शाहजहाँ (1627 – 1658 AD )
जीवन परिचय :-
- शाहजहाँ का जन्म लाहौर में 5जनवरी 1592ई. को मारवाङ के मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री जगत गोसाई के गर्भ से हुआ था।
- अक्टूंबर 1627ई. में जहाँगीर की मृत्यु के समय वह दक्षिण में था।
- अतएव उसके ससुर आसफ खाँ एवं राज्य के दीवान ख्वाजा अबुल हसन ने एक कूटनीतिक चाल के तहत खुसरो के लङके दवार बख्श को सिंहासन पर बैठाया।
- शाहजहाँ ने अपने सभी भाईयों एवं सिंहासन के सभी प्रतिद्वन्दियों तथा अंत में दवार बख्श को समाप्त कर 24 फरवरी 1628ई. को आगरा के सिंहासन पर बैठा।
- शाहजहाँ का विवाह 1612 ई. में आसफ खाँ की पुत्री अर्जुमंद बानू बेगम से हुआ था जो बाद में इतिहास में मुमताज महल के नाम से विख्यात हुई।
- शाहजहाँ के मुमताज महल से उत्पन्न 14 संतानों में से केवल 4 पुत्र एवं 3 पुत्रियां ही जीवित बचे थे।
- जिनके नाम थे- जहाँआरा( जन्म 1614 ई.) दाराशिकोह (जन्म 1615ई.) और गौहन आरा ( जन्म 1631ई.)।
- शाहजहाँ के अंतिम 8वर्ष आगरा के किले के शाहबुर्ज में एक बंदी की तरह व्यतीत हुआ।
- इस समय उसकी बङी पुत्री जहाँआरा के साथ रहकर उसकी सेवा की थी।
- शाहजहाँ की मृत्यु 1666ई. में हुई और उसे भी ताजमहल में उसकी पत्नी की कब्र के निकट साधारण नौकरों द्वारा दफना दिया गया।
शाहजहाँ के समय हुए विद्रोह-
- शाहजहाँ के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628ई. में बुंदेला नायक जुझार सिंह का था।
- शाहजहाँ के शासनकाल का दूसरा विद्रोह उसके एक योग्य एवं सम्मानित अफगान खाने – जहाँ लोदी ने किया था।
- मुगल बादशाहों ने पुर्तगालियों की उद्दण्डता के कारण शाहजहाँ ने 1632ई. में उसके व्यापारिक केन्द्र हुगली को घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिय।
- 1628ई. में एक छोटी सी घटना के कारण सिक्खों और शाहजहाँ के बीच वैमनस्य उत्पन्न हो गया।
- वजह शाहजहाँ का एक बाज उङकर गुरू (हरगोविन्द) के खेंमें चला गया और जिसे गुरू ने देने से इन्कार कर दिया था।
- मुगलों और सिक्खों के बीच दूसरा झगङा गुरू द्वारा श्री गोविन्दपुर नामक एक नगर बसाने को लेकर शुरू हुआ।
- जिसे मुगलों के मना करने पर भी गुरूजी ने नहीं बंद किया था।
- शाहजहाँ के शासन काल के चौथे एवं पाँचवें वर्ष (1630-32ई.) दक्कन और गुजरात में एक भीषम दुर्भिक्ष पङा था
- जिसकी वजह से दक्कन और गुजरात वीरान हो गया।
- जिसकी भयंकरता का वर्णन अंग्रेज व्यापारी ने किया है।
दक्षिण में साम्राज्य विस्तार :-
- शाहजहाँ ने दक्षिण में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण किया
- और 1633ई. में उसे जीतकर मुगल सम्राज्य में मिला लिया।
- तथा अंतिम निजामशाही सुल्तान हुसैनशाह को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया।
- शाहजी भोंसले पहले अहमदनगर की सेवा में थे
- किन्तु अहमदनगर के पतन के बाद उन्होंने बीजापुर की सेवा स्वीकार कर लिया।
- अहमदनगर को साम्राज्य में मिलाने के बाद शाहजहाँ ने गोलकुंडा पर दबाव डाला।
- गोलकुंडा के अल्पायु शासक कुतुबशाह ने भयीत होकर 1636ई. में मुगलों से संधि कर ली।
- गोलकुंडा के शासक ने अपनी एक पुत्री का विवाह औरंगजेब के पुत्र शाहजादा मोहम्मद से कर दिया।
- मुहम्मद सैय्यद (मीर जुमला नाम से प्रसिद्ध जो एक फारसी व्यापारी था ) गोल कुंडा का वजीर था
