प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन के स्रोत
भारत का इतिहास
- इतिहास शब्द संस्कृत भाषा के तीन शब्दों से मिलकर बना है।
1. इति-ऐसा ही, 2.ह-निश्चित रुप से 3.आस -था।
इसका अर्थ है – ऐसा ही निश्चित रुप से था अर्थात् हम कह सकते हैं कि जो घटनाएँ अतीत काल में निश्चित रुप से घटी हैं, वही इतिहास है।
- हेरोडोडस को इतिहास का पिता कहा जाता है। यूनानी इतिहासकार हेरोडोडस का जन्म 484ई.पू. में एशिया माइनर के हेलिकारनेसस में हुआ था।
इतिहास के स्रोत :
- पुरातात्विक स्रोत
- साहित्यिक स्रोत
1. पुरातात्विक स्रोत
भारत में पुरातत्व संबंधी कार्य का आरंभ यूरोपियों ने किया था । पुरातत्व के क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए एलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का जनक कहा जाता है।
- स्तम्भ ,ताम्र अभिलेख ,शिलालेख
- सिक्के
- मुहर
2. साहित्यिक स्रोत
साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में बांटा गया है-
- धार्मिक साहित्य
- लौकिक साहित्य
धार्मिक साहित्य:
धार्मिक साहित्य को भी दो भागों में बांटा गया है
- ब्राह्मण साहित्य
ब्राह्मण साहित्य में वेद,ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक,उपनिषद, वेदांग, सूत्र, महाकाव्य, स्मृतिग्रथ,पुराण आदि आते हैं।
- ब्राह्मणेतर साहित्य
महत्वपूर्ण तथ्य :
- सबसे प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया का बोगजकोई का अभिलेख है ।
- 1400 ई.पू. में यह अभिलेख लिखा गया तथा इस अभिलेख पर इन्द्र ,मित्र,वरूण आदि वैदिक देवताओं के नाम मिलते है ।
- प्राचीन भारत में सबसे ज्यादा अभिलेख मौर्य शासक अशोक के मिलते हैं।
- अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राहमी लिपी में हैं।
- अशोक के अभिलेख तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं।
- उतरी पश्चिमी भारत के कुछ अभिलेख जो अशोक के मिले वो खरोष्ठी लिपि में मिले हैं ।
- मास्की, गुर्जरा, निटूर तथा उदेगोलम से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है। इन अभिलेखों से अशोक के धम्म व राजत्व के आदर्श पर प्रकाश पङता है।
- लघमान एवं शरेकुना से प्राप्त अशोक के अभिलेख यूनानी और आरमेइक लिपियों में हैं।
- सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में लिखित अशोक के अभिलेखों को पढा था ।
- दारा से प्रभावित होकर अशोक ने अभिलेख प्रचलित किए थे।
- सर्वाधिक अभिलेख मैसूर से मिले हैं।
- प्रारंभिक अभिलेख (गुप्त काल के पूर्व )प्राकृत भाषा में हैं , लेकिन गुप्त और गुप्तोत्तर काल के अभिलेख संस्कृत भाषा में मिले हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य :
- यवन राजदूत हेलियोडोरस का बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरुङ स्तंभ लेख में दूसरी शताब्दी .ई.पू.में भारत में भागवत धर्म के विकसित होने के साक्ष्य मिलते हैं।
- मघ्य प्रदेश के एरण से प्राप्त वाराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण के लेखों का विवरण है।
- पर्सिपोलिस और बहिस्तून अभिलेखों से ज्ञात होता है कि ईरानी सम्राट दारा ने सिन्धु घाटी को अधिकृत कर लिया था।
- अभिलेखों में भारतवर्ष का उल्लेख हाथीगुम्फा अभिलेख, रेशम बुनकरों की जानकारी मंदसौर अभिलेख तथा सतीप्रथा के साक्ष्य भानुगुप्त के एरण अभिलेख से मिलते हैं।
- शिलालेखों का अध्ययन एपीग्राफी कहलाता है।
- सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशासत्र कहते हैं।
- प्राचीनतम सिक्के आहत सिक्के (पंचमार्क सिक्के )कहलाते हैं। इन्हीं सिक्कों को साहित्य में काषार्पण कहा गया है। ये सिक्के 5 वी शताब्दी ई.पू. के हैं।इन सिक्कों पर पेङ, मछली, सांड,हाथी,अर्द्धचन्द्र आदि आकृतियां उत्कीर्ण हैं।
- आहत मुद्राओ की सबसे पुरानी निधियां पूर्वी उत्तर प्रदेशऔर मगध में प्राप्त हुई हैं।
- पुराने सिक्के तांबा,चांदी,सोना और सीसा धातु के बनते थे।
- आरंभिक सिक्के चाँदी के हैं।
- सातवाहनों ने सीसा के सिक्के चलाये ।
- गुप्त शासकों ने सर्वाधिक सोने के सिक्के चलाये।
महत्वपूर्ण तथ्य :
- भारत में सर्वप्रथम सोने की मुद्रा का प्रचलन इण्डो–बैक्टियन ने किया था।
- सर्वाधिक सिक्के मौर्योत्तर काल के मिले हैं।
- आरंभिक सिक्कों पर चिन्ह मात्र मिलते हैं लेकिन बाद के सिक्कों पर राजाओ और देवताओ के नाम तथा तिथियां भी उल्लेखित हैं।
- सर्वप्रथम लेख वाले सिक्के इण्डो ग्रीक शासकों (हिन्द-यूनानी)शासकों के स्वर्ण सिक्के हैं।
- पकाई मिट्टी के बने सिक्कों के सांचे ईसा की आरंभिक तीन सदियों के हैं इनमें से अधिकांश सांचे कुषाण काल के हैं।
- प्राचीन भारत में कुषाण काल से मूर्तियों का निर्माण प्रारंभ हुआ था।
- भरहुत, बोधगया, और अमरावती की मूर्तिकला में जनसामान्य के जीवन की दशा ज्ञात होती है।
- मंदिरों तथा स्तूपों से भारतीय संस्कृती वास्तुकला शैली का परिचय मिलता है।
- अजंता के चित्रों से तत्कालीन जन-जीवन की अभिव्यक्ति होती है।
- हङपा , मोहनजोदङो से प्राप्त मुहरों से तत्कालीन धार्मिक स्थिति ज्ञात होती है।
- मर्तियों की निर्माण शैली में गांधार कला की शैली पर विदेशी प्रभाव दिखता है, जबकि मथुरा कला की शैली पूर्णतया स्वदेशी है।
- बसाढ से प्राप्त मिट्टी की मुहरों से व्यापारिक श्रेणियों की जानकारी मिलती है।
- कश्मीर के नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास का साक्ष्य मिला है जिनसे उतरने के लिए सीढियाँ होती थी।
- उत्तर -भारत के मन्दिर नागर शैली , दक्षिण के द्रविङ शैली तथा दक्षिणापथ के मंदिर वेसर शैली से निर्मित हैं।
प्राचीन भारत का धार्मिक साहित्य
वेद :-
ब्राह्मण साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद है। ऋग्वेद के द्वारा प्राचीन आर्यों के धार्मिक, सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक जीवन का परिचय मिलता है।सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।
वेदों की संख्या चार है
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद।
- चारों वेदों के सामूहिक रूप को ही संहिता कहते हैं।
ऋगवेद
- वेदों में सबसे महत्वपूर्ण वेद ऋग्वेद है।
- ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है।
- ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं- ऐतरेय और कौषीतकी (शांखायन)।
- इसमें 10 मंडल,1028 सूक्त तथा 10,462 ऋचाएँ हैं।
यजुर्वेद
- सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन ही यजुर्वेद कहलाता है।
- इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते हैं।
- यह वेद गद्य-पद्य दोंनों में है।
- यजुर्वेद के दो भाग हैं-शुक्ल यजुर्वेद तथा कृष्ण यजुर्वेद।
- यजुर्वेद के दो ब्रह्मण ग्रंथ हैं–शतपथ एवं तैत्तिरीय।
सामवेद
- सामवेद को गीतों का संग्रह भी कहा जाता है।
- सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
