संघीय कार्यपालिका – राष्ट्रपति
- अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
- अनुच्छेद 53 में कहा गया है कि संघ की सभी कार्यपालिका संबंधी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी।
- इस प्रकार भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
- भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है।
- अतःराष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है।
- तथा प्रधानमंत्री और उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।
- भारत का राष्ट्रपति, भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है।
- भारत के राष्ट्रपति पद पर कोई भी भारत का नागरिक, निर्धारित योग्यताएं पूरी करता है, पदासीन हो सकता है।
- भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम 35 वर्ष की होनी चाहिए।
- राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यताएं रखता हो।
- राष्ट्रपति किसी भी सदन (व्यवस्थापिका या संसद) का सदस्य नही होता है।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रुप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है।
- निर्वाचक मंडल में राज्यसभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य होते हैं।
- नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पुदुचेरी तथा दिल्ली विभानसभा के निर्वाचित सदस्यो को भी इस निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया है।
कार्यपालिका – राष्ट्रपति
- राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होंगे।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के अनुसार होता है।
- राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- वह पुनर्निर्वाचन का पात्र भी है तथा 5 वर्ष से पूर्व महाभियोग लगाकर ही उसे पद से हटाया जा सकता है।
- वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देकर स्वयं पद से हट सकता है।
- राष्ट्रपति को पद की शपथ भारत का मुख्य न्यायधीश दिलाता है, और उसकी अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम् न्यायाधीश।
- महाभियोग संसद के किसी भी सदन द्वारा लाया जा सकता है।
- यह एक सदन द्वारा लगाया जाता है तथा दूसरा सदन उसका अन्वेषण करता है।
संघीय कार्यपालिका – राष्ट्रपति
- महाभियोग संविधान के उल्लंघन के सम्बन्ध में लगाया जाता है तथा
- इसके लिए 14 दिन पूर्व लिखित सूचना देकर इस आशय का संकल्प पारित कराया जाता है।
- राष्ट्रपति को महाभियोग के अन्वेषण के समय अव्यं उपस्थित होने तथा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है।
- महाभियोग की प्रक्रिया अर्द्ध न्यायिक होती है।
- अन्य किसी कारण से, यथा-राष्ट्रपति की मृत्यु आदि से स्थायी रुप से राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है,
- तो उपराष्ट्रपति तुरंत राष्ट्रपति पद पर कार्य करना प्रारंभ कर देगा, तथा नए राष्ट्रपति द्वारा पद धारण करने पक कार्य करता रहेगा।
- यदि किसी कारणवश चुनाव में विलंब हो जाए तो पदासीन राष्ट्रपति पद पर बना रहता है
- जब तक की नया राष्ट्रपति पद ग्रहण ना कर ले, उल्लेखनीय है कि इस समय उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप में कार्य नहीँ करता।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन पद रिक्त होने की अवधि के भीतर हो जाना चाहिए।
कार्यपालिका – राष्ट्रपति
- राष्ट्रपति का बीमारी या अन्य किसी कारण से राष्ट्रपति पद पर हुई अस्थाई रिक्ति के समय उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रुप में कार्य करता है।
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह लगातार दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
- डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति रहे।
- केवल वी. वी. गिरी के निर्वाचन के समय दूसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी।
- अभी तक दूसरे चक्र की गणना से गिरी ही राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।
- श्री वी.वी. गिरी ही ऐसे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए जिन्होंने ने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव में सफलता प्राप्त की।
- केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव में पराजित हुआ तथा बाद में निर्विरोध निर्वाचित हुए।
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद, फखरुद्दीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी को छोड़कर अन्य सभी राष्ट्रपति पूर्व में उपराष्ट्रपति के पद पर रहे हैं।
राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्तियां :-
- भारत सरकार की सभी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है।
- राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका नही है, अपितु वह संवैधानिक प्रधान है।
- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया है।
- 44 वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह को केवल एक बार पुनर्विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार दिया गया है। यदि मंत्रिपरिषद अपने विचार पर टिकी रहती है, तो राष्ट्रपति उसकी सलाह मानने के लिए बाध्य होगा।
- राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियोँ की भी नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत उत्तरदायी होता है।
