सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी।
यह सभ्यता सिंधु-सरस्वती , हङप्पा सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है तथा आद्यैतिहासिक कालीन होने के कारण इसे आद्यैतिहासिक सभ्यता भी कहा जाता है। कुछ समय पहले यह माना जाता था कि यह सभ्यता 5500 साल पुरानी है , लेकिन हाल ही में आईआईटी के वेज्ञानिकों द्वारा यह प्रमाणत किया गया है कि यह सभ्यता 8000 वर्ष पुरानी है।
इसका विकास सिंधु और घग्घर / हकङा (प्राचीन सरस्वती ) के किनारे हुआ। इस सभ्यता का उदय सिंधु नदी की घाटी में होने के कारण इसे सिंधु सभ्यता तथा विकसित केन्द्र हङप्पा के नाम पर हङप्पा सभ्यता कहा जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज –
सिंधु सभ्यता को हङप्पा संस्कृति भी कहा जाता है । पुरातत्वविद संस्कृति शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं, जो एक विशेष शैली के होते हैं और एक साथ, एक विशेष स्थान , तथा समय से संबंद्ध पाये जाते हैं। हङप्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिषट पुरावस्तुओं में मुहरें , मनके , बाट , पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटे सम्मिलित हैं। ये सभी वस्तुएं अफगानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से मिली हैं। इस सभ्यता का नामकरण, हङप्पा नामक स्थान , जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी के नाम पर किया गया। इसका काल निर्धारण 2600 -1900 ई.पू. के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थी जिन्हें आरंभिक तथा परवर्ती हङप्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हङप्पा सभ्यता को अलग करने के लिए इसे विकसित हङप्पा संस्कृति भी कहा जाता है।
हङप्पा मौन्टगुमरी जिले में रावी नदी के किनारे पाकिस्तान में स्थित है। सिंधु सभ्यता की खोज का श्रेय दयाराम साहनी को जाता है जिन्होंने भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में 1921 ई.में हङप्पा नामक स्थान की खुदाई करवाई । इस स्थल में सबसे पहले उत्खनन का कार्य 1927 में हुआ।
सिंधु सभ्यता के विस्तार –
यह सभ्यता 1299600 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। हङप्पा सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता है। विद्वान रंगनाथराव के अनुसार – हङप्पाई स्थल उत्तर – दक्षिण में 1400 किलोमिटर तथा पूर्व – पश्चिम में 1600 किलोमीटर फैली हुई है।
लोथल तथा सुरकोटडा (गुजरात) में हैं जो सिंधु सभ्यता के बंदरगाह थे । स्वतंत्रता के बाद सिंधु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात से प्राप्त हुए हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता संपूर्ण भारत में फैली हुई है केवल भारत में ही नहीं यह सभ्यता भारत के बाहर भी विस्तृत है। इस सभ्यता के प्रमुख स्थान इस प्रकार हैं-
सिंधु घाटी सभ्यता के स्थान –
इस सभ्यता के प्रमुख शहर तीन देशों में इस प्रकार हैं
हिंदुकुश पर्वतमाला के पार अफगानिस्तान में
1. शोर्तुघई – यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले हैं
2. मुंदिगाक
भारत में –भारत के विभिन्न राज्यों में सिंधु घाटी सभ्यता के शहर
गुजरात में
1. लोथल
2. सुरकोटडा
3. रंगपुर
4. रोजदी
5. मालवड
6. देसलपुर
7. धोलावीरा
8. प्रभासपाटन
9. भगतराव
हरियाणा में
1. राखीगढी
2. भिर्दाना-भिर्दाना भारत के उत्तरी राज्य हरियाणा के फतेहाबाद जिले का एक छोटा सा गाँव है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का खोजा गया अब तक का सबसे प्राचीन नगर है।
3. बनावली
4. कुणाल
5. मीताथल
पंजाब में
1. रोपङ
2. बाङा
3. संघोल
महाराष्ट्र में
1. दायमाबाद
उत्तरप्रदेश में
1. आलमगीरपुर
2. अम्बखेडी
जम्मु कश्मीर में
1. मांडा