- इसके पाठकर्ता को उद्रातृ कहते हैं।
- सामवेद गायी जा सकने वाली ऋचाओं का संकलन है।
- सामवेद का ब्राह्मण ग्रन्थ –पंचविश है।
अथर्ववेद
- इस वेद में रोग, निवारण, तंत्र-मंत्र,जादू-टोना,शाप,वशीकरण,आर्शीवाद,स्तुति,प्रायश्चित,औषधि, अनुसंधान,विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि-महात्म्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध मंत्र तथा सामान्य मनुष्यों के विचारों, विश्वासों, अंधविश्वाशों आदि का वर्णन है।
- इस वेद के रचयिता अथर्वा ऋषि को माना जाता है।
- अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है।
- अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निंन्दा करता है।
- अथर्ववेद का ब्रह्मण ग्रन्थ गोपथ है।
ब्राह्मण ग्रन्थ
- यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ कहलाते हैं।
- ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम तथा कुछ प्राचीन राजाओं का उल्लेख है।
- शतपथ ब्राह्मण में गांधार ,शल्य , कैकेय, कुरु,पांचाल ,कोशल,विदेह राजाओं का उल्लेख है।
आरण्यक
- आरण्यक ब्राह्मण ग्रन्थों के अन्तिम भाग हैं जिसमें दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों का विवरण है।
- आरण्यक चिन्तनशील ज्ञान के पक्ष को प्रतिपादित करते हैं तथा जंगल में पढे जाने के कारण इन्हें आरण्यक कहा जाता है।
- आरण्यक चिन्तनशील ज्ञान के पक्ष को प्रतिपादित करते हैं। जंगल में पढे जाने के कारण इन्हें आरणयक नाम प्राप्त हुआ।
- आरण्यक कुल 7 है।
- ऐतरेय
- शांखायन
- तैत्तिरीय
- मैत्रायणी
- माध्यन्दिन वृहदारण्यक
- तल्वकार
- छान्दोग्य।
उपनिषद्
उपनिषद आरण्यकों के पूरक हैं तथा भारतीय दर्शन के प्रमुख स्रोत हैं। वैदिक साहित्य के अंतिम भाग होने के कारण इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।
- उपनिषद उत्तरवैदिक काल की रचनाएं हैं।
- उपनिषदों में आर्यों के दार्शनिक विचारों की जानकारी मिलती है। इन्हें पराविद्या या आध्यात्म विद्या भी कहा जाता है।
- उपनिषदों में आत्मा,परमात्मा, तथा पुनर्जनम की अवधारणा मिलती है।
- उपनिषदों की कुल संख्या 108 है लेकिन प्रमाणिक उपनिषद 12 हैं।
- ईश
- केन
- कठ
- प्रश्न
- मुण्डक
- माण्डुक्य
- तैत्तिरीय
- ऐतरेय
- छान्दोग्य
- कौषीतकी
- वृहदारण्यक
- श्वेताश्वतर
- भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य “सत्यमेव जयते ” मुण्डको उपनिषद से लिया गया है।
- वेदांग 6 हैं-
- शिक्षा
- कल्प
- व्याकरण
- निरुक्त
- ज्योतिष
- छंद
- वेदांग गद्य में सूत्र रुप में लिखे गए हैं।
- वैदिक साहित्य को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए सूत्र साहित्य का उदय हुआ।
- प्रमुख उपवेद –आयुर्वेद,धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, शिल्पवेद।
- व्याकरण ग्रन्थों में सबसे महत्तवपूर्ण पाणिनि कृत अष्टाध्यायी है। इसका रचना काल 400 ई. पू. के लगभग माना जाता है।
- विधि व नियमों का प्रतिपादन जिन सूत्रों में किया गया कल्पसूत्र के नाम से जाने जाते हैं।
- कल्पसूत्र-कल्पसूत्र के तीन भाग हैं
- श्रोत सूत्र (यज्ञ संबंधी नियम )
- गृह्य सूत्र (लौकिक एवं पारलौकिक कर्तव्य)
- धर्म सूत्र (धार्मिक,सामाजिक एवं राजनीतिक कर्तव्य)
- धर्म सूत्रों से स्मृति ग्रन्थों का विकास हुआ।
प्रमुख स्मृति ग्रन्थ–
- मनुस्मृति , याज्ञवल्क्य स्मृति, पाराशर स्मृति, नारद स्मृति, बृहस्पति स्मृति , कात्यायन स्मृति , गौतम स्मृति।
