विजय नगर साम्राज्य

विजय नगर साम्राज्य

विजय नगर साम्राज्य

  • संगम के पुत्र एवं होयसलों के सामन्त दो भाई हरिहर एवं बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की थी।
  • हरिहर एवं बुक्का के राजवंश का नामकरण संगम वंश उनके पिता के नाम पर हुआ था।
  • विजयनगर में तीन राजवंशों ने शासन किया था
  • संगम वंश (1336-1485 ई.)
  • सालुंव वंश (1485-1505 ई.)
  • तुलुव वंश (1505-1565 ई.)

संगम वंश (1336-1485)

हरिहर

  • संगम वंश एवं विजयनगर का शासन सर्वप्रथम हरिहर ने संभाला था, जिसने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना भी की थी।
  • 1336 ई.से 1356 ई. के शासनकाल में सम्पूर्ण होयसल राज्य पर अधिकार कर लिया था एवं मदुरा पर आधिपत्य कर लिया था।
  • बुक्का हरिहर की मृत्यु सन् 1356 ई. में हो गई थी।
  • उसकी मृत्यु के पश्चात्त उसका भाई बुक्का विजयनगर का शासक बन बैठा।
  • उसने मदुरा एवं तमिलनाडु पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।
  • वह उदार, न्यायप्रिय एवं साहित्यप्रेमी शासक था।
  • हरिहर द्वितीय 1377 ई. में वुक्का के पश्चात्त हरिहर II विजयनगर साम्राज्य का शासक बना था।
  • शासक बनते ही उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।
  • कांची, चिंगलपुर, मैसूर, कनारा एवं त्रिचनापल्ली पर उसने सफलतापूर्वक विजय प्राप्त की थी।
  • 1404 ई. में हरिहर II की मृत्यु हो गई थी।
  • 1404 ई. से 1430 ई. के मध्य विजयनगर साम्राज्य का शासन देवराय प्रथम, वीर विजय एवं रामचन्द्र ने संभाला था।
  • इसी अवधि में निकोलो कोंटी नामक इटेलियन यात्री विजयनगर में भ्रमणार्थ आया था।

देवराय द्वितीय

  • सन् 1430 ई. में देवराय द्वितीय ने विजयनगर साम्राज्य का शासन संभाला था।
  • वह 1430 ई.से 1446 ई. तक विजयनगर का शासक रहा था।
  • वह विजयनगर साम्राज्य का अन्तिम महान शासक था।
  • फारस का राजदूत अब्बदुर्रज्जाक देवराय द्वितीय के शासनकाल में विजयनगर आया था।
  • सन् 1446 ई । में देवराय की मृत्यु हो गई.
  • उसकी मृत्यु के पश्चात्त 1446-1485 ई. के दौरान सारे संगम वंशीय शासक अयोग्य एवं निर्वल सिद्ध हुए।
  • उनके समय में उड़ीसा के गजपति शासकों एवं वहमनी के सुल्तानों ने विजयनगर पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया था।
  • सालुंब नरसिंह नामक विरूपाक्ष के सामन्त ने आक्रमण कारियों से रक्षा के बहाने विरूपाक्ष की हत्या कर विजयनगर में एक नये राजवंश का उदय किया था।
  • यह सालुंव राजवंश था।

सालुंब राजवंश (1485-1505 .)  :-

नरसिंह

  • सालुम्ब नरसिंह नामक शासक ने सालुम्ब राजवंश को विजयनगर में स्थापित किया था।
  • यह इस वंश का प्रथम शासक था।
  • सालुम्ब नरसिंह को उड़ीसा के शासक पुरुषोत्तम गजपति ने गिरफ्तार कर लिया था।
  • सन् 1490 ई. तक नरसिंह इस वंश का शासक रहा था।

इम्माडि नरसिंह :-

  • सालुम्ब राजवंश का अन्तिम शासक के रूप में नाबालिग इम्माडि नरसिंह ने 1490 ई. में शासन का भार संभाला था।
  • इम्माडि नरसिंह का संरक्षक नरसानायक था।
  • इम्माड़ि नरसिंह के शासनकाल में नरसानायक ने चेर, चोल एवं पाण्डय शासकों को अपने अधीनस्थ कर लिया था एवं रायचूर दोआब के दुर्गों पर अधिकार कर लिया था।
  • सन् 1505 ई. में नरसानायक के पुत्र वीर नरसिंह ने इम्माड़ि नरसिंह की हत्या कर सालुम्ब राजवंश के स्थान पर तुलुव वंश की स्थापना की।

तुलुव वंश (1505-1565 .)