राजस्थान में
1. कालीबंगा
नगर निर्माण योजना- सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशेष बात विकसित नगर निर्माण योजना है । हङप्पा और मोहनजोदङो इस सभ्यता के महत्तवपूर्ण नगर थे तथा इन दोनों नगरों के अपने दुर्ग थे। इन नगरों में शासक वर्ग का परिवार रहता था।
आर्थिक जीवन–
अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी, किन्तु व्यापार और पशुपालन भी प्रचलन में था।
कृषि व पशुपालन–सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। तिल व सरसों के बारे में भी इस काल के लोगों को जानकारी थी। कपास के बारे में सबसे पहले सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों को ही जानकारी प्राप्त हुई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर – इस सभ्यता के 1000 से भी अधिक स्थान प्राप्त हो चुके हैं लेकिन परिपक्व अवस्था में केवल 6 ही नगर मिले हैं जो निम्न हैं-
• हङप्पा
• मोहनजोदङो
• चन्हूदङो
• लोथल
• कालीबंगा
• बनवाली
उद्योग धंधे– सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों में अनेक उद्योग धंधे प्रचलित थे। यहाँ के लोग मिट्टी के बर्तन,मनके, ताबीज बनाने, जौहरी का कार्य, कपङे का व्यापार उन्नत अवस्था में था (विदेशों के साथ भी कपङे का व्यापार होता था) आदि कार्य भली भाँती करते थे। इस सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग के अलग – अलग प्रकार के चित्र बनाते थे।यहाँ के लोगों को लोहे का ज्ञान नहीं था।
राजनैतिक जीवन-
नगरीय व्यवस्था को देखकर लगता है कि कोई नगर निगम जैसी स्थानीय स्वशासन वाली संस्था थी।
धार्मिक जीवन– सिंधु सभ्यता के लोगों में धर्म की विविध विशेषताएँ दिखती हैं । हङप्पा से प्राप्त एक मोहर पर एक स्री का चित्र अंकित है, जिसके गर्भ से पौधा निकला हुआ है।
शिल्प व तकनिकी ज्ञान-
सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों में एक छोटी सी बस्ती चन्हुदङो है जो लगभग पूरी तरह से शिल्प-उत्पादन में संलग्न थी। शिल्प कार्यों में ममके बनाना, शंख की कटाई करना, मुहर निर्माण,बाट बनाना सामिल थे। इन लोगों को धातु विज्ञान की जानकारी भी थी।
शवाधान– हङप्पा स्थलों से मिले शवाधानों में आमतौर पर मृतकों को गर्तों में दफनाया जाता था। कुछ कब्रों में मृदभांड और आभूषण मिले हैं । पुरुषों और महिलाओं दोनों के शवाधानों सो आभूषण मिले हैं।
मुहरें,लिपि व बाट-
मुहरों और लिपि का प्रयोग लंबी दुरी के संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था । सामान से भरा थैला एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता था तो उसका मुख रस्सी से बाँधा जाता था और गाँठ पर थोङी गीली मिट्टी जमा कर एक य़ा अधिक मुहरों से दबाया जाता था,जिससे मिट्टी पर मुहरों की छाप पङ जाती थी और सामान से भरे थैले के साथ छेङ छाङ होने की संभावना कम होती थी। इस मुद्रांकन से सामान को भेजने वाले की पहचान का भी पता चलता था।
नालों का निर्माण-
हङप्पा शहरों की सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। सङकों तथा गलियों को एक ग्रिड पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियो को बनाया गया था और फिर उनके अगल- बगल आवासों का निर्माण किया गया था।
सामाजिक जीवन-
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का जीवन मातृसतात्मक था। यहाँ पर स्री मृणमूर्तियाँ बहुतायता से मिली हैं।जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ के लोग देवीमाता की पूजा करते थे। लोगों का जीवन निर्वाह कृषि पर आधारित था, कृषि में अधिषेश (काम में लेने के बाद अनाज शेष बचता था)। जीवन में व्यापार – वाणिज्य का भी महत्व था , विदेशों के साथ व्यापार के संबंध स्थापित थे।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन- इस सभ्यता का पतन किन कारणों से हुआ इस बात पर विद्वानों में मतभेद है। पतन के लिए कोई भी साक्ष्य ऐसा नहीं मिला है जिससे यह पता चल सके कि वास्तव में इस सभ्यता का विनाश क्यों हुआ। सबसे सटीक उत्तर इस का यह माना गया है कि बाढ के कारण हङप्पा सभ्यता का विनाश हुआ।