- और वह किसी बात से नाराज होकर मुगलों की सेवा में चला गया था।
- इसी मुहम्मद सैय्यद (मीर जुमला ) ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा भेंट किया था।
- शाहजहाँ ने 1636ई. में बीजापुर पर आक्रमण किया और मुहम्मद आदिलशाह प्रथम को संधि करने के लिए विवश कर दिया
- फलस्वरूप सुल्तान ने 29 लाख रुपये प्रतिवर्ष कर के रूप में देने का वादा किया।
- जहाँगीर के समय में 1622ई. में कंधार मुगलों के अधिकार से निकल गया था
- किन्तु शाहजहाँ के कूटनीतिक प्रयास से असंतुष्ट किलेदार अलीमर्दीन खाँ ने 1639ई. में यह किला मुगलों को सौंप दिया था।
- किन्तु शाहजहां के कूटनीतिक प्रयास से असंतुष्ट किलेदार अलीमर्दान खाँ ने 1639ई. में यह किला मुगलों को सौंप दिया था।
- 1648ई. में यह किला मुगलों से पुनः छिन गया और उसके बाद मुगल बागशाह पुनः इस पर कभी अधिकार नहीं कर सके।
शाहजहाँ के समय हुआ उत्तराधिकार का युद्ध-
6 सितंबर 1657ई. में शाहजहाँ के बीमार पङते ही उसके पुत्रों के बीच उत्तराधिकार का युद्ध प्रारंभ हो गया।
जिसमें उसकी पुत्रियों ने भी किसी न किसी युद्धरत शहजादों का पक्ष लिया।
बहादुरपुर का युद्ध :-
सर्वप्रथम शाहशुजा बंगाल में तथा मुराद ने गुजरात में अपने को स्वतंत्र बादशाह घोषित कर दिया,
किन्तु औरंगजेब ने कूटनीतिक कारणों से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की।
उत्तराधिकार के युद्ध में भाग लेने के लिए सर्वप्रथम शाहशुजा ने जनवरी,1658ई. में राजधानी की ओर कूच किया।
उत्तराधिकार के युद्ध की शुरूआत शाहशुजा एवं शाही सेना ( सुलेमान शिकोह, एवं जयसिंह के नेतृत्व में )के बीच बनारस से 5 किमी. दूर बहादुरपुर के युद्ध से हुई।जिसमें शुजा हारकर पूर्व की ओर भाग गया।
धरमत का युद्ध :-
उज्जैन से 14 मील दूर धरमत नामक स्थान पर औरगजेब और मुरादबख्श की सम्मलिति सेनाओं का जसवंतसिंह और कासिम खाँ के नेतृत्व में शाही सेना से मुकाबला हुआ। जिसमें शाही सेना की पराजय हुई।इस युद्ध में शाही सेना के कासिम खाँ का व्यवहार संदेह जनक था।
धरमत के युद्ध में (14अप्रैल, 1558ई.) से पराजित होकर जब जसवंतसिंह जोधपुर लौटे,
तो उसकी रानी ने युद्ध क्षेत्र से भागने के अपराध में उन्हें किले में नहीं घुसने दिया।
सामूगढ का युद्ध :-
शाही सेना का औरंगजेब और मुराद की सम्मलित सेना से निर्णायक मुकाबला 29 मई, 1658ई. को सामूगढ नामक स्थान पर हुआ। इस युद्ध में शाही तोपखाने के साथ था।
सामूगढ के युद्ध में दारा की पराजय का मुख्य कारण –
मुसलमान सरदारों का विश्वासघात तथा औरंगजेब के कूटनीति से मुराद को बंदी बना लिया और बाद में उसकी हत्या करवा दी।
देवराई का युद्ध :-
औरंगजेब और दारा के बीच अंतिम लङाई अप्रैल 1659ई. में अजमेर के निकट देवराई की घाटी में हुआ जिसमें दारा अंतिम रूप से पराजित हुआ।
औरंगजेब और मुरादबख्श के बीच जो अहदनामा (समझौता) हुआ था। उसमें दारा को रईस-एल-मुलाहिदा (अर्थात् अपधर्मी शहजादा) कहा गया था।
दारा को मृत्युदंड न्यायाधीशों के एक कोर्ट द्वारा दिया गया था।
दारा के शव को दिल्ली की सङकों पर घुमाया गया और अंत में लाकर उसे हुमायूँ के मकबरे में दफना दिया गया।
बर्नियर दारा के साथ हुए इस अपमान-जनक व्यवहार का चश्मदीद गवाह था। उसने लिखा है कि – “विशाल भीङ एकत्र थी, सर्वत्र मैंने लोगों को रोते बिलखते तथा दारा के भाग्य पर शोक प्रकट करते हुए देखा।”