- मनुस्मृति सबसे प्राचीन व प्रमाणिक है।
- रामायण व महाभारत दो महाकाव्य हैं।
- महाभारत महाकाव्य का रचना काल 400 ई. पू. स्वीकार किया जाता है। इसका अंतिम रूप से संकलन 400 ई. के लगभग हुआ था ।
- महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी। पहले इसमें 8800 श्लोक थे और इसका नाम जयसंहिता था । कालांतर में श्लोंकों की संख्या 2400 हो गई और नाम भारत के रूप में चर्चित हुआ। अंत में श्लोकों की संख्या 1 लाख तथा नाम शत साहस्री संहिता अर्थात महाभारत प्रसिद्ध हुआ। इसमें वैदिक जन भरत के वंशजों (कौरवों व पांडवों ) की कथा है।
- महाभारत का प्रारंभिक उल्लेख आश्वालायन गृहसूत्र में मिलता है।
- रामायण की रचना वाल्मीकि ने की थी। इसमें प्रारंभ में 6000 श्लोक थे, कालांतर में 12000 श्लोक रचे गए वर्तमान में इसमें 24000 श्लोक हैं। इसकी रचना पांचवी सदी ई. पू. में हुई।
- रामायण व महाभारत महाकाव्य हमें तत्कालीन भारत की सामाजिक ,धार्मिक, राजनीतिक स्थिती का परिचय कराते हैं । इनमें शक , यवन ,पारसीक ,हूण आदि जातीयों का उल्लेख है।
पुराण
- भारतीय ऐतिहासिक वृत्तांतों का क्रमबद्ध विवरण पुराणोंं में प्राप्त होता है।
- पुराणों के रचयिता लोमहर्ष व उनके पुत्र उग्रश्रवा थे ।
- पुराणों की संख्या 18 है।
- पुराणों का रचनाकाल तीसरी-चौथी शताब्दी ई. माना जाता है।
- प्राचीन पुराणों में -मार्कण्डेय, ब्रह्माण्ड, वायु ,विष्णु, भागवत, मत्स्य पुराण हैं।
- मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन व प्रमाणिक है।
- महाभारत युद्ध के बाद जिन राजवंशों ने ईसा की छठी शताब्दी तक राज्य किया, उनकी जानकारी का एक मात्र स्रोत पुराण हैं।
- मौर्यवंश के लिए विष्णु पुराण, आन्ध्र (सातवाहन) तथा शुंग वंश के लिए मत्स्य पुराण तथा गुप्त वंश के लिए वायु पुराण प्रमाणिक है।
- पुराण अपने वर्तमान रूप में 3-4 शताब्दी (गुप्त काल में ) लिपिबद्ध किए गए ।
- *ब्राह्मण साहित्य से प्राचीन भारत के सामाजिक तथा सांस्कृतिक इतिहास पर तो विस्तृत प्रकाश पङता है परन्तु राजनीतिक इतिहास की बहुत कम जानकारी प्राप्त होती है।
ब्राह्मणेत्तर साहित्य – बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक ,जैन ग्रंथ , जातक कथाएं
- ब्राह्मणेत्तर साहित्य के अंतर्गत बौद्ध व जैन साहित्य आता है।
- ब्राह्मणेत्तर साहित्य के अंतर्गत सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ त्रिपिटक हैं। सर्वाधिक प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ भी त्रिपिटक ही हैं।
- त्रिपिटक तीन हैं- सुत्त पिटक,विनय पिटक, अभिधम्म पिटक।
- सुत्तपिटक में बुद्ध के धार्मिक विचारों व वचनों का संग्रह है इसे बौद्ध धर्म का इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है।
- विनय पिटक में बौद्ध संघ के नियमों का उल्लेख है।
- अभिधम्म पिटक में बौद्ध दर्शन का विवेचन है।
- जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की काल्पनिक कथाएं हैं।
- जातकों की संख्या 550 है।
- प्राचीनतम बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषा में हैं।
- पालि भाषा में लिखे गए बौद्ध ग्रन्थों को प्रथम या द्वितीय ई. पू. का माना गया है।
- बुद्ध घोष कृत विशुद्ध मग्ग बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा का ग्रन्थ है । यह बौद्ध सिद्धातों पर प्रमाणिक दार्शनिक ग्रन्थ स्वीकार किया गया है ।