- इसके अलावा राष्ट्रपति, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, राज्योँ के राज्यपाल, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्योँ के संयुक्त लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग, निर्वाचन आयोग के सदस्य तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त, विभिन्न अन्य आयोग-राजभाषा आयोग, अल्पसंख्यक तथा पिछड़ा वर्ग आयोग और अनुसूचित क्षेत्रोँ के लिए आयोग आदि।
- राष्ट्रपति संघीय प्रशासन से संबंधित किसी भी प्रकार की सूचना प्रधानमंत्री से प्राप्त कर सकता है।
- इसके अलावा राष्ट्रपति प्रत्यक्ष रुप से संघीय राज्योँ का प्रशासन उप-राज्यपाल अथवा आयुक्त के माध्यम से देखता है।
राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां :-
- राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है (अनुच्छेद 79)।
- राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोकसभा का विघटन करने की शक्ति रखता है।
- राष्ट्रपति लोकसभा के प्रति एक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के प्रारंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ संसद के दोनो सदनोँ में प्रारंभिक अभिभाषण करता है।
- राष्ट्रपति को संसद में विधायी-विषयों के संबंध में संदेश भेजने का अधिकार है।
- लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पद खाली होने की स्थिति में राष्ट्रपति उस पद के लिए लोकसभा के किसी भी सदस्य को नियुक्त कर सकता है और यही कार्य राज्यसभा में सभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति में भी करता है।
- राष्ट्रपति को लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो व्यक्ति तथा राज्य सभा में 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।
- संसद द्वारा वांछित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं।
विधायी शक्तियां :-
- राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय वितरण, नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिश तथा अन्य आयोग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करवाता है।
- कुछ विषयों से संबंधित विधेयक संसद में प्रस्तुत करवाने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है, जैसे-राज्योँ की सीमा परिवर्तन और धन विधेयक।
- राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को अनुमति दे सकता है। उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है, तथा उस पर अपनी अनुमति रोक सकता है। लेकिन धन विधेयक पर राष्ट्रपति को अनिवार्य रुप से अनुमति देनी होती है तथा उसे पुनर्विचार के लिए वापस नहीँ भेज सकता है। संविधान संशोधन विधेयक के लिए भी इसी प्रकार का प्रावधान है।
- यदि राष्ट्रपति द्वारा संसद को पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक पुनः विचार करने के पश्चात राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो इस पर वह अनिवार्य रुप से अनुमति देगा।
विधायी शक्तियां :-
- संविधान में राष्ट्रपति को किसी विधायक को अनुमति देने या अनुमति न देने के संबंध में कोई समय सीमा निर्धारित नहीँ की गई है।
- राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति वीटो का प्रयोग कर सकता है।
- राष्ट्रपति जब संसद का सत्र न चल रहा हो तथा किसी विषय पर तुरंत विधान बनाने की आवश्यकता हो तो वह अध्यादेश द्वारा विधान बना सकता है।
- राष्ट्रपति द्वारा बनाये गए अध्यादेश संसद के विधान की तरह होते हैं, लेकिन अध्यादेश अस्थायी होते हैं।
- राष्ट्रपति अध्यादेश अपनी मंत्रिपरिषद की सलाह से जारी करता है।
- संसद का अधिवेशन होने पर अध्यादेश संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए,
- यदि संसद उस अध्यादेश को अधिवेशन प्रारंभ होने की तिथि से 6 सप्ताह के भीतर पारित नही कर देती तो वह स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाएगा।
- 44 वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, राष्ट्रपति के अध्यादेश निकालने की परिस्थितियोँ को असदभावनापूर्ण होने का संदेह होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां :-
- राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के विषय पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है। लेकिन वह परामर्श मानने के लिए बाध्य नही है।
- राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को को, तथा अपराधी को मृत्युदंड दिए जाने की स्थिति में क्षमादान दे सकता है। दंड को कम कर सकता है। दंड की प्रकृति को परिवर्तित कर सकता है। दंड को निलंबित कर सकता है।
आपातकालीन शक्तियां :-
राष्ट्रपति तीनो सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है,
वह तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है।
राष्ट्रपति को युद्ध या शांति की घोषणा करने तथा रक्षा बलों को अभिनियोजित करने का अधिकार है।
लेकिन राष्ट्रपति के अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं।
अनुच्छेद 352 :- युद्ध बाह्य आक्रमण या विद्रोह से यदि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में हो।
Article 356 :- किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने,
केंद्र की आज्ञा का अनुपालन न करने, अथवा संविधान के अनुबंधों का पालन न करने की
स्थिति में आपातकाल की घोषणा कर सकता है। विधानमंडल की शक्तियां संसद को सौंप दी जाती हैं।
अनुच्छेद 360 :- भारत में वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति वित्तीय आपात
की उद्घोषणा कर सकता है। जिसके अंतर्गत राज्योँ के व्यय को नियंत्रित करके और
लोक सेवकों के वेतन घटाकर तथा अन्य उपाय करके वित्तीय स्थायित्व प्रदान करने का
प्रयास करता है। भारत में कभी भी वित्तीय आपातकाल कभी भी नहीं लगा ।