विज्ञान के प्रमुख मौलिक सिद्धांत
भौतिक विज्ञान के सिद्धान्त :-
भौतिकी की प्राकृतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें
दृव्य तथा ऊर्जा और उसके परस्पर क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है
न्यूटन के गति के नियम :-
न्यूटन के गति का प्रथम नियम –
इस नियम के अनुसार यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में ही रहेगी (विराम का जड़त्व ) या यदि वस्तु एक समान चाल से सीधी रेखा में गति कर रही है तो वह गति करती रहेगी (गति का जड़त्व ), जब तक कि उस पर कोई बाहय बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन ना किया जाए।
गति के प्रथम नियम को गैलीलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते हैं।
प्रथम नियम से बल की परिभाषा मिलती है ।
उदाहरण
(1) चलती रेलगाड़ी से अचानक उतर जाने पर व्यक्ति आगे की ओर गिर जाते हैं।
(2) खिड़की के शीशे पर बंदूक से गोली मारने पर शीशे में छेद हो जाता है।
न्यूटन के गति का द्वितीय नियम –
न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार, किसी वस्तु के रेखीय संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर लगाए गए बाह्य बल के अनुक्रमानुपाती होती है एवं संवेग परिवर्तन वस्तु पर लगाए गए बल की दिशा में ही होता है इसे गति का द्वितीय नियम कहते हैं एवं इस नियम को संवेग का नियम भी कहते हैं।
F = MA ( बल = द्र्व्यमान x त्वरण )
उदाहरण :- क्रिकेट खेल में खिलाड़ी तेजी से आती गेंद को कैच करते समय अपने हाथों को पीछे की ओर कर लेता है
इससे गेंद का वेग कम हो जाता है और खिलाड़ी को कोई चोट नहीं लगती है।
न्यूटन के गति का तृतीय नियम –
न्यूटन के गति के तृतीय नियम के अनुसार, प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
गति के तृतीय नियम को क्रिया-प्रतिक्रिया नियम भी कहते हैं।
उदाहरण
1. गति के तृतीय नियम को ऐसे समझते हैं कि आप किसी टेबल पर हाथ रखकर खड़े हैं तो जितना बल आपका हाथ टेबल पर बल लगा रहा है उतना ही बल टेबल आपके हाथ पर लगा रही है। आपने देखा होगा कि कमजोर छत पर ज्यादा बल अर्थात् कई व्यक्तियों के बैठने पर वह छत टूट जाती है अतः वह छत प्रतिक्रिया बल उतना नहीं लगा पाती है जितना व्यक्ति उस पर क्रिया बल लगा देते हैं।
2. कुएं से जल खींचते समय रस्सी टूटने पर रस्सी खींचने वाला पीछे की ओर गिर जाता है।
3. बंदूक से गोली मारने पर पीछे की ओर धक्का लगना।
संवेग संरक्षण का नियम –
‘यदि एक या एक से अधिक वस्तुओं के निकाय पर कोई असंतुलित बल कार्य न कर रहा हो तो निकाय का कुल संवेग संरक्षित रहता है। अतः इसे संवेग संरक्षण का नियम कहा जाता है।’
उदाहरण :- रॉकेट प्रणोदन ,रॉकेट का उड़ना न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया नियम तथा संवेग संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित है।
ऊर्जा संरक्षण का नियम :-
ऊर्जा को ना तो उत्पन्न ने किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है । ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित की जा सकती है । जब भी ऊर्जा किसी रूप में लुप्त होती है तब उतनी ही ऊर्जा अन्य रूपों प्रकट होती है । अत: विश्व की संपूर्ण ऊर्जा का परिमाण स्थिर रहता है । यह ऊर्जा संरक्षण का नियम कहलाता है ।
उदाहरण के लिये गतिज उर्जा, स्थितिज उर्जा में बदल सकती है; विद्युत उर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा में बदल सकती है; यांत्रिक कार्य से उष्मा उत्पन्न हो सकती है। अर्थात ऊर्जा अविनाशी है। उष्मागतिकी का प्रथम नियम भी वास्तव में उर्जा संरक्षण के नियम का एक परिवर्तित रूप है।
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम –
ब्रह्मांड का प्रत्येक पिंड, किसी दूसरे पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है।
इस आकर्षण के गुण को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं।