ब्राह्मणेत्तर साहित्य – बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक ,जैन ग्रंथ , जातक कथाएं
- जातक कथाएं ईसा पूर्व पांचवी सदी से दूसरी सदी तक की सामाजिक व आर्थिक स्थिति की जानकारी की अमूल्य स्रोत है।
- दीपवंश एवं महावंश की रचना क्रमश: चौथी व पांचवी शताब्दी में हुई थी।
- दीपवंश व महावंश ( पाली ग्रन्थ )में मौर्यकालीन इतिहास की विस्तृत जानकारी मिलती है।
- पालि भाषा का ग्रन्थ मिलिन्दपन्हो ( नागसेन द्वारा रचित ) यूनानी राजा मिनाण्डर व बौद्ध भिक्षु नागसेन के दार्शनिक वार्तालाप है।
- दिव्यावदान में राजाओं व राजनीतिक स्थिति ( तत्कालीन समय की ) ज्ञात होती है।
- आर्य–मंजु–श्री–मूलकल्प में बौद्ध दृष्टिकोण से गुप्त शासकों का विवरण है।
- अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनपदों का विविण दिया गया है।
- महावस्तु एवं ललित विस्तार में गौतम बुद्ध का जीवनवृत्त दिया गया है।
- अश्वघोष कृत बुद्धचरित, सौन्दरानन्द, सारिपुत्र प्रकरण में तत्कालीन समय के सामाजिक -धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है।
- जैन साहित्य आगम (सिद्धांत ) कहलाता है।
- जैन आगमों में 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र हैं।
- आचारांग सूत्र में जैन भिक्षुओं के आचार-नियमों का वर्णन है।
- भगवती सूत्र में महावीर स्वामी के जीवन-वृत का उल्लेख है। इसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख है।
- हेमचंद्र कृत परिशिष्ट पर्व अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख करता है।
- भद्रबाहु कृत कल्प–सूत्र में जैन धर्म के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी मिलती है।
- उद्योतन सूरि कृत कुवलयमाला में जैन समाज की सामाजिक व धार्मिक स्थिति का वर्णन है।
लौकिक साहित्य
- लौकिक साहित्य के अन्तर्गत प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत कौटिल्य कृत अर्थशास्र है। इसे भारत का प्रथम राजनीतिक ग्रन्थ स्वीकार किया जाता है। यह मौर्ययुगीन इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत है।
- विशाखादत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस , सोमदेव कृत कथा सरितसागर , क्षेमेन्द्र कृत वृहत्कथामंजरी मौर्यकालीन घटनाओं की जानकारी के महत्तवपूर्ण स्रोत है।
- दक्षिण भारत का प्रारंभिक इतिहास संगम साहित्य से ज्ञात होता है।
- पतंजलि कृत महाभाष्य और कालिदास कृत मालविकाग्निमित्रम शुंगकालीन इतिहास के स्रोत हैं।
- शूद्रक का मृछकटिकम तत्कालीन समाज का चित्रण है।
- कल्हण कृत राजतरंगिणी में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
- राजशेखर कृत प्रबंधकोश हमें गुजरात के चालुक्यों के इतिहास की जानकारी प्रदान करता है।
- गार्गी संहिता से भारत पर हुए यवन आक्रमण की जानकारी मिलती है।
- ऐतिहासिक जीवनियों – में अश्वघोष कृत बुद्धचरित , बाणभट्ट कृत हर्षचरित , वाक्पति का गौडवहो, विल्हण कृत विक्रमांकदेव चरित , पद्मगुप्त कृत नवसाहसांक चरित ,हेमचंद्र कृत कुमारपाल चरित , जयानक कृत पृथ्वीराज विजय इतिहास इतिहास जानने के महत्तवपूर्ण स्रोत हैं ।
विदेशी वृतांत – मेगस्थनीज, हेरोडोटस, सिकंदर, संयुगन, फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग
विदेशी वृतांत – भारत में कई विदेशी यात्री भ्रमण करने आये उन्होंने यहाँ पर कई राजाओं के दरबार में रहकर उनकी शासन व्यवस्था के बारे में देखा तथा उसे समझा । इन सभी अनुभवों को उन्होंने लिखा जिसे आज हम पढते हैं। यहाँ प्रमुख यूनानी-रोमन तथा चीनी लेखकों के बारे में बताने की कोशिश की गई है।
प्रमुख यूनानी – रोमन लेखक:
हेरोडोटस (इतिहास का जनक)-
हेरोडोटस कृत हिस्टोरिका में भारत और फारस के संबंधों पर प्रकाश पङता है।यह यूनान से आने वाला प्रथम इतिहासकार था।
मेगस्थनीज –
- यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था ,जो चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । इसको 305ई.पू. में यूनान और भारत के मध्य हुई संधि के तहत भारत आना पङा था। अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है। इसने अपनी पुस्तक में पाटलीपुत्र को सबसे बङा नगर बताया है। तथा राजा के राजप्रासाद का भी बङा ही सजीव वर्णन किया है । मेगस्थनीज ने वर्णन किया है कि उस समय राज्य में शांति थी लोगों को घरों में चोरी का कोई डर नहीं था। तथा यह बताता है कि राजा का जीवन बङा ही एश्वर्यमय था।
पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी–
- इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है । इसका लेखक 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था । इसमें उस समय के भारत के बन्दरगाहों और व्यापारिक वस्तुओं का विवरण है।
टेसियस –
- यह ईरान का राजवैद्य था । भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वनीय है।
प्लिनी –
- इसने 1शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी थी। इसमें भारतीय पशुओं , पौधों ,खनिज पदार्थों की जानकारी मिलती है। इसमें भारत और इटली के मध्य होने वाले व्यापार पर भी प्रकाश पङता है।
टॉलमी –
- इसने 2 शताब्दी में भारत का भूगोल (ज्योग्राफी ) नामक पुस्तक लिखी। इससे तत्कालीन भारत की विस्तृत जानकारी मिलती है।
सिकंदर –
- सिकंदर के साथ आने वाले लेखकों में निर्याकस , आनेसिक्रटस , आस्टोबुलग के विवरण अधिक विश्वसनीय हैं।
डायोनिसियस –
- यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलाडेलफस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था ।
डाइमेकस –
- यह सीरियन नरेश आन्तिओकश का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था । इसका विनरण भी मौर्य -युग से संबंधित है।
प्रमुख चीनी लेखक: कई बार परीक्षाओं में चीनी विद्वानों का भारत आने का सही क्रम पूछा जाता है उस को ध्यान में रखते हुए हम आपको इसे याद करने की एक ट्रिक बताते हैं-“चीनी यात्री को फाँसी हुई”
- फा. =फाह्यान(399ई.)
- सी.=संयुगन (518ई.)
- हु. =ह्वेनसांग(630ई.)
- ई. =इत्सिंग(7वी.शता.के अंत में)
फाह्यान– (399ई.)
यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था । इसके विवरण में गुप्तकालीन भारत की सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। इसने अपने विवरण में मध्यएशियाई देशों के बारे में बताया है। यह चीन से रेशम मार्ग(प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का समूह था जिसके माध्यम एशिया,यूरोप,अफ्रीका जुङे हुए थे।) से होते हुए भारत आया था।
संयुगन – (518ई.)
- यह 518 ई. में भारत आया था । इसने अपने तीन वर्ष की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तीयाँ एकत्रित की।
संस्कृति के बारे में वर्णन किया है और मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्धी का वर्णन है।
ह्वेनसांग– (630ई.)
- यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था ।
- इसने 629 ई. में चीन से व भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा ।
- भारत में 15 वर्ष तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया।
- वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने आया था और भारत से बौध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था ।
- इसका भ्रमण वृतांत्त सी.यू.की नाम से प्रसिद्ध है इस वृतांत्त में 138 देशों का विवरण मिलता है।
- इसने हर्षकालीन समाज, धर्म, राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनिसार सिन्ध का राजा शूद्र था।
- ह्वेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
- यह प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था।यह 17 वर्षों तक भारत में रहा।
इत्सिंग– (7वी.श.के अंत में)
- यह 7वी. शताब्दी के अंत में भारत आया था । इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय , विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है। यह 671से695 तक भारत में रहा। इत्सिंग सुमात्रा के समुद्री रास्ते से भारत आया था । वह लगभग 24 वर्षों तक भारत में रहा जिनमें से 10 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहकर बौद्ध धर्म के बारे में अध्ययन किया। इस यात्री ने नालंदा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में अपना विवरण दिया है। इसने “भारत और मलय द्वीप पुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण” नामक प्रमुख ग्रंथ लिखा है।
प्रमुख अरबी लेखक – अलबरूनी एवं इब्नबतूता
अरबी लेखक- अरबी यात्री, भूगोलवेता,तथा इतिहासकार 8वी.शता. के बाद भारत की ओर आकर्षित हुए। प्रारंभिक अरब लेखकों ने भारत के इतिहास के बारे में लिखने के स्थान पर यहाँ के निवासियों और देश के बारे में अधिक लिखा है।
अलबरूनी (1017ई.से 1020ई.):
• यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था । अरबी भाषा में लिखी गई उसकी पुस्तक किताब – उल – हिन्द या तहकीक – ए – हिन्द ( भारत की खोज ) इतिहास जानने का महत्तवपूर्ण स्रोत है। यह एक विस्तृत स्रोत है जो धर्म और दर्शन , त्यौंहारों ,खगोल विज्ञान , रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं , सामाजिक जीवन , भार -तौल तथा मापन विधियों , मूर्तिकला,कानून , मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर 80 अध्यायों में विभाजित है। इसमें राजपूत – कालीन समाज, धर्म , रीति – रिवाज , राजनीति आदि का उल्लेख है।इस पुस्तक का हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद किया जा चुका है।
• अलबरूनी की रचनाएँ अरबी भाषा में लिखी गई हैं । अरबी भाषा के अलावा अलबरूनी सीरियीई, संस्कृत,यूनानी आदि भाषाओं का भी ज्ञाता था।उसने अनेक रचनाएँ भी लिखी-अल कानून अल मसूद, कानून अल मसूदी, अल हैयत अल नजूम।
• अलबरूनी ने पृथ्वी की त्रिज्या मापने का फॉरमूला दिया ।
• महमूद गजनवी ने भारत पर कई अभियान किये थे उनमें से कई अभियानों में अलबरूनी भी था।
• अलबरूनी फारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, विचारक,धर्मज्ञ था।
इब्नबतूता (1333ई.):
• इसने अरबी भाषा में अपना यात्रा वृतांत्त रिह्रला लिखा था। इसने अपने यात्रा वृतांत्त में 14वीं शताब्दी के भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में प्रचुर तथा रोचक जानकारियाँ दी हैं । जब इब्नबतूता 1333 ई. में दिल्ली गया तो उसकी विद्वता से प्रभाविता होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे काजी ( न्यायाधीश ) नियुक्त किया था ।
• यह मुहम्मद तुगलक के काल में भारत आया था। इब्नबतूता अफ्रीका के मोरक्को के रहने वाला था।
• इसका पूरा नाम मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्नबतूता था।इब्नबतूता मुस्लमान यात्रियों में सबसे महान था।
• इसको मुहम्मद तुगलक ने चीन के दरबार में अपना राजदूत बनाकर भेजा था।
अन्य प्रमुख लेखक –
सुलेमान –
• अरबी यात्री सुलेमान ने अपने यात्रा वृतांत्त में प्रतिहार शासकों का उल्लेख करते हुए तत्कालीन सामाजिक , आर्थिक जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया है।सुलेमान ने तथा अलमसूदी ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि “जिनका नाम वराह (मिहिर भोज) है वह इस्लाम धर्म तथा अरबों का सबसे बङा शत्रु है।“
अलमसूदी-(915ई.-916ई.)
• बगदाद यात्री अलमसूदी राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी अपने यात्रा विवरण में देता है।
• यह महिपाल प्रथम के काल में भारत आया था।
तारानाथ –
• यह एक तिब्बती लेखक था। इसने कंग्युर तथा तंग्युर नामक ग्रंथ की रचना की। इनसे भारतीय इतिहास की जानकारी मिलती है।इन्होंने अपनी पुस्तक ” बौध धर्म का इतिहास “ में बौद्ध धर्म संबंधी जानकारी दी है।
मार्कोपोलो–
• यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्डय देश की यात्रा पर आया था । इसका विवरण पाण्डय इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है।