सिंधु सभ्यता के स्थल :-
• हङपा(मांटगोमरी जिला, पंजाब, पाकिस्तान )- इस स्थल का उत्खनन 1921ई. में दयाराम साहनी द्वारा करवाया गया।
मोहनजोदङो (सिंध का लरकाना जिला, पाकिस्तान)- 1922ई. में राखलदास बनर्जी द्वारा उत्खनन का कार्य करवाया गया। मोहनजोदङो से प्राप्त अन्नागार सैंधव सभ्यता की सबसे बङी इमारत थी।
मोहनजोदङो से कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति मिली है।
मोहनजोदङो से 5 बेलनाकार मुद्राएं मिली हैं।
मोहनजोदङों से प्राप्त किसी भी बर्तन पर लेख नहीं मिला है।
मोहनजोदङो के उत्खनन में सात पर्त मिली हैं जिनसे ज्ञात होता है कि यह नगर सात बार बसाया गया होगा।
मोहनजोदङो से कुछ अश्वों की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं।
मोहनजोदङो की खुदाई में बुने हुए सूती कपङे का टुकङा मिला है।
मोहनजोदङो से घोङे का दांत , लोथल से घोङे की लघु मृण्मूर्तियां तथा सुरकोटङा से घोङे की अस्थियों के अवशेष मिले हैं।
मोहनजोदङों का आकार एक वर्ग मील है जो कि पश्चिमी और पूर्वी दो खंडों में विभाजित है। पश्चिमी खंड पूर्वी खंड की तुलना में छोटा है।
एक शील पर तीन मुख वाले देवता पशुपतिनाथ ( शिव) की मुर्ति मिली है जिस पर 4 पशु – भैंसा,गेण्डा,चीता औऱ हाथी हैं।
मोहनजोदङो से शवों को जलाने के साक्ष्य मिलते हैं। जबकि हङपा से शवों को दफनाने के साक्ष्य मिलते हैं।
अपवादस्वरुप मोहनजोदङो की सङके पक्की ईंटों से बनी हैं।
मोहनजोदङो से पत्थर की मूर्ति पर तिपतिया शॉल है(तीन पत्तियों वाला)।
सर्वाधिक मोहरे मोहनजोदङो से मिली हैं।
• सुत्कागेंडोर ( ब्लूचिस्तान,पाकिस्तान)- 1927ई. में आर. एल. स्टाइन द्वारा उत्खनन का कार्य करवाया गया।
• चन्हूदङो (सिंध, पाक.)- 1931ई. में एम. जी . मजूमदार ने उत्खनन का कार्य करवाया गया ।
चन्हूदङो से प्राप्त एक पात्र में जला हुआ एक कपाल मिला है।
चन्हूदङो से मनके बनाने का कारखाना प्राप्त हुआ है।
• रंगपुर (अहमदाबाद,काठियावाङ, भारत)- 1953 ई. में माधोस्वरूप वत्स द्वारा उत्खनन का कार्य करवाया गया।
• कोटदीजी(सिंध-पाक.)- 1953ई. में धुर्ये द्वारा उत्खनन का कार्य करवाया गया।
• रोपङ(पंजाब-भारत)-1953ई. में वाई . डी. शर्मा के दिशानिर्देशन में उत्खनन का कार्य किया गया।
• कालीबंगा(गंगानगर, राजस्थान, भारत)- 1955 ई. में ए. घोष के निर्देशन में उत्खनन का कार्य किया गया।
जुते हुए खेत का प्रथम साक्ष्य प्राक् सैंधवकालीन पुरास्थल कालीबंगा से मिला है।
कालीबंगा के उत्खनन में निचली सतह से पूर्व में सिंधु सभ्यता और ऊपरी सतह से भी सिंधु सभ्यता के अवशेष मिले हैं।तथा फर्श में अलंकृत ईंटों का प्रयोग केवल कालीबंगा में ही हुआ है।
कालीबंगा से मिट्टी के बर्तन के एक टुकङे पर सूती वस्र की छाप मिली है
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• लोथल(अहमदाबाद,गुजरात,भारत)-1955ई. में एस आर राव के निर्देशन में उत्खनन का कार्य किया गया।
लोथल से एक शव प्राप्त हुआ है जो कब्र में करवट लिए हुए लिटाया गया है, शव का सिर पूरब तथा पैर पश्चिम दिशा में हैं।
लोथल से एक कब्र प्राप्त हुई है जिसमें दो शव एक दूसरे से लिपटे हुए हैं।
लोथल और कालीबंगा से अग्निकुण्ड प्राप्त हुए हैं।
लोथल से गोदी के अवशेष मिले हैं।
लोथल से एक तराजू प्राप्त हुआ है।
लोथल से मुहर पर एक जलयान का चित्रण प्राप्त हआ है।
लोथल से फारस की मोहरें मिली हैं।
चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से मिले हैं।