न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण संबंधी एक नियम प्रस्तुत किया जिसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम कहते हैं।
इस नियम के अनुसार, किन्ही दो पिंडों (कणों) के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल दोनों कणों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता है। एवं उनके कणों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
तो इस नियमानुसार
F = Gm1m2/r2
जहां एक G अनुक्रमानुपाती नियतांक है जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं।
केपलर के ग्रहो की गति से संबंधित नियम –
केपलर ने 3 नियम दिये –
(1) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमा करता है
तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिंदु पर स्थित होता है ।
(2) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग (गति )नियत रहता है इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के समीप होता है तो उसका वेग बढ़ जाता है जब वह दूर होता है तो उसका वेग कम हो जाता है
(3) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है,
उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं, परिक्रमण काल का वर्ग ग्रह की सूर्य से औसत दूरी के घन के अनुक्रमानुपाती होता है ।
T2 ∝ R3
पास्कल का प्रथम नियम –
यदि गुरुत्वीय प्रभाव को नगण्य माना जाए तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिंदु पर दाब का मान समान होता है।
पास्कल का द्वितीय नियम –
किसी बर्तन में बंद द्रव के किसी भाग पर आरोपित बल,द्रव द्वारा सभी दिशाओं में समान परिमाण के साथ संचारित कर दिया जाता है । हाइड्रोलिक लिफ्ट, हाइड्रोलिक प्रेस, हाइड्रोलिक ब्रेक आदि पास्कल के नियम पर आधारित है।
आर्कमिडीज का सिद्धांत –
जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबाई जाती है,
तो उसके भार में कमी का आभास होता है
भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के बराबर होती है,
इस आर्कमिडीज का सिद्धांत कहते हैं।
प्लवन का नियम –
- संतुलन की अवस्था में तैरने पर वस्तु अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती है।
- ठोस का गुरुत्व केंद्र और हटाए गए द्रव का गुरुत्व केंद्र दोनों एक ही ऊर्ध्वाधर रेखा में होने चाहिए ।
बरनौली का सिद्वांत –
जब कोई आदर्श द्रव किसी नदी में धारारेखीय प्रवाह में बहता है,
तो उसके मार्ग के प्रत्येक बिंदु पर उसकी एकांक आयतन की कुल ऊर्जा का योग नियत होता है।
वेण्टुरीमीटर बरनौली प्रमेय पर आधारित है।
हुक का नियम –
प्रत्यास्थता की सीमा में किसी वस्तु में उत्पन्न विकृति उस पर लगाए गए प्रतिबल के समानुपाती होती है।
डॉप्लर प्रभाव –
जब किसी ध्वनि स्त्रोत एवं श्रोता के बीच आपेक्षिक गति होती है तो श्रोता को ध्वनि की आवृत्ति उसकी वास्तविक आवृत्ति से अलग सुनाई पड़ती है इसे डॉप्लर प्रभाव कहते हैं ।
न्यूटन का शीतलन नियम –
समान अवस्था में रहने पर विकिरण द्वारा किसी वस्तु के ठंडे होने की दर वस्तु द्वारा उसके चारों ओर के माध्यम के तापांतर के अनुक्रमानुपाती होती है। अतः वस्तुओं जैसे जैसे ठंडी होती जाती हैं, उसके ठंडे होने की दर कम होती जाती है।
जूल थॉमसन प्रभाव –
किसी गैस के प्रवाह को किसी दबाव के अंदर किसी भी देवता माध्यम में मुख्य रूप से फैला दिया जाए, तो गैस के तापमान में अंतर ‘थॉमसन प्रभाव’ कहलाता है यह प्रभावी शीतलन में प्रयुक्त होता है।
किरचॉफ का नियम –
किरचॉफ के अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे से उत्सर्जक होते हैं। एक अंधेरे कमरे में यदि एक काली वस्तु और एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गर्म करके रखा जाता है ,तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेंगी। अत: काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी।
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम –
इस नियम के अनुसार किसी निकाय को दी जाने वाली उष्मा दो प्रकार के कार्यों में खर्च होती है
- निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि करने में, जिससे निकाय का ताप बढ़ता है
- बाहय कार्य करने में।
ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम –
ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम उष्मा के प्रवाहित होने की दिशा को व्यक्त करता है ।
प्रकाश का फोटोन सिद्वांत –
इसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बंण्डलों हो या पैकिटों के रूप में चलता है, जिसे फोटान कहते हैं।
प्रकाश कुछ घटनाओं में तरंग की भांति तथा कुछ में कण की भांति व्यवहार करता है इसे प्रकाश की दोहरी प्रकृति कहते हैं।
कूलाम का नियम –
किन्हीं दो स्थिर विद्युत आवेशों के बीच लगने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण बल दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है तथा यह बल दोनों आवेंशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करता है।
ओम का नियम –
यदि चालक की भौतिक अवस्था में कोई परिवर्तन ना हो तो चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात V ∝ I , V = RI , R = V / I
द्रव्यमान ऊर्जा संबंध –
इसके अनुसार द्रव्यमान एवं ऊर्जा एक दूसरे स्वतंत्र नहीं है, बल्कि दोनों एक दूसरे से संबंधित है तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण ऊर्जा भी होती है। इस नियम का प्रतिपादन आइंस्टीन ने 1905 में किया था, इसे सापेक्षता का सिद्धांत भी कहा जाता है।
रसायन विज्ञान के सिद्धान्त :-
रसायन विज्ञान- विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पदार्थ के गुण, संगठन, संरचना तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है । लेवायसियर को रसायन विज्ञान का जनक कहा जाता है।
पाउली का अपवर्जन नियम –
इस नियम के अनुसार – एक दिए गए परमाणु में किन्हीं दो इलेक्ट्रॉनों के लिए चारो क्वांटम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता ; यदि दो इलेक्ट्रॉनों में n, l और m के मान एक ही हो, तो उनका चक्रण (s) विपरीत होगा।
हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम –
इसके अनुसार इलेक्ट्रॉन तब तक युग्मित नहीं होते हैं जब तक की कोई रिक्त कक्षक उपलब्ध है अर्थात जब तक संभव है, इलेक्ट्रॉन अयुग्मित रहते हैं।
हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता सिद्धांत – इसके अनुसार किसी कण की स्थिति और वेग का एक साथ वास्तविक निर्धारण असंभव है ।
बॉयल का नियम – स्थिर ताप पर गैस की नियत मात्रा का आयतन उसके दाब के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
चार्ल्स का नियम – नियत दाब पर किसी गैस के नियत मात्रा आयतन उसके परम ताप का सीधा अनुपाती होता है । V ∝T
अवोगाद्रो का नियम – समान ताप एवं दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है ।
ग्राहम का गैसीय विसरण – नियत ताप एवं दाब पर गैसों के विसरण की आपेक्षिक गतियाँ उनके घनत्व अथवा अणुभार के वर्ग के समानुपाती होती है।
मेंडलीफ का आवर्त नियम –
19वीं शताब्दी के मध्य में रशियन वैज्ञानिक डी.आई.मेंडलीफ ने तत्व तथा उनके यौगिकों को के तुलनात्मक अध्ययन से एक नियम प्रस्तुत किया जिसे मेंडलीफ का आवर्त नियम कहते हैं। इसका आधार परमाणु द्र्व्यमान था । मेंडलीफ की आवर्त नियम के अनुसार तत्वों का भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं
आधुनिक आवर्त सारणी –
आधुनिक आवर्त सारणी मोसले के नियम पर आधारित है। इसके अनुसार तत्वों के गुण उनके परमाणु संख्या के आवर्त फलन होते हैं।
आरहेनियस का सिद्वांत – अम्ल एक ऐसा योगिक है, जो जल में घुलकर H+ आयन देता है।
ब्रान्सटेड एंव लॉरी सिद्धांत – अम्ल वह पदार्थ है जो किसी दूसरे पदार्थ को प्रोटॉन प्रदान करने की क्षमता रखता है।