वीर नरसिंह :-

  • तुलुव वंश की स्थापना सन् 1505 ई. में वीर नरसिंह ने इम्माडि नरसिंह को मार कर की।
  • उसका सारा समय आक्रमणकारियों से लड़ने में व्यतीत हो गया।
  • 4 वर्ष बाद 1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु हो गई.

कृष्ण देवराय :-

  • सन् 1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु के पश्चात्त कृष्ण देवराय ने तुलुव वंश का शासन संभाला।
  • वह एक श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, महान् शासक एवं विद्वानों का संरक्षक था।
  • कृष्ण देवराय ने उड़ीसा के शासक गजपति रूद्रदेव को 1513-18 ई. के मध्य चार वार परास्त किया था।
  • कृष्ण देवराय का साम्राज्य पश्चिम में कोंकण, पूर्व में विजगापट्टम एवं कटक, दक्षिण में कन्याकुमारी तथा उत्तर में बीदर तक फैला हुआ था।
  • कृष्ण देवराय के शासनकाल की सम्पूर्ण जानकारी ‘आमुक्तमाल्यद’ नामक ग्रन्थ में मिलती है।
  • पुर्तगाली यात्री पेईज उसके साम्राज्य में भ्रमणार्थ आया था।
  • कृष्ण देवराय का शासनकाल तेलगु साहित्य का ‘शास्त्रीय युग’ माना जाता था।
  • कृष्ण देवराय की सन् 1529 ई. में मृत्यु हो गई थी।

अच्युतदेवराय तुलुव :-

  • अच्युतदेवराय तुलुव वंशीय शासक कृष्ण देवराय की मृत्यु 1529 ई. में अच्युत देवराय ने उत्तराधिकारी के रूप में शासन का भार संभाला था।
  • अच्युत देवराय नाममात्र का शासक था। अच्युत देवराय की सारी शक्ति सलकराज तिरूमल ने अपने हाथों में ले ली थी।
  • उसी दौरान तंजौर, मुदुरा एवं जिंजी राज्य स्वतन्त्रता की मांग करने लगे थे। सन् 1542 ई. में अच्युत देव राय की मृत्यु हो गई थी।
  • सदाशिव तुलुव वंश का अन्तिम शासक सदाशिव था। वह 1542 ई. में अच्युत देवराय के पश्चात्त तुलुव वंश का शासक बना था।
  • सदाशिव केवल नाम का शासक था, जबकि वास्तविक शासन की बागडोर रामराय ने संभाल रखी थी।
  • बीजापुर, गोलकुण्डा, बीदर एवं अहमदनगर के शासकों ने तुलुव वंश के शासक सदाशिव के शासनकाल में एक संघ बनाकर 23 जनवरी, 1565 ई. में ताल्ली कोटा (राक्षसी – तंगड़ी) के युद्ध में विजयनगर को पराजित कर रामराय को मार दिया गया।
  • ताल्ली कोटा के 1565 ई. के युद्ध के पश्चात्त सदाशिव ने पुनः अपना शासन पेनुगौंडा से संभाला।
  • सन् 1570 ई. में पेनुगोंडा में तिरूमल ने सदाशिव को हटाकर नये राजवंश की नींव डाली, इस राजवंश को अंडविदु राजवंश कहा गया।
  • सन् 1615 ई. तक यह राजवंश शासन में रहा। इसके पश्चात्त उस राज्य के अवशेषों पर वेदनुर, मदुरा, श्रीरंगपट्टम एवं तंजौर आदि स्वतन्त्र राज्यों का उदय हुआ।
  • इस तरह विजयनगर का पतन हो गया। विजयनगर के पतन के कारण विजयनगर प्रारम्भ से अन्त तक संघर्षशील रहा था।
  • साथ ही दक्षिण के इस्लामी राज्यों एवं उड़ीसा के गजपति शासकों का प्रतिरोध अन्त तक विजयनगर पर हावी रहा।

विजयनगर के पतन के कारण  :-

  • विजयनगर का सैनिक संगठन विल्कुल बेकार था।
  • सेना में इस्लामी राज्यों की अपेक्षा निम्नकोटि के उपकरण थे।
  • आन्तरिक अव्यवस्था, अयोग्य उत्तराधिकारी एवं विकृत आर्थिक व्यवस्था भी विजयनगर साम्राज्य के पतन के मूल कारक के रूप में उभर कर आई.
  • हिन्दू धर्म को आश्रय देना, दक्षिण राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के कारण भी विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ।

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