाने का कर्तव्य निर्धारित किया गया है।

प्रमुख मौलिक कर्तव्य :-

भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ।
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करे ।
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे ।
  4. देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे ।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुंद्ध है ।
  6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे ।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे ।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे ।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे ।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले ।
  11. यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे ।

नीति निर्देशक तत्व :-

  • भारतीय संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्व को अनुच्छेद 36 से 51 तक में इनके संबंध में प्रावधान है ।
  • नीति निर्देशक तत्वों को आयरलैण्ड से लिये गए है ।
  • नीति निर्देशक तत्व अवादयोग्य है।
  • राज्य अपने विवेकानुसार इन्हे लागू कर सकता है ।

अनुच्छेद – 36 :-  राज्य की परिभाषा का वर्णन किया गया है।

अनुच्छेद – 37 :- नीति निर्देशका तत्व के हनन होने पर न्यायलय की शरण संभव नहीं है।

article – 38 :- लोक कल्याणकारी राज्य तथा उसकी नीतियों का वर्णन किया गया है।

अनुच्छेद – 39 :- राज्य भौतिक और अभौतिक साधनों के सकेन्द्रण को रोकेगा। राज्य महिलाओं व बालकों और पुरूषों की सभी अवस्था ध्यान रखेगा।

समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था रखी गई है।

अनुच्छेद – 39(क) :- निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार ।

article – 40 :- राज्य ग्राम पंचायतों को बढावा देकर उन्हे शक्तियां प्रदान करेगा।

अनुच्छेद – 41 :-

राज्य आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछडे वर्गो का विशेष ध्यान रखेगा।

article – 42 :- कार्य की न्यायोजित(उचित) दशाऐं बनाऐगा तथा महिलाओं को निःशुल्क प्रसुति सहायता उपलब्ध करायेगा।

अनुच्छेद – 43 :- उद्योगों के प्रबन्धन में मजदुरों या श्रमिकों के भाग लेने का अधिकार ।

article – 43(क) :- सहकारी समितियों की स्थापना 97 वां संविधान संशोधन, 2011

अनुच्छेद – 44 :- राज्य समान नागरिक संहिता को लागु करने का प्रयास करेगा।

article – 45 :- राज्य 6 से 14 वर्ष के बालको को निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था करेगा। 86 वां संविधान संशोधन, 2002

अनुच्छेद – 46 :-

राज्य एस. टी. और एस. सी. तथा दुर्बल वर्गो के हितों का ध्यान रखेगा।

article – 48 :- राज्य कृषि और पशुपाल को वैज्ञानिक तरीके से बढावा देगा।

अनुच्छेद – 48(क) :- राज्य पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन का प्रयास करेगा।

article – 50 :- राज्य कार्यपालिका और न्यायपालिका का पृथक्करण करेगा।

अनुच्छेद – 51 :- भारत की विदेश नीति का वर्णन जो शान्ति पुर्ण सहअस्तित्व तथा अन्तराष्ट्रीय पंच निर्णयों पर आधारित है।


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