लुईस का सिद्धांत – अम्ल वह यौगिक है, जिसमें इलेक्ट्रान की एक निर्जल जोड़ी स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।
जीव विज्ञान के मौलिक सिद्धांत–
जैव विकास का सिद्धान्त :- जैव विकास से संबंधित अनेक मत व सिद्धांत प्रचलित हैं। जैव विकास के सिद्धांत को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है
- लैमार्कवाद
- डार्विनवाद
- उत्परिवर्तन या नव-डार्विनवाद
- पुनरावर्तन सिद्धांत
लैमार्कवाद :-
“जीवों एवं उनके अंगों में निरन्तर वृद्धि होती रहती है। जिन पर वातावरणीय परिवर्तनों का सीधा प्रभाव पड़ता है। अधिक उपयोग में आने वाले अंगों का विकास अधिक एवं कम उपयोग में आने वाले अंगों का विकास कम होता है।”
- लैमार्क का यह सिद्धांत 1809 में उनकी पुस्तक ‘फिलासफी जुलोजिक’ में प्रकाशित हुआ था।
- लैमार्कवाद को ‘अंगों के कम या अधिक उपयोग का सिद्धांत’ भी कहा जाता है।
- लैमार्कवाद के अनुसार जीवों की संरचना, कायिकी, उनके व्यवहार पर वातावरण में परिवर्तन का सीधा प्रभाव पड़ता है।
- लैमार्क के उपार्जित लक्षणों की वंशागति के सिद्धांत’ के अनुसार जन्तुओं के उपार्जित लक्षण वंशगत होते हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं।
डार्विनवाद :-
‘प्राकृतिक चुनाव द्वारा प्राणियों का विकास’ 1836 – इस सिद्धांत के अनुसार ‘सभी जीवों में संतानोपत्ति की अधिक से अधिक क्षमता पायी जाती है। प्रत्येक जीव में अत्याधिक प्रजनन दर के कारण जीवों को अपने अस्तित्व हेतु संघर्ष करना पड़ता है। ये संघर्ष समजातीय, अन्तरजातीय तथा पर्यावरणीय होते हैं ।
- दो सजातीय जीव आपस में बिल्कुल समान नहीं होते हैं।
- ऐसी विभिन्नताएं इन्हें अपने जनकों से वंशानुक्रम में मिलती हैं।
- डार्विनवाद को प्राकृतिक चयनवाद भी कहा जाता है।
उत्परिवर्तन / नव-डार्विनवाद :-
इसे उत्परिवर्तन सिद्धांत के रूप में भी जाना जाता है जिसे हॉलैण्ड के यूगोडीब्रिज ने 1901 ई. में प्रस्तुत किया था। नव-डार्विनवाद को आधुनिक संश्लेषिक परिकल्पना भी कहते हैं। यह निम्नलिखित प्राक्रमों की पारस्परिक क्रियाओं का परिणाम है –
- जीन उत्परिवर्तन
- आनुवांशिक पुनर्योजन
- गुणसूत्रों की संरचना एवं संख्या में परिवर्तन द्वारा विभिन्नताएं
- पृथक्करण
पुनरावर्तन सिद्धांत :-
अर्नेस्ट हैकल इसे जाति-आवर्तन सिद्धांत भी कहते हैं जिसकी प्रमुख विशेषता है कि किसी जीव की भ्रूणीय अवस्थाएं उनके पूर्वजों की वयस्क अवस्थाओं के समान होती हैं।
मेंडल अनुवाशिकता के नियम –
(1) प्रभाविकता का नियम –
एक जोड़ा में विपर्यायी वाले शुद्व पिता या माता में संकरण करने से प्रथम पीढ़ी में प्रभावी गुण प्रकट होते हैं, जबकि यह प्रभावी गुण छिप जाते हैं। प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी गुण दिखाई देता है । लेकिन अप्रभावी गुण उपस्थिति अवश्य रहता है । यह दूसरी पीढ़ी में प्रकट होता है।
(2) पृथक्करण का नियम –
लक्षण कारकों के जोड़ों के दोनों कारक युग्म बनाते समय पृथक हो जाते हैं और उनमें से केवल एक कारक ही किसी एक युग्मक में पहुंचता है। इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
(3) स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम –
जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो दोनों लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है – एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।
कोशिका सिद्धांत (1838-39) –
इस सिद्धांत का प्रतिपादन पादप वैज्ञानिक मैथियास श्लाइडेन एवं जंतु वैज्ञानिक थियोडोर श्वान किया था, इसके अनुसार-
- प्रत्येक जीव का शरीर एक या अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है।
- कोशिका सभी जैविक क्रियाओं की मूलभूत इकाई है।
- कोशिका अनुवांशिकी की इकाई है, क्योंकि इनके केंद्रक में अनुवांशिकी पदार्थ पाया जाता है।
- रुडोल्फ विरचों (1855) प्रत्येक नई कोशिकाओं का निर्माण उसकी पूर्ववर्ती कोशिका के विभाजन द्बारा होता है।