• आलमगीरपुर(मेरठ, उत्तरप्रदेश, भारत)-1958 ई. में यज्ञ दत्त शर्मा के दिशानिर्देशन में उत्खनन का कार्य किया गया।
• सुरकोटडा (कच्छ, गुजरात ,भारत)- 1972ई. में जगपति जोशी द्वारा उत्खनन का कार्य करवाया गया।
• बनवाली (हिसार,हरियाणा,भारत)- 1973ई. में आर.एस.विष्ट के निर्देशन में उत्खनन का कार्य किया गया।
• धौलावीरा (कच्छ, गुजरात, भारत)- 1990ई. में आर.एस. विष्ट के निर्देशन में उत्खनन का कार्य करवाया गया।
• वर्तमान में हङपा सभ्यता का सबसे बङा एवं नवीन नगर धौलावीरा है (गुजरात) प्रारंभ में मोहनजोदङो था।
लोथल तथा सुरकोटडा (गुजरात) हैं जो सिंधु सभ्यता के बंदरगाह थे।
• सैंधव सभ्यता में आयात की वस्तुएं-
o टिन नामक धातु का आयात ईरान , मध्य एशिया , अफगानिस्तान से किया जाता था।
o स्वर्ण का आयात अफगानिस्तान, दक्षिणी भारत ( कर्नाटक) से होता था।
o फिरोजा का आयात ईरान से होता था।
o नील रत्न का आयात अफगानिस्तान से होता था।
o चांदी का आयात ईरान, अफगानिस्तान से होता था।
o लाजवर्द का आयात मेसोपोटामिया से होता था।
o सीसा का आयात ईरान , दक्षिणी भारत , अफगानिस्तान से होता था।
o शंख एवं कौङियों का आयात दक्षिणी भारत से किया जाता था।
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सैंधव सभ्यता का काल निर्धारण-
o सर जॉन मार्शल के अनुसार सिंधु सभ्यता का काल 3250ई.पू.से 2750ई.पू.था।
o अर्नेस्ट मैके ने सिंधु सभ्यता का काल 2800ई.पू.से 2500ई.पू.माना है।
o माधो स्वरूप वत्स ने इस सभ्यता का काल 3500 ई.पू. से 2700ई.पू. माना है।
o सी.जे.गैड के अनुसार सिंधु सभ्यता का काल 2350ई.पू. से 1700ई.पू. माना है।
o मार्टीमर ह्लीलर ने इस सभ्यता का काल निर्धारण 2500ई.पू. से 1500ई.पू. माना है।
o फेयर सर्विस के अनुसार सिंधु सभ्यता का काल 2000ई.पू. से 1500 ई.पू. माना है।
o रेडियो कार्बन (C14) पद्धति के अनुसार (सर्वमान्य तिथि ) सिंधु सभ्यता का काल 2500ई.पू. से 1750ई.पू. है।
o N.C. E.R.T के अनुसार सिंधु सभ्यता का काल 2600-1800 ई.पू. है।
• सैंधव सभ्यता के पतन के कारण –
o पुरात्तववेता गार्डन चाइल्ड, ह्लीलर के अनुसार आर्यों के आक्रमण,भयंकर बाढ के कारण सिंधु सभ्यता का पतन हुआ।
o सर जॉन मार्शल , मैके , एस आर.राव के अनुसार प्राकृतिक आपदा के कारण सिंधु सभ्यता का विनाश हुआ।
o स्टाइन , ए.एन.घोष के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ।
o एम.आर.साहनी के अनुसार भू-तात्विक परिवर्तन के कारण हङपा सभ्यता का पतन हुआ।
o सर जॉन मार्शल के अनुसार प्रशासनिक शिथिलता के कारण सिंधु सभ्यता का विनाश हुआ।
हङप्पाई लिपि
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि- हङप्पाई लिपि को अब तक पढने में सफलता प्राप्त नहीं हुई है, लेकिन निश्चित रूप से यह वर्णमालीय ( जहाँ प्रत्येक चिन्ह एक स्वर अथवा व्यंजन को दर्शाता है) नहीं थी क्योंकि इसमें चिन्हों की संख्या कहीं अधिक है – लगभग 375 से 400के बीच । सामान्यत: हङप्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो संभवत: मालिक के नाम और उसके पद को दर्शाता है। विद्वानों ने यह भी समझाने की कोशिश करी है कि इन मुहरों पर बना चित्र (एक जानवर का चित्र) अनपढ लोगों को सांकेतिक रूप से इसका अर्थ बताता है।हङप्पाई लिपि के अधिकांश लेख मुद्राओं पर पाए गए हैं। इन लेखों में से अधिकांश लेख बहुत ही छोटे हैं। हङप्पाई लिपि पर विभिन्न पशु (वृषभ, एक श्रृंगी बैल, धार्मिक रुपायन आदि ) मुहरों के अग्र/पश्च भाग से मिलते हैं।
इस लिपि को सिंधु लिपि, सरस्वती लिपि के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौङा अंतराल है और बाईं ओर यह संकुचित है जिससे लगता है कि उत्कीर्णक ने दाईं ओर से लिखना आरंभ किया और बाद में स्थान कम पङ